Vedvyas Ji Ki Katha i Bhaktmal Dvara Rachit Pauranik Katha वेदव्यास जी की जन्म कथा
Vedvyas Ji Ki Katha
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महर्षि वेदव्यास जी
स वै पुंसां परो धर्मो यतो भक्तिरधोक्षजे।
अहैतुक्यप्रतिहता ययाऽऽत्मा सम्प्रसीदति॥
(श्रीमद्भा० १।२।६)
‘इन्द्रियातीत परमपुरुष भगवान्में वह निष्काम एवं निर्बाध भक्ति हो, जिसके द्वारा वे आत्मस्वरूप सर्वेश्वर प्रसन्न होते हैं-यही पुरुषका परम धर्म है।’
कलियुगमें अल्प सत्त्व, थोड़ी आयु तथा बहुत क्षीण बुद्धिके लोग होंगे। वे सम्पूर्ण वेदोंको स्मरण नहीं रख सकेंगे, वैदिक अनुष्ठानों एवं यज्ञोंके द्वारा आत्म-कल्याण कर लेना कलियुगमें असम्भवप्राय हो जायगा-यह बात सर्वज्ञ दयामय भगवान्से छिपी नहीं थी। जीवोंके कल्याणके लिये भगवान् द्वापरके अन्तमें महर्षि वसिष्ठके पौत्र श्रीपराशर मुनिके अंशसे सत्यवतीमें प्रकट हुए। महर्षि कृष्णद्वैपायनके रूपमें भगवान्का यह अवतार कलियुगके प्राणियोंको शास्त्रीय ज्ञान सुलभ करनेके लिये हुआ था। vedvyas ji ki katha
व्यासजीका जन्म द्वीपमें हुआ, इससे उनका नाम द्वैपायन है; शरीरका श्याम वर्ण है, इससे वे कृष्णद्वैपायन हैं और वेदोंका विभाग करनेसे वेदव्यास हैं। भगवान् व्यास प्रकट होते ही माताकी आज्ञा लेकर तप करने चले गये। उन्होंने हिमालयकी गोदमें भगवान् नर-नारायणकी तपोभूमि बदरीवनके शम्याप्रासमें अपना आश्रम बनाया। वेदोंको यज्ञकी पूर्तिके लिये व्यासजीने चार भागोंमें विभक्त किया। अध्वर्यु, होता, उद्गाता एवं ब्रह्मा-यज्ञके इन चार ऋत्विक्-कर्म करानेवालोंके लिये उनके उपयोगमें आनेवाले मन्त्रोंका पृथक्-पृथक् वर्गीकरण कर दिया। इस प्रकार वेद चार भागोंमें हो गया। vedvyas ji ki katha
भगवान् व्यासने देखा कि वेदोंके पठन-पाठनका अधिकार तो केवल द्विजाति पुरुषोंको ही है, स्त्रियों, शूद्रों तथा अन्य वर्णबाह्य लोगोंका भी उद्धार होना चाहिये, उन्हें भी धर्मका ज्ञान होना चाहिये। इसलिये उन्होंने महाभारतकी रचना की। इतिहासके नाना आख्यानोंके द्वारा व्यासजीने धर्मके सभी अङ्गोंका महाभारतमें वर्णन किया बड़े सरल ढंगसे। vedvyas ji ki katha
भगवान् कृष्णद्वैपायन व्यासजीकी महिमा अगाध है। सारे संसारका ज्ञान उन्हींके ज्ञानसे प्रकाशित है। सब व्यासदेवकी गूंठन है। वेदव्यासजी ज्ञानके असीम और अनन्त समुद्र हैं, भक्तिके परम आदरणीय आचार्य हैं। विद्वत्ताकी पराकाष्ठा हैं, कवित्वकी सीमा हैं। संसारके समस्त पदार्थ मानो व्यासजीकी कल्पनाके ही अंश हैं। जो कुछ तीनों लोकोंमें देखने-सुननेको और समझनेको मिलता है, सब व्यासजीके हृदयमें था। इससे परे जो कुछ है, वह भी व्यासजीके अन्तस्तलमें था। व्यासजीके हृदय और वाणीका विकास ही समस्त जगत्का और उसके ज्ञानका प्रकाश और अवलम्बन है। व्यासजीके सदृश महापुरुष जगत्के उपलब्ध इतिहासमें दूसरा नहीं मिलता। जगत्की संस्कृतिने अबतक भगवान् व्यासके समान पुरुष उत्पन्न ही नहीं किया। व्यास व्यास ही हैं। vedvyas ji ki katha
व्यासजी सम्पूर्ण संसारके परम गुरु हैं। प्राणियोंको परमार्थका मार्ग दिखानेके लिये ही उनका अवतार है। उन सर्वज्ञ करुणासागरने ब्रह्मसूत्रका निर्माण करके तत्त्वज्ञानको व्यवस्थित किया। जितने भी आस्तिक सम्प्रदाय हैं, वे ब्रह्मसूत्रको प्रमाण मानकर उसके आधारपर ही स्थित हैं। परन्तु तत्त्वज्ञानके अधिकारी संसारमें थोड़े ही होते हैं। सामान्य समाज तो भावप्रधान होता है और सच तो यह है कि तत्त्वज्ञान भी हृदयमें तभी स्थिर होता है, जब उपासनाके द्वारा हृदय शुद्ध हो जाय। किंतु उपासना अधिकारके अनुसार होती है। अपनी रुचिके अनुसार ही आराधनामें प्रवृत्ति होती है। भगवान् व्यासने अनादिपुराणोंकी पुनः रचना आराधनाकी पुष्टिके लिये की। एक ही तत्त्वकी जो चिन्मय अनन्त लीलाएँ हैं, उन्हें इस प्रकार पुराणोंमें संकलित किया गया कि सभी लोग अपनी रुचि तथा अधिकारके अनुकूल साधन प्राप्त कर लें। vedvyas ji ki katha
वेदोंका विभाजन एवं महाभारतका निर्माण करके भी भगवान् व्यासका चित्त प्रसन्न नहीं हुआ था। वे सरस्वतीके तटपर खिन्न बैठे थे। उन्हें स्पष्ट लग रहा था कि उनका कार्य अभी अधूरा ही है। प्राणियोंकी प्रवृत्ति कलियुगमें न तो वैदिक कर्म तथा यज्ञादिमें रहेगी और न वे धर्मका ही सम्यक् आचरण करेंगे। धर्माचरणका परम फल मोक्ष उन्हें सुगमतासे प्राप्त हो, ऐसा कुछ हुआ नहीं था। व्यासजी अनन्त करुणासागर हैं। जीवोंकी कल्याण-कामनासे ही वे अत्यन्त चिन्तित थे। उसी समय वहाँ देवर्षि नारदजी पधारे। देवर्षिने चिन्ताका कारण पूछा और तब श्रीमद्भागवतका उपदेश किया। देवर्षिके चले जानेपर भगवान् व्यासने श्रीमद्भागवतको अठारह सहस्र श्लोकोंमें व्यक्त किया। vedvyas ji ki katha
जीवका परम कल्याण भगवान्के श्रीचरणोंमें चित्तको लगा देने में ही है। सभी धर्मोंका यही परम फल है कि उनके आचरणसे भगवान्के गुण, नाम, लीलाके प्रति हृदयमें अनुरक्ति हो। व्यासजीने समस्त प्राणियोंके कल्याणके लिये पुराणों में भगवान्की विभिन्न लीलाओंका अधिकारभेदके समस्त दृष्टिकोणोंसे वर्णन किया। भगवान् व्यास अमर हैं, नित्य हैं। वे उपासनाके सभी मार्गोंके आचार्य हैं और अपने संकल्पसे वे सभी परमार्थके साधकोंकी निष्ठाका पोषण करते रहते हैं। vedvyas ji ki katha
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