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सगरामदास जी की कुंडलियां । सम्पूर्ण कुण्डलिया अर्थ सहित

सगरामदास जी की कुंडलियां

कहे दास सगराम मनै यों अचरज आवै।
मिनख कियो महाराज भले थूं काईं चावै।।
कांई चावै है वले यों तो मनै बताय।
राम नाम कहे रात दिन तेरा जन्म सफल होई जाय।।
जन्म सफल होई जाये वास अमरापुर पावै।
कहे दास सगराम मनै यों अचरज आवै।। सगरामदास-जी-की-कुंडलियां

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सगराम दास जी महाराज कह रहे हैं कि मुझे बड़ा आचार्य है कि उस परमात्मा ने तुम्हें मनुष्य बना दिया अब और क्या चाहता है। उस परमपिता परमात्मा का अब तो तू रात दिन भजन(अपने गुरू की बताई गई भक्ति विधि) कर यही तेरे लिए सबसे उत्तम काम है। इसी काम से तेरा मनुष्य जन्म सफल होगा और अमरलोक में जाके अमर हो जाएगा जहां पर बुढापा और मृत्यु नहीं है। सगरामदास जी की कुंडलियां 

जनम जनम में करज कियो है माथै करड़ो।
मिनख कियो महाराज काट दे क्यूं नही खरड़ो।।
ओ खरड़ो करड़ों घणो कीकर बनै बनाव।
निशवासर सगराम कहे राम धणी ने ध्याव।।
राम धनी ने ध्याव बालदै खांविद खरड़ो।
जन्म जन्म में कर्ज कियो है माथे करड़ों।।

चौरासी लाख योनियों में भटकते भटकते आ रहे हैं। न जाने कितने कुकर्मो का कर्ज हमने अपने सिर पर उठा रखा है। जिसका कोई आदि है न अंत ऐसे कर्म रूपी कर्जे को अब मनुष्य जन्म मिला है। सच्चे सतगुरु की शरण लेकर परमात्मा की भक्ति करके इसको क्यों न काट दिया जाए और सदा सदा के लिए इस कर्मों के दलदल से मुक्त हो जाएं। सगरामदास जी की कुंडलियां 

मिनखा तन दिनों तने भौंदू भज रे पीव।
बैठो क्यों सगराम कहे उंडी देने नीव।।
उंडी देने नीव हिया फूटोड़ा गेला।
कर आगा ने ठौड़ अठै कूण रैवण देला।।
लख चौरासी जुण में रूलियो फिरसी जीव।
मिनखा तन दिनों तने भौंदू भज रे पीव।।

 हे जीव परमात्मा ने तुझे मनुष्य जन्म दिया है इसका लाभ ले और उस परमात्मा को याद कर उसके भजन में लग जा उसके भजन में न लगकर तू व्यर्थ में धन स्त्री पुत्र गाड़ी बंगला आदि आदि के पीछे भाग रहा है इनको ही तुमने अपना सबकुछ मान लिया है जो तुम्हारी सबसे बड़ी भूल है अगर भक्ति नही की तो फिर चौरासी लाख योनियों में भटकते फिरोगे। सगरामदास जी की कुंडलियां 

कहे दास सगराम ऊंट मती करें अरड़ाटा।
बिना गुना ही दंड लाट तो करड़ा लाटा।।
करड़ा लाटा लाटतो क्यों मानतो नाहि।
घणा घणा दुख पावसी जनम जनम के माहीं।।
जन्म जन्म के माही कर्म किन्हा थै माठा।
कहे दास सगराम ऊंट मति करें अरड़ाटा।।

सगराम दास जी महाराज ऊंट से कह रहे हैं कि अभी मार पड़ रही है तो जोर से चिल्ला रहा है मत चिल्ला क्योंकि अब तेरी कोई नही सुनने वाला जब परमात्मा ने तुझे मनुष्य बनाया था तब संत रूप में तुझे बार बार समजाया था कि बन्दे जो तू लोगो को बिना गलती के भी तू उनको दंड देता था लोगो को खेत से फसल का लगान वसूल किया करता था। उस समय तू किसी की नही सुनता था अब तेरी कोई नही सुनने वाला जनम जनम लिया लगान चुकाएगा। सगरामदास जी की कुंडलियां 

कहे दास सगराम भजन करता हो दौरा।
लख चौरासी जूण भुगतता हो जो सोरा।।
सोरा हो जो भुगतता घणी सहोला मार।
गधा होवोला ओडरा माथे लदसी भार।।
माथै लदसी भार रेत रा भर भर बोरा।
कहे दास सगराम भजन करता हो दौरा।।

सगराम दास जी महाराज कह रहे है कि अब परमात्मा का भजन करने में परेशानी हो रही है। फिर चौरासी लाख जूण भुगतता सोरा(आराम) से भुगतना बोहत मार पड़ेगी देखले रे बीरा फिर क्या भुंडी बनेगी अब चौरासी लाख योनियों में से एक गधे के जीवन की कठिनाई को समझते हैं। ओढ़ एक जाती विशेष है जो भार ढोने का काम करते हैं उनके पास गधो का जुंड होता है जिससे वे भार ढोते जहाँ कहीं उचाई पर कोई कार्य चलता है वहाँ पर गधो के ऊपर ढाई मन का रेत का बोरा लादते है और शिखर पर चढ़ाते हैं वहाँ पर उनकी क्या दुर्दशा होती है ये बड़ी दयनीय स्थिति होती है। एक हरि के भजन बिना ये राजा ऋषभ होय।। सगरामदास जी की कुंडलियां 

कहे दास सगराम राम ने भूलों क्यूं कर।
भूलिया भुंडी होय माजनो जासी बिखर।।
बिखर जावे माजनों देवे गधा री जूण।
मौरा पड़सी टाकिया ऊपर लदसी लूण।।
ऊपर लदसी लूण चढ़ावे सामी शिखर।
कहे दास सगराम राम ने भूला क्यों कर।।

सगराम दास जी महाराज इस कुंडली के माध्यम से हमें यह बताना चाहते हैं कि एक गधे का जीवन कितना कष्टमय होता है कि उसे दिन रात भार वहन करने से पीठ में टाकिया पड़ जाती है फिर भी उसके ऊपर नमक के बोरे भर कर रखे जाते हैं और उसे मजबूरन वह बोरे ढोने पड़ते हैं  उसकी पीठ को जब नमकीन रस नमक का स्पर्श होता है तो उसको दुगनी पीड़ा होती है। और वो पर्वत की ऊँची चढ़ाई इतनी भयंकर पीड़ा होती है उसे कि उस वक्त वह अपनी पीड़ा को बयां भी नहीं कर सकता क्योंकि जब मनुष्य था तब परमात्मा का भजन करने में उसे शर्म आ रही थी और अपने आप को बड़े ऊंचे कुल का मान रहा था कि हमें तो परमात्मा के भजन की क्या आवश्यकता है जिस समय परमात्मा ने मुख में जबान दी थी बोलने के लिए उसका उपयोग नहीं किया तो अब जबान छीन ली इसलिए यह मनुष्य जन्म रहते परमात्मा का भजन कर लो नहीं तो यह सारी मान बड़ाई इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी इस को बचा लो परमात्मा की भक्ति करके मैं तो राम नाम को किसी भी कीमत पर नही भूल सकता चाहे जीवन में कितना भी कष्ट आए। सगरामदास जी की कुंडलियां 

कहे दास सगराम करम गति जाय न जानी।
परणी सोला सहस गविजै राधा रानी।।
राधा रानी गविजै सीता ने वन वास।
सकल भवन रा ईश ने कियो डूम रो दास।।
कियो डूम रो दास निच घर भरियों पानी।
कहे दास सगराम करम गति जाय न जानी।।

सगराम दास जी महाराज कह रहे हैं व्यक्ति के कर्म में क्या लिखा है इसको कोई नहीं पढ़ सकता। भगवान कृष्ण ने 16000 रानियों से शादी की थी उनका कहीं नाम नहीं है, लेकिन राधा जो कि उनसे सिर्फ प्रेम करती थी। उसी का नाम लिया जाता है। और कृष्ण के साथ हमेशा राधे जी का ही नाम जुड़ा है। क्या कर्मों की गति है! बड़ा ही आश्चर्य है सीता जैसी जैसी स्त्री को वनवास हो जाता है! चक्रवर्ती सम्राट सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र जो कि हरिजन के घर जाकर नौकरी करते हैं ।उनके हाथ बिक जाते हैं। क्या कर्मों की गति है! इसलिए कर्मों की गति को पढ़ पाना बड़ा ही मुश्किल है। इसको कोई नहीं जान सकता। सगरामदास जी की कुंडलियां 

कहे दास सगराम सुनो हो सज्जन भ्राता।
दूजी केतिक बात बड़ा दुख दीना माता।।
माता दुख दिठा जीके सुनिया न जावे कान।
बेटी राजा जनक री पति जिनके भगवान।।
पति जिनके भगवान आप रिद्ध सिद्ध की दाता।
कहे दास सगराम सुनो सज्जन भ्राता।।

सगराम दास जी महाराज कह रहे हैं। कि मेरे प्यारे सजन भाई अपनी तो औकात ही क्या है, माता सीता तीन लोक की माता थी, वह उन्होंने जो कष्ट तकलीफे सहन की जब कानों से सुनते हैं। तो आंखों से पानी बहता है। व्यक्ति सुन नहीं सकता राजा जनक जो विदेह थे। उनकी बेटी होते हुए भगवान राम जैसे जिनके पति थे। खुद रिद्धि सिद्धि की दाता थी। इतना सामर्थ्य होते हुए भी उन्होंने जो कष्ट दुख सहन किये यह बड़ा ही आश्चर्य है! इसलिए व्यक्ति को कभी घमंड नहीं करना चाहिए। यहां पर जब भी कष्ट आए तो इनका स्मरण करें। और सहनशक्ति रखें दूसरा कोई विकल्प नहीं है। भाई  “तन धर सुखिया कोई नहीं देखा जो देखा सो दुखिया रे। उदय अस्त की बात करते थे मैंने उनका भी किया विवेका रे।। सगरामदास जी की कुंडलियां 

कहे दास सगराम सुनो सजन हितकारी।
कर सुकरत भज राम पनौती आई भारी।।
भारी आई पनोती अब बरस तियालीस लाग।
धन धरियो रह जावसी तन होय जासी खाक।।
तन होय जासी खाक पछै थूं जाने थारी।
कहे दास सगराम सुनो सजन हितकारी।।

धनपति धर्म जु ना करें नरपत करें ना न्याव।
भजन करे नहीं भगत होय कीजै कौन उपाय।।
कीजै कौन उपाय सलाह एक सुनो हमारी।
दो बहती रे पूर नदी आवे जद भारी।।
जाय गड़ीन्दा खाँवतो धरती टिके न पाँव।
धन पति धर्म जु ना करें नरपति करे न न्याव।।

सुनो सज्जन सगराम कहे या बड़े संत की बात।
दया धर्म हिरदे बसे केवे सच्ची बात।।
केवे साच्ची बात सकल जीवां हितकारी।
पर धन धूड़ समान बहन बेटी पर नारी।।
रचना हाले रात दिन ज्यूँ पीपल को पात।
सुनो सज्जन सगराम कहे या बड़े संत की बात।।

सुनो सज्जन सगराम कहे भया श्याम सुं सेत।
हाड नखाणा बारणे चेत सके तो चेत।।
चेत सके तो चेत हरि जन मारे हेला।
कर आगा नै ठौर अठे कूण रैवण देला।।
बड़े ठिकाणे बास देकर खाविंद सूं हेत।
सुनो सज्जन सगराम कहे भया श्याम सूं सेत।।

सुनो सज्जन सगराम कहे तुम राम द्वारे जाय।
मून पकड़ महाराज रो ध्यान धरो चित लाय।।
ध्यान धरो चितलाय सजना रा दर्शन कीजै।
कथा श्रवण कर सीख और चरना मत लीजै।।
कर जोड़ करुणा करो पद रज शीश चढ़ाय।
सुनो सज्जन सगराम कहे तुम राम द्वारे जाय।।

भायां ने सगराम कहे या राम भजन री ठौड़।
राम द्वारे आय ने मत करो निक्कमी झोड़।।
मत करो निक्कमी झोड़ झोड़ में टोटो भारी।
हीरां रो व्योपार ठौड़ मत बिणजो खारी।।
राम भजन रे कारणे आया घरा सूं दौड़।
भाया ने सगराम कहे या राम भजन री ठौड़।।

करणी नै करतूत रो क्यां न आवे पार।
सगराम दास कहे मैं सुणी या सारा में सार।।
या सारा में सार छाण नै पीजे पाणी।
गाढो घरणो राख करै जल में जीवाणी।।
टिपोई ढोले नही धरती बिना विचार।
करणी ने करतूत रो क्यां न आवे पार।।

खट साँसा की एक पल घड़ी एक पल सांठ।
आठ घड़ी का एक पहर व्है सगरामदास कहे आठ।।
सगराम दास कहे आठ सांस सौ बरसां तांईं।
भया अठुतर करोड़ लाख चौरासी घटाई।।
राम भजन बिन खौ दिया अकल बिहूणी टाट।
खट साँसा की एक पल घड़ी एक पल साठ।।

अस्सी बरष की आव में सोवत गई चालीस।
बारा बालापण गई बाकी आठ रु बिस।।
बाकी आठ रु बीस पछाड़ी बारे बुढो।
सोलाह में सगराम त्रिया ने भावे रूढो।।
ताते भजिये राम कुं संत चरण धर शीश।
अस्सी बरस की आव में सोवत गई चालीस।।

सगरामदास जी की कुंडलियां 

सती नार सुरो जणै बड़ भागण दातार।
भगतिवान लक्ष्मी जनै यां सारा में सार।।
या सारा में सार है एक पाप री पूरी।
लंपट और जुआर जणै गलकट गढसुरी।।
सगराम दास सांच्ची कहे यामे फेर न फार।
सती नार सूरा जणै बड़ भागण दातार।।

मीरा जनमी मेड़ते परणाई चितौड़।
राम भजन परताप सूं सकल सृष्टि सिर मोड़।।
सकल सृष्टि सिरमौड़ जगत में सारा जाणी।
आगे भई अनेक कई बायां कई राणी।।
ज्यारी तौ सगराम कहे ठीक न कोई ठौर।
मीरा जनमी मेड़ते परणाई चितौड़।।

हरिचन्द सत सगराम कहे करड़ो घणो निराट।
कठिन हियां को सांभले छाती बजर कपाट।।
छाती बजर कपाट भूप दुःख दिठा भारी।
घरड़ीयो आकाश लग धर धूजण सारी।।
सूरज वंश उजालियो मही पति रे पाट।
हरिचन्द सत सगराम कहे करड़ो घणो निराट।।

सगरामदास जी की कुंडलियां 

बालू या रसना परी कदे न सुमरे राम।
सगराम किण काम रो मुख में आलो चाम।।
मुख में आलो चाम काढ़ नाखो ने दूरी।
स्वाद बाद बकवाद कपट करवाने सुरी।।
पकड़ी रहे न पापणी निकसी बकै निकाम।
बालू या रसना परी कदे न सुमरे राम।। सगरामदास जी की कुंडलियां

नर वानर सगराम कहे दोनुं एकण भाय।
यो माया में मगन है वह खुशी गुलरा खाय।।
वह खुशी गुलरा खाय अभागे अनरथ किन्हों।
इण हीरो दियो बाग उणे हरिराम ना लीन्हों।।
पूँछ नहीं या कसर है देखो दिस निरताय।
नर वानर सगराम कहे दोनों एकण भाय।।

राम भजन बिन नर पशु खोड़ीला रि खाण।
बांके सिंगरू पूछ है यह बांडा मोडा जान।।
यह बांडा मोडा जान घना रूलियार कहांवे।
घणी सहेला मार धान खड़ भोले खावे।।
सांच कहीं सगराम थे साहिब जी री आण।
राम भजन बिना नर पशु खोड़ीला री खान।।

कहे दास सगराम सुनो सज्जन बड़भागी।
गुरु कीजै भजनीक कनक कामणी रो त्यागी।।
त्यागी कनक कामणि जीके जन्म मरण दे खोय।
फिरे जगत में जीवता वासु भलो न होय।।
वासु भलो न होय लगन माया सूं लागी।
कहे दास सगराम सुनो सजन बड़भागी।।

सुण साहजी सगराम कहे है वोको वोही सेर।
लेता देता पार को क्यूं कर कियो फेर।।
क्यूं कर कियो फेर कसर राखी नही कांई।
तोबा बार हजार इसी तूं करे कमाई।।
साहिब लेखों बुझसि जद उन्धो देसी टेर।
सुण साहजी सगराम कहे है वोको वोही सेर।।

सुण हाकम सगराम कहे तू अन्धो मति हो यार।
ओरा के दोय अखियां थारे चाहिजै च्यार।।
थारे चाहिजे चार दोय देखण ने बारे।
दोय हिया रे माही जिकासुं न्याय निहारे।।
जस अपजस रहसी अठे समय पाय दिन चार।
सुण हाकम सगराम कहे तू अंधो मति हो यार।।

साहिब के चौथो वरण छोटो बेटो जाण।
हाथ लगावे काम रे तो सारा करे बखाण।।
तो सारा करें बखाण पिता ने लागे प्यारो।
मोटो करे न काम कूट ने कर दे न्यारो।।
ताते छोटा होय रहो मोटेपणा में हाण।
साहिब के चौथो वरण छोटो बेटो जाण।।

बेगम गावे गालियां कर कर मन में कोड।
बड़ी हुई बेशरमणि अब तो ममता छोड़।।
अब तो ममता छोड़ घणी कूदी अरु नाची।
कहे दास सगराम हमें तो लेनी पाछी।।
मरणो आयो सिस पर जब कुटेला भोड।
बेगम गावे गालियां कर कर मन में कोड।।

रोवण ने राजी घड़ी रांडोलिया के साथ।
के गीता के गालियां के घर घर की बात।।
के घर घर की बात जमारो इनविद जासी।
साईं रे दरबार में पना किया पासी।।
सगराम इण रीत सूं कदे नहीं कुशलात।
रोवण ने राजी घणी रांडोलिया के साथ।।

सगरामदास जी की कुंडलियां 

कहे दास सगराम गणों बाजे है जाड़ों।
आसण ओलै करो गुदड़ो ओढो गाढो।।
गाढ़ो ओढो गुदड़ो लाग जाय ली ठाड।
खोटी होस्यो भजन सूं इणरो योहि लाड।।
इणरो योंही लाड पड़ेला वारो खाडो।
कहे दास सगराम घणो बाजै है जाड़ो।।

आनदेव रा दास सुनो सब ही नर नारी।
हरिनाम ने छोड़ पूछ पकड़ी अज्या री।।
अज्या री पकड़ी हमें क्यों कर होवेला पार।
बह जासी भव सिंधु में इन में फेर न सार।।
इणमें फेर ना सार करो थे भोलप भारी।
आन देव रा दास सुणो सबहि नर नारी।।

आनदेव रा दास घणो दिसेलो भुंढो।
पति सामी की पुठ कियो जांरा दिस मुंडो।।
जारा दिस मुंडो किवो पति सामी की पुठ।
जन्म जन्म करसी थने सगराम दास कहे ऊंठ।।
सगरामदास कहे ऊंठ कूटसी चढ़ चढ़ ठुढो।
आन देव रा दास घणो दिसेलो भुन्डो।। सगरामदास जी की कुंडलियां

कहे दास सगराम धणी सुन रे माया रा।
कर सुकृत भज राम भला दिन आया थारा।।
आया थारा दिन भला चूक मति या वार।
धन धरियों रह जावसी तन होय जासी छार।।
तन होय जासी छार धोय कर बहती धारा।
कहे दास सगराम धणी सुण रे माया रा।।

कहे दास सगराम सुनो धन री धनियानी।
कर सुकरात भज राम धोय कर बहते पानी।।
बहते पानी धोयकर कृपा करी महाराज।
कारज कर ले जीव को कियो जाए तो आज।।
कियो जाए तो आज काल री जाए न जाणी।
कहे दास सगराम सुनो धनरी धनियानी।।

कहे दास सगराम सुणो माया मद माता।
क्या देख देख होय खुशी ढेढ़णी ज्यूं पग राता।।
पग राता कितरा दिना यूं तो मने बताय।
सदा सुख जो चाहिजै तो गुण गोविंद रा गाय।।
तो गुण गोविंद रा गाय मिनख तन दीन्हो दाता।
कहे दास सगराम सुणो माया मद माता।।

कहे दास सगराम सांच सांई ने भावे।
देखो दिल निरताय जाट तेजा ने गावे।।
गावे तेजा जाट ने दियो देवता थाप।
पूजै सिरजनहार ने तो गुनाह करे सब माफ।।
गुना करे सब माफ वास अमरापुर पावे।
कहे दास सगराम सांच सांई ने भावे।। सगरामदास जी की कुंडलियां

कही सुनी साखी घणी आठ पहर दिन रात।
बिणज मोकोलो ही कियो नफो न लागो हाथ।।
भज्यो ना सिरजनहार करी थे भोलप भारी।
ज्ञान बिना गाफिल रहो किण आगे कहूं बात।।
कही सुनी साखी घणी आठ पहर दिन-रात।।

बड़ो मिनख बाजै थने क्यूं ही क्यों न जाय।
कियो जापता वास्ते तूं खोस खोस ने खाय।।
खोस खोस ने खाय जवाब देणो है मरने।
आयो है किण काम जायला कांई करने।।
धरमराज सूं है धको बीतेली किण भाय।
बड़ो मिनख बाजै थने क्यूं ही क्यों न जाय।

असल फकीरा की सुनो सगराम दास कहे बात।
ओढण फाटो गुदड़ो ध्यान धरे दिन रात।।
धरे ध्यान दिन रात जठै कोई जाणे नाहीं।
टुकड़ा पावे मांग गावे गेला ज्यूं जांही।।
दुर्र दुर्र दुनिया करे खांडी हांडी हाथ।
असल फकीरा की सुनो सगराम दास कहे बात।।

बड़ा साध जांकी सुणो सगराम दास कहे बात।
राम गरिब निवाज को धरे ध्यान दिन रात।।
धरे ध्यान दिन रात सकल जीवा हितकारी।
कंचन खाक समान पुरुष सम जाने पर नारी।।
लेस्या बांरा वारणा कर कर लाम्बा हाथ।
बड़ा साध जांकी सुणो सगराम दास कहे बात।।

साध बैर बांधे नहीं सब जीवां हित कार।
यारी तो जरना जबर बोवे काली धार।।
बोवे काली धार जना सू जोर न किजे।
बन आवे तो टहल नहीं तो अलगा रहीजे।।
यारे है सगराम कहे पुठे सबली बार।
साध बैर बांधे नहीं सब जीवा हितकारी।।

भोले ही कीजै मती मन तन रो विश्वास।
पाव घड़ी में निकलसी नही उबरेला श्वाश।।
नही उबरेला स्वास भरोसो इण रो काचो।
कहे दास सगराम बले के बले न पाछो।।
राम नाम के रात दिन जब लग घट में स्वास।
भोले ही कीजो मती मन तन रो विश्वास।।

सहज बात में होय भलो भोले ही मत जाण।
राम राम कहे रात दिन कर काया कुरबान।।
कर काया कुरबान सुणो सज्जन हितकारी।
कीकर किया जाय काम ये दोनूं भारी।।
राम मया सतगुरू दया अरु प्रालब्ध के पाण।
सहज बात में होय भलो भोले ही मत जाण।।

कह कह थाको थने हाय मन हाय कुपातर।
भजन किया नहीं करें भगत हुवो किण खातिर।।
किण खातिर हुवो भगत यू तो मने बताय।
पगा पड़े हैं गृहस्थी तू माल मुल्क रा खाय।।
तू माल मुल्क रा खाय मुवो आछो इण नातर।
कह कह थाको थने हाय मन हाय कुपातर।।

कहे दास सगराम अकल था में ही भारी।
पण भज्यो न सिरजनहार पड़ी पानी में सारी।।
पानी में सारी पड़ी लारे रही ना एक।
उणे खुणे रह गई वह तो काई क देख।।
व्है तो काँईक देख फेर दी ऊपर बुआरी।
कहे दास सगराम अकल था में ही भारी।।

कहे दास सगराम सुनो सारा ही लोका।
मीनखा तन महाराज दियो है कितरा थोका।।
कितरा थोका सूं दिया यू तो करो विचार।
लख चौरासी भुगतता बीता है जुग च्यार।।
बिता है जुग च्यार भजन री दोंनी सौंका।
कहे दास सगराम सुणो सारा ही लोकां।।

या तो आगे ही घणी सगराम दास कहे लाय।
बलती में पुलों बले सरगुण शब्द सुनाय।।
सर गुण शब्द सुनाय सुनो सज्जन हितकारी।
तू जाणे है नफो पड़े हैं टोटो भारी।।
भजन कियो जावे नहीं तो सरगुण पद संभालाय।
या तो आगे ही घणी सगराम दास कहे लाय।।

कहे दास सगराम सुणो सजन हितकारी।
अवतारा रा चरित्र सुण्या सूं लगे न कारी।।
ए अवतार घणा हुवा करणो हो तो काज।
सुमरो सिरजनहार में पैदास किया री लाज।।
पैदास किया रे लाज रची जिन रचना सारी।
कहे दास सगराम सुनो सजन हितकारी।।

कहे दास सगराम हाथ में हीरा आया।
मिनख जनम रा मोल घाव गोपण में बाया।।
बाय दिया बेसुर जब लारे रह्यो जु एक।
पारख पड़ियों रोइयो गोडा माथों टेक।।
गोडा माथों टेक ऐड़ा में घणा गमाया।
कहे दास सगराम हाथ में हीरा आया।।

मिनखा तन हरि भजन रो सगराम दास कहे साज।
राम राम कहे रात दिन तो चावे जेड़ों काज।।
तो चावे जेड़ों काज मुक्ति मांगे तो तैयारी।
दे मोटो महाराज रचि जिन रचना सारी।।
बलिहारी इण नाम री ऐड़ो सारे काज।
मिनखां तन हरि भजन रो सगराम दास कहे साज।।

कहे दास सगराम इसी था मौजा माणी।
करण कहूं के भोज थने लाखो फुलाणी।।
लाखो फुलानी बीचे थारी भारी बात।
वे अधिकारी सुरगाम का थूं धरे ध्यान दिन-रात।।
थूं धरे ध्यान दिन-रात अभय पद पासी प्राणी।
कहे दास सगराम इसी था मौजा माणी।।

धर्म करें नहीं धन छता भजे न सिरजनहार।
ज्याने तो सगराम कहे बार-बार धिक्कार।।
बार-बार धिक्कार रांड गहलीरा जाया।
बल जासी या देह धरी रह जासी माया।।
कद आसी पाछो भले यो अवसर या बार।
धर्म करे नहीं धन छता भजै न सिरजनहार।।

कहे दास सगराम समय मीनखा तन थारी।
बड़ा भाग रा धनी जिकाने लागे प्यारी।।
प्यारी लागे जिकाने भजन करे दिन-रात।
राम गरीब निवाज रो और न दुजी बात।।
और न दूजी बात अभय पद रा अधिकारी।
कहे दास सगराम समय मिनखा तन थारी।।

कहे दास सगराम मूढ़ मिनखा तन पायो।
भज्यो न सिरजनहार कमायो सोयो खायो।।
खायो ने सोयो पशु कियो विषयों सूं प्यार।
आयो चौरासी भुगत ने फिर जावण में तैयार।।
फिर रावण ने तैयार रांड गहली रो जायो।
कहे दास सगराम मूढ़ मिनखा तन पायो।।

कहे दास सगराम सुनो सब ही नर-नारी।
यो सुख दिन कीतराक आगली मजल करारी।।
मजल करारी आगली भजन बिना जुग चार।
लख चौरासी जून में दुख को वार न पार।।
दुख को वार न पार भुगतता होयला भारी।
कहे दास सगराम सुनो सब ही नर नारी।।

तन रो सुख सगराम कहे गवर तणो सिणगार।
दिन दस लाड लड़ाय के बोवे काली धार।।
बोवे काली धार मार जम द्वारे खावे।
राम भजन परताप वास अमरापुर पावे।।
बड़ा विचार ज्यारां जिके ऐसो करे विचार।
तन रो सुख सगराम कहे गवर तणो सिणगार।।

कहे दास सगराम बड़ा था बड़ी विचारी।
परधन धूड़ समान बहन बेटी पर नारी।।
पर नारी बेटी गिनो सब जीवा हितकार।
न्याय करो नेकि लियां सुमरो सिरजनहार।।
सुमरो सिरजनहार मुक्ति का थे अधिकारी।
कहे दास सगराम बड़ा था बड़ी विचारी।।

कहे दास सगराम गरीबी में गुण भारी।
राम गरीब निवाज को जहां जानत है सारी।।
जाणे सारी जहां पण राखी किण सूं जाय।
बैरणीया आडी फिरे मान बड़ाई खाय।।
मान बड़ाई खाय करें कूण याने न्यारी।
कहे दास सगराम गरीबी में गुण भारी।।

कहे दास सगराम गृहस्थी सुन रे भाई।
भलो करें है भजन फते घर बेठा पाई।।
घर बैठा पाई फते करी कमाई आय।
दुर्बल री देखें दया सत्संगति में जाय।।
संत संगति में जाय करो था भल मनसाई।
कहे दास सगराम गृहस्थी सुन रे भाई।।

सगरामदास जी की कुंडलियां

कहे दास सगराम मिनख ए देखो मोटा।
पड़सी नर्क अघोर जमा रा खासी सोटा।।
सोटा खासी जमा रा सायब रे दरबार।
जीव हते परधन चूरे तके पराई नार।।
तके पराई नार करें हैं कर्म जु खोटा।
कहे दास सगराम मिनख ए देखो मोटा।।

कहे दास सगराम साध रे परवाह काही।
छाजन भोजन नीर गणों हरि इच्छा माही।।
यो हरि इच्छा में घणो और न दूजी बात।
राम-राम कह रात दिन जन्म सफल हो जाय।।
जन्म सफल होय जात मिले सुख सागर माही।
कहे दास सगराम साध रे परवाह कांई।।

सुख देखे जहां पुण्य कियों दुख देखे जहां पाप।
भुक्ते हैं अपनों कियो सगराम दास कहे आप।।
सगराम दास कहे आप कु जस जस किणने भाई।
फेर करें हैं जिसा भले आगे भर पाई।।
दाता रे दरबार में होय न्याय इंसाफ।
सुख देखे जहां पुण्य कियो दुख देखे जा पाप।।

कहे दास सगराम अवध आई डोकरड़ा।
जेज नहीं है हमें भजन रा दै सोकरड़ा।।
दै सोकरड़ा भजन रा आठ पहर दिन रात।
खाँविद निमित लगाय ले है कुछ थारे हाथ।।
है कुछ थारे हाथ रया दिन बाकी थोड़ा।
कहे दास सगराम अवध आई डोकरड़ा।।

कहे दास सगराम रया दिन बाकी थोड़ा।
कर सुकरत भज राम दरगड़े गालो घोड़ा।।
घोड़ा घालो दरगड़े जद पुगोला ठेट।
विचले बासै रह गया तो पड़सों किणरे पेट।।
पड़सो किण रें पेट पड़ेला भारी फोड़ा।
कहे दास सगराम रया दिन बाकी थोड़ा।।

सगरामा सागी करें तत्पुरुषा की होड़।
वे हंसा मेहराण का थे डूंगर का टोड।।
थे डूंगर का टोड महल माया खटकावो।
वे चुगे ना मोती लाल दान सू नाही दावो।।
होड़ करो हूंस्यां मरो तो कनक कामिनी छोड़।
सगरामा सागी करें सत पुरुषा की होड़।।

कहे दास सगराम सुनो सज्जन हितकारी।
प्यारा लागे घणा मने तो नाम लियारी।।
नाम लिहारी ऊपरे हूं बली बारंबार।
भावे जेड़ी जात होई कारण नहीं लिगार।।
कारण नहीं लिगार पुरुष भला होवो नारी।
कहे दास सगराम सुनो सजन हितकारी।।

धिन वे जन संसार में ज्यां दिया सकल सुख छोड़।
धरे ध्यान महाराज रो कर कर मन में कोड।।
कर कर मन में कोड जान या बड़ी कमाई।
कै नारायण मांही नहीं तो नर तन पाई।।
ऐसी जागा जन्मसी जहां करे न कोई होड़।
धन वे जन संसार में ज्यां दिया सकल सुख छोड़।।

कहे दास सगराम हमें थूं हुवो पुगतो।
किया मोकला काम राख खाविंद रो नुगतो।।
नुगतो राख दयाल रो घणा किया है पाप।
राम-नाम कह रात दिन गुन्हा करें सब माफ।।
गुन्हा करें सब माफ जीव ने चावे सुखतो।
कहे दास सगराम हमें तू हुवो पुगतो।।

कहे दास सगराम गजब मति कर रे गेला।
खाया पराया माल बलद होय होय ने देला।।
होय होय ने देला बलद घणो सहेला मार।
टूटे कांधे खाचसी भूखा मरतो भार।।
भूखा मरता भार तने हूं कह दूं पहला।
कहे दास सगराम गजब मत कर रे गेला।।

भेष भरोसे रह मति सुन रे मनवा मोर।
वो कदे ही नहीं टले सगराम दास कहे चोर।।
सगराम दास कहे चोर बांध ले जासी पोटां।
पहली कह दूं हूं तने जीब फेरेला होटां।।
राम नाम कह रात दिन तो जमरो लगे ना जोर।
भेष भरोसे रह मति सुन रे मनवा मोर।।

संसारी रा टुकड़ा नव नव आंगुल दाँत।
सीरा लाडू लापसी खावे कर कर खांत।।
खावे कर कर खांत जिकण रो कांई कैला।
करो भजन दिन रात धणी आपेई भर देला।।
यो तो महासुं व्हे नही तो जम काढैला आँत।
संसारी रा टुकड़ा नव नव आंगुल दाँत।।

नर तन दीनो राम जी सतगुरु दिनों ज्ञान।
ए घोड़ा हाको हमें ओ आयो मैदान।।
ओ आयो मैदान आकरो बाग सजावो।
धरो धणी रो ध्योन मिनख तन रो लो लावो।।

कौन करे सगराम कहे आंखों आड़ा कान।
नर तन दिनों राम जी सतगुरु दीनो ज्ञान।।

सगरामदास जी की कुंडलियां

कहे दास सगराम इसा जन-जीवन मुक्ता।
दयावंत दिल पाक सकल जीवा संग लघुता।।
लगुताई राखे घणी भजन करे दिन रात।
लेस्याँ बांरां बारणा कर कर लाम्बा हाथ।।
कर कर लाम्बा हाथ घणा वे होज्यो पुगता।
कहे दास सगराम इसा जन जीवन मुकता।।

लागो है हरिनाम सूं जां पुरुषा रो प्यार।
अनजल लेतां देर होय के नीद घड़ी दो चार।।
कै नीद घड़ी दो चार जिकी भी लागे खारी।
तन रो भाड़ो जाण दिया बिन लगै न कारी।।
यूं जाणे आसी कदै यो अवसर या बार।
लागो है हरिनाम सूं जां पुरुषा रो प्यार।।

कहे दास सगराम डोकरा भली विचारी।
पुरबलो आंकुर उदय अब भयो है भारी।।
भारी उदय यो भयो भजलो सिरजनहार।
खाविंद बुठो पाछलो करसी जै जै कार।।
करसी जै जै कार नाम की नपै भारी।
कहे दास सगराम डोकरा भली विचारी।।

कियां करो मौत रो सोच सतगुरु किया अनरागी।
कहे दास सगराम मुवां के मौजा लागी।।
मौजा लागी मूवां के रहस्या खाविंद द्वार।
कसर रहि होयते भलै मिनख जमारो त्यार।।
मिनख जमारो त्यार बड़ा होस्यां बैरागी।
क्यां करों मौतरो सोच किया सतगुरु अनुरागी।।

कहे दास सगराम भजन कर रे मन मोड़ा।
बाता में बेकूफ़ काडसी काईं डोडा।।
डोडा काईं काडसी यूं तो मने बताय।
पड़सी पापी नरक में मार जमा री खाय।।
मार जमा री खाय कुटसी थारा गोडा।
कहे दास सगराम भजन कर रे मन मोड़ा।।

कहे दास सगराम हमें तो चेतो टीरा।
भूखा मरता मरो कमर में लटके लीरा।।
लीरा लटके कमर में चेत हमें तो चेत।
आधौ परधो उबरे चिड़िया खायो खेत।।
चिड़ियाँ खायो खेत गाय गुण साहिब जीरा।
कहे दास सगराम हमें तो चेतो बीरा।।

दिन रा बातां बस कियो रात पड़िया सूं नीद।
राम भजन कैसे करें दोय बहु रो बिंद।।
दोय बहु रो बिंद पकड़ बैठो है गाड़ी।
धणी बुझसी जवाब जदै ए फिरे न आडी।।
सुण रे सेठ सगराम कहे अकल गई आकिंद।
दिन रा बाता बस कियो रात पड़िया सूं नींद।।

गंगा ने सगराम कहे जगत जाण गयो सेल।
मूवां न्हाखै हाडका जीवित धोवै मैल।।
जीवत धोवै मैल किया जो अपना पाई।
हरि चरणा ने छोड़ भूमी मंडल में आई।।
धरण माही धस जावेला जद छुटेली गेल।
गंगा ने सगराम कहे जगत जाण गयो सैल।।

सगरामदास जी की कुंडलियां

नींद पइसा पाँच री लाख मोहर री रात।
भजन बिना खोई सखी पति सूं करी न बात।।
पति सूं करी न बात कौन गति व्हैला म्हारी।
देसी खाविंद दुहाग भुगतना व्हैला भारी।।
कद पाछो आसी भलै मिनख जमारो हाथ।
नींद पइसा पाँच री लाख मोहर री रात।।

कहे दास सगराम जित साजी है जिन्दड़ी।
करो भजन दिनरात काच री है या सिंदड़ी।।
सिंदड़ी है या काच री बिनसत लगे न बार।
लीज्यो लियो जाय तो लावो है दिन चार।।
लावो है दिन चार छूट जासी या गिंदड़ी।
कहे दास सगराम जित साजी है जिन्दड़ी।

माया जोबन राज मद बोवे काली धार।
जिणरै ए तीनो हुवे तो कोई न पड़ियों पार।।
तो कोई न पड़ियों पार जिकण रो काईं कीजै।
राम भजन सतसंग दया दुर्बल री लीजै।।
न्याव करे नेकी लियां सुमरे सिरजनहार।
माया जोबन राज मद बोवे काली धार।

तीरथ धरती ऊपरे है गुनचास करोड़।
ब्रह्मा रा किया भलै गिन्या न आवे ओड़।।
गिन्या न आवे ओड़ गिने तो न्यारा न्यारा।
कहे दास सगराम कराया सतगुरू सारा।।
राम भजन परताप सूं बैठा एकण ठौड़।
तीरथ धरती ऊपरे है गुनचास करोड़।।

सगरामदास जी की कुंडलियां

कहे दास सगराम करे क्यूं करुणा थोथी।
खाविंद होसी खुशी भजन री कियां भरोती।।
किया भरोती भजन री राम राम कहे राम।
दियाँ छुटबो होवसी बड़े राज रा दाम।।
बड़े राज रा दाम कौल थे कियो मोती।
कहे दास सगराम करे क्यूं करुणा थोथी।।

कहे दास सगराम भजन री भुरकी भारी।
न्हाखै सन्त सुजान जिकां ऊपर मैं वारी।।
मैं वारी वां उपरे भरम करम दे मेट।
चौरासी रा जीव ने मुक्ति मेल दे ठेठ।।
मुक्ति मेल दे ठेठ जिकां री मैं बलहारी।
कहे दास सगराम भजन री भुरकी भारी।।

सुन रे मन सगराम कहे तू इती रीस मत राख।
बोय न्हाखंसी पापणी हतियारण हक नाक।।
हतियारण हक नाक क्यों जो माने मारो।
कर जरणा सु प्रीत भलो हो जासी थारो।।
शोभा होवसी जगत में दिल हो जासी पाक।
सुन रे मन सगराम कहे तू इती रीस मत राख।।

क्यूं मुजीं मती हीन भरे माया सूं मटको।
पच पच ने तू पचे संग नहीं चाले बटको।।
बटको संग चाले नहीं अकल बीहूणा ढोर।
राम भजन सुकृत बिना पड़सी नरक अघोर।।
पड़सी नरक अघोर काढ़सी काईं घटको।
क्यूं मुंजी मति हीन भरे माया सु मटको।।

जीवा रो जोहर करें परभातें ही जाय।
काईं है इणमें नफो यूं तो मने बताय।।
यूं तो मने बताय पड़े हैं भारी टोटो।
गाढो गरणों राख बेवड़ो चोखो लोटो।।
चतुराई सूं छाण ले सगराम दास कहे न्हाय।
जीवा रो जोहर करें परभातें ही जाय।।

हरीभक्ति विमुख प्रकरण

हिरणाकुश मुजरों कीयो रावण कियो जुहार।
सगराम दास कहे देखलो अजु खात है मार।।
अजु खात है मार बड़ा का बैर ना छूटे।
बीत गया जुग चार नकल कर कर ने कुटे।।
कर कर ने कुटे नकल डारे धुर उछार।
हिरणाकुश मुजरों कियो रावण कियो जुहार।।

कहे दास सगराम अहं भुंडी रे भाई।
लंकपति को राज बोय दियो इण बाई।।
इण बाई पूरा किया जादू छप्पन करोड़।
केरु सकल संहारिया करम कंस रो फोड़।।
करम कंस रो फोड़ जरासंध जान गमाई।
कहे दास सगराम अहम भुंडी रे भाई।।

सगरामदास जी की कुंडलियां

संस्कृत सगराम कहे है साठी को कोर।
तिसा मरता क्यों मरो बिन लौटा बिन डोर।।
बिन लोठा बिन डोर ज्ञान लज उडा भोला।
सतपुरुषा रो शब्द लेय दरियाव हबोला।।
राम भजन बिन गती नहीं चारू वेद ढंढोर।
संस्कृत सगराम कहे है साठी को कोर।।

सकल शास्तर सोध बात तो याकि याही।
गया राम गुण भूल जिके दोजख में जाहि।।
दोजख में पड़सी जिके बह जासी भो धार।
भजन करे है रात दिन वे हो जासी पार।।
वे हो जासी पार बास अमरापुर मांही।
सकल शास्तर सोध बात तो याकी याही।।

दुर्वासा देता घणा सगराम दास कहे श्रॉप।
अम्बरीश पर कोपिया उण हलगत सूं आप।।
उण हलगत सु आप सुदर्शन आगे भागा।
फिरिया तीनु लोक किणी कोई लिया न आगा।।
पड़िया नरपति रे पगा जब वा मिटी जो ताप।
दुर्वासा देता घणा सगराम दास कहे श्राप।।

काईं लीन्हो स्वाद बाद हरिजन सु किन्हों।
लाख गयंदा भार लंक पति सोनो दीन्हो।।
सोनो ही दिया पछे एसी खाई हार।
साथे पहुँचावण गयो होय गधे असवार।।
होय गधे असवार पगो में माथों दीन्हो।
काईं लीन्हो स्वाद बाद हरिजन सु किन्हों।।

राम भजन भावे नहीं आनदेव सु प्रीत।
गुण जे तू सगराम कहे ए ब्यावा का गीत।।
ए ब्यावा का गीत घणो दिसेलो भुंडो।
पड़सी नरक अघोर पाँव ऊपर तल मुंडो।।
पहली कह दूं हूं थने सुन रे आंधाभित।
राम भजन भावे नहीं आनदेव सु प्रीत।।

सगरामदास जी की कुंडलियां

क्यूं भाली सारू लड़े बिगड़ायल हक नाक।
या थारो काटण खपै सगराम दास कहे नाक।।
सगराम दास कहे नाक जिकण री खबर है काईं।
आनदेव रा दास थां ऊपर जद आई।।
निकल जायली एक दिन करम फुट न राख।
क्यूं भाली सारू लड़े बिगड़ायल हक नाक।

आनधर्म है घणा सुणो तो सज्जन प्यारा।
बीत गया जुग चार गिना तो न्यारा न्यारा।।
न्यारा न्यारा गिणां तो गिणिया किण सूं जाय।
तू तो दीनानाथ ने सगराम दास कहे ध्याय।।
सगराम दास कहे ध्याय आय गिया इण में सारा।
आन धर्म है घणा सुणो तो सज्जन प्यारा।।

मिनख जमारे आय राम जी रो गुण भुला।
कहे दास सगराम इणी सम काईं शूला।।
सूला काईं इणी सम घणी सहोला मार।
टोंकी मोरा रे बिचै ऊपर लदसी भार।।
ऊपर लदसी भार गधा होवेला लूला।
मिनख जमारे आय राम जी रो गुण भुला।।

क्यूं भाली भाली करें व्यभिचारण हक नाक।
या तो थारी कटासी सगराम दास कहे नाक।।
सगराम दास कहे नाक पराया पुरुष मनावै।
आनदेव रा दास भल तू ही क्यूं चावै।।
थनै नाकसी नरक में या पड़सी कुवे डाक।
क्यूं भाली भाली करें व्यभिचारण हक नाक।।

कागज सारौ बाचियों आगे पीछे जोय।
सिरे आंक दिठा नही सगराम दास कहे दोय।।
सगराम दास कहे दोय आँखिया फूटी थारी।
साहिब रे दरबार मांही भुगतेला भारी।।
पहली कह दूं हूं थनै यो बड़ो अनरथ होय।
कागज सारौ बाचियों आगे पीछे जोय।

संता री निंदा करे काना सुणी न जाय।
काटो जीभ गुलाम री घर ऊपर दो लाय।।
घर ऊपर दो लाय काढ़ दो बस्ती बारे।
बांडे गधे चढ़ाय कुतरा कर दो लारे।।
पग लीला सगराम कहे मुंडो करदो स्याय।
संता री निंदा करे काना सुणी न जाय।।

दया हीन प्रकरण

अनगल पानी में पड़े परभातें ही जाय।
मारे जीव असंख्या पछे रोटियां खाय।।
पछे रोटियां खाय कुबद या कुण सिखाई।
नव लाख जात सुं बैर पड़े हैं सुन रे भाई।।
बाबो लेखो बुझसी तब भुगतेला किण भाय।
अणगल पानी में पड़े परभाते ही जाय।।

 

बकरियो बो बो करें करें हिरणीयो डाड।
भेड़ो भौभाड़ा करे नही किणी रे गाड़।।
नहीं कीणीरे गाड़ बड़ा पापी हत्यारा।
किकर बहे हैं हाथ गरीबों उपर थारा।।
बुझेलो बाबो थने दे माथे में फाड़।
बकरियो बो बो करे करे हिरणियो डाड।।

कहे शास्तर संत अधम भारी सु भारी।
प्राण घात करी भखै तकै पर धन पर नारी।।
पर धन पर नारी तके बजर पाप ए जाण।
पड़सी नरक अघोर में जब लग शशि अरू भाण।।
जब लग शशि अरू भाण सुनो सब ही नर नारी।
कहे शास्तर संत अधम भारी सु भारी।।

जीव मार मिनखा जनम तू ही चावे फेर।
साहिब रा दरबार में ईतरों कठे अंधेर।।
इतरो कठे अंधेर अरे अज्ञानी प्राणी।
बदलो लेसी जीव अकल थारी में जाणी।।
जिण में हत्या कोड़ कर बे थने हतेला हेर।
जीव मार मिनखा जन्म तू ही चावे फेर।।

भांग तमाखू छुतरा चौड़े ओले खाय।
तोबा रे तोबा थनै हाय हाय रे हाय।।
हाय हाय रे हाय बोयदी किरिया सारी।
साहिब रे दरबार मार भुगतेला भारी।।
ऊँचे कुल आचार में लागी थारे लाय।
भांग तमाखू छुतरा चौड़े ओले खाय।।

सगरामदास जी की कुंडलियां

नारी मूत रो ठीकरों अरु मांस मूत सु होय।
भिस्त जाण री चाहना तो तजो मियांजी दोय।।
तो तजो मिंयाजी दोय समझ देखो दिल मांही।
कपट किया क्या होय सांच सूं रीझै साईं।।
हम पुराण सुन के कही तुम कुराण में जोय।
नारी मूत रो ठीकरों अरु मांस मूत सु होय।

कहे दास सगराम मिनख तूं दिखे चोखो।
कदेक तो कहे राम रात दिन होको होको।।
होको होको रात दिन अकल बिहूना ढोर।
आवे हैं नैड़ो अधम पड़सी नरक अघोर।।
पड़सी नरक अघोर माने यो मारे धोको।
कहे दास सगराम मिनख तू दिखे चोखो।।

कहे दास सगराम नमो नारायण स्वामी।
कीकर देलों जवाब बुझसी अंतर्यामी।।
अंतर्यामी बुझसी निश दिन नशो तैयार।
मद पीवो माटी भखौ तको पराई नार।।
तको पराई नार बड़ी है था में खामी।
कहे दास सगराम नमो नारायण स्वामी।।

कहे दास सगराम काम मच्छर रो करड़ो।
मोठो होय तो करे पापि यो पृथ्वी रो परल्लो।।
पृथ्वी रो परलो करे ऐसो देख्यो घाठ।
आछी कीनी रामजी नैनो कीयो निराट।।
नैनो कीयो निराट तोही कररावे बरड़ो।
कहे दास सगराम काम मच्छर रो करड़ो।।

कहे दास सगराम अकल थारी में जाणी।
घणो देख मति ढोल घणो मेहंगो है पाणी।।
यो पाणी मुंगो घणो सकल मांड रो मूर।
आगे रहे दिन दोय तो खबर पड़े बेसुर।।
खबर पड़े बेसुर छोड़ जावे पिंड प्राणी।
कहे दास सगराम अकल थारी में जाणी।।

कहे दास सगराम अकल आचारी थारी।
ढोले निकमो नीर निजर आवे तो म्हारी।।
आवे तो मारी निजर दूं धरती में गाड।
ऊपर कांटा केर का सके न कोई काड।।
सके न कोई काड इसी लागे हैं खारी।
कहे दास सगराम अकल आचारी थारी।।

कहे दास सगराम बोर थाने क्यूं भावे।
लेखो ले जगदीश जदे तो जवाब नी आवे।।
जवाब तोही आसी नहीं सुण रे अन्ध अज्ञान।
आंख्या दोनूं फूटगी अरू फुटा दोनूं कान।।
अरू फूटा दोनु कान मने यो इचरज आवे।
कहे दास सगराम बोर थने क्यूं भावे।।

सगरामदास जी की कुंडलियां

 

मुझे उम्मीद है दोस्तों यह सगरामदास जी महाराज की कुंडलियां आपको जरूर पसंद आई होगी ऐसी और भी महत्वपूर्ण ज्ञानवर्धक जानकारियां पढ़ने के लिए आप हमारी वेबसाइट को विजिट कर सकते हैं अथवा नीचे दी गई समरी पर क्लिक करके भी पढ़ सकते हैं दोस्तों इन कुंडलियों के अर्थ मैंने इसलिए नहीं लिखे हैं क्योंकि आजकल नकलची बहुत बैठे हैं इसलिए आपको अगर किसी भी कुंडली का अर्थ चाहिए तो आप नीचे कमेंट बॉक्स में लिख कर भेजें और अपना व्हाट्सएप नंबर यह मेरे कांटेक्ट अस पेज पर जाकर मुझसे संपर्क कर सकते हैं। धन्यवाद ! सगरामदास जी की कुंडलियां

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2 thoughts on “सगरामदास जी की कुंडलियां । सम्पूर्ण कुण्डलिया अर्थ सहित

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