Sati Ansuya Ki Katha In Hindi Pativrat Dharm Ki Takat
sati ansuya ki katha
दोस्तों आइए जानते हैं एक ऐसी भक्त मती साध्वी सती अनुसूया जी के बारे में जिन्होंने ब्रह्मा विष्णु महेश को भी अपने सतित्व की शक्ति से 6,6 महीनों के बालक बना दिए थे। sati ansuya ki katha
सती अनुसूया
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भारतवर्ष की सती साध्वी स्त्रियों में अनुसूया जी का स्थान बहुत ही ऊंचा है इनका जन्म अत्यंत उच्च कुल में हुआ था स्वयंभू मनु की पुत्री देवी देवहुती इनकी माता और ब्रह्मर्षि कर्दम इनके पिता थे भगवान विष्णु के अवतार सिद्धेश्वर कपिल इनके छोटे भाई हैं अनुसूया जी में अपने वंश के अनुरूप ही सत्य धर्मशील सदाचार विनय लज्जा क्षमा सहिष्णुता तथा तपस्या आदि सद्गुणों का स्वाभाविक रूप से विकास हुआ था ब्रह्माजी के मानस पुत्र परम तपस्वी महर्षि अत्रि को इन्होंने पति रूप में प्राप्त किया अपनी सतत सेवा तथा पावन प्रेम से अनसूया ने महर्षि अत्रि के हृदय को जीत लिया था पतिवर्ता तो यह थी ही तपस्या में भी बहुत चड्डी बडी थी किंतु पति की सेवा को ही यह नारी के लिए परम कल्याण का साधन मानती थी पातीव्रत्य के प्रभाव से ही इन्होंने ब्रह्मा विष्णु शंकर को शिशु बनाकर गोद में खिलाया था। जिस समय भगवान श्री राम का वनवास हुआ था और वह सीता तथा लक्ष्मण को साथ लेकर वन में गए उस समय वह महर्षि अत्रि के भी अतिथि हुए थे। वहां अनुसूया जी ने सीता का बड़ा सत्कार किया श्री महर्षि अत्रि ने श्री राम के सामने अपने मुख से अनुसूया के प्रभाव का वर्णन करते हुए कहा था। कि श्री राम यह वही अनुसूया देवी है यह तुम्हारे लिए माता की भांति पूजनीय है विदेह राजकुमारी सीता इनके पास जाएं यह संपूर्ण प्राणियों के लिए वंदनीय है अत्री जैसे महर्षि जिन का गुणगान इस तरह करते हैं उन पति परायण अनुसूया जी की महिमा का वर्णन कौन कर सकता है महर्षि अत्रि तथा श्री रघुनाथ जी की आज्ञा से सीता ने आश्रम के भीतर जाकर शांत भाव से अनुसूया जी के चरणों में प्रणाम किया अपना नाम बतलाया और हाथ जोड़कर बड़ी प्रसन्नता से उन तपस्विनी देवी का कुशल समाचार पूछा। उस समय अनसूया जी ने सीता को सांत्वना देते हुए जिस प्रकार सती धर्म का महत्व बतलाया वह प्रत्येक नारी के लिए अनुकरणीय तथा कंठ हार बनाने योग्य है अनुसूया जी बोली सीते यह जानकर मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई है कि तुम सदा धर्म पर दृष्टि रखती हो बंधु बांधुओं को छोड़कर और उनसे प्राप्त होने वाली मान प्रतिष्ठा का परित्याग करके तुम वन में भेजे हुए राम का अनुसरण कर रही हो यह बड़े सौभाग्य की बात है अपनी स्वामी नगर में रहे या वन में भले हो या बुरे जिन स्त्रियों को वे प्रिय होते हैं उन्हें महान अभ्युदयशाली लोकों की प्राप्ति होती है पति बुरे स्वभाव का मनमाना बर्ताव करने वाला अथवा धनहीन ही क्यों ना हो वह उत्तम स्वभाव वाली नारियों के लिए श्रेष्ठ देवता के समान है वैदेही मैं बहुत विचार करने पर भी पति से बढ़कर कोई हितकारी बंधु नहीं देखती तपस्या के अविनाशी फल की भांति वह इस लोक और परलोक में सर्वत्र सुख पहुंचाने में समर्थ होता है जो असाध्वी स्त्रियां अपने पति पर भी शासन करती है वह इस प्रकार पति का अनुसरण नहीं करती उन्हें गुण दोषों का ज्ञान नहीं होता ऐसी नारीया अनुचित कर्मों में फस कर धर्म से भ्रष्ट हो जाती है और संसार में उन्हें अपयश की प्राप्ति होती है; किंतु जो तुम्हारे जैसी लोक परलोक को जानने वाली साध्वी स्त्रियां हैं वे उत्तम गुणों से युक्त होकर पुण्य कर्मों में संलग्न रहती है अतः तुम उसी प्रकार अपने पतिदेव श्री रामचंद्र जी की सेवा में लगी रहो सती धर्म का पालन करो पति को प्रधान देवता समझो और प्रत्येक समय उनका अनुसरण करती हुई उनकी सहधर्मिणी बनो इससे तुम्हें धर्म और सुयश दोनों की प्राप्ति होगी तदनंतर सीता जी ने भी क्षति धर्म की महिमा सुनाई उसे सुनकर अनुसूया को बड़ी प्रसन्नता हुई उन्होंने कहा सीते तुम्हें आवश्यकता हो या ना हो तुम्हारी निर्लोभता से मुझे जो हर्ष हुआ है उसे मैं अवश्य सफल करूंगी यह हार वस्त्र आभूषण अंगराग और उत्तम उत्तम अनुलेपन मैं तुम्हें देती हूं इनसे तुम्हारे अंगों की शोभा होगी यह सब तुम्हारे ही योग्य है बेटी पहले मेरे सामने ही इन दिव्य वस्त्र और आभूषणों को धारण कर लो और इन से सुशोभित होकर मुझे प्रसन्न करो इस प्रकार सीता का सत्कार करने करके अनुसूया जी ने प्रेम पूर्वक उनको विदा किया।
उम्मीद करता हूं दोस्तों यह सती अनसूया जी की कथा आपको पसंद आई होगी ऐसी ही और कथाएं पढ़ने के लिए भक्त भक्तमतिया साधु संत ऋषि मुनि कवि आदि के बारे में जानकारी के लिए आप हमारी वेबसाइट पर विजिट कर सकते हैं।
Very nice and wonderfull or surprised effert…good luck
Thanks dear
Very nice
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