ALL POSTS

नशा करता है नाश

नशा करता है नाश

नशा चाहे शराब, सुल्फा, अफीम, हिरोईन आदि-आदि किसी का भी करते हो, यह आपका सर्वनाश का कारण बनेगा। नशा सर्वप्रथम तो इंसान को शैतान बनाता है। फिर शरीर का नाश करता है। शरीर के चार महत्वपूर्ण अंग हैं:- 1. फेफड़े, 2. जिगर (लीवर), 3. गुर्दे , 4. हृदय। शराब सर्वप्रथम इन चारों अंगों को खराब करती है। सुल्फा (चरस) दिमाग को पूरी तरह नष्ट कर देता है। हिरोईन शराब से भी अधिक शरीर को खोखला करती है। अफीम से शरीर कमजोर हो जाता है। अपनी कार्यशैली छोड़ देता है। अफीम से ही चार्ज होकर चलने लगता है। रक्त दूषित हो जाता है। इसलिए इनको तो गाँव-नगर में भी नहीं रखे, घर की बात क्या। सेवन करना तो सोचना भी नहीं चाहिए।

Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!

एक व्यक्ति दिल्ली पालम हवाई अड्डे पर नौकरी करता था। सन् 1997 की बात है। उस समय उसकी सेलरी (च्ंल) बारह हजार रूपये महीना थी। दिल्ली के गाँव में यह दास (रामपाल दास) सत्संग करने गया। वहाँ एक वृद्धा अपनी तीन पोतियों के साथ सत्संग वाले घर में आई जो नाते में सत्संग कराने वालों की चाची थी। वह गाँव के बाहरी क्षेत्र में प्लाॅट में मकान बनाकर रहती थी। वह लड़का भी उसी का था जो दिल्ली हवाई अड्डे पर नौकर था। बहुत शराब पीता था। घर की ठौर बिटोड़ा बना रखा था। पत्नी-बच्चों को पीटता था क्योंकि उसका प्रतिदिन शराब पीकर आना, पत्नी ने टोका-टाकी करनी, प्रतिदिन की महाभारत थी। पत्नी बच्चों को छोड़कर अपनी माँ के घर चली गई। दादी ने बच्चों को संभाला। फिर स्वयं जाकर अपनी पुत्रवधु को समझा-बुझाकर लाई। उस रात्रि में वह वृद्धा अपनी पुत्रवधु तथा पोतियों सहित आई थी क्योंकि खुद के जेठ के घर सत्संग था। इसलिए आना पड़ा। सत्संग में प्रत्येक पहलू पर व्याख्यान देना होता है। पहले परमात्मा की भक्ति लाभ तथा न करने से हानि बताई जाती है जो पूरे विस्तार से बताई जाती है। उस दिन वह शराबी पहले घर गया। घर पर कोई नहीं मिला तो कुछ देर घर पर बैठा। फिर एक पड़ोसी ने बताया कि आपकी माताजी आपके ताऊ के घर पूरे परिवार को लेकर गई है। उनके यहाँ सत्संग हो रहा है। वहीं सबका खाना है। परमात्मा की करनी हुई, वह भी सत्संग में चला गया और सबसे पीछे बैठ गया क्योंकि शराब पी रखी थी।
वह शराबी भी सत्संग में आ बैठा कि घर पर कोई नहीं था, ताला लगा था। कुछ देर के बाद नशा उतर गया और सब सत्संग सुनना पड़ा। उस दिन के पश्चात् उस व्यक्ति ने कभी शराब नहीं पी और कोई नशा नहीं किया। दीक्षा ली, पूरे परिवार को दीक्षा दिलाई। हम (लेखक तथा साथ सत्संग में गए कुछ भक्त) सुबह गाँव के बाहर घूमने के लिए गए तो रास्ते में उस व्यक्ति का घर था। गली में उसकी माता जी खड़ी थी। उसने कहा कि महाराज जी! चाय पीकर जाना। गाँव के भक्त ने बताया कि इनके घर अवश्य चलो, उजड़ा पड़ा है यह परिवार। साधु-संतों के चरण पड़ने से घर पवित्रा हो जाता है। हम सब उनके घर चले गए। हम कुल पाँच जने थे। चारपाई आँगन में डली थी। मई का महीना था। वृक्ष की छाया थी। उसकी माता जी ने अपनी पुत्रावधु से कहा कि बेटी! चाय बना। उस बेटी ने चुल्हे में आग जलाकर डेगची में पानी डालकर चाय बनाना शुरू कर दिया। आधे घण्टे बाद हमने कहा कि चाय शीघ्र लाओ। हमने घूमने जाना है। फिर किसी अन्य गाँव में सत्संग के लिए जाना है। परंतु फिर भी वह बेटी डेगची के नीचे आग जलाए जा रही थी। दोबारा कहा तो वह रोने लग गई। गाँव का भक्त उठकर गया तो पता चला कि घर पर न चीनी है, न चाय-पत्ती और न ही दूध है। उस व्यक्ति की माता जी भी रोने लगी। कहा कि उजड़े पड़े हैं महाराज! बचा सको तो बचा लो। वह व्यक्ति दीक्षा लेकर वक्त से अपनी ड्यूटी पर चला गया था। कुछ दिन के पश्चात् हम दिल्ली में ही पंजाबखोड़ गाँव में सत्संग कर रहे थे। वहाँ पर वह व्यक्ति अपनी माता तथा पत्नी व तीनों बेटियों को कार में बैठाकर सत्संग में लाया। पहले एक टूटी-सी मोटरसाईकिल थी। सब बच्चों ने सुंदर वस्त्र पहन रखे थे। कह रहे थे कि पिताजी अब मम्मी के साथ कभी नहीं लड़ते। सब तनख्वाह दादी जी को देते हैं। हम तो स्वर्ग में रहने लगे। दादी जी बोली कि उस दिन आपके ऐसे दर्शन हुए कि हम तो उजड़े बस गए। मैंने कहा कि माई! तेरा बेटा बुरा नहीं था। इसने ये अच्छे विचार कभी सुने ही नहीं थे। यदि पहले ये विचार सुनने को मिल जाते तो यह बुराई करता ही नहीं। यह सब परमेश्वर कबीर जी की कृपा है जो उस दिन यह सत्संग में आ गया और इसकी आत्मा का मैल साफ हो गया। आपका परिवार नरक से निकलकर स्वर्ग में निवास कर रहा है। परमात्मा की मर्यादा में रहना, कभी कष्ट नहीं आएगा। भक्ति करते रहना, कई पीढ़ी का उद्धार हो जाएगा। इस प्रकार सत्संग से मानव उद्धार होकर विश्व में शांति, आपसी-प्रेम बढ़ता है। सत्संग विचार अवश्य सुना करो।

📜सत्संग वचन:- सत्संग में बताया गया कि मानव जन्म प्राप्त करके जो व्यक्ति शुभ कर्म नहीं करता तो उसका भविष्य नरक बन जाता है। जो नशा करता है, उसका वर्तमान तथा भविष्य दोनों नरक ही होते हैं। नशा इंसानों के लिए नहीं है। यह तो इंसान से राक्षस बनाता है। जो व्यक्ति पूर्व जन्म के पुण्यकर्मों वाले हैं, उनको इस जन्म में उन शुभ कर्मों के प्रतिफल में अच्छी नौकरी मिली है या अच्छा कारोबार है। यदि वर्तमान में शुभ कर्म, भक्ति व दान-धर्म नहीं करोगे तो भविष्य के जन्मों में गधा-कुत्ता, सूअर-बैल बनकर धक्के व गंद खाओगे।

जैसे मानव (स्त्री/पुरूष) जीवन में पूर्व के शुभ कर्म अनुसार अच्छा भोजन मिला है। अच्छा मानव शरीर मिला है। जब चाहो, खाना खाओ। प्यास लगे, पानी पीओ। इच्छा बने तो चाय-दूध पीयो। फल तथा मेवा (काजू-बादाम) खाओ। यदि पूरा गुरू बनाकर सच्चे दिल से भक्ति व सत्संग सेवा, दान-धर्म नहीं किया तो अगले जन्म में गधा-बैल-कुत्ता बनकर दुर्दशा को प्राप्त हो जाओगे। न समय पर खाना मिलेगा, न पानी। न कोई गर्मी-सर्दी से, मच्छर-मक्खी से बचने का साधन होगा। मानव जीवन में तो मच्छरदानी, आँल-आऊट से बचाव कर लेते हैं। गर्मी से बचने के उपाय खोज लिए हैं। परंतु जब पशु बनोगे, तब क्या मिलेगा? संत गरीबदास जी ने परमेश्वर कबीर जी से प्राप्त ज्ञान को इस प्रकार बताया है:-

गरीब, नर सेती तू पशुवा कीजै, गधा बैल बनाई।
छप्पन भोग कहाँ मन बोरे, कुरड़ी चरने जाई।।

भावार्थ:- मानव शरीर छूट जाने के पश्चात् भक्ति हीन तथा शुभकर्म हीन होकर जीव गधे-बैल आदि-आदि की योनियों (शरीरों) को प्राप्त करेगा। फिर मानव शरीर वाला आहार नहीं मिलेगा। गधा बनकर कुरड़ी (कूड़े के ढ़ेर) पर गंद खाएगा। बैल बनकर नाक में नाथा (एक रस्सी) डाली जाएगी। रस्से से बँधा रहेगा। न प्यास लगने पर पानी पी सकेगा, न भूख लगने पर खाना खा सकेगा। मक्खी-मच्छर से बचने के लिए एक दुम होगी। उसको कूलर समझना, पंखा या मच्छरदानी समझना। जिन प्राणियों के अधिक पापकर्म होते हैं, पशु जीवन में उनकी दुम भी कट जाती है। एक-डेढ़ फुट का डण्डा शेष बचता है, उसे घुमाता रहता है।

एक बैल के पिछले पैर के खुर के बीच में लगभग 1) इंच बड़ी कील लग गई। चलने से और अधिक अंदर चली गई। बैल पैर से लंग करने लगा। हाली को लगा कि झटका लग गया है। नस पर नस चढ़ गई होगी, चलने से ठीक हो जाएगा। कई बार ऐसा होता है कि नस पर नस चढ़ जाती तो बैल चलते-चलते ठीक हो जाता था, परंतु अबकी बार ऐसा नहीं हुआ। सारा दिन बैल हल में चला। घर तक आया तो पैर को कठिनाई से पृथ्वी पर रख पा रहा था। धीरे-धीरे चल पा रहा था। घर पर आते ही बैठ गया। चारा भी नहीं चरा। आँखों से आँसू निकल रहे थे क्योंकि दर्द अधिक था। सुबह बैल उठा ही नहीं, लेट गया। पैर पर सोजन अधिक थी। गाँव से पशुओं का डाॅक्टर बुलाया। पुराने समय की बात है। उस समय ऐसा ही इलाज होता था। डाॅक्टर ने देखकर बताया कि इसके घुटने में बाय है। पुराने गुड़ को कूटकर नर्म करके पट्टी बाँध दो, ठीक हो जाएगा। कील लगी थी खुर में (पैर के नीचे वाले हिस्से में), उपचार हो रहा था घुटने का। लगभग एक महीने ऐसा चला। एक दिन घर के आदमी ने देखा कि बैल के पैर के तलवे (खुर के बीच) से मवाद निकल रहा है। उसको साफ किया तो पाया कि कील लगी है। किसी औजार से कील निकाली। तब एक सप्ताह में बैल ठीक हो गया। पेटभर चारा खाया-पानी पीया।

📝विचार करें:- जब यह प्राणी मानव शरीर में था तो इसको स्वपन में भी ज्ञान नहीं सोचा था कि एक दिन मैं बैल भी बन जाऊँगा। अब बोलकर भी नहीं बता पा रहा था कि दर्द कहाँ पर है? कबीर जी ने कहा है कि:-

कबीर, जिव्हा तो वोहे भली, जो रटै हरिनाम।
ना तो काट के फैंक दियो, मुख में भलो ना चाम।।

भावार्थ:- जैसे जीभ शरीर का बहुत महत्वपूर्ण अंग है। यदि परमात्मा का गुणगान तथा नाम-जाप के लिए प्रयोग नहीं किया जाता है तो व्यर्थ है क्योंकि इस जुबान से कोई किसी को कुवचन बोलकर पाप करता है। बलवान व्यक्ति निर्बल को गलत बात कह देता है जिससे उसकी आत्मा रोती है। बद्दुवा देती है। बोलकर सुना नहीं सकता क्योंकि मार भी पड़ सकती है। यह पाप हुआ। फिर किसी की निंदा करके, किसी की झूठी गवाही देकर, किसी को व्यापार में झूठ बोलकर ठगकर अनेकों प्रकार के पाप मानव अपनी जीभ से करता है। परमेश्वर कबीर जी ने बताया है कि यदि जीभ का सदुपयोग नहीं करता है यानि शुभ वचन-शीतल वाणी, परमात्मा का गुणगान यानि चर्चा करना, धार्मिक सद्ग्रन्थों का पठन-पाठन तथा भगवान के नाम पर जाप-स्मरण जीभ से नहीं कर रहा है तो इसे काटकर फैंक दो। कोरे पाप इकट्ठे कर रहा है।

(जीभ को काटने को कहना तो मात्र उदाहरण है जो सतर्क करने को है। कहीं जीभ काटकर मत फैंक देना। अपने शुभ कर्म, शुभ वचन शुरू करना। यदि रामनाम व गुणगान नहीं कर रहा है तो पवित्र मुख में इस जीभ के चाम को रखना अच्छा नहीं है।)

मानव शरीरधारी प्राणी को वर्तमान में (सन् 1970 से) विशेष सुविधाऐं प्राप्त हैं। जिस कारण से दिनों-दिन परमात्मा से दूर होता जा रहा है। उतनी ही गति से मानव के दुःख निकट आ रहे हैं। वित्तीय स्थिति में सुधार है, परंतु मानसिक शांति समाप्त है। नशा इसका मुख्य कारण है। एक पिता नौकरी पर गया है। बच्चों की आशा होती है कि पिता जी आएंगे, कुछ आवश्यक वस्तुऐं लाऐंगे। पिता जी आते हैं तो छोटे-छोटे बच्चे दौड़कर लिपटते हैं, प्यार पाते हैं। जिन बच्चों का पिता नशा करता है। उनके घर में कलह का होना स्वाभाविक है। बच्चे भयभीत रहते हैं। उनका मानसिक विकास, शारीरिक विकास दोनों ही नहीं हो पाते। वह घर नरक समान हो जाता है। आज जो शराब पीकर मस्त हैं, उनकी इज्जत समाज में भी नहीं होती।

अगले जन्म में वह व्यक्ति कुत्ता बनेगा, टट्टी खाएगा। गंदी नाली का पानी पीएगा। फिर पशु-पक्षी बनकर कष्ट पर कष्ट उठाएगा। इसलिए सर्व नशा व बुराई त्यागकर इंसान का जीवन जीओ। सभ्य समाज को भी चैन से जीने दो। एक शराबी अनेकों व्यक्तियों की आत्मा दुःखाता है:- पत्नी की, पत्नी के माता-पिता, भाई-बहनों की, अपने माता-पिता, बच्चों की, भाई आदि की। केवल एक घण्टे के नशे ने धन का नाश, इज्जत का नाश, घर के पूरे परिवार की शांति का नाश कर दिया। क्या वह व्यक्ति भविष्य में सुखी हो सकता है? कभी नहीं। नरक जैसा जीवन जीएगा। इसलिए विचार करना चाहिए, बुराई तुरंत त्याग देनी चाहिऐं।


आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry

bhaktigyans

My name is Sonu Patel i am from india i like write on spritual topic

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page