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Vashishth Muni Ji Ki Katha In Hindi || Bhakt Charitank

Vashishth Muni Ji Ki Katha In Hindi

ब्रह्म ऋषि वशिष्ठ सब साधन कर यह फल भाई भजिअ राम सब काम बिहाई।। 

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मित्रावरुण से वशिष्ठ जी की उत्पत्ति कही गयी है और फिर नीमी के शाप से देह त्यागकर वे आग्नेय पुत्र हुए। वैसे वे सृष्टि के प्रथम कल्प में ब्रह्माजी के मानस पुत्र थे सती शिरोमणि भगवती अरुंधति उनकी पत्नी है जब ब्रह्मा जी ने इन्हें सूर्यवंश का पुरोहित बनने को कहा तब ये उसे अस्वीकार करने लगेे। Vashishth Muni Ji Ki Katha In Hindi

शास्त्रोंमें पुरोहित का पद ब्राह्मणों के लिए श्रेष्ठ नहीं माना गया है। जिसमें धन का लोभ न हो विषय भोगों की इच्छा न हो वह भला क्यों ऐसे छोटे काम को स्वीकार करें। परंतु ब्रह्मा जी ने समझाया बेटा मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम इसी वंश में आगे चलकर प्रकट होंगे तुम उनके गुरु का गौरवशाली पद पाकर कृतार्थ हो जाओगे। इससे वशिष्ठ जी ने यह पद स्वीकार कर लिया।

पहले पूरे सूर्यवंश के वशिष्ठ जी ही पुरोहित थे किंतु निमी से विवाद हो जाने के कारण सूर्यवंश की दूसरी शाखाओं का पुरोहित कर्म इन्होंने छोड़ दिया और ये अयोध्या के समीप आश्रम बनाकर रहने लगे ये केवल इक्षवांकु के वंश का ही पौरोहित्य करते थे। Vashishth Muni Ji Ki Katha In Hindi 

जब कभी अनावृष्टि होती अकाल पड़ता तब अपने तपोबल से वृष्टि करके यह प्रजा की रक्षा करते थे। जब भी अयोध्या के राजकुल पर कोई संकट आयावशिष्ठ जी ने अपने तपोबल से उसे दूर कर दिया। भागीरथ जब तपस्या करते हुए गंगाजी को लाने के विषय में निराश हो गए तब वशिष्ठ जी ने ही उन्हें प्रोत्साहित किया और मंत्र बताया। महाराज दिलीप के कोई संतान नहीं होती थी तब संतान के लिए नंदिनी गो की सेवा बताकर राजा का मनोरथ वशिष्ठ जी ने ही पूर्ण किया। Vashishth Muni Ji Ki Katha In Hindi 

एक बार जब विश्वामित्र जी राजा थे सेना के साथ वशिष्ठ जी के अतिथि हुए। वशिष्ठ जी ने अपनी कामधेनू गौ के प्रभाव से भलीभांति राजा का तथा सेना का अनेक प्रकार की भोजन सामग्री से सत्कार किया। गऊ का प्रभाव देखकर विश्वामित्र उसे लेने को उद्धत हो गए परंतु किसी भी मूल्य पर किसी भी पदार्थ के बदले कोई ऋषि गौ विक्रिया नहीं कर सकता। अंत में विश्वामित्र जी बलपूर्वक गाय को छीन लेने को उद्धत हो गये किंतु वशिष्ठ जी ने अपने ब्रह्मबल से अपार सेना उत्पन्न करके विश्वामित्र को पराजित कर दिया पराजित होने पर विश्वामित्र जी का द्वेष और बढ़ गया। वे तपस्या करके शंकर जी से अनेक प्रकार के दिव्यास्त्र प्राप्त कर फिर आए किंतु महर्षि वशिष्ठ के ब्रह्मदंड के सन्मुख उन्हें पराजित ही होना पड़ा। अब उन्होंने उग्र तप करके ब्राह्मणत्व प्राप्त करने का निश्चय किया। Vashishth Muni Ji Ki Katha In Hindi

विश्वामित्रजी ने महर्षि वशिष्ठ के सौ पुत्र मार दिए किंतु यह महर्षि तो क्षमा की मूर्ति थे। विश्वामित्र पर इनका तनिक भी रोष नहीं था। एक दिन रात्रि में छिपकर विश्वामित्र जी जब इन्हें मारने आए तब उन्होंने सुना कि एकांत में वशिष्ठ अपनी पत्नी से कह रहे हैं इस सुंदर चांदनी रात में तप करके भगवान को संतुष्ट करने का प्रयत्न तो विश्वामित्र जैसे बड़भागी ही करते हैं। शत्रु की एकांत में भी प्रशंसा करने वाले महापुरुष से द्वेष करने के लिए विश्वामित्र जी को बड़ा पच्छाताप हुआ। वे शस्त्र फेंककर महर्षि के चरणों पर गिर पड़े। वशिष्ट जी ने उन्हें हृदय से लगा लिया और ब्रह्म ऋषि स्वीकार किया। Vashishth Muni Ji Ki Katha In Hindi 

भगवान श्रीराम को शिष्यरूपमें पाकर वशिष्ट जी ने अपने पुरोहित पद को धन्य माना योगवाशिष्ठ जैसे ज्ञान के मूर्त रूप ग्रंथ का उन्होंने श्री राम को उपदेश किया। वशिष्ठ संहिता के द्वारा उन्होंने कर्म के महत्व एवं आचरण का आदर्श लोक में स्थापित किया। उनके अनेक विस्तृत चरित्र पुराणों तथा अन्य शास्त्रीय ग्रंथों में है। उनका जीवन तो श्री राम के प्रेम की मूर्ति ही है। उनका एक ही दृढ़ निश्चय था। vashishth muni

राखे राम रजाई रुख हम सब कर हित होई।।

श्री भरत लाल जानते थे कि यदि गुरुदेव आज्ञा करें तो रघुनाथ जी वनसे अयोध्या लौट चलेंगे किंतु वे यह भी जानते थे।

मुनि पुनि कहब राम रुख जानी।

श्री राम की क्या इच्छा है यह जानकर महर्षि सदा उसके अनुकूल ही चलेंगे श्री राम की इच्छा में अपनी इच्छा को उन्होंने एक कर दिया था। आज भी जगत के कल्याण के लिए वशिष्ठ जी देवी अरुंधति के साथ सप्तर्षियों में स्थित है। 

उम्मीद करता हूं दोस्तों वशिष्ट जी के ऊपर लिखी यह कथा आपको पसंद आई होगी यह कथा भक्त चरितांक से ली गई है ऐसी और भी बहुत सारी कथाएं पढ़ने के लिए आप हमारी वेबसाइट विजिट कर सकते हैं धन्यवाद 

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