Kapil Muni Ki Katha In Hindi || Sankhya Yog Ke Updeshta
Kapil Muni Ki Katha In Hindi
महर्षि कपिल
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भगवान ही इस सृष्टि के आदि कारण है। वे सर्वेश्वर अपने संकल्प से ही इस जगत का विस्तार करते हैं और फिर वे ही सर्वशक्तिमान इसका पालन भी करते हैं। जीवो के कल्याण के लिए वे दयामय विभिन्न रूप धारण करके जगत में आते हैं। वे ही परम प्रभु मनु एवं प्रजापति रूपसे जगतके प्राणियों का पालन करते हैं। वे उदारचरित ही ऋषि एवं योगेश्वररूपसे इस भवसागर से पार होने का मार्ग बतलाते हैं और उस पर स्वयं चलकर आदर्श रखते हैं संसार के लिये। Kapil Muni Ki Katha In Hindi
उन लीलामय कि इस विश्व लीला का तात्पर्य ही है कि अनादि काल से माया मोहित त्रिताप तप्त जीव उन दयाधाम आनंदसागर को प्राप्त कर लें। अतः में प्राणियों के जीवन का ही रक्षण नहीं करते उन प्राणियों के कल्याण के साधनों का भी वे हीं पर प्रवर्तन एवं रक्षण करते हैं। ज्ञान एवं साधनों की परंपरा वे अपने उपदेशों से विस्तृत करते हैं और अपने तप से फिर उसकी रक्षा करते हैं। श्री नर-नारायण कपिल व्यास आदि भगवान के ही ऐसे ही अवतार स्वरूप है।
तत्वज्ञान का प्राणियों को उपदेश करने के लिए सृष्टि के प्रारंभिक पद्मकल्प के स्वयंभूव मन्वंतर में ही प्रजापति कर्दम के यहां उनकी पत्नी देवहूती से भगवान ने कपिल रूप में अवतार ग्रहण किया। अपनी माता देवहुती को ही भगवान ने सर्वप्रथम तत्व ज्ञान एवं भक्ति का उपदेश किया। मृत्युलोक में परमविरक्त वे मनु पुत्री देवहुतीजी ही सर्वप्रथम भागवत ज्ञान की अधिकारीनी हुई और उसे प्राप्त करके उनका स्थूल शरीर भी दिव्य हो गया। जब देवहूति जी भगवान कपिल द्वारा उपदेश किए भागवत ज्ञान में चित को एक करके सिद्धावस्था को प्राप्त हो गयी तब उन्हें पता तक नहीं चला कि उनका शरीर कब गिर गया। उनका वह पावन देह द्रव होकर सरिता बन गया और अब प्राणियों के लिए वह तीर्थ है। Kapil Muni Ki Katha In Hindi
माता को भगवान कपिल ने जिस ज्ञान का उपदेश किया उसका बड़ा सुंदर वर्णन श्रीमद्भागवत के तीसरे स्कंध में है। ज्ञान के लिए आवश्यक है कि प्राणी के मन में संसार के समस्त भोगोंसे वैराग्य हो। इस देह में हड्डी मज्जा मास रक्त आदि अपवित्र वस्तुओं को छोड़कर और तो कुछ है नहीं। ऐसे घृणित देह में आसक्त होकर प्राणी नाना प्रकार के अनर्थ करता है। फल यह होता है कि बड़े कष्ट से उसकी मृत्यु होती है। मृत्यु के पश्चात यमदूत उसे नाना प्रकार की भीषण यातनाएं देते हैं। अनेक नरकों में सहस्त्रो वर्ष वह भयंकर कष्ट भोगता है। Kapil Muni Ki Katha In Hindi
कदाचित भगवान की कृपा से ही वह इस लोक में मनुष्य योनि में आ पाता है। यहां भी गर्भ में दुख ही दुख है। बाल्यकाल पराधीनता विवशता के कष्टों से भरा है और युवावस्था में काम क्रोध आदि विकार मनुष्य को अंधा कर देते हैं। वह नाना चिंताओं में बराबर जलता रहता है। वृद्धावस्था तो दुख रूप है ही। इस प्रकार यह समस्त जीवन क्लेश पूर्ण है। जब बराबर विचार करने से सतकर्मों के पुण्य प्रभाव से वैराग्य का चित में उदय होता है तब मनुष्य इस संसार के दुख को समझ पाता है। भगवान के चरणों में अनुराग होने से भगवान के नाम का जप उनकी मंगलमयी लीलाओं का ध्यान उनके दिव्य गुणों का कीर्तन करने से हृदय शुद्ध होता है। निष्काम भक्ति के द्वारा भगवान में चित को लगाये रहने से जीव को बंधन में रखने वाले पांच कोश स्वयं धीरे-धीरे नष्ट हो जाते हैं। भक्ति से निर्मल चित में ही ज्ञान का उदय होता है। बिना भगवान की चरण लिए हृदय शुद्ध नहीं होता। अतः मनुष्य को बड़ी सावधानी से संसार के दुख रूप भोगों से मन को हटा कर भगवान के चरणों में लगाना चाहिये। यह भगवान कपिल के उपदेश का बहुत ही संक्षिप्त तात्पर्य है। Kapil Muni Ki Katha In Hindi
माता को उपदेश देकर कपिल जी आज जहां गंगा सागर संगम है वहां चले गये। समुद्र ने उन्हें स्थान दिया सागर के भीतर वे अब तक तपस्या कर रहे हैं। भगवान कपिल भागवत धर्म के मुख्य बारह आचार्यों में है। निरीश्वर सांख्य तो पीछे के तर्क प्रधान लोगों की कल्पना है। भगवान तू अपने तप तथा संकल्प से विश्व की ज्ञानपरंपरा की रक्षा करते हुए स्थित है। अनेक अधिकारी साधक अनेक युगों में भगवान के दर्शन एवं उपदेश पाकर कृतार्थ हुए हैं। Kapil Muni Ki Katha In Hindi
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