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भारत के महान वैज्ञानिक

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भारतीय वैज्ञानिक

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1 सुश्रुत :- ईसा पूर्व छठी शताब्दी में पैदा हुए। वैद्यराज धन्वन्तरी के चरणों में बैठकर चिकित्सा शास्त्र सीखा। आप प्रथम वैद्य थे जो शल्य चिकित्सा में पारंगत थे। पथरी निकालने, टूटी हड्डियों का पता लगाने और जोड़ने, आँखों के मोतिया बिन्द के ऑपरेशन करने में अद्वितीय। रोगी को ऑपरेशन से पहले दवा पिलाकर बेहोश करने की पद्धति के कारण उन्ह निश्चतीकरण (Anaesthesia) का जनक भी कहा जाता है। अपनी पुस्तक ‘सुश्रुत संहिता” में उन्होंने ऑपरेशन के लिए प्रयुक्त 101 उपकरणों का वर्णन किया है। उनमें
से अनेक के नाम, आकार व प्रयोग आधुनिक काल में प्रयुक्त उपकारणों के

2 चरक :- दूसरी शताब्दी के प्रमुख वैद्य, ‘चरक संहिता’ ग्रन्थ के लेखक ये आयुर्वेद चिकित्सा का एक बेजोड़ ग्रन्थ है। ये प्रथम वैद्य थे जिन्होंने पाचन हन्छ, शरीर में पोषक पदार्थों का परिवर्द्धन क्षप (Metabolism) तथा शरीर की प्रतिरोधक शक्ति (Immunity) के विषय में जानकारी दी। उनके अनुसार शरीर में तील दोष उपस्थित होते हैं। जिन्हें पित्त, कफ तथा वायु कहते है। उन तीना अनुपातिक परिवर्तन से ही शरीर में रोग उत्पन्न होते हैं। उन्हें अनुवांशिक गुण-दोषों के विषय में भी पता था तथा उन्होंने शारीरिक संरचना

3. पतंजली :- ईशा पूर्व दूसरी शताब्दी में हुए। अपनी पुस्तक ‘योगाशास्त्र’ में योग का विविध वर्णन किया। उनके अनुसार मानव शरीर में नाड़ियाँ तथा चक्र विद्यमान होते हैं जिन्हें सही प्रकार से संयोजित करने पर मनुष्य असीम शक्ति प्राप्त कर सकता है। उनके द्वारा प्रतिपादित अनेक बातें अब विश्व में वैज्ञानिकों द्वारा सिद्ध की जा रही है। भारत के महान वैज्ञानिक

4. नागार्जुन :- आन्ध्र प्रदेश अमरावती क्षेत्र में प्रथम शताब्दी ईसवी में जन्मे प्रसिद्ध विद्वान एवं अपने समय के प्रसिद्ध रसायनज्ञ थे। इनकी प्रसिद्ध पुस्तक रसरत्नाकर में रजत, स्वर्ण, टिन तथा ताम्बा जैसी धातुओं के, उनके स्रोतों से निष्कर्षण, आसवन, द्रवीकरण, ऊर्ध्वपातन आदि की विस्तृत व्याख्या की गई है। इन्होंने अमृत बनाने तथा धातुओं को स्वर्ण में परिवर्तित करने के लिए भी अनेक प्रयोग किए। इनकी पुस्तक में अनेक उपकरणों के चित्र भी दिए गए हैं। एक अन्य पुस्तक ‘उत्तरतंत्र’ प्रसिद्ध सुश्रुत संहिता की पूरक के रूप में
जानी जाती है, जिसमें इन्होंने अनेक दवाईयों को बनाने के प्रयोग लिखे हैं। इनकी अन्य पुस्तकें हैं, ‘आरोग्य मंजरी’, ‘कक्ष पुतातन्त्र’, ‘योग सार’ तथा ‘योग शतक’। भारत के महान वैज्ञानिक

5 आर्य भट्ट :- सन् 476 ई. में केरल में पैदा हुए। नालंदा विश्वविद्यालय में विद्याध्ययन किया, बाद में इसी विश्वविद्यालय के अध्यक्ष बने। उन्होंने सर्वप्रथम प्रतिपादित किया कि धरती गोल है तथा अपनी धूरी पर घूमती है, जिसके कारण दिन व रात होते हैं। यह भी बताया कि चन्द्रमा में अपनी रोशनी नहीं है, वह सूर्य के प्रकाश से ही प्रकाशित है। सूर्य ग्रहण तथा चन्द्र ग्रहण का वास्तविक कारण भी इन्होंने बताया। खगोल वैज्ञानिक के साथ-साथ ये प्रसिद्ध
गणितज्ञ भी थे। इन्होंने पाई (π) का मान बताया, साइन की तालिका भो इन्होंने तैयार की। ax-by=c जैसी समीकरणों का हल निकाला जो आज सर्वमान्य है। “आर्यभट्टीय” पुस्तक की रचना की। जिसमें अनेकों गणितीय तथा खगोलीय गणनाएं हैं जैसे ज्यामिति, मेन्सुरेशन, वर्ग मूल, घनमूल आदि। आर्य भट्ट सिद्धान्त उनकी दूसरी पुस्तक है। भारत के प्रथम उपग्रह को इनका नाम दिया गया। भारत के महान वैज्ञानिक

6. वाराहमिहिर :- उज्जैन के निकट कपित्थ नामक ग्राम में 499 ई. में पैदा हुए। प्रसिद्ध खगोल शास्त्री तथा गणितज्ञ आर्य भट्ट के सम्पर्क में आने के कारण खगोल तथा ज्योतिष शास्त्रों में अनुराग पैदा हुआ। शीघ्र ही इन विद्याओं में पारंगत हो गए तथा चन्द्र गुप्त विक्रमादित्य के दरबार में उनके नवरत्नों में शामिल हो गए। इन्होंने ही सर्वप्रथम घोषित किया कि पृथ्वी में एक आकर्षण शक्ति है जिसके कारण सभी पदार्थ उससे चिपके रहते हैं। इसे ही आज गुरुत्वाकर्षण के नाम से जानते हैं। उनका वास्तविक नाम मिहिर था। ‘वाराह’ चन्द्रगुप्त द्वारा दी गई उपाधि थी। उन्होंने कई पुस्तकों की रचना की जिनके नाम हैं – पंचसिद्धान्तिका, बृहत संहिता, ब्रहज्जातक आदि जिनमें ज्योतिष का खजाना भरा पड़ा है। सन् 587 ई. में स्वर्गवास हुआ।

7. ब्रह्मगुप्त :-  गुजरात के भिनमाल ग्राम में सन् 598 में जन्म हुआ। छापा वंश के राजा व्याघ्रमुख के दरबारी ज्योतिषि रहे। ये विख्यात ज्योतिषि एवं गणितज्ञ थे। उन्होंने प्रथम बार शून्य के उपयोग करने के नियम प्रतिपादित किये। इनके अनुसार शून्य के साथ किसी भी संख्या को जोड़ने अथवा घटाने से उसका मान अपरिवर्तित रहता है। गुणा करने पर संख्या शून्य, तथा किसी भी संख्या को शून्य से भाग करने पर वह असीम हो जाती है। उन्होंने ax+b=0, ax2+bx+c=0 तथा ax2+1=y2 जैसे समीकरणों को हल करने के नियम
बताए। वे प्रथम गणितज्ञ थे जिन्होंने बीजगणित को अंग गणित से अलग विषय प्रतिपादित किया। अंकीय विश्लेषण (Numerical Analysis) नामक उच्च गणित के ये आविष्कारक थे। इनको महान गणितज्ञ भास्कर द्वारा ‘गणक. चूड़ामणि’ का खिताब दिया गया। इनकी लिखी पुस्तकें ‘ब्रह्मस्फुट सिद्धान्त’ तथा ‘करण-खण्ड खाद्यका’ अत्यन्त प्रसिद्ध हैं। इनका देहवासन सन् 680 ई. में हुआ। भारत के महान वैज्ञानिक

8 कणाद :-  सन 600 ई. में हुए। आण्विक सिद्धान्त का सर्वप्रथम प्रतिपादान किया। उनके अनुसार प्रत्येक पदार्थ परमाणुओं से निर्मित है जो पदार्थ का सूक्ष्मतम कण होता है, किन्तु वह स्वतंत्र अवस्था में नहीं रह सकता। दो या अधिक, सम अथवा भिन्न, परमाणु आपस में मिलकर नया पदार्थ बना सकते हैं। उन्होंने परमाणु अथवा संयुक्त परमाणुओं के बीच घटने वाले रासायनिक परिवर्तन तथा ताप द्वारा होने वाले परिवर्तनों के विषय में भी जानकारी दी।

9. भास्कर :-  प्रथम आप सातवीं शताब्दी के प्रमुख खगोल शास्त्रियों में से एक थे जो ब्रह्मगुप्त के समकालीन थे। भारत का दूसरा उपग्रह उनके नाम पर है।

10. भास्कर-द्वितीय :- आप का जन्म बीजापुर कर्नाटक में 1114 ई. में हुआ। ब्रह्मगुप्त से प्रेरणा लेकर ये प्रसिद्ध ज्योतिषी तथा गणितज्ञ बने। इनकी प्रसिद्ध पुस्तक ‘सिद्धान्त शिरोमणी’ में एक अध्याय, “लीलावती” नाम से अंकगणित, दूसरा अध्याय बीजगणित, “गोलाध्याय” नाम के अध्याय में गोलको (Spheres) तथा “गृहगणित” नाम के अध्याय में सौर मंडल की भीमांसा करता है। बीजगणित के समीकरणों को हल करने के लिए इन्होंने भारत के महान वैज्ञानिक
“चक्रवाल” नाम से एक विधि विकसित की जो यूरोपियन गणितज्ञों द्वारा 600 वर्षों बाद ‘Inverse Cycle’ नाम से विकसित की गई है, इनकी पुस्तक में गोलकों के क्षेत्रफल तथा आयतन, त्रिकोणमिति तथा क्रमपरिवर्तन संयोग (Permutation-Combination) से संबन्धित अनेक समीकरणों का वर्णन है। इन्हें अवकलन गणित (Differential Calcalas) का जन्मदाता भी कहा जा सकता है क्योंकि इन्होंने इस विद्या को न्यूटन तथा लिब-निज से कई शताब्दी पूर्व विकसित किया था। आज जिसे (Differential Coefficient) तथा (Rolls Theorem) कहा जाता है, इसकी झांकी भी इनकी पुस्तक में है।

11. सवाई जयसिंह द्वितीय :- इनका जन्म 1668 ई. में हुआ। 13 वर्ष की आयु में अम्बर (आमेर) के राजा बने। राजा होने के साथ-साथ अपने समय के प्रसिद्ध ज्योतिषी तथा शिल्पाकार (Architect) भी थे। 1727 में जयपुर नगर बसाया जो स्थपत्य कला का अनूठा उदाहरण है। पंडित जगनाथ इनके गुरु थे। इन्होंने खगोल शास्त्र से संबन्धित अनेक ग्रन्थ पुर्तगाल, अरब तथा यूरोप से मंगवाकर, उनका संस्कृत में अनुवाद करवाया। यूरोप से एक बड़ी दूरबीन भी इन्होंने मंगवाई। 1724 में दिल्ली में जन्तर-मन्तर का निर्माण कराया तथा
1734 में सम्राट मोहम्मद शाह के सम्मान में एक पुस्तक फारसी में ‘जिज मोहम्मद शाही’ नाम से लिखवाई जिसमें सूची के रूप में अनेक प्रयोगों का वर्णन हैं। जन्तर-मंतर में पत्थरों-सीमेंट से बड़े-बड़े यंत्र बनवाए जिनका खाका उन्होंने स्वयं तैयार किया था। इन यन्त्रों में सम्राट यन्त्र (सूर्य घड़ी), राम-यन्त्र (सौर मंडल में स्थित पिण्डों की दूरी मापने का यन्त्र) तथा जय प्रकाश (सौर मंडल के पिण्डों की स्थिति पता लगाने का यन्त्र) प्रमुख हैं। बाद में अन्य स्थानों पर भी जन्तर-मंतर बनवाए। भारत के महान वैज्ञानिक

12. जगदीश चन्द्र बसु :-  30 नवम्बर 1858 को मयमारगंज (जो अब बंगलादेश में है) में जन्म हुआ। 1885 में कोलकता के प्रेसिडेंसी कॉलेज में व्याख्याता के रूप में चयन हुआ किन्तु भारतीय होने के कारण इनका वेतन यूरोपियन व्याख्याताओं की तुलना में आधा ही निर्धारित हुआ। इन्होंने पद स्वीकार कर लिया किन्तु वेतन स्वीकार नहीं किया तीन वर्षों के बाद इनके प्रिंसीपल ने इनकी प्रखरबुद्धि का लोहा मानते हुए. इन्हें पूरा वेतन दिलवाया। 10 मई 1901 को रॉयल सोसाइटी के वैज्ञानिकों के सम्मुख अपना शोध-पत्र पढ़ा तथा प्रयोग द्वारा सर्वप्रथम सिद्ध किया कि पौधों में जीवन होता है। बेतार के तार (रेडियो तरंग) का भी इन्होंने सर्वप्रथम आविष्कार किया, किन्तु इसका श्रेय एक साल बाद मार्कोनी को मिला। माइक्रोवेव बनाने का श्रेय भी इन्हीं को है। इनके द्वारा बनाया गया यन्त्र आज भी अनेक इलेक्ट्रनिक तथा न्यूक्लियर यन्त्रों में आवश्यक पुर्जों के रूप में प्रयोग किए जाते है। इनका सर्वोत्तम आविष्कार ‘क्रेस्कोग्राफ’ नामक यंत्र है जो पेड़-पौधों की बढ़त को नाप सकता है, जिसकी गति घोंघे की चाल से भी 20000 गुना कम होती है। इन्होंने कलकत्ता में वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए ‘बोस इन्स्टीट्यूट, की स्थापना की। 23 नवम्बर 1937 को इनका देहान्त हो गया। भारत के महान वैज्ञानिक

13. पी.सी. रे :- प्रफुल्ल चन्द्र राय का जन्म 2 अगस्त 1861 को रारुली काटीपुरा (बंगलादेश) में हुआ। संस्कृत, लेटिन, फ्रेन्च तथा अंग्रेजी के मर्मज्ञ होने के साथ-साथ ये राजनीति शास्त्र, अर्थशास्त्र तथा इतिहास के भी विद्वान थे। विज्ञान की ओर इनका रूझान बेंजामिन फ्रेंकलिन की जीवनी पढ़ने पर हुआ जिसमें उसने पतंगों द्वारा प्रयोग के विषय में लिखा था। 1888 में एडिनवरा से D.Sc. की डिग्री लेकर कोलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवक्ता के रूप में काम दिया। इन्होंने “बंगाल कैमिकल एवं फार्मेस्यूिटिकल वर्क्स” की स्थापना की। इन्हें भारतीय रसायन उद्योग का जनक कहा जाता है। इनकी सर्वप्रथम खोज सोडा-फोस्फेट है जिससे अनेक दवाईयाँ बनती है। मरक्यूरस नाइट्रेट तथा इसके अनेक उत्पादों को भी इन्होंने सर्वप्रथम बनाया। इन आविष्कारों से वह अकूत सम्पदा के स्वामी बन सकते थे किन्तु इन्होंने सदा एक साधु के रूप में जीवन व्यतीत किया। ‘The History of Hindu Chemistry’ इनकी प्रसिद्ध पुस्तक है। इनका निधन 1944 में हुआ। भारत के महान वैज्ञानिक

14. मोक्ष गुंडम विश्वेश्वरैया :- आप का जन्म 15 सितम्बर 1861 को मैसूर में हुआ। आपने सिविल इंजिनीयरिंग में स्नातक की डिग्री ली तथा अनेक उपलब्धियाँ हासिल की। खड़क वासला बांध में बाढ़ के पानी की रोक थाम के लिए इन्होंने स्वचालित दरवाजों के निर्माण की विधि विकसित की जो अधिक पानी होने की स्थिति में स्वयं खुल तथा बंद हो सकते थे। कृष्णार्जुन सागर बांध के निर्माण में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। मैसूर के चीफ
इंजिनीयर तथा बाद में दीवान के पद पर कार्य किया। मैसूर राज्य के लिए और बाद में भारत सरकार के लिए इन्होंने अनेक महत्वपूर्ण कार्य किए जिनमें अनेक बांधों और पुलों का निर्माण शामिल है। इन्हें अंग्रेजी राज्य से केसरे हिन्द तथा स्वतंत्र भारत में भारत रत्न उपाधियों से सम्मानित किया गया। 14 अप्रैल 1962 को 101 वर्ष की आयु मे आपका देहान्त हुआ। मरते दम तक आप क्रियाशील रहे।

15. डी.एन. वाडिया :- आप का जन्म 25 अक्टूबर 1883 में गुजरात के सूरत में हुआ। बड़ौदा कॉलेज से M.Sc. पास करने के बाद प्रिंस ऑफ वेल्स कॉलेज जम्मू में नौकरी आरंभ की। यहाँ इन्हें हिमालय के शिला खण्डों में रूचि पैदा हुई और उस क्षेत्र में कार्यरत रहते हुए अनेक उपलब्धियाँ हासिल की। वहाँ उन्होंने उन शिलाखण्डों के बनने तथा बढ़ने की क्रिया का खुलासा किया तथा अनेक पेचीदा गुत्थियों को सुलझाया। भारत के महान वैज्ञानिक

16. श्री श्रीनिवास रामानुजन :- आपका जन्म इरोड, तमिलनाडु में 22 दिसम्बर 1887 को हुआ। बचपन से ही उनमें विलक्षण प्रतिभा के दर्शन होने लगे। 13 वर्ष की उम्र में इन्हें लोनी की त्रिकोणमिति की पुस्तक मिल गई और उन्होंने शीघ्र ही इसके कठिन से कठिन प्रश्नों को हल कर डाला। इसके अतिरिक्त अपना स्वयं का शोध कार्य भी आरंभ कर दिया। मैट्रिकुलेशन परीक्षा में गणित में प्रथम श्रेणी प्राप्त की किन्तु अन्य विषयों में रूचि न होने के कारण इन्टर की प्रथम वर्ष की परीक्षा में दो बार अनुत्तीर्ण हुए। गणित में विशेष योग्यता के कारण उन्हें स्नातक डिग्री न होने के बावजूद रॉयल सोसायटी और ट्रिनिटी कॉलेज का फैलो चुना गया। जी.एच. हार्डी और जे.ई.लिटिलवुड जैसे विख्यात गणितज्ञों के साथ अनेक प्रमेय स्थापित किए। जिनमें हार्डी-रामानुजन-लिटिलवुड तथा रोजर रामानुजन जैसे प्रसिद्ध प्रमेय शामिल हैं। 26 अप्रैल 1920 को 33 वर्ष की अल्पायु में इस प्रतिभा का अन्त हो गया। भारत के महान वैज्ञानिक

17. चन्द्र शेखर वेंकटरमन :- 7 नवम्बर 1888 को तिरूचरापल्ली, तमिलनाडु में जन्म हुआ। आरंभ में इनकी रूचि ध्वनि विज्ञान में थी और उन्होंने कलकत्ता स्थित इंडियन एसोसिएशन फोर कल्टीवेशन ऑफ साइंस में वायलिन तथा सितार में तारों द्वारा स्पन्दन के विषय में खोज की। किन्तु एक बार विदेश से जहाज में लौटते समय समुद्र की विशाल जलराशि तथा आकाश की नीले रंगों ने उनमें इस विषय में जिज्ञासा उत्पन्न कर दी। इसी के फलस्वरूप उन्होंने ‘रमन इफैक्ट’ नामक शोध की जिस पर इन्हें 1930 में नोबेल पुरस्कार प्राप्त
हुआ। 1924 में इन्हें रॉयल सोसाइटी का फैलो चुना गया। 1945 में इन्होंने बंगलौर में रमन रिसर्च इन्स्टीच्यूट की स्थापना की। 21 नवम्बर 1970 को उनका देहान्त हो गया।

18. शिशिर कुमार मित्रा :- आपका जन्म 24 अक्टूबर 1890 कलकत्ता में हुआ। इन्हें जगदीश चन्द्र बोस तथा प्रफूल्ल चन्द्र राय को काम करते देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इन्होंने आयन मंडल के क्षेत्र में खोज की जो रेडियो-संचार के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इन्हीं के प्रयास से रेडियों-विज्ञान भारत के अनेक कॉलेज तथा विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाने लगा। 1958 में उन्हें रॉयल सोसायटी का फैलो चुना गया। 13 अगस्त 1963 को इनका देहावसान हो गया।

19. बीरबल साहनी :- 14 नवम्बर 1891 को पंजाब के मेड़ा स्थान पर जन्म हुआ। लंदन विश्वविद्यालय से 1919 में डी.एस.सी. की डिग्री लेकर ए.सी.स्टीवर्ड प्रसिद्ध वनस्पति वैज्ञानिक के साथ कार्य आरंभ किया। 1929 में वे कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से डी.एस.सी. की उपाधि पाने वाले प्रथम भारतीय बने। 1936 में रॉयल सोसायटी के फैलो चुने गए। बिहार में अनेक पौधों की खोज की। वनस्पति विज्ञान के अतिरिक्त कुछ प्राचीन चट्टानों की आयु ज्ञात की तथा पुरातत्व विज्ञानी की तरह कार्य करते हुए 1936 में रोहतक में पुराने सिक्कों की खोज की। भारत के महान वैज्ञानिक

20. मेघनाद साहा :- 6 अक्टूबर 1893 को ढ़ाका में जन्म हुआ। बचपन से ही देशभक्ति का जज्बा मौजूद था जिसके कारण उन्होंने ब्रिटिश गवर्नर के स्कूल दौरे का बहिष्कार किया। फलस्वरूप उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया तथा छात्रवृत्ति बन्द कर दी गई। हाई स्कूल पास करने के बाद इन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज कोलकात्ता में दाखिला लिया, जहाँ इन्हें जगदीश चन्द्र बोस तथा पी.सी.रे जैसे अध्यापकों तथा एस.एन.बोस व पी.सी. महालनोबीस सरीखे सह-पाठियों का सान्निध्य प्राप्त हुआ। एस्ट्रोफिजिक्स के क्षेत्र में कार्य करते उन्होंने एक सूत्र दिया जिससे खगोल शास्त्री सूर्य तथा अन्य सितारों के अन्दर का अध्ययन कर सकें। 1927 में रॉयल सोसायटी के फैलो चुने गए। इन्होंने 1948 में कोलकाता में साहा इन्स्टीच्यूट ऑफ न्यूकिलियर फिजिक्स की स्थापना की। इसके अतिरिक्त दामोदर घाटी, भाखड़ा नांगल तथा हीराकुंड परियोजनाओं में भी सहायता की “साइंस एण्ड कलचर” नाम की पत्रिका भी इन्होंने आरंभ की। 1962 में लोकसभा सदस्य चुने गए। 16 फरवरी 1966 को उनका देहावास हो गया। भारत के महान वैज्ञानिक

21. पी.सी. महालनोबीस प्रशान्तचन्द्र महालनोबीस प्रथम भारतीय थे जिन्होंने सांख्यिकी में विश्व में अपनी पहचान बनाई। वास्तव में सांख्यिकी का भारतीय इतिहास उनका ही व्यक्तिगत इतिहास है। उन्होंने सांख्यिकी को अनेक दिक्कतों दूर करने का माध्यम बनाया। नदियों में आने वाली बाढ़ का आकलन सांख्यिकी की सहायता से किया। हीराकुड बांध व दामोदर घाटी परियोजना को महालनोबीस ने सांख्यिकी की मदद से व्यवहारिक रूप दिया। उन्होंने कोलकता में “इंडियन इन्स्टीच्यूट ऑफ स्टेटिस्टिकल रिसर्च” की स्थापना की और यह उनकी अथक मेहनत का ही परिणाम था कि भारत के अनेक विश्वविद्यालयों तथा महाविद्यालयों में सांख्यिकी एक अलग विषय के रूप में पढ़ाया जाने लगा। 1945 में उन्हें रॉयल सोसायटी का फैलो चुना गया। 1972 में वे परलोक सिधारे। भारत के महान वैज्ञानिक

22. शान्ति स्वरूप भटनागर :- 21 फरवरी 1894 को शाहपुर में पैदा हुए। 1921 में लन्दन विश्वविद्यालय से उन्होंने पायस (Emulsion) पर शोध की और D.Sc. की उपाधि प्राप्त की। इसके अतिरिक्त उन्होंने Collolds, Industrial Chemistry और Magneto Chemistry पर भी कार्य किया। उन्होंने डॉ. आर. एन. माथुर के सहयोग से एक तुला का निर्माण किया जिसे भटनागर-माथुर तुला से जाना जाता है और अनेक रासायनिक क्रियाओं को समझने के काम आता है। आप Council of Scientific and Industrial
Research के प्रथम निदेशक रहे। इन्होंने अपनी प्रयोगशाला में अनेक प्रकार के पदार्थ बनाए जैसे अग्नि निरोधक कपड़ा, न फटने वाले ड्रम तथा बेकार चीजों से प्लास्टिक आदि। देश में राष्ट्रीय अनुसंधान शालाओं की एक श्रृंखला बनवाने में आपकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। विज्ञान के क्षेत्र में युवाओं को दिया जाने वाला राष्ट्रीय पुरस्कार इन्हीं के नाम से “शान्तिस्वरूप भटनागर पुरस्कार” जाना जाता है। 1 जनवरी 1955 को उनका देहान्त हो गया। भारत के महान वैज्ञानिक

23. सत्येन्द्र नाथ बोस :- 1 जनवरी 1894 को उनका जन्म हुआ। मेक्स प्लांक और आइन्स्टीन द्वारा किए गए कार्य पर मेघनाद साहा के साथ मिलकर आगे शोध कार्य किया। सबसे महत्वपूर्ण कार्य था, रेडियेशन को सांख्यिकी द्वारा समझाया जाना। इसे बोस ‘स्टेटिस्टिक्स’ का नाम दिया गया। ‘बोस स्टेटिसि टक्स’ का पालन करने वाले कण जैसे फोटोन और एल्फा-कणों को ‘बोसोन’ का नाम दिया गया। इनके अन्य कार्य क्षेत्र X-ray crsystallography तथा Thermolumini scence थे। ये रॉयल सोसायटी के फैलो भी चुने गए। इनका देहान्त 4 फरवरी 1974 को हुआ।

24. येल्लाप्रागदा सुब्बाराव :- 12 जनवरी 1895 को भीमावरम, आन्ध्र प्रदेश में जन्म हुआ। जन्म से इनका झुकाव धर्म की ओर था किन्तु उनकी माँ ने कठिनाई से इन्हें साधु बनने से रोका। तब इन्होंने आयुर्वेदिक इलाज की ओर अपना ध्यान केन्द्रित किया और इसके प्रसार के लिए विदेश गए। वहाँ उन्होंने Allopathy में अनेक महत्वपूर्ण खोजें की। उन्होंने सर्वप्रथम ज्ञात किया कि कई दवाईयाँ जैसे Phosphocreatine तथा Adenosine Triphosohate (ATP) मानव शरीर की मांसपेशियों में ऊर्जा का स्रोत हैं। उनकी इस खोज से उन्हें नोबल पुरस्कार मिल सकता था किन्तु इन्होंने उसके लिए कई प्रयास नहीं किया। इन्हें एक वैज्ञानिक संत के रूप में याद किया जाता है। भारत के महान वैज्ञानिक

25. के. एस. कृष्णन :- 4 दिसम्बर 1898 को इनका जन्म तमिलनाडु में हुआ। 1920 में ये प्रसिद्ध वैज्ञानिक सी.वी.रमन के साथ “इंडियन एसोसिएशन फॉर कल्टीवेशन ऑफ साइंस”, कलकता से जुड़े। 1948 में आप ‘नेशनल फिजिकल लेबोरेटरी’ नई दिल्ली के प्रथम निदेशक बने। भौतिक विज्ञान के अतिरिक्त आप संस्कृत, अंग्रेजी तथा तमिल साहित्य के भी पंडित थे। इनका मुख्य कार्यक्षेत्र Solid State Physics था। 1940 में इन्हें रॉयल सोसायटी
फैलो चुना गया। 1961 में इनका निधन हो गया।

26. टी. आर. शेषाद्रि :- 3 फरवरी 1900 को इनका जन्म तमिलनाडु में हुआ। इन्हें भारत में “कार्बनिक रसायन शास्त्र” का जनक माना जाता है। इनका मुख्य कार्य क्षेत्र पौधों और पेड़ों में रंग व गंध देने वाले रसायनों की खोज करना था। इन्होंने न केवल नये यौगिकों की खोज की बल्कि उनके गुण तथा बनावट की गवेषणा भी की तथा उन्हें प्रयोगशाला में कृत्रिम रूप से बनाने का भी प्रयास किया। ये परम भक्त भी थे। इन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय में वेदान्त समिति का गठन किया। इनका देहान्त 1975 में हो गया। भारत के महान वैज्ञानिक

27. राजचन्द्र बोस :- 19 जून 1901 को मध्य प्रदेश प्रान्त के होशंगाबाद में पैदा हुए। रोहतक में बड़े हुए। 19 वर्ष की अल्पायु में माँ और पिता का साया उठ गया, अतः परिवार की देख-भाल का जिम्मा आ पड़ा। स्वयं पढ़ते हुए एवं टयूशन करते हुए यह जिम्मेदारी निभाई। गणित में M.A. किया। एक जर्नल में उनके शोध-पत्र को देखकर महान साख्यिकी वैज्ञानिक महालनोबीस ने इन्हें अपने पास ‘इंडियन स्टेटिस्टिकल इंस्टिटयूट’ में बुला लिया। बाद में ये USA चले गए जहाँ कैरोलिना और बाद में कोलेरेडो विश्वविद्यालय में स्टेटिस्टिक्स में प्रोफेसर के पद पर कार्य किया। इन्होंने मोर्स कोड के स्थान पर नया कोड इजाद किया जिसे ‘बोस-रे चौधरी’ कोड के नाम से जाना जाता है। 1976 में इन्हें अमेरिका के उच्चतम सम्मान से नवाजा गया। इन्हें यू.एस. अकेडमी ऑफ साइंस का फैलो चुना गया। भारत के महान वैज्ञानिक

28. पंचानन महेश्वरी :- 9 नवम्बर 1904 को इनका जन्म जयपुर (राजस्थान) में हुआ। प्रसिद्ध अमेरीकी मिशनरी विनफील्ड इयेजोन के छात्र रहे जो एक प्रसिद्ध वनस्पति वैज्ञानिक थे और “इंडियन बोटेनिक्ल सोसायटी” के संस्थापक अध्यक्ष थे। इन्होंने पादप भ्रूण विज्ञान (Plant Embroyology) का अध्ययन किया। इन्हें वास्तव में भारत में भ्रूण विज्ञान का जनक कहा जा सकता है। इन्होंने अनेक पौधों की कृत्रिम वर्णसंकर विधि का अविष्कार किया जो स्वाभाविक रूप से नहीं हो सकते थे। इस प्रकार अविष्कार किए गये नये पौधों का नामकरण इनके नाम ही किया गया है जैसे पंचाननिया, जयपुरियन आदि। 1951 में इन्होंने ‘इंटरनेशनल सोसायटी ऑफ मारफोलोजी’ स्थापित की। 18 मई 1966 को इनका देहान्त हो गया।

29. दत्तात्रेय रामचन्द्र काप्रेकर :- आपका जन्म 17 जनवरी 1905 को मुम्बई के निकट दाहानु में हुआ। स्नातक की डिग्री लेने से पूर्व ही उनके एक शोध पत्र पर उन्हें गणित का रैंगलर परांजपे पुरस्कार दिया गया। 1946 में इन्होंने एक अद्भुत संख्या 6174 कर खोज की जिसे काप्रेकर स्थिरांक कहा जाता है। इस संख्या की विशेषता यह है कि किन्हीं चार अलग-अलग अंकों से बनी सबसे बड़ी तथा सबसे छोटी संख्याओं को घटाने पर मिली संख्या के साथ यही प्रक्रिया दोहराने पर अन्ततः यही संख्या प्राप्त होती है। गणित के क्षेत्र में उनकी महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ है। 1988 में इनका देहान्त हो गया। भारत के महान वैज्ञानिक

30. बी.पी. पाल :- 26 मई 1906 को मुकुन्दपुर, पंजाब में पैदा हुए। बचपन बर्मा में बीता। 1927 में कैम्ब्रिज चले गए। 1933 में भारत लौटकर ‘इंडियनएग्री कल्चरल इंस्टिट्यूट’ से जुड़ गए। उन्होंने गेहूँ की न्यू पूसा-700, न्यू पूसा-800 और न्यू पूसा-809 वैरायटी इजाद की जिन पर विषाणुओं का प्रभाव नहीं पड़ता। 1905 में ये ‘इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च’ के निदेशक बनाए गएं 1972 में उन्हें ‘रॉयल सोसायटी’ का फैलो चुना गया। उन्होंने गुलाब पर भी महत्वपूर्ण शोध किए और उस पर एक पुस्तक भी लिखी। भारत के महान वैज्ञानिक

31. होमी जहांगीर भाभा :- इनका जन्म 30 अक्टूबर 1909 को एक सम्पन्न पारसी परिवार में हुआ। फरमी तथा पाली जैसे प्रसिद्ध भौतिक वैज्ञानिकों के साथ काम करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आरंभ में कास्मिक किरणों के क्षेत्र में काम किया किन्तु बाद में आण्विक भौतिकी में रुचि लेने लगे। अपने जेआरडी टाटा के सहयोग से 1945 में टाटा इन्स्टिच्यूट ऑफ फन्डामेंटल रिसर्च की स्थापना की और इसके प्रथम डायरेक्टर बने। 1948 में भारत सरकार ने एटोमिक एनर्जी कमीशन बनाया और भाभा को इसका चेयरमैन नियुक्त किया
गया। इनके कुशल नेतृत्व में अप्सरा, साइरस तथा जरलीना तीन एटोमिक रिएक्टर निर्मित किए गए। तारापुर में भारत का प्रथम आण्विक पावर स्टेशन 1965 में बना जिसे ‘भाभा एटोमिक रिसर्च सेन्टर’ नाम दिया गया। उटकामंड में एक भव्य टेलिस्कोप का निर्माण कराया। इन्हें भारतीय अणुविज्ञान का जनक कहा जाता है। रॉयल सोसायटी के फैलों चुने गए। 57 वर्ष की आयु में एक विमान दुर्घटना में उनका देहान्त हो गया।

32. सुब्रह्मण्यम चन्द्र शेखर :- 19 अक्टूबर 1910 को लाहौर में पैदा हुए। स्नातक की डिग्री प्राप्त करने से पूर्व ही इनके शोधपत्र विख्यात पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगे थे। एक शोधपत्र तो रॉयल सोसायटी में भी पढ़ा गया। यह गौरव बिरलों को ही प्राप्त हो पाया है। 27 वर्ष की उम्र में हो इनकी गणना एक प्रख्यात खगोल भौतिक वैज्ञानिकों में होने लगी थी। इनकी पहचान प्रसिद्ध। खोज ‘चन्द्रशेखर लिमिट’ के कारण बनी जिसके अनुसार ‘White Dwarf’ कहलाए जाने वाले छोटे आकार के तारों के आकार की निर्दिष्ट किया जाता है। यदि ऐसे तारे का आकर ‘चन्द्रशेखर लिमिट’ से बढ़ जाता है तो उसमें विस्फोट हो जाता है। 1937 में वे अमेरिका चले गए और वहीं की नागरिकता ले ली। वहाँ तारों पर और अनुसंधान कार्य करते हुए 1983 में नोबेल पुरस्कार प्राप्त किया। 21 अगस्त 1995 को उनका देहावसान हो गया। भारत के महान वैज्ञानिक

33. शंभुनाथ डे :- इनका जन्म कलकता के समीप एक छोटे से गाँव गरीबाती में सन् 1915 में हुआ। चिकित्सा विज्ञान में लन्दन से Ph.D. की डिग्री लेकर कलकता के सरकार मेडिकल कॉलेज में कार्यरत हुए। उनकी मुख्य खोज हैजे के लिए जिम्मेदार जहरीले पदार्थों की थी। किन्तु दुर्भाग्य से इस खोज को उनकी मृत्यु तक किसी ने कोई ध्यान नहीं दिया। बाद में इसी खोज केकारण हैजे के टीके की खोज में बहुत सहायता मिली। सन् 1985 में उनकी मृत्यु हो गई। भारत के महान वैज्ञानिक

34. विक्रम साराभाई :- इनका जन्म 12 अगस्त 1919 को एक सम्पन्न परिवार में हुआ। इनकी मुख्य रुचि गणित तथा भौतिक विज्ञान में थी। इन्होंने भौतिक विज्ञान में शिक्षा के लिए “फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी” की स्थापना की। इनका विशेष ध्यान कास्मिक किरणों के अध्ययन में था लेकिन इनकी पहचान भारत में Space युग के आरंभकर्ता के रूप में है। यद्यपि वे स्वयं अपने द्वारा आरंभ किए गए कार्यों का परिणाम अपने जीवन में नहीं देख पाए किन्तु प्रथम उपग्रह आर्य भट्ट को अंतरिक्ष में भेजने की पूरी योजना इन्हीं के द्वारा बनाई गई थी। इनके कार्यों को मान्यता देने हुए चांद पर बने Craters में से एक का नाम इनके नाम पर है।

35. सी. आर. राव :- 10 सितम्बर 1920 को इनका जन्म कर्नाटक के हाडागली स्थान पर हुआ। गणित में M.A. करने के बाद इन्होंने स्टेटिस्टिक्स को अपना क्षेत्र चुना। संसार का ध्यान सर्वप्रथम उनकी ओर इनकी ‘Theory of estimation’ के कारण गया जिसे उन्होंने 1945 में प्रतिपादित किया। बाद में अनेक अन्य खोजों जैसे “क्रेमर-राव इनइक्वेलिटी’, “फिशर-राव ध्योरम” इत्यादि ने इन्हें स्टॅटिस्टिक्स की दुनिया में प्रसिद्ध कर दिया। 1967 में इन्हें रायल सोसायटी का फैलो चुना गया। भारत के महान वैज्ञानिक

36. जी. एन. रामचन्द्रन :- 1922 में इनका जन्म हुआ। इन्होंने सी.वी. रमन तथा लारेंस ब्रेग जैसे दिग्गजों से शिक्षा प्राप्त की। इन्होंने एक नया विषय ‘मोलिक्यूलर बायोफिजिक्स’ आरंभ किया तथा मनुष्य के शरीर में उपस्थित अनेक विषम यौगिकों की संरचना स्थापित की जिनमें मुख्यतः कोलेजन प्रोटीन था जो मानव शरीर में हड्डियों, खालों आकद को जोड़ता है। इन्हें 1977 में रॉयल सोसायटी का फैलो चुना गया।

37. हरगोविन्द खुराना :- इनका जन्म रायपुर में हुआ जो अब पाकिस्तान में है। पंजाब विश्वविद्यालय से बी.एस.सी. तथा एम.एस.सी. पास करने के बाद लिवरपूल विश्वविद्यालय से पी.एच.डी. की डिग्री ली। भारत में अपने योग्य नौकरी न पा सकने के कारण विदेश चले गये। 1959 में इन्होंन Co-enzyme-A नामक रसायन की खोज की जिसने उन्हें पूरे विश्व में विख्यात कर दिया। 1968 में इन्हें कृत्रिम जीन निर्माण करने पर चिकित्सा क्षेत्र का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। भारत के महान वैज्ञानिक

38. हरीश चन्द्र :- 11 अक्टूबर 1923 को कानपुर में पैदा हुए। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम.एस.सी. किया। इनकी रुचि भौतिक में थी। विदेश में जाकर पॉली के साथ काम करने का अवसर प्राप्त हुआ। बाद में उन्होंने गणित को अपना क्षेत्र चुना और गणित की एक विशेष शाखा जिसे ‘Infinite dimensional group representation theory’ का नाम दिया गया, विकसित की, जो अब सभी स्थानों पर उपयोग की जा रही। उनका देहान्त 16 अक्टूबर 1983 को अमेरिका में हुआ। भारत के महान वैज्ञानिक

39. राजा रमन्ना :- आपका जन्म 28 जनवरी, 1925 को हुआ। लंदन विश्वविद्यालय से पी.एच.डी. की उपाधि ली। 1949 में टाटा इन्स्टीच्यूट ऑफ फन्डामेंटल रिसर्च’ से जुड़े और बाद में भाभा रिसर्च सेन्टर के न्यूक्लियर फिजिक्स विभाग में अध्यक्ष बने। उनका भारत के प्रथम परमाणु रिएक्टरों के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान रहा। पोखरन में प्रथम परमाणु विस्फोट में भी इनका योगदान रहा। यह इन्हीं का सुझाव था कि यह परीक्षण पृथ्वी के अन्दर रेगिस्तानी इलाके में किया जाए जिससे इसका कुप्रभाव न पड़ सके।

40. एम.एस. स्वामीनाथन :- आपका जन्म 7 अगस्त 1925 को कुम्बाकोनम, तमिलनाडु में हुआ। 1952 में केम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पी.एच.डी. उपाधि प्राप्त की। इन्होंने खाद्यान्न पर अन्वेषण किया तथा गेहूँ, चावल की अनेक प्रजातियाँ से पैदावार में अभूतपूर्व वृद्धि हुई। इसी कारण उन्हें भारत विकसित की में हरित क्रान्ति का जनक कहा जाता है। 1973 में इन्हें रॉयल सोसायटी का फैलो चुना गया। ये प्रथम कृषि पंडित हैं जिन्हें 1986 में आइन्स्टीन वर्ल्ड साइंस पुरस्कार से सम्मानित किया गया। भारत के महान वैज्ञानिक

41. कमल कान्त पाण्डे :- 11 दिसम्बर 1926 को वाराणसी में पैदा हुए। पादप जीनों पर अन्वेषण के लिए लन्दन गए। पी.एच.डी. डिग्री लेने के बाद यू लैंड चले गए और वहीं बस गए। 1975 में उन्होंने एक नई तकनीक इजार की जिसके द्वारा एक चुनिन्दा फूल वाले पौधे के जीन को दूसरे पौधों पर प्रत्यार्पण किया जा सकता है। उन्होंने वांछित जीनों से अलग करने की प्रक्रिया। भी विकसित की।

42. एम. के. वेणु बापू :- 10 अगस्त 1927 को मद्रास में पैदा हुए। आप एक प्रसिद्ध खगोल वैज्ञानिक है। आप प्रथम भारतीय खगोल वैज्ञानिक हैं जिनका नाम एक पुच्छल तारे से जुड़ा है (बापू-बाक-न्यूकर्क कामेट)। आप पहले भारतीय खगोल वैज्ञानिक हैं जिनके नाम एक खगोल वैज्ञानिक प्रभाव जुड़ा है (बापू-विल्सन प्रभाव), जिससे किसी तारे की चमक तथा उसकी दूरी मालूम की जा सकती है। आप प्रथम भारतीय खगोल वैज्ञानिक हैं जिनके नाम से
एक वेधशाला और भारत की सबसे बड़ी दूरबीन जानी जाती है (कंबलिन वेधशाला और वहाँ स्थित 2.35 मीटर की दूरबीन)। आप प्रथम भारतीय खगोल वैज्ञानिक हैं जो अन्तर्राष्ट्रीय खगोल वैज्ञानिक यूनियन के अध्यक्ष चुने गए हैं। उनकी अधिकतर उपलब्धियाँ विदेश में रहकर हुई और आप वहाँ आसानी से स्थापित हो सकते थे किन्तु देशभक्त होने के कारण भारत वापस आए। काफी समय तक बेरोजगार भी रहे फिर भी अपना पूरा जीवन भारत में दूरबीन, वेधशालाएँ तथा खगोल विषयक संस्थाएँ बनाने में लगे रहे ताकि उनके देशवासी उन विद्याओं में उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकें। 1982 में उनका देहान्त हो गया। भारत के महान वैज्ञानिक

43. एम.जी.के. मेनन :- आपका जन्म 28 अगस्त 1928 को कर्नाटक के मंगलोर शहर में हुआ। 1949 में आपने यू.के. में नोबेल पुरस्कार विजेता सी.एफ. पावेल के निर्देशन में पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की जहाँ उन्होंने अनेक नये मौलिक कणों की खोज की, जैसे म्यूआन के कण और कुछ पाइआन। 1955 में वापस भारत आकर उन्होंने टाटा इन्स्टीच्यूट ऑफ फन्डामेंटल रिसर्च में कार्य आरंभ किया। 1970 में इन्हें रॉयल सोसायटी का फैलो चुना गया। 1986 में उन्हें प्रधान मंत्री का वैज्ञानिक सलाहकार नियुक्त किया गया। भारत के महान वैज्ञानिक

44. देवेन्द्र लाल :- 14 फरवरी 1929 को वाराणसी (उ०प्र०) में पैदा हुए। उन्होंने चन्द्रमा से प्राप्त चट्टानों की उल्काओं तथा समुद्र की तलहटी से प्राप्त पदार्थों पर गहन अध्ययन किया। उन्होंने सूर्य मंडल पर होने वाली पूर्व प्रक्रियों को समझने के लिए “कास्मिक किरण हस्ताक्षरों” को प्रयोग करने की विधि विकसित की। उनकी सबसे महत्वपूर्ण खोज यह है कि कास्मिक किरणों की तीव्रता आज भी वही है जो करोड़ों वर्ष पूर्व थी।

45. ई.सी.जी. सुदर्शन :- आपका जन्म 16 सितम्बर 1931 को कोट्टायम (केरल) में हुआ। मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज में स्नातक की डिग्री लेकर उन्होंने ‘टाटा इन्स्टीच्यूट ऑफ फन्डामेंटल रिसर्च’ मुम्बई में कार्य शुरु किया जहाँ इनकी भेंट डिराक व पाली जैसे दिग्गज वैज्ञानिकों से हुई। बाद में अमेरिका जाकर बस गए। आपने प्रकाश किरणों से भी तेज रफ्तार से चलने वाले कणों की खोज की जिन्हें ‘टचयोन’ (Tachyon) नाम से जाना जाता है। आपको अन्य महत्वपूर्ण खोजें हैं-नाभिक के भीतर कणों के बीच अत्यन्त कमजोर आकर्षण शक्ति का होना। इसके अतिरिक्त एक और नियम प्रतिपादित किया जिसका
नाम ‘Quantum Zeno Paradox’,

46. गोविन्द जी :- 24 अक्टूबर 1933 को इलाहाबाद (उ०प्र०) में जन्म हुआ। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी.एस.सी. तथा एम.एस.सी. उत्तीर्ण कर 1956 में अमेरिका गए। इनकी मुख्य उपलब्धि प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) के क्षेत्र में रही जहाँ उन्होंने पौधों द्वारा ऑक्सीजन छोड़ने के विषय में खोज की। मैक्सिकों के एक सेमिनार में इनका परिचय कराते हुए कहा गया कि हम फोटो सिन्थेसिस पर निर्भर हैं और फोटो सिन्थेसिस गोविन्द जी पर।

47. सी. एन. आर. राव :- 30जून 1934 को जन्म हुआ। इनका पूरा नाम चिन्तामणि नागेश रामचन्द्र राव था। बनारस हिन्दु विश्वविद्यालय से एम.एस.सी. किया और पी.एच.डी. अमेरिका से। उनका मुख्य कार्यक्षेत्र स्पेक्ट्रोस्कोपी रहा जिसमें उन्होंने प्रमुख वैज्ञानिक नोबेल पुरस्कार विजेता एस.सी. ब्राउन के निर्देशन में कार्य किया। Solid State Chemistry में इनका विशेष योगदान रहा। भारत के महान वैज्ञानिक

48. नरेन्द्र करमरकर :- आपका जन्म ग्वालियर (म०प्र०) के एक जाने माने गणितज्ञ के परिवार में 1956 में हुआ। इन्होंने IIT मुम्बई से B.E. कर केलिफोर्निया से Ph.D की। किन्तु इनकी मुख्य उपलब्धि गणित के क्षेत्र रही जहाँ इन्होंने एल्गोरिथम विधि विकसित की जो लोगरिथम की अपेक्षा 50-100 गुना अधि कतर कारगर है और कम्प्यूटर में अनेक विधाओं में एयर पोर्ट, इन्डस्ट्रीज तथा संचार नेटवर्क में अत्यन्त लाभप्रद सिद्ध हुई है।

49. ए. एम. चक्रवर्ती :- आप का जन्म 4 अप्रैल 1938 को हुआ। कलकता विश्वविद्यालय में एम.एस.सी. तथा पी.एच.डी. करने के बाद अमेरिका में जाकर बस गए। इनकी मुख्य उपलब्धि है-एक ऐसे पदार्थ की खोज को हाइ ड्रोकार्बनों को सोखने की क्षमता रखता है और समुद्र में बिखरे हुए पेट्रोलियम को सोखने में काम आता है जो जहाजों से रिसकर समुद्र में पहुँच जाते हैं और वहाँ वनस्पति तथा प्राणियों को हानि पहुँचाते हैं।

50. सी.के.एन.पटेल :- आपका जन्म 2 जुलाई 1938 को पूना (महाराष्ट्र) के पास बारामती में हुआ। 1958 में आपने टेलीकम्यूनिकेशन में B.E. की डिग्री ली और उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका चले गए। इनकी मुख्य उपलब्धि कार्बन डाइऑक्साइड लेजर की खोज थी जो विज्ञान तथा टेक्नोलॉजी के अनेक क्षेत्रों की शिक्षा के लिए अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हुई। भारत के महान वैज्ञानिक

51. जयन्त विष्णु नर्लिंकर :- 19 जुलाई 1938 को कोल्हापुर (महाराष्ट्र) में पैदा हुए। उनका लालन-पालन इनके चाचा के घर वाराणसी में हुआ। जो स्वयं एक महान गणितज्ञ थे। एम.एस.सी. करने के बाद ये केम्ब्रिज चले गए। जहाँ इन्होंने हायल के निर्देशन में पी.एच.डी. की। उन्होंने ब्रह्माण्ड के निर्माण के विषय में एक सिद्धान्त प्रतिपादित किया जिसे Steady State Theory का नाम दिया गया, जिसके अनुसार ब्रह्माण्ड सदा से ऐसा ही था जैसा अब है। इसके अतिरिक्त उन्होंने गुरुत्वाकर्षण पर भी एक नियम दिया जो आइन्स्टीन सापेक्ष सिद्धान्त की भांति ही अत्यन्त महत्वपूर्ण माना जाता है। इन्हें भारतीय आइस्टीन भी कहा जाता है। भारत के महान वैज्ञानिक

52. ए.एस.पेंटल :- दिल्ली की “पटेल चेस्ट इन्स्टीच्यूट” के डायरेक्टर पद पर कार्य करने वाले अवतार सिंह पेंटल अपनी एक विशेष खोज ‘फेफड़ों के उन स्नायुमंडल ‘J Receptos’ के लिए विख्यात है जिससे यह पता लगता है कि आदमी अत्यधिक कार्य कर चुका है और उसे आराम की आवश्यकता है। इसी प्रकार पेट के पूर्णरूप से भर जाने और हृदय के लिए भी आपने Receptors की खोज की।

53. डॉ.ए.पी.जे. अब्दुल कलाम :- डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम एक प्रख्यात वैज्ञानिक और भारत के 11वें राष्ट्रपति थे। उन्होंने देश के कुछ सबसे महत्वपूर्ण संगठनों (डीआरडीओ और इसरो) में कार्य किया। कलाम ने अपने कैरियर की शुरुआत भारतीय सेना के लिए एक छोटे हेलीकाप्टर का डिजाईन बना कर किया। भारत सरकार ने महत्वकांक्षी ‘इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम का प्रारंभ डॉ. कलाम के रेख-रेख में किया। वह इस परियोजना के मुख्य कार्यकारी थे। इस परियोजना ने देश को अग्नि और पृथ्वी जैसी मिसाइलें दी है। उन्होंने पोखरण द्वितीय परमाणु परिक्षण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। डॉ. कलाम भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम और मिसाइल विकास कार्यक्रम के साथ जुड़े थे। इसी कारण उन्हें मिसाइल मैन भी कहा जाता है। उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न सहित कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। भारत के महान वैज्ञानिक

54. डॉ. नरिंदर सिंह कपानी :- डॉ. नरिंदर सिंह कपानी का जन्म पंजाब के मोगा में एक सिख परिवार में हुआ था और आगरा विश्वविद्यालय में अध्ययन किया गया था जो फाइबर ऑप्टिक्स में अपने काम के लिए जाने जाते हैं। फॉर्च्यून द्वारा उन्हें ‘सेंचुरी के व्यापारियों’ में सात ‘अनसंग हीरोज’ में से एक के रूप में नामित किया गया था। उन्हें “फाइबर ऑप्टिक्स
के जनक” के रूप में भी जाना जाता है। 1956 में कपनी द्वारा फाइबर ऑप्टिक्स शब्द गढ़ा गया था। उन्होंने 1952 में पीएचडी पर काम करने के लिए इंपीरियल कॉलेज लन्दन जाने से पहले एक भारतीय आयुध कारखानों के सेवा अधिकारी के रूप में कार्य किया। प्रकाशिकी में डिग्री, जो उन्होंने 1955 में प्राप्त की। कपनी के शोध और अविष्कारों में फाइबर ऑप्टिक्स संचार, लेजर बायोमेडिकल इंस्ट्रूमेंटेशन, सौर ऊर्जा और प्रदूषण निगरानी
शामिल हैं। उसके पास एक सौ से अधिक पेटेंट हैं। इन्हें 2021 में मरणोपरांत पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।

55. टेसी थॉमस :- टेसी भारत की महिला मिसाइल विज्ञानक है जिसने अग्नि 4 और अग्नि 5 मिशन में प्रमुख सहभागिता दी। टेसी थॉमस डीआरडीओ के लिए तकनीकी कार्य करती हैं। यह उनका परिश्रम और समर्पण ही है जो भारत को आई सी बी एम एस के साथ अन्य देशों के खास समूह का हिस्सा बनाने में सहयोगी रहा। अपनी उपलब्धियों के कारण ही वे मीडिया में अग्निपुत्री के नाम से भी जानी गई।

“What we want are some young men who will
renounce everything and sacrifice their lives for
their country’s sake. We should first form their
lives and then some real work can be expected.
Swami Vivekanand”

*गीता उपदेश *

श्रद्धावान्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः।
ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति ॥

श्रद्धा रखने वाले मनुष्य, अपनी इन्द्रियों पर संयम रखने वाले मनुष्य, साधनपारायण हो अपनी तत्परता से ज्ञान प्राप्त कते हैं, फिर ज्ञान मिल जाने पर जल्द हो परम-शान्ति (भगवत्प्रामिरूप परम शान्ति) को प्राप्त होते हैं।

 

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My name is Sonu Patel i am from india i like write on spritual topic

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