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Geeta Ke Gudh Rahasya Parman Sahit Gyan

Geeta Ke Gudh Rahasya

📙अध्याय 11 श्लोक 32 में पवित्र गीता बोलने वाला प्रभु कह रहा है कि ‘अर्जुन मैं बढ़ा हुआ काल हूँ। अब सर्व लोकों को खाने के लिए प्रकट हुआ हूँ।‘ Geeta Ke Gudh Rahasya

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📙पवित्र गीता जी के ज्ञान को यदि श्री कृष्ण जी बोल रहे होते तो यह नहीं कहते कि अब प्रकट हुआ हूँ। श्री कृष्ण जी काल नहीं थे, उनके दर्शन मात्र से मनुष्य, पशु (गाय आदि) प्रसन्न होकर श्री कृष्ण जी के पास आकर प्यार पाते थे। काल कोई और शक्ति है। वह श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रेतवत प्रवेश करके पवित्र श्रीमद्भगवत गीता जी के ज्ञान रूप में चारों पवित्र वेदों का सार बोल गया। काल की एक हजार भुजाऐं हैं। श्री कृष्ण जी श्री विष्णु जी के अवतार थे, जिनकी चार भुजाऐं हैं।

📙अध्याय 11 श्लोक 21 व 46 में अर्जुन कह रहा है कि भगवन् ! आप तो ऋषियों, देवताओं तथा सिद्धों को भी खा रहे हो, जो आप का ही गुणगान कर रहे हैं। हे सहस्त्राबाहु अर्थात् हजार भुजा वाले भगवान ! आप अपने उसी चतुर्भुज रूप में आईये। मैं आपके विकराल रूप को देखकर धीरज नहीं कर पा रहा हूँ। Geeta Ke Gudh Rahasya

📙अध्याय 11 श्लोक 47 में पवित्र गीता जी को बोलने वाला प्रभु काल कह रहा है कि ‘हे अर्जुन यह मेरा वास्तविक काल रूप है, जिसे तेरे अतिरिक्त पहले किसी ने नहीं देखा था। ‘कौरवों की सभा में विराट रूप श्री कृष्ण जी ने दिखाया था तथा यहाँ युद्ध के मैदान में विराट रूप काल ने दिखाया था।

📙पवित्र गीता जी को बोलने वाला काल (ब्रह्म-ज्योति निरंजन) है, न कि श्री कृष्ण जी। क्योंकि श्री कृष्ण जी ने पहले कभी नहीं कहा कि मैं काल हूँ तथा बाद में कभी नहीं कहा कि मैं काल हूँ।

📙गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में काल ने कहा है कि वास्तव में अविनाशी परमात्मा तो इन दोनों (क्षर पुरूष तथा अक्षर पुरूष) से दूसरा ही है वही तीनों लोकों में प्रवेश करके सर्व का धारण पोषण करता है वही वास्तव में परमात्मा कहा जाता है। Geeta Ke Gudh Rahasya

📙गीता ज्ञान दाता काल गीता अध्याय 2 श्लोक 12, अध्याय 4 श्लोक 5, अध्याय 10 श्लोक 2 में अपने को नाशवान यानि जन्म-मरण के चक्र में सदा रहने वाला बताया है। कहा है कि हे अर्जुन! तेरे और मेरे बहुत जन्म हो चुके हैं। तू नहीं जानता, मैं जानता हूँ।

📙गीता अध्याय 3 श्लोक 14 से 15 में भी स्पष्ट है कि ब्रह्म काल की उत्पत्ति परम अक्षर पुरूष से हुई वही परम अक्षर ब्रह्म ही यज्ञों में पूज्य है। Geeta Ke Gudh Rahasya

📙गीता सार
वास्तविक भक्ति विधि के लिए गीता ज्ञान दाता प्रभु काल ब्रह्म किसी तत्वदर्शी की खोज करने को कहता है (गीता अध्याय 4 श्लोक 34) इस से सिद्ध है गीता ज्ञान दाता (ब्रह्म) द्वारा बताई गई भक्ति विधि पूर्ण नहीं है।

📙गीता अध्याय 8 श्लोक 5 तथा 7 में काल अपनी भक्ति करने को कहा है तथा युद्ध भी कर, निःसंदेह मुझे प्राप्त होगा, परंतु जन्म-मृत्यु दोनों की बनी रहेगी। अपनी भक्ति का मंत्र अध्याय 8 के श्लोक 13 में बताया है कि मुझ ब्रह्म की भक्ति का केवल एक ओम अक्षर है। इस नाम का जाप अंतिम श्वांस तक करने वाले को इससे मिलने वाली गति यानि ब्रह्मलोक प्राप्त होता है।

📙अध्याय 11 श्लोक 47 में पवित्र गीता जी को बोलने वाला प्रभु काल कह रहा है कि ‘हे अर्जुन यह मेरा वास्तविक काल रूप है’। Geeta Ke Gudh Rahasya

📙गीता अध्याय 8 श्लोक 20 से 22 में काल ब्रह्म किसी अन्य पूर्ण परमात्मा के विषय में कहा है जो वास्तव में अविनाशी है। गीता अध्याय 15 के श्लोक 4 में कहा है कि उस तत्वदर्शी संत के मिल जाने के पश्चात् उस परमेश्वर के परम पद की खोज करनी चाहिए अर्थात् उस तत्वदर्शी संत के बताए अनुसार साधना करनी चाहिए जिससे पूर्ण मोक्ष(अनादि मोक्ष) प्राप्त होता है। गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि मैं भी उसी की शरण में हूँ।

📙गीता अध्याय 15 श्लोक 1
गीता का ज्ञान सुनाने वाले प्रभु काल ने कहा कि ऊपर को पूर्ण परमात्मा आदि पुरुष परमेश्वर रूपी जड़ वाला नीचे को शाखा वाला अविनाशी विस्त्तारित, पीपल का वृक्ष रूप संसार है जिसके छोटे-छोटे हिस्से या टहनियाँ पत्ते कहे हैं उस संसार रूप वृक्ष को जो सर्वांगों सहित जानता है वह पूर्ण ज्ञानी अर्थात् तत्वदर्शी है। Geeta Ke Gudh Rahasya

📙गीता अध्याय 07 श्लोक 12 में गीता ज्ञान दाता काल ब्रह्म कह रहा है कि तीनों देवताओं द्वारा जो भी उत्पति, स्थिति तथा संहार हो रहा है इसका निमित्त मैं ही हूँ।
परन्तु मैं इनसे दूर हूँ। कारण है कि काल को शापवश एक लाख प्राणियों का आहार करना होता है। इसलिए मुख्य कारण अपने आप को कहा है तथा काल भगवान तीनों देवताओं से भिन्न ब्रह्मलोक में रहता है तथा इक्कीसवें ब्रह्मण्ड में रहता है। इसलिए कहा है कि मैं उनमें तथा वे मुझ में नहीं हैं।

📙गीता जी के अध्याय 18 के श्लोक 64 तथा अध्याय 15 के श्लोक 4 में स्पष्ट है कि स्वयं काल ब्रह्म कह रहा है कि हे अर्जुन! मेरा उपास्य देव (इष्ट) भी वही परमात्मा (पूर्ण ब्रह्म) ही है तथा मैं भी उसी की शरण हूँ तथा वही सनातन स्थान (सतलोक) ही मेरा परम धाम है। क्योंकि ब्रह्म भी वहीं (सतलोक) से निष्कासित है।
गीता जी के अध्याय 18 के श्लोक 66 में गीता ज्ञान दाता काल ने अपने से अन्य परम अक्षर ब्रह्म की शरण में जाने को कहा है। Geeta Ke Gudh Rahasya

📙गीता अध्याय 17 श्लोक 23-28 में ओम मंत्र जो काल का है तथा तत मंत्र जो सांकेतिक है, यह अक्षर पुरूष की साधना का है तथा सत मंत्र भी सांकेतिक है। यह परम अक्षर पुरूष की साधना का है। इन तीनों मंत्रों के जाप से पूर्ण मोक्ष प्राप्त होता है।

 

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