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Bhakta Prahlada Katha In Hindi भक्त प्रहलाद की कथा G

Bhakta Prahlada Katha In Hindi

भक्त प्रहलाद की कथा bhakta-prahlada 

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जब भगवान वाराह ने पृथ्वी को रसातल से लाते समय हिरण्याक्ष को मार दिया तब उसका बड़ा भाई दैत्य राज हिरण्यकशिपु बहुत ही क्रोधित हुआ उसने निश्चय किया कि मैं अपने भाई का बदला लेकर ही रहूंगा। Bhakta Prahlada Katha In Hindi

अजर अमर बनने के लिए तपस्या करना

अपनेको अजय एवं अमर बनाने के लिए हिमालय पर जाकर वह तप करने लगा उसने सहस्त्रों वर्षों तक उग्र तप किया तप करके ब्रह्मा जी को संतुष्ट किया ब्रह्मा जी ने उसे वरदान दिया कि तुम किसी अस्त्र-शस्त्र से ब्रह्मा जी द्वारा निर्मित किसी प्राणी से रात में दिन में जमीन पर आकाश में कहीं मारे नहीं जाओगे। जब हिरण्यकशिपु तपस्या करने चला गया था तभी देवताओं ने दैत्यों की राजधानी पर आक्रमण किया कोई नायक ना होने से दैत्ये हार कर दिशाओं में भाग गए देवताओं ने दैत्यों की राजधानी को लूट लिया देवराज इंद्र ने हिरण्यकशिपु की पत्नी कयाधु को बंदी कर लिया और स्वर्ग को ले चले। Bhakta Prahlada Katha In Hindi

देवर्षि नारद द्वारा कयाधु की रक्षा

रास्ते में देवर्षि नारद मिल गए और स्वर्ग और उन्होंने इंद्र को रोका कि तुम दैत्यराज की पतिव्रता पत्नी को मत ले जाओ इंद्र ने बताया कि कयाधु गर्भवती है उसके जब संतान हो जाएगी तब उसके पुत्र का वध करके उसे छोड़ दिया जाएगा देवर्षि नारद ने कहा इस के गर्भ में भगवान का परम भक्त है उससे देवताओं को भय नहीं है उस भागवत को मारा नहीं जा सकता इंद्र ने देवर्षि नारद की बात मान ली वह कयाधु के गर्भ में भगवान का भक्त है यह सुनकर उसकी परिक्रमा करके अपने लोके को चले गए जब कयाधु देवराज के बंधन से छोड़ दी गई तब वह देवर्षि के ही आश्रम में आकर रहने लगी उसके पति जब तक तपस्या से ना लौटे उसके लिए दूसरा निरापद आश्रय नहीं था। Bhakta Prahlada Katha In Hindi

देवर्षि द्वारा गर्भस्त शिशु को भक्ति के संस्कार देना

देवर्षि नारद भी उसे पुत्री की भांति मानते थे और बराबर गर्भस्थ बालक को लक्ष्य करके उसे भगवत भक्ति का उपदेश किया करते थे गर्भस्थ बालक प्रह्लाद ने उन उपदेशों को ग्रहण कर लिया भगवान की कृपा से उपदेश उन्हें फिर भुला नहीं।

हिरण्यकशिपु का तपस्या करके वापस लौटना

जब वरदान पाकर हिरण्यकशिपु लौटा तब उसने सभी देवताओं को जीत लिया सभी लोकपालो को जीतकर वह उनके पद का स्वयं उपभोग करने लगा उसे भगवान से घोर शत्रुता थी अतः ऋषियों को वह कष्ट देने लगा यज्ञ उसने बंद करा दिए धर्म का वह घोर विरोधी हो गया।

भक्त प्रह्लाद को विद्या अध्यन के लिए गुरुकुल में भेजना

उसके गुरु शुक्राचार्य उस समय तप करने चले गए थे अपने पुत्र प्रहलाद को उसने अपने पुत्र अपने गुरु पुत्र शंड तथा अमर्क के पास शिक्षा पाने भेज दिया प्रह्लाद उस समय पाँच ही वर्ष के थे एक बार प्रह्लाद घर आए माता ने उनको वस्त्रा भरणो से सजाया पिता के पास जाकर उन्होंने प्रणाम किया हिरण्यकशिपु ने प्रहलाद को गोद में बैठा लिया सनेह पूर्वक उनसे उसने पूछा बेटा तुमने जो कुछ पढ़ा है। उसमें से कोई अच्छी बात मुझे भी सुनाओ तो। Bhakta Prahlada Katha In Hindi

भक्त प्रह्लाद जी द्वारा जीवन का मूल उद्देश्य क्या है व अपने पिता हिरण्यकशिपु को परमात्मा की शरण ग्रहण करने की प्रार्थना bhakta-prahlada

प्रह्लाद जी ने कहा पिताजी संसार के सभी प्राणी संसार में आसक्त होकर सदा उद्विग्न रहते हैं मैं तो सबके लिए यही अच्छा मानता हूं कि अपना पतन कराने वाले जलहिन अंधकूप के समान घरों को छोड़कर मनुष्य वन में जाकर श्री हरि का आश्रय ले हिरण्यकशिपु जोर से हंस पड़ा उसे लगा कि किसी छात्रों ने मेरे बच्चे को बहका दिया है उसने गुरु पुत्र को सावधान किया कि वह प्रह्लाद को सुधारें उसे देश के कुल के उपयुक्त अर्थ धर्म काम का उपदेश करें गुरु पुत्र प्रह्लाद को अपने यहां ले आए उन्होंने प्रह्लाद से पूछा कि तुम को उल्टा ज्ञान किसने दिया है प्रह्लाद ने कहा गुरुदेव यह मैं हूं और यह दूसरा है यह तो अज्ञान है भगवान की माया से ही जीव मोहित हो रहे हैं वे दयामय में जिस पर दया करते हैं उसी का चित् उनमें लगता है मेरा चित तो उनकी अनंत कृपा से ही उन परम पुरुष की ओर से खिंच गया है गुरु पुत्रों ने बहुत डांटा धमकाया और वे प्रह्लाद को अर्थशास्त्र दंड नीति राजनीति आदि की शिक्षा देने लगे गुरु द्वारा पढ़ाई गई विद्या को प्रह्लाद ध्यान पूर्वक सीखते थे वह गुरु का कभी अपमान नहीं करते थे और न उन्होंने विद्या का ही तिरस्कार किया पर उस विद्या के प्रति उनके मन में कभी आस्था नहीं हुई गुरु पुत्रों ने जब उन्हें भली-भांति सुशिक्षित समझ लिया तब दैत्य राज के पास ले गए हिरण्यकशिपु ने अपने विनयी पुत्र को गोद में बैठाकर फिर पूछा बताओ बेटा तुम अपनी समझ से उत्तम ज्ञान क्या मांनते हो। Bhakta Prahlada Katha In Hindi

भक्त पहलाद जी का नवधा भक्ति का संक्षिप्त परिचय

भक्त प्रहलाद जी ने कहा भगवान के गुण एवं चरित्रों का श्रवण उनकी लीलाओं तथा नामों का कीर्तन उन मंगलमय का स्मरण उनके श्री चरणों की सेवा उन परम प्रभु की पूजा उनकी वंदना उनके प्रति दास भाव उनसे सख्य उन्हें आत्म निवेदन यह नवधा भक्ति है इस नवधा भक्ति के आश्रय भगवान में चित लगाना ही समस्त अध्ययन का सर्वोत्तम फल मैं मानता हूं। हिरण्यकशिपु तो क्रोध से लाल पीला हो गया उसने गोद से प्रह्लाद को धक्का देकर भूमि पर पटक दिया गुरु पुत्रों को उसने डांटा कि तुम लोगों ने मेरे पुत्र को उल्टी शिक्षा देकर शत्रु का व्यवहार किया है गुरू पुत्रों ने बताया कि इसमें हमारा कोई दोष नहीं है प्रह्लाद जी पिता द्वारा तिरस्कृत होकर भी शांत खड़े थे उन्हें कोई क्षोभ नहीं था।

भक्त पहलाद का गुरु पुत्रों को अपने पिता के क्रोध से बचाना

उन्होंने कहा पिताजी आप रूष्ट ना हो गुरू पुत्रों का कोई दोष नहीं है जो लोग विषयासक्त है घर के परिवार के मोह में जिन की बुद्धि बंधी है वह तो उगले हुए को खाने के समान नरक में ले जाने वाले विषयों के जो बार-बार भोगे गए हैं सेवन करने में लगे हैं उनकी बुद्धि अपने आप या दूसरे की प्रेरणा से भी भगवान में नहीं लगती। जैसे एक अंधा दूसरे अंधे को मार्ग नहीं बता सकता वैसे ही जो सांसारिक सुखों को ही परम पुरुषार्थ माने हुए हैं वह भगवान के स्वरूप को नहीं जानते वे भला किसी को क्या मार्ग दिखा सकते हैं संपूर्ण क्लेशों सभी अनर्थों का नाश तो तभी होता है जब बुद्धि भगवान के श्री चरणों में लगे। परंतु जब तक महापुरुषों की चरण रज मस्तक पर धारण न की जाए तब तक बुद्धि निर्मल होकर भगवान में लगती ही नहीं। नन्हा सा बालक त्रिभुवन विजयी दैत्य राज के सामने निर्भय होकर इस प्रकार उनके शत्रु का पक्ष ले यह असह्य हो गया दैत्य राज को। Bhakta Prahlada Katha In Hindi

भक्त प्रहलाद को दिए यह असहनीय कष्ट

चिल्लाकर हिरण्यकशिपु ने अपने क्रूर सभासद दैत्यों को आज्ञा दी जाओ तुरंत इस दुष्ट को मार डालो असुर भाले त्रिशूल तलवार आदि लेकर एक साथ मारो काटो डालो चिल्लाते हुए 5 वर्ष के बालकपर टूट पड़े पर प्रह्लाद खड़े रहे उन्हें तो सर्वत्र अपने दयामय प्रभु ही दिखाई पड़ते थे। डरने का कोई कारण ही नहीं जान पड़ा उन्हें। असुरों ने पूरे बल से अपने अस्त्र-शस्त्र बार-बार चलाएं किंतु प्रह्लाद को कोई क्लेश नहीं हुआ। उनको तनिक भी चोट नहीं लगी उनके शरीर से छूते ही वे हत्यार टुकड़े-टुकड़े हो जाते थे। अब हिरण्यकशिपु को आश्चर्य हुआ उसने प्रह्लाद को मारने का निश्चय कर लिया अनेक उपाय करने लगा वह मतवाले हाथी के सामने हाथ-पैर बांधकर प्रह्लाद डाल दिए गए पर हाथी ने उन्हें सूंड से उठाकर मस्त पर बैठा लिया कोठरी में उन्हें बंद किया गया और वहां भयंकर सर्प छोड़े गए पर वे सर्प प्रह्लाद के पास पहुंचकर केंचुओं के समान सीधे हो गए जंगली सिंह जब वहां छोड़ा गया तब वह पालतू कुत्ते के समान पूंछ हिलाकर प्रह्लाद के पास जा बैठा प्रह्लाद को भोजन में उग्र विष दिया गया किंतु उससे उनके ऊपर कोई प्रभाव नहीं हुआ विष जैसे उनके उदर में जाकर अमृत हो गया हो। अनेक दिनों तक भोजन तो क्या जल की एक बूंद तक प्रह्लाद को नहीं दी गयी। पर वे शिथिल होने के बदले ज्यों के त्यों बने रहे। उनका तेज बढ़ता ही जाता था उन्हें ऊंचे पर्वत पर से गिराया गया और पत्थर बांधकर समुद्र में फेंका गया दोनों बार भी सकुशल भगवनाम का कीर्तन करते नगर में लौट आए बड़ा भारी लकड़ियों का पर्वत एकत्र किया गया हिरण्यकशिपु की बहन होलिका ने तप करके एक वस्त्र पाया था वह वस्त्र अग्नि में जलता नहीं था होली का वह वस्त्र पहनकर प्रह्लाद को गोद में लेकर उसे लकड़ियों के ढेर पर बैठ गई उस ढेर में आग लगा दी गई होलीका तो भस्म हो गई पता नहीं कैसे उसका वस्त्र उड़ गया उसके देह से किंतु प्रह्लाद तो अग्नि में बैठे हुए पिता को समझा रहे थे पिताजी आप भगवान से द्वेष करना छोड़ दें राम नाम का यह प्रभाव तो देखें की अग्नि मुझे अत्यंत शीतल लग रही है आप भी राम नाम ले और संसार के समस्त तापो से इसी प्रकार निर्भय हो जाए दैत्यराज हिरण्यकशिपु के अनेक दैत्यों ने माया के प्रयोग किए किंतु माया तो प्रह्लाद के सन्मुख टिकती ही नहीं। उनके नेत्र उठाते ही माया के दृश्य अपने आप नष्ट हो जाते हैं गुरु पुत्र शंड तथा अमर्क ने अभिचार के द्वारा प्रह्लाद को मारने के लिए कृत्या उत्पन्न की परंतु उस कृत्या ने गुरु पुत्रों को ही उल्टे मार दिया प्रह्लाद ने भगवान की प्रार्थना करके गुरु पुत्रों को फिर से जीवित किया ऐसे मारने की चेष्टा करने वालों को उनके मरने पर जिला दिया धन्य है इस प्रकार दैत्य राज ने अनेकों उपाय कर लिए प्रह्लाद को मारने के पर कोई सफल नहीं हुआ जिसका चित भगवान में लगा है जो सर्वत्र अपने दया में प्रभु को प्रत्यक्ष देखता है भला उसकी तनिक सी भी हानि व सर्व समर्थ प्रभु कैसे होने दे सकते हैं अब दैत्य राज को लगा वे सोचने लगे कि कहीं यह नन्हा सा बालक मेरी मृत्यु का कारण न हो जाए। गुरु पुत्रों के कहने से वरुण के पाश में बांधकर प्रह्लाद को उन्होंने फिर गुरु गृह भेज दिया शिक्षा तथा संग के प्रभाव से बालक सुधर जाए यह उनकी इच्छा थी गुरु गृह में प्रह्लाद जी अपने गुरुओं की पढ़ाई विद्या पढ़ते तो थे पर उनका चित उसमें लगता नहीं था जब दोनों गुरु आश्रम के काम में लग जाते तब प्रह्लाद अपने सहपाठी बालकों को बुला लेते एक तो यह राजकुमार थे दूसरे अत्यंत नम्र तथा सबसे स्नेह करने वाले थे अब सब बालक खेलना छोड़ कर इन के बुलाने पर इनके समीप ही एकत्र हो जाते थे प्रह्लाद जी बड़े प्रेम से उन बालकों को समझाते थे भाइयों यह जन्म व्यर्थ नष्ट करने योग्य नहीं है यदि इस जीवन में भगवान को न पाया गया तो बहुत बड़ी हानि हुई घर द्वार स्त्री पुत्र राज्य धन आदि तो दुख ही देने वाले हैं इनमें मोह करके तो नरक जाना पड़ता है इंद्रियों के विषयों से हटा लेने में ही सुख और शांति है। भगवान को पाने का साधन सबसे अच्छे रूप में इस कुमार अवस्था में ही हो सकता है बड़े होने पर तो स्त्री पुत्र धन आदि का मोह मन को बांध लेता है और भला वृद्धावस्था में कोई कर ही क्या सकता है भगवान को पाने में कोई बड़ा परिश्रम भी नहीं वे तो हम सबके हृदय में ही रहते हैं सब प्राणियों में वे ही भगवान है अतः किसी प्राणी को कष्ट नहीं देना चाहिए मन को सदा भगवान में लगाए रहना चाहिए सीधे-सादे सरल चित दैत्य बालकों पर प्रह्लाद जी के उपदेश का प्रभाव पड़ता था बार-बार सुनते सुनते हुए उस उपदेश पर चलने का प्रयत्न करने लगे शुक्राचार्य के पुत्रो ने यह सब देखा तो उन्हें बहुत भय हुआ। उन्होंने प्रह्लाद को दैत्य राज के पास ले जाकर सब बातें बतायी अब हिरण्यकशिपु ने अपने हाथ से प्रह्लाद को मारने का निश्चय किया उसने गर्ज कर पूछा। अरे मूर्ख। तू किस के बल पर मेरा बारबार तिरस्कार करता है मैं तेरा वध करूंगा कहां है तेरा वह सहायक अब तुझे आकर बचाये तो देखूं। प्रह्लाद जी ने नम्रता से उत्तर दिया पिताजी आप क्रोध न करें सबका बल उस एक निखिल शक्ति सिंधु के सहारे ही है मैं आपका तिरस्कार नहीं करता संसार में जीव का कोई शत्रु है तो उसका अनियंत्रित मन ही है उत्पथगामी मन को छोड़कर दूसरा कोई किसी का शत्रु नहीं। भगवान तो सब कही है वह मुझ में है आप में है और आपके हाथ के इस खड़क में है सर्वत्र है वह इस खंभे में भी है। Bhakta Prahlada Katha In Hindi

भक्त प्रहलाद की रक्षा तथा हिरण्यकशिपु का वध

हिरण्यकशिपु ने पहलाद की बात पूरी होने नहीं दी उसने सिंहासन उठकर पूरे जोर से एक घुसा खंभे पर मारा घुसे के शब्द के साथ ही एक महा भयंकर दूसरा शब्द हुआ जैसे सारा ब्रह्मांड फट गया हो सब लोग भयभीत हो गए हिरण्यकशिपु भी इधर-उधर देखने लगा उसने देखा कि वह खंभा बीच में से फट गया है और उस से मनुष्य के शरीर की एक अद्भुत भयंकर आकृति प्रकट हो रही है भगवान नरसिंह के प्रचंड तेज से दिशाएं जल सी रही थी बार-बार गर्जन कर रहे थे दैत्य ने बहुत उछल कूद की बहुत पैंतरे बदले उसने किंतु अंत में नरसिंह भगवान ने उसे पकड़ ही लिया और राज्यसभा के द्वार पर ले जाकर अपने जांग पर रखकर नखों से उसका ह्रदय फाड़ डाला दैत्य राज हिरण्यकशिपु मारा गया किंतु भगवान नरसिंह का क्रोध शांत नहीं हुआ वह बार-बार गर्जना कर रहे थे। Bhakta Prahlada Katha In Hindi

भगवान नरसिंह की देवताओं द्वारा स्तुति व क्रोध शांत करने के लिए भक्त प्रह्लाद को भेजना bhakta-prahlada

ब्रह्मा जी शंकर जी तथा दूसरे सभी देवताओं ने दूर से ही उनकी स्तुति की पास आने का साहस तो भगवती लक्ष्मी जी भी ना कर सकी देवी भगवान का वह विकराल क्रूद रूप देखकर डर गई अंत में ब्रह्मा जी ने प्रहलाद को नरसिंह भगवान को शांत करने के लिए उनके पास भेजा प्रह्लाद निर्भय भगवान के पास जाकर उनके चरणों पर गिर गए भगवान ने स्नेह से उन्हें उठाकर अपनी गोद में बैठा लिया वह बार-बार अपनी जीभ से प्रहलाद को चाटते हुए कहने लगे बेटा प्रह्लाद

 मुझे आने में बहुत देर हो गई तुझे बहुत कष्ट सहने पड़े तू मुझे क्षमा कर दे प्रह्लाद जी का कंठ भर आया आज त्रिभुवन के स्वामी उनके मस्तक पर अपना अभय कर रख कर उन्हें स्नैह से चाट रहे थे। bhakta-prahlada

प्रह्लाद जी धीरे से उठे उन्होंने दोनों हाथ जोड़कर भगवान की स्तुति की बड़े ही भक्ति भाव से उन्होंने भगवान का गुणगान किया अंत में भगवान ने उनसे वरदान मांगने को कहा प्रह्लाद जी ने कहा प्रभु आप वरदान देने की बात करके मेरी परीक्षा क्यों लेते हैं जो सेवक स्वामी से अपनी सेवा का पुरस्कार चाहता है वह तो सेवक नहीं है व्यापारी है आप तो मेरे उदार स्वामी है आपको सेवा की अपेक्षा नहीं है और मुझे भी सेवा का कोई पुरस्कार नहीं चाहिए मेरे नाथ यदि आप मुझे शुद्ध वरदान ही देना चाहते हैं तो मैं आपसे यही मांगता हूं कि मेरे हृदय में कभी कोई कामना ही ना उठे फिर प्रह्लाद जी ने भगवान से प्रार्थना कि मेरे पिता आपकी और आपके भक्त मेरी निंदा करते थे वे इस पाप से छूट जाए। Bhakta Prahlada Katha In Hindi

भगवान ने भक्तों की 21 पीढ़ी का उद्धार करने का वचन

भगवान ने कहा प्रह्लाद जिस कूल में मेरा भक्त होता है वह पूरा कुल पवित्र हो जाता है तुम जिसके पुत्र हो वह तो परम पवित्र हो चुका तुम्हारे पिता तो 21 पीढ़ीयो के साथ पवित्र हो चुके मेरा भक्त जिस स्थान पर उत्पन्न होता है वह स्थान धन्य है वह पृथ्वी तीर्थ हो जाती है जहां मेरा भक्त अपने चरण रखता है भगवान ने वचन दिया कि अब मैं प्रह्लाद की संतानों का पद नहीं करूंगा कल्पपर्यंत के लिए प्रह्लाद जी अमर हुए वे भक्तराज अपने महा भागवत पौत्र बलि के साथ अभी सुतल में भगवान की आराधना में नित्य तनमय रहते हैं। बोलो भक्त और भगवान की जय। Bhakta Prahlada Katha In Hindi

उम्मीद करता हूं दोस्तों यह भक्त प्रहलद जी की कथा आपको जरूर पसंद आई होगी अगर आपको यह कथा पसंद आई है तो लाइक कमेंट शेयर जरूर करें ऐसी ही कथाएं पढ़ने के लिए आप हमारी वेबसाइट को विजिट कर सकते हैं जहां पर और भी कई भक्त आत्माओं की कथाएं पढ़ने को मिलेगी आपको दोहे सवैयाउल्टे सवैया पुराने कवियों की छंद रचनाएंं और अध्यात्म जगत से जुड़ी हुई विचित्र जानकारी आपको इसमें पढ़ने को मिलेगी। धन्यवाद Bhakta Prahlada Katha In Hindi

bhaktigyans

My name is Sonu Patel i am from india i like write on spritual topic

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