होली क्यो मनाते हैं
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होली क्यो मनाते हैं
होलाष्टक प्रारंभ
होली से आठ दिन पहले होलाष्टक प्रारंभ हो जाते हैं। होलाष्टक में कोई भी शुभ कार्य नहीं करते हैं।
आमला एकादशी
फाल्गुन शुक्ल एकादशी के दिन आंवले के वृक्ष के निकट बैठकर भगवान का पूजन किया जाता है। इसे आमला एकादशी कहते हैं। ढूँढ
ढूँढ होली से पहले वाली ग्यारस अर्थात फाल्गुन सुदी ग्यारस को पूजते हैं। जब किसी के यहाँ लड़का पैदा हो तो उसी वर्ष ढूँढ पूजते हैं। किसी के यहाँ लड़का-लड़की दोनों की ढूँढ पूजने के पहले तक आड़ा तिलक निकालते हैं ढूँढ पूजने के बाद ही सीधा तिलक निकालते हैं।
ढूँढ का सामान पीहर से या बुआ के यहाँ से आता है। लड़के के सफेद रंग के कपड़े लड़के की माँ के पीले का बेस सवा सेर फूले, पताशे व सिंघाड़े मिलाकर व रुपये भेजने चाहिए। बेस पहनकर लड़का गोद में लेकर किसी आसन पर बैठना चाहिए। सामने एक पाटे पर थाली में सिंघाड़े पताशे रख लेवें और उनके रोली से छींटा देवे। खुद के व बच्चे के तिलक करें। फिर धोक देवें । सास रुपये तो रख लेवें और सिंघाड़े व पताशे और फूले बांट देवें। चाहे तो उपरोक्त सामान ढाई सेर या पाँच सेर भी कर सकते हैं । होली क्यो मनाते हैं
होली
होली एक राष्ट्रीय एवं सामाजिक पर्व है। यह रंगों का त्यौहार है। यह फाल्गुन पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इसे बच्चे, बूढ़े, नर-नारी सभी बड़े उत्साह से मनाते हैं। इस राष्ट्रीय त्यौहार में वर्ण या जाति भेद का कोई स्थान नहीं है।
होलिका दहन मुहुर्त
होली का दहन हेतू विशेष रूप से मुहुर्त के अनुसार ही किया जाता है। प्रतिपदा, चतुर्दशीप भद्रा तथा दिन में होलिका दहन का विधान नहीं है। होली की पूजा-विधि एवं सामग्री-पहले भूमि में थोड़े-से गोबर और जल से चौका लगा लेवें। चौका लगाने के बाद होली का डंडा रोपे और चारों ओर बड़कुल्ला की माताएं लगा दें। उन मालाओं के असपास गोबर की ढाल, चलवार, खिलौना-आदि रख दें। जल, मौली, रोली, चावल, पुष्प, गुलाल, गुड़ आदि से होली का पूजन करें। पूजन के बाद ढाल व तलवार अपने घर में रख लें। बड़कुल्ला की चार माला अपने घर में पीतरजी, हनुमानजी, शीतलामाता और घर के नाम की उठाकर अलग रख दें। होली क्यो मनाते हैं
होलिका पर्व
इस दिन सब स्त्रियाँ कच्चे सूत की कूकड़ी, जल का लोटा, नारियल कच्चेचने युक्त डालियाँ, पापड़ द्वारा होती की पूजा करें। पूजन के बाद होलिका को जलाया जाता है। इस पर्व पर व्रत भी करना चाहिये । होली के दिन प्रातः स्नान आदि करके पहले गणेश जी, हनुमान जी, भैरोजी आदि देवताओं की पूजा करें। जल, रोली, मोली, चावल, पुष्प, गुलाब, चन्दन नारियल, नैवद्य आदि चढ़ायें। दीपक से आरती करके प्रणाम करें। फिर आप मानते हैं उनकी भी पूजा करें।
होली में कच्चे चने युक्त हरी डालियाँ, कच्चे गेहूँ की टहनियाँ आदि भूनकर वापस घर ले आएं। होली जलने पर पुरुष होली के डंडे को बाहर निकाल लें क्योंकि इस डंडे को भक्त प्रहलाद मानते हैं। स्त्रियाँ होली जलते ही एक जल के लोटे से सात बार जल का आर्ध्य देकर रोली, चावल चढ़ायें और होली की सात परिक्रमा लगाये । होलिका दहन से समस्त अनिष्ट दूर हो जाते हैं। इस दिन अच्छे पकवान मिठाई, नमकीन आदि बनायें। फिर थोड़ा-थोड़ा सभी सामान एक थाली में देवताओं के नाम का निकालकर ब्राह्मणों को भी दें। भगवान को भोग लगाकर स्वयं भोजन करें। होली क्यो मनाते हैं
कहानी
प्रमुखतया यह त्यौहार प्रहलाद से सम्बन्धित है। प्रहलाद हिरण्यकश्यप का पुत्र ता विष्णुभक्त था । हिरण्यकश्यप प्रहलाद को विष्णु पूजन करने से मना करता था और स्वयं को भगवान कहता था। किन्तु प्रहलाद ने विष्णु-भक्ति नहीं छोड़ी तो हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद अर्थात् स्वयं के पुत्र को ही मारने के लिए अनेक उपाय किये परन्तु उस पर लेशमात्र भी प्रभाव नहीं पड़ा। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को अग्नि में न जलने का वरदान प्राप्त था। हिरण्यकश्यप ने उस वरदान का लाभ उठाकर लकड़ियों के ढेर पर प्रहलाद को बहन की गोद में बैठा कर आग लगवाई। दैवयोग से प्रहलाद तो बच गया किन्तु होलिका जलकर भस्म हो गई । अतः असुरों के नष्ट होने से उत्पन्न प्रसन्नता (बाद में हिरण्यकश्यप को भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लेकर मार डाला) और भक्त प्रहलाद की स्मृति में इस पर्व को मनाया जाता है।
होली समिलन, मित्रता तथा एकता का पर्व है। इस दिन द्वेष-भाव त्यागकर सबसे सप्रेम मिलना चाहिये। होली क्यो मनाते हैं
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