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Narad Muni Ki Katha In Hindi || Devarshi Narad

Narad Muni Ki Katha In Hindi

Narad Muni Ki Katha In Hindi
Narad Muni Ki Katha In Hindi

देवर्षि नारद  की कथा

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स्वयं देवर्षि नारद जी ने अपनी स्थिति के विषय में कहां है जब मैं उन परम पावन चरण उदार श्रवा प्रभु के गुणों का गान करने लगता हूं तब वे प्रभु अविलंब मेरे चित में बुलाये हुए की भांति तुरंत प्रकट हो जाते हैं। Narad Muni Ki Katha In Hindi

श्री नारद जी नित्य परिव्राजक है उनका काम ही है अपनी वीणा की मनोहर झंकार के साथ भगवान के गुणों का गान करते हुए सदा पर्यटन करना वे कीर्तन के पर्माचार्य है भागवत धर्म के प्रधान 12 आचार्यों में है और भक्ति सूत्र के निर्माता भी है। साथ ही उन्होंने प्रतिज्ञा भी की है कि संपूर्ण पृथ्वी पर घर-घर एवं जन जन में भक्ति की स्थापना करने की निरंतर वे भक्ति के प्रचार में ही लगे रहते हैं। Narad Muni Ki Katha In Hindi

पूर्व कल्प में नारद जी अपबरहन नाम के गंधर्व थे बड़े ही सुंदर थे शरीर से और अपने रूप का गर्व भी था उन्हें एक बार भगवान ब्रह्मा के यहां सभी गंधर्व किन्नर आदि भगवान का गुण कीर्तन करने एकत्र हुए उस समूह में उपबरहण स्त्रियों को साथ लेकर गए जहां भगवान में चित लगाकर उन मंगलमय के गुणगान से अपने को और दूसरों को भी पवित्र करना चाहिए वहां कोई स्त्रियों को लेकर श्रंगार के भाव से जाए और कामियों की भांति चटक मटक करें यह बहुत बड़ा अपराध है। ब्रह्मा जी ने ऊपबरहण का यह प्रयास देख कर उन्हें शूद्र योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया। 

चातुर्मास करके जब वे साधुगण जाने लगे तब उस दासी के बालक की दीनता नम्रता आदि देख कर उस पर उन्होंने कृपा की बालक को उन्होंने भगवान के स्वरुप का ध्यान तथा नाम के जपका उपदेश किया साधुओं के चले जाने के कुछ समय पश्चात वह शूद्रा दासी रात को अंधेरे में अपने स्वामी ब्राह्मणदेवता की गाय दूह रही थी कि उसे पैर में सर्प ने काट लिया सर्प के काटने से उसकी मृत्यु हो गई नारद जी ने माता की मृत्यु को भी भगवान की कृपा ही समझा स्नेहवश माता उन्हें कहीं जाने नहीं देती थी माता का वात्सल्य भी एक बंधन ही था। Narad Muni Ki Katha In Hindi

जिसे भक्तवत्सल प्रभु ने दूर कर दिया पांच वर्ष की अवस्था थी न देश का पता था और न कालका नारद जी दयामय विश्वंभर के भरोसे ठीक उत्तर की ओर वन के मार्ग से चल पड़े और बढ़ते ही गये बहुत दूर जाकर जब वे थक गए तब एक सरोवर का जल पीकर उसके किनारे पीपल के नीचे बैठकर साधुओं ने जैसा बताया था वैसे ही भगवान का ध्यान करने लगे। 

ध्यान करते समय एक क्षण के लिए सहसा हृदय में भगवान प्रकट हो गए नाराज जी आनंद मग्न हो गए परंतु वह दिव्य झांकी तो विद्युत की भांति आई और चली गई अत्यंत व्याकुल हो बार-बार नारद जी उसी झांकी को पुनः पाने का प्रयत्न करने लगे बालक को बहुत ही व्याकुल होते देख आकाशवाणी ने आश्वासन देते हुए बतलाया इस जन्म में तुम मुझे देख नहीं सकते जिनका चित पूर्णता निर्मल नहीं है वह मेरे दर्शन के अधिकारी नहीं। Narad Muni Ki Katha In Hindi

यह एक झांकी मैंने तुम्हें कृपा करके इसलिए दिखलाई है कि इसके दर्शन से तुम्हारा चित मुझ में लग जाए नारद जी ने वहां भूमि में मस्तक रखकर दया में प्रभु के प्रति प्रणाम किया और वे भगवान का गुण गाते हुए पृथ्वी पर घूमने लगे समय आने पर उनका वह शरीर छूट गया उस कल्प में उनका फिर जन्म नहीं हुआ कल्पांत में वे ब्रह्माजी में प्रविष्ट हो गए और सृष्टि के प्रारंभ में ब्रह्मा जी के मन से प्रकट हुए वे भगवान के मन के अवतार हैं दयामय भक्तवत्सल प्रभु जो कुछ करना चाहते हैं देवर्षि के द्वारा वैसी ही चेष्टा होती है। 

प्रहलाद जी जब माता के गर्भ में थे तभी गर्भस्थ बालक को लक्ष्य करके देवर्षि ने उन दैत्य साम्राज्ञी को उपदेश किया था देवर्षि की कृपा से प्रह्लाद जी को वह उपदेश भूला नहीं उसी ज्ञान के कारण प्रह्लाद जी में इतना दृढ़ भगवत विश्वास हुआ इसी प्रकार ध्रुव जब सौतेली माता के वचनों से रूठ कर वन में तप करने जा रहे थे तब मार्ग में उन्हें नारद जी मिले नारद जी ने ही ध्रुव को मंत्र देकर उपासना की पद्धति बतलायी। प्रजापति दक्ष के हर्यश्व नामक ड्स सहस्त्र पुत्र पिता की आज्ञा से सृष्टि विस्तार के लिए तप कर रहे थे देवर्षि ने देखा कि यह शुद्ध हृदय बालक तो भगवत प्राप्ति के अधिकारी है अतः उन्हें उपदेश देकर नारद जी ने सबको विरक्त बना दिया। Narad Muni Ki Katha In Hindi

दक्ष इस समाचार से बहुत दुखी हुए उन्होंने दूसरी बार एक सहस्त्र पुत्र उत्पन्न किये। ये शबलाश्व नामक दक्ष पुत्र भी तप में लगे और इन्हें भी कृपा करके देवर्षि ने भगवनमार्ग पर अग्रसर कर दिया प्रजापति दक्ष को जब यह समाचार मिला तब वे अत्यंत क्रोधित हुए उन्होंने देवर्षि को श्राप दिया कि तुम दो घड़ी से अधिक कई ठहर नहीं सकोगे नारद जी ने श्राप को सहर्ष स्वीकार कर लिया उन्हें इसमें तनिक भी शौभ नहीं हुआ क्योंकि वे तो इसे अपने आराध्य प्रभु की इच्छा समझकर संतुष्ट हो रहे थे। Narad Muni Ki Katha In Hindi

देवर्षि नारद जी वेदांत योग ज्योतिष वैधक संगीत शास्त्रआदि अनेक विद्याओं के आचार्य है और भक्ति के तो वे मुख्य आचार्य है उनका पांचरात्र भागवत मार्ग का मुख्य ग्रंथ है। देवर्षि ने कितने लोगों पर कब कैसे कृपा की है इसकी गणना कोई नहीं कर सकता वे कृपा की ही मूर्ति है जीवो पर कृपा करने के लिए वे निरंतर त्रिलोकी में घूमते रहते हैं। उनका एक ही व्रत है कि जो भी मिल जाए उसे चाहे जैसे हो भगवान के श्री चरणों तक पहुंचा दिया जाए जो जैसा अधिकारी होता है उसे वह वैसा मार्ग बतलाते हैं। प्रहलाद तथा ध्रुव को उनके अनुसार और हिरण्यकशिपु तथा कंस को उनके अनुसार मार्ग उन्होंने बताया उनका उद्देश्य रहता है कि जीव जल्दी से जल्दी भगवान को प्राप्त करें देवर्षि ही एकमात्र ऐसे हैं जिनका सभी सुर असुर समान रूप से आदर करते रहे हैं सभी उनको अपना हितेषी मानते रहे हैं और से सचमुच सब के सच्चे हितैषी है।  Narad Muni Ki Katha In Hindi

भगवान व्यास जब वेदों का विभाजन तथा महाभारत की रचना करके भी प्राणियों की कल्याण कामना से खिन्न हो रहे थे। तब उन्हें भागवत तत्व का उपदेश करते हुए नारद जी ने बताया वह वाणी वाणी नहीं है जिसके विचित्र पदों में त्रिभुवन पावन श्री हरि के यशो का वर्णन न हुआ हो वह कौऔ का तीर्थ है जहां मानसरोवर विहारी सुशिक्षित हंस क्रीडा नहीं करते अर्थात जैसे घृणित विस्टा पर सोच मारने वाले कौऔ के समान मलिन विषय अनुरागी कामी मनुष्य का मन उस वाणी में रमता है। वैसा मानसरोवर में विहरण करने वाले राजहंसोके समान परमहंस भागवतों का मन उसमें कभी नहीं रमता उस वाणी को बोलना तो संसार पर वज्रपात करने के समान तथा लोगों को पाप मग्न करने वाला है जिसके प्रत्येक पद में भगवान के वे मंगलमय नाम एवं यश नहीं है जिनको साधु जन सुनते हैं गाते हैं और वर्णन करते हैं। भगवान की भक्ति भावना से सुन्य निर्मल निरंजन नैष्कर्म्य ज्ञान भी शोभा नहीं देता फिर वह सदा अकल्याणकारी कर्म तो कैसे शोभा दे सकता है जो निष्काम भाव से भगवान को समर्पित नहीं कर दिया गया है। 

मुझे उम्मीद है दोस्तों नारद मुनि की यह कथा आपको पसंद आई होगी ऐसी और भी अन्य ऋषि मुनि भक्त कवि आदि अध्यात्म से जुड़ी हुई अन्य जानकारी जानने के लिए वेबसाइट को विजिट कर सकते हो धन्यवाद् !

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