Puhalo Bai Ki Nasihat || Fulobai Ki Sikh Raniyo Ko
Puhalo Bai Ki Nasihat
पुहलोबाई की नसीहत एक सुंदर कथा
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एक राजा ने पुहलो बाई के ज्ञान-विचार सुने, बहुत प्रभावित हुआ। उस राजा की तीन रानियाँ थी। राजा ने अपनी रानियों को पुहलो बाई के विषय में बताया। राजा ने कई बार पुहलो बाई भक्तिन की अपनी रानियों के सामने प्रशंसा की। अपने पति के मुख से अन्य स्त्राी की प्रशंसा सुनकर रानियों को अच्छा नहीं लगा। परंतु कुछ बोल नहीं सकी। उन्होंने भक्तमति पुहलो बाई को देखने की इच्छा व्यक्त की। राजा ने पुहलो बाई को अपने घर पर सत्संग करने के लिए कहा तो पुहलो बाई ने सत्संग की तिथि तथा समय राजा को बता दिया। सत्संग के दिन रानियों ने अति संुदर तथा कीमती वस्त्रा पहने तथा सब आभूषण पहने। अपनी सुंदरता दिखाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी। रानियों ने सोचा था कि पुहलो बहुत संुदर होगी। भक्तमति पुहलो राजा के घर आई। उसने खद्दर का मैला-सा वस्त्रा धारण कर रखा था। हाथ में माला थी, चेहरे का रंग भी साफ नहीं था। भक्तमति पुहलो को देखकर तीनों रानियाँ खिल-खिलाकर हँसने लगी और बोली कि यह है वह पुहलो, हमने तो सोचा था कि बहुत सुंदर होगी। उनकी बात सुनकर भक्तमति पुहलो बाई ने कहा किः- Puhalo Bai Ki Nasihat
वस्त्र-आभूषण तन की शोभा, यह तन काच्चो भाण्डो।
भक्ति बिना बनोगी कुतिया, राम भजो न रांडो।।
भावार्थ:- सुंदर वस्त्र तथा आभूषण शरीर की शोभा बढ़ाते हैं। यह शरीर नाशवान है जैसे कच्चा घड़ा होता है। यह शरीर क्षण भंगुर है। न जाने किस कारण से, किस आयु में और कब कष्ट हो जाए। यदि भक्ति नहीं की तो अगले जन्म में कुतिया का जन्म पाओगी। फिर निःवस्त्र भटकती फिरोगी। इसलिए कहा है ‘राण्डो‘ अर्थात् स्त्रिायों भक्ति करो। ‘राण्ड‘ शब्द विधवा के लिए प्रयोग होता है। परंतु सामान्य रीति में स्त्रिायाँ अपनी प्रिय सखियों को प्यार से सम्बोधित करने में प्रयोग किया करती। अब शिक्षित होने पर यह शब्द प्रयोग नहीं होता। Puhalo Bai Ki Nasihat
भक्तमति पुहलो बाई ने सत्संग सुनाया। कबीर परमेश्वर जी की साखियाँ सुनाई:-
कबीर, राम रटत कोढ़ी भलो, चू-चू पड़े जो चाम।
सुंदर देहि किस काम की, जा मुख नाहीं नाम।।
कबीर, नहीं भरोसा देहि का, विनश जाए छिन माहीं।
श्वांस-उश्वांस में नाम जपो, और यत्न कुछ नाहीं।।
कबीर, श्वांस-उश्वांस में नाम जपो, व्यर्था श्वांस मत खोओ।
ना जाने इस श्वांस का, आवन हो के ना होय।।
गरीब, सर्व सोने की लंका थी, रावण से रणधीरम्।
एक पलक में राज्य गया, जम के पड़े जंजीरम्।।
गरीब, मर्द-गर्द में मिल गए, रावण से रणधीरम्।
कंस, केसि, चाणूर से, हिरणाकुश बलबीरम्।।
गरीब, तेरी क्या बुनियाद है, जीव जन्म धरि लेत।
दास गरीब हरि नाम बिन, खाली रह जा खेत।।
भक्तिन पुहलो ने इस संसार की वास्तविकता बताई तथा भक्ति बिना होने वाले कष्ट बताए। छोटे-से राज्य के टुकड़े को प्राप्त करके आप इतना गर्व कर रहे हो, यह व्यर्थ है। लंका का राजा रावण ने सोने के मकान बना रखे थे। सत्य भक्ति न करने से राज्य भी गया, स्वर्ण भी यहीं रह गया, नरक का भागी बना। राजा-रानियों ने उपदेश लेकर भक्ति की तथा जीवन धन्य बनाया।
कबीर, हरि के नाम बिन, राजा रषभ होय।
मिट्टी लदे कुम्हार के, घास न नीरै कोए।।
भगवान की भक्ति न करने से राजा गधे का शरीर प्राप्त करता है। कुम्हार के घर पर मिट्टी ढ़ोता है, घास स्वयं जंगल में खाकर आता है। Puhalo Bai Ki Nasihat
फिर पीछे तू पशुआ किजै, दीजै बैल बनाय।
चार पहर जंगल में डोले, तो नहीं उदर भराय।।
सिर पर सींग दिए मन बौरे, दूम से मच्छर उड़ाय।
कांधै जूआ जोतै कूआ, कोंदों का भुस खाय।।
भावार्थ:- गधे का शरीर पूरा करके वह प्राणी बैल की योनि प्राप्त करता है। मानव शरीर में जीव को कितनी सुविधाऐं प्राप्त थी। भूख लगते ही खाना खाओ, दूध पीओ, चाय पीओ, प्यास लगे तो पानी पी लो। भक्ति न करने से वही प्राणी बैल बनकर सुबह से शाम तक चार पहर अर्थात् 12 घण्टे तक जंगल में फिरता है, हल में जोता जाता है। दिन में केवल दो बार आहार बैल को खिलाया जाता है दोपहर 12 बजे तथा रात्रि में। परंतु बैल को बीच में भूख लगी है और चारों ओर चारा भी पड़ा होता है, लेकिन खा नहीं सकता। हाली उसको घास नहीं खाने देता, पानी भी समय पर दिन में दो या तीन बार पिलाया जाता है। सिर पर सींग तथा एक दुम (पूँछ) लगे होंगे। जब मानव शरीर में था, तब वह जीव कूलर, पंखे तथा ए.सी. कमरों में रहता था। अब एक दुम है, इसको चाहे कूलर की जगह, चाहे पंखे की जगह प्रयोग करो, उसी से मच्छर उड़ाता है।
सत्संग में यह भी बताया गया कि घर में कलह का कारण परमात्मा के विधान को न समझकर संसार के भाव में चलना है। घर का कोई सदस्य घर में हानि नहीं करना चाहता। किसी कारण से हानि हो जाती है तो उसको लेकर कलह नहीं करनी चाहिए। जो हानि होनी थी, वह तो हो चुकी है, वह तो ठीक होनी नहीं। व्यर्थ की कलह करना समझदारी नहीं है। जिससे गलती से कोई हानि हो जाती है तो उसे कहना चाहिए, हे बेटा-बेटी, माता-पिता या सास-बहू! यह जो हो गया, यह अपने भाग्य में नहीं था। आपने जान-बूझकर तो किया नहीं है। इस बात से घर में शांति कायम रहती है। कलह में काल निवास करता है। भूत-प्रेतों का उस घर में डेरा होता है। जो कलह नहीं करते, वे सुख से बसते हैं। जिस घर में परमात्मा की भक्ति (आरती-स्तुति, ज्योति यज्ञ) होती है, उस घर में देवताओं का निवास होता है। Puhalo Bai Ki Nasihat
सत्संग सुनकर सब अपने-अपने घर चली गई। सत्संग दिन के 12 बजे से 02 बजे तक हुआ था। पुत्रवधु को पता नहीं था कि सासू-माँ सत्संग में गई थी। अगले दिन सुबह भैंस का दूध निकालकर पुत्रावधु उस दूध की भरी बाल्टी को छत में लगे कुण्डे वाले सरिये में प्रतिदिन की तरह टांगने लगी। उसे लगा कि बाल्टी टंग गई, परंतु सरिये के उल्टी ओर बाल्टी का कड़ा लगा था। पुत्रावधु ने सोचा कि ठीक लगा है और बाल्टी छोड़ दी। बाल्टी पृथ्वी पर गिर गई। दूध बिखर गया। आवाज सुनकर भतेरी आई और पुत्रावधु दूध की बजाय सासू-माँ की ओर मायूसी से देख रही थी। बोलना उचित नहीं समझा क्योंकि पुत्रावधु को पता था कि सासू-माँ किसी भी सफाई के वचन नहीं सुनती थी। सोच रही थी कि आज का सारा दिन कलह में जाएगा। शाम को पति आएगा, उससे भी पिटाई करवाएगी। हे परमात्मा! यह कौन बनी? ऐसी गलती तो कभी नहीं हुई थी। हे सतगुरू! कुछ तो दया करो। मैं तो आपकी भक्ति भी भूलने को हो रही हूँ। मुझे तो सारा दिन सासू-माँ के श्लोक याद रहते हैं। भतेरी बोली, बेटी! जो होना था, वह हो गया। आज हमारे भाग्य में दूध है नहीं। चिंता ना कर। इस दूध को ऊपर से हाथों से बाल्टी में डालकर भैंस को पिला दे। यह कहकर जो नाम दीक्षा ली थी, उसका जाप करने लग गई। Puhalo Bai Ki Nasihat
पुत्रावधु को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था। सोच रही थी कि माता जी आज पता नहीं कौन-सा स्टेशन (रेडियो आकाशवाणी) पकड़ गई। ये शीतल वचन भतेरी की बोरी (बारदाना) में नहीं थे। इसमें खल भरी थी। आसपास से निकलती थी, तब भी बड़बड़ की झल निकलती थी। पुत्रवधु का नाम निशा था। वह सोच रही थी कि:- निशा आज निशा (रात्रि) में तेरी बुरी होगी दशा। निशा की सोच थी कि पति को बताएगी। वह माता की बात सुनकर मेरी कुछ नहीं सुनता। अच्छी-बुरी कहेगा। सारा दिन और रात्रि रोने में जाएगी। निशा ने दूध बाल्टी में डालकर भैंस को पिला दिया। बाल्टी धोकर रख दी। भतेरी आई और बोली कि बेटी! रोटी खा ले। चिंता मत कर। बेटी! मैं कल मेरी बहन दयाकौर के साथ दिन में सत्संग में गई थी। मेरी तो आँखें खुल गई। मैं तो बहुत कलहारी बनी हुई थी। बेटी हो सके तो क्षमा कर देना। पीछे हुआ सो हुआ, आगे से अपनी बेटी को पलकों पर रखूँगी। मेरी असली बेटी तो तू है। जन्मी बेटी तो अगलों की थी, वह चली गई। अपना दुःख-सुख साझा है। मेरी तो एक दिन के सत्संग ने ही आँखें खोल दी। बेटी! अगले रविवार को आप भी चलना, मैं भी चलूँगी। धीरे-धीरे बेटे को भी ले चलेंगे। निशा ने अपने गुरू जी का फोटो (स्वरूप) कपड़ों में छिपा रखा था। फोटो निकालकर चरणों में शीश रखकर कहा कि हे गुरूवर! आज आपने अपनी बेटी की पुकार सुन ली। घर स्वर्ग बना दिया। शाम को चत्तर सिंह आया तो माता ने दूध गिरने का जिक्र भी नहीं किया। कुछ दिन बाद चत्तर सिंह को भी नाम दिला दिया। कुछ समय पश्चात् निशा के गुरू जी आ गए। निशा ने बताया कि गुरू जी! मेरी सासू-माँ बहुत अच्छी हैं। इसने भी गुरू का नाम ले लिया है। भतेरी ने कहा, महाराज जी! निशा ने कभी नहीं बताया कि इसने दीक्षा ले रखी है। यह मेरी कलह से डरती होगी। अब बताया है जब मैंने नाम ले लिया। अच्छा किया इसने, यदि पहले बता देती तो मैं और अधिक दुःखी करती और पाप की भागी बनती। निशा के गुरू जी ने कहा, माई भतेरी! आप तो आसमान से गिरी और खजूर में अटकी हो क्योंकि आपकी दीक्षा शास्त्रानुकूल नहीं है। सत्य साधना बिना मोक्ष नहीं हो सकता। जैसे रोग की सही औषधि खाने से ही रोग से मोक्ष मिलता है। इसी प्रकार सत्य साधना करने से जन्म-मरण के रोग से मुक्ति मिलती है। निशा ने सोचा कि सासू-माँ नाराज ना हो जाए। इसलिए बीच में ही बोल उठी कि गुरू जी! सुना है आपने नई पुस्तक लिखी है, वह संगत ने छपवाई है। क्या आपके पास है? गुरू जी बोले, हे बेटी! आपको देने के लिए आया हूँ। यह कहकर गुरू जी दूसरे कक्ष में गए जिसमें ठहरे थे। उसमें थैला रखा था। निशा भी साथ-साथ गई और बोली, गुरूदेव! भिरड़ के छत्ते को मत छेड़ो, मुश्किल से शांत हुआ है। गुरू जी बोले, हे बेटी! अब तेरी सास जी की पूरी रूचि भक्ति में है, अब यह मानेगी। गुरू जी तीन दिन रूके, तत्वज्ञान समझाया। भतेरी ने भी गुरू बदल लिया और अपना कल्याण करवाया। सत्संग से घर स्वर्ग बन गया। चारों ओर शांति हो गई। जहाँ गाली-गलौच के सारा दिन गोले छूटते थे, अब उस घर में परमात्मा के ज्ञान की गंगा बहने लगी। भक्तमति निशा के गुरू जी परमेश्वर कबीर जी थे जो अन्य वेश में सत्य भक्ति प्रचार करने के लिए घूमते-फिरते थे। उन्होंने बताया कि किस प्रभु की भक्ति करनी चाहिए? पढ़ें इसी पुस्तक मे। Puhalo Bai Ki Nasihat
निष्कर्ष:- परमेश्वर कबीर जी ने बताया है कि:-
मन नेकी कर ले, दो दिन का मेहमान।।टेक।।
मात-पिता तेरा कुटम कबीला, कोए दिन का रल मिल का मेला।
अन्त समय उठ चले अकेला, तज माया मण्डान।।1
कहाँ से आया, कहाँ जाएगा, तन छूटै तब कहाँ समाएगा।
आखिर तुझको कौन कहेगा, गुरू बिन आत्म ज्ञान।।2
कौन तुम्हारा सच्चा सांई, झूठी है ये सकल सगाई।
चलने से पहले सोच रे भाई, कहाँ करेगा विश्राम।।3
रहट माल पनघट ज्यों भरिता, आवत जात भरै करै रीता।
जुगन-जुगन तू मरता जीता, करवा ले रे कल्याण।।4
लख-चैरासी की सह त्रासा, ऊँच-नीच घर लेता बासा।
कह कबीर सब मिटाऊँ, कर मेरी पहचान।।5
भावार्थ:- परमेश्वर कबीर जी ने अपने मन को सम्बोधित करके हम प्राणियों को सतर्क किया है कि इस संसार में दो दिन का यानि थोड़े समय का मेहमान है। इस थोड़े-से मानव जीवन में आत्म ज्ञान के अभाव से अनेकों पाप इकट्ठे करके अनमोल मानव जीवन नष्ट कर जाता है। धन कमाने की विधि तो संसार के व्यक्ति बता सकते हैं, परंतु गुरूदेव जी के बिना आत्म ज्ञान यानि जीव कहाँ से आया? मनुष्य जीव का मूल उद्देश्य क्या है? सतगुरू धारण किए बिना यानि दीक्षा लिए बिना जीव का मानव जन्म नष्ट हो जाता है। यह बात गुरू जी के बिना कोई नहीं बताएगा। चाहे पृथ्वी का राजा भी बन जा, परंतु भविष्य में पशु जन्म मिलेगा। जन्म-मरण का चक्र गुरू जी के ज्ञान व दीक्षा मंत्र (नाम) बिना समाप्त नहीं हो सकता। जब तक जन्म-मरण का चक्र समाप्त नहीं होता तो बताया है कि:- Puhalo Bai Ki Nasihat
यह जीवन हरहट का कुँआ लोई। या गल बन्धा है सब कोई।।
कीड़ी-कुंजर और अवतारा। हरहट डोर बन्धे कई बारा।।
भावार्थ:- जैसे रहट के कूँए में लोहे की चक्री लगी होती है। उसके ऊपर बाल्टी वैल्ड की जाती है। पहले बैल या ऊँट से चलाते थे, जैसे कोल्हू बैल-ऊँट से चलाते हैं। (पहले अधिक चलाते थे) रहट की बाल्टी नीचे कूँए से पानी भरकर लाती है। ऊपर खाली हो जाती है। यह चक्र सदा चलता रहता है। इसी प्रकार पृथ्वी रूपी कूँए से पाप तथा पुण्यों की बाल्टी भरी ऊपर स्वर्ग-नरक में खाली की। इस प्रकार जन्म-मरण के चक्र में जीव सदा रहता है। ऊपर के शब्द में यही समझाया है कि संसार में परिवार-धन सब त्यागकर एक दिन अकेला चला जाएगा। फिर कहीं अन्य स्थान पर जन्म लेकर यही क्रिया करके चला जाएगा। यदि आप घर से किसी अन्य शहर में जाते हैं तो जाने से पहले निश्चित करते हो कि वहाँ जाऐंगे। उसके बाद कहाँ विश्राम करेंगे। परंतु संसार छोड़कर जाते हो तो कभी विचार नहीं करते कि कहाँ विश्राम करोगे। हे जीव! चैरासी लाख प्रकार के प्राणियों के शरीरों में प्रताड़ना सहन करता है। मरता-जीता (नये प्राणी का जीवन प्राप्त करता) है। कभी राजा बनकर उच्च बन जाता है, कभी कंगाल बनकर नीच कहलाता है। परमात्मा कबीर जी समझा रहे हैं कि हे प्राणी! तू मेरे को पहचान, मैं समर्थ परमात्मा हूँ। मैं तेरा जन्म-मरण का सर्व झंझट समाप्त कर दूँगा। Puhalo Bai Ki Nasihat
नाम सुमरले सुकर्म करले, कौन जाने कल की।।
खबर नहीं पल की (टेक)
कोड़ि-2 माया जोड़ी बात करे छल की,
पाप पुण्य की बांधी पोटरिया, कैसे होवे हल्की।।1।।
मात-पिता परिवार भाई बन्धु, त्राीरिया मतलब की,
चलती बरियाँ कोई ना साथी, या माटी जंगल की।।2।।
तारों बीच चंद्रमा ज्यों झलकै, तेरी महिमा झला झल्की,
बनै कुकरा, विष्टा खावै, अब बात करै बल की।।3।।
ये संसार रैन का सपना, ओस बंूद जल की,
सतनाम बिना सबै साधना गारा दलदल की।।4।।
अन्त समय जब चलै अकेला, आँसू नैन ढलकी,
कह कबीर गह शरण मेरी हो रक्षा जल थल की।।5।।
भावार्थ:- परमात्मा कबीर जी ने बताया है कि हे भोले मानव (स्त्री/पुरूष)! परमात्मा का नाम जाप कर तथा शुभ कर्म कर। पता नहीं कल यानि भविष्य में क्या दुर्घटना हो जाएगी। एक पल का भी ज्ञान नहीं है।
धन का संग्रह छल-कपट किए बिना होगा ही नहीं जिसमें से कुछ धर्म पर भी खर्च कर देता है। इस प्रकार पाप तथा पुण्य की दो गठरी बाँध ली। ये कैसे हल्की होंगी। पाप नरक में पुण्य स्वर्ग में। माता-पिता, भाई-पत्नी आदि-आदि परिजन अपने-अपने मतलब की बातें सोचते हैं। पूर्व जन्मों के कारण परिवार रूप में जुड़े हैं। जिस-जिसका समय पूरा हो जाएगा, संस्कार समाप्त होता जाएगा, वह तुरंत परिवार छोड़कर चला जाएगा। जैसे रेल में डिब्बा भरा होता है, जिस-जिसने जहाँ-जहाँ की टिकट ले रखी है, वहाँ-वहाँ उतरकर चले जाते हैं। यह परिवार रेल के डिब्बे की तरह है। मृत्यु के उपरांत यह शरीर मिट्टी हो जाता है। उस समय तेरा कोई परिवार का सदस्य साथी नहीं होगा। Puhalo Bai Ki Nasihat
एक व्यक्ति अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करता था। वृद्ध हुआ तो उसकी मृत्यु निकट थी। उसने अपनी पत्नी से कहा कि आप मेरे साथ चलोगी। वह तुरंत मना कर गई कि ‘‘ना मैं ना मरूं तेरे साथ। तेरे तै तीन साल छोटी सूं।’’ वृद्ध को उस दिन सदमा हो गया। उसने उससे बात करना भी बंद कर दिया। निकट आए तो मुँह मोड़ ले। बोले कुछ नहीं। 60 वर्ष के साथ में उस वृद्ध को पहली बार अहसास हुआ कि कोई किसी का नहीं है। हे मानव! पूर्व जन्म के जप-तप तथा धर्म संस्कार से वर्तमान में मंत्राी, प्रधानमंत्राी या उच्च अधिकारी बनकर ऐसे सुशोभित हो रहा है जैसे रात्रि में तारों के मध्य में चाँद की शोभा होती है। यदि सत्संग विचार नहीं सुने तो आत्म ज्ञान के बिना परमात्मा की भक्ति न करके भविष्य के जन्म में कुत्ता बनकर बिष्टा (गोबर-टट्टी) खाएगा। अब तू अपने बल यानि शारीरिक शक्ति, पद की ताकत की बातें करता है। फिर पशु बनकर महान कष्ट उठाएगा। Puhalo Bai Ki Nasihat
नर से फिर पशुवा कीजै, गधा-बैल बनाई।
छप्पन भोग कहाँ मन बोरे, कुरड़ी चरने जाई।।
संसार में तेरा जीवन ऐसे है जैसे सुबह ओस के जल की बूँदें घास पर चमक रही होती हैं जो कुछ समय में समाप्त हो जाती हैं। इसलिए पूर्ण सतगुरू से सतनाम यानि सच्चे नाम जाप मंत्रा लेकर भक्ति करके जीव का कल्याण करा ले। सच्चे शास्त्रानुकूल भक्ति मंत्रा के अतिरिक्त सब शास्त्राविरूद्ध साधना तो दलदल की गारा के समान है। निकालने की बजाय दुगना फँसाती है। वह साधना परमेश्वर कबीर जी के पास थी तथा कुछ संतों को भी परमेश्वर कबीर जी ने बताई थी, परंतु उनको अन्य को बताने को मना किया था। वर्तमान में (सन् 1997 से) मुझ दास (रामपाल) के पास है। आओ दीक्षा लो और अपना तथा अपने परिवार का जीवन सफल बनाऐं।
उपरोक्त सत्संग वचनों से निष्कर्ष निकलता है कि यदि सत्संग के विचार सुनने को मिल जाऐं तो घर स्वर्ग बन जाता है। उसके बिना नरक-सा जीवन जीना पड़ता है। इस प्रकार विश्व उद्धार संभव है। सब प्रेम-प्यार से जीवन यापन करके मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं। यह अति अनिवार्य है। Puhalo Bai Ki Nasihat
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
1 ॐ मंत्र का रहस्य 2 भगवत गीता के गूढ़ रहस्य 3 क्या है वास्तविक आजादी 4 कर नैनो दीदार 5 रक्षाबंधन कैसे मनाएं 6 तंबाकू की उत्पत्ति कथा 7 नशा करता है नाश 8 गृहस्थ जीवन कैसे जीना चाहिए 9 भगवान का संविधान 10 सतगुरु हेलो मारियो रे 11 सुखमय जीवन की दिनचर्या 12 दयानंद सरस्वती के धार्मिक विचार 13 ऊंट की कहानी 14 रविदास जी की वाणी 15 अन्नपूर्णा स्तोत्रम 16 भगवान को कैसे प्रसन्न करें 17 गोस्वामी समाज का इतिहास 18 शिवरात्रि पर विशेष 19 क्या कबीर साहेब भगवान है? 20 शंकराचार्य जी का जीवन परिचय 21 यह है वास्तविक गीता सार 22 आत्मबोध जीव ईश और जगत 23 आध्यात्मिक ज्ञान प्रश्नोत्तरी 24 मकर सक्रांति 2022 25 दहेज प्रथा एक अभिशाप 26 कबीर इज गॉड इन हिंदी 27 भक्तों के लक्षण 28 बलात्कार रोकने के कुछ अचूक उपाय 29 श्राद्ध पूजन की विधि 30 ब्रह्मा विष्णु महेश की उत्पत्ति कैसे हुई 31 गणेश चतुर्थी मराठी 32 सत भक्ति करने के अद्भुत लाभ 33 हजरत मोहम्मद नु जीवन परिचय 34 हजरत मोहम्मद जीवन परिचय बांग्ला 35 शराब छुड़ाने का रामबाण इलाज 36 आध्यात्मिक प्रश्न और उत्तर 37 सृष्टि रचना के रहस्यों का खुलासा 38 फजाईले आमाल के हकीकत 39 सच्चे संत के क्या लक्षण होते हैं? 40 अल्लाह कैसा है कुरान पाक में 41 कौन थे वीर विक्रमादित्य 42 कौन है सृष्टि का रचियता 43 आत्महत्या कोई समाधान नहीं है! 44 कबीर सर्वानंद ज्ञान चर्चा 45 हज़रत ईसा मसीह कौन थे? 46 हज़रत मोहम्मद साहब की जीवनी 47 फजाईले आमाल के हकीकत