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विक्रम बैताल के छंद । विक्रम बैताल की कहानियां

विक्रम बैताल के छंद

विक्रम बैताल के छंद
विक्रम बैताल के छंद

नमस्कार दोस्तों कवि बैताल ने राजा विक्रम से कुछ नीति वर्धक ज्ञान की बातें छंदों के माध्यम से कह रहे हैं, जिनका यहां पर हम सरलार्थ सहित विस्तार से चर्चा करेंगे तो आइए देर नहीं करते हुए हम शुरू करते हैं। विक्रम बैताल के छंद

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पग बिन कटे नही पंथ 

पग बिन कटे न पंथ बाहु बिन हटे न दुर्जन।
तप बिन मिले न राज भाग बिन मिले न सज्जन।।
गुरु बिन मिले न ज्ञान द्रव्य बिन मिले न आदर।
बिना पुरुष श्रृंगार मेघ बिन कैसे दादुर।।
बैताल कहै विक्रम सुनो, बोल बोल बोली हटै।
धिक्क धिक्क ये पुरुष को मन मिलाइ अन्तर कटे।।

कवि बैताल कह रहे हैं विक्रम से कि व्यक्ति पांव से जब तक चलेगा नहीं तब तक रास्ता कैसे कटेगा। नहीं कटेगा ! भूजाओ में बल नहीं है, तो दुर्जन व्यक्ति आपको परेशान करना नहीं छोड़ेंगे। संसार में व्यक्ति के पास जो भी पद प्रतिष्ठा उपलब्ध है, वह सब पूर्व की तपस्या का ही प्रतिफल है। संसार में मिलने को तो सब कुछ मिल जाता है लेकिन सज्जन पुरुषों का संग मिलना बड़े ही सौभाग्य की बात है। हमारे पास जो भी ज्ञान है, उसके पीछे गुरु का ही हाथ है। बिना गुरु के व्यक्ति को कभी भी ज्ञान नहीं हो सकता, यह सार्वभौमिक सत्य है। पास में धन नहीं है, तो कहीं पर भी आदर नहीं मिलता। स्त्री अगर पति नहीं है, और वह श्रृंगार करती है, तो वह श्रंगार व्यर्थ है। आकाश में कहीं दूर तक बादल नहीं है तो मेढ़को की टर्र टर्र व्यर्थ है। बैताल कह रहा है, कि हे राजन बोली का जवाब बोली ही है। और धिक्कार है, ऐसे व्यक्ति को जो मन मिलाकर अंदर से छल कपट रखता है। विक्रम बैताल के छंद

मरै बैल गरियार मरे वह

मरै बैल गरियार मरै वह अड़ीयल ट‌‌ट्टू‌।
मरै करकसा नारि मरै वह खसम निखट्टू।।
बामन सो मरि जाय हाथ लै मदिरा प्या‌वै।
पूत वही मरि जाय जु कुल में दाग लगावै।।
अरु बे नियाब राजा मरै तबै नींद भरि सोइये।
बैताल कहै विक्रम सुनो एते मरे न रोइये।।

बैताल कह रहे हैं कि पहले के जमाने में जब किसान खेत जोतते थे। दो बैलों से तो उसमें से एक बैल भी अगर अड़ जाता था, हमारी भाषा में उसे अडियल बैल कहते हैं, ऐसा बैल मर जाए तो कोई गम नहीं। अड़ीयल टट्टू (खच्चर) भी मर जाए जो समय पर काम ना आए। वह औरत भी मर जाए जिसमें कुल की मर्यादा निभाने के लक्षण ना हो। और वह मालिक भी मर जाए जो कंजूस हो समय पर काम ना आए। वह बामण (ब्राह्मण) भी मर जाए जो हाथ में शराब का गिलास उठाएं और ऐसा पुत्र भी मर जाए जिससे कुल को कोई दाग लग जाए। अनिति करने वाला राजा मर जाए फिर तो कहना ही क्या है, सुख की नींद सोईये, क्योंकि धरती का बोझ हल्का हो गया है। लोगों को शांति मिलेगी। इतने प्रकार के प्राणियों के मरने का कभी भी शौक मत करना। विक्रम बैताल के छंद

शशी बिन सूनी रैन ज्ञान

शशी बिन सूनी रैन ज्ञान बिन हिरदो सूनो।
कुल सूनो बिन पुत्र पत्र बिन तरुवर सूनो।।
गज सूनो इक दंत ललित बिन सायर सूनो।
बिप्र सून बिन वेद और बिन पुहूप बिहूनो।।
हरिनाम भजन बिन संत अरु घटा सून बिन दामिनी।
बैताल कहै विक्रम सुनो पति बिन सूनी कामिनी।।

रात्रि चांद बिना, हृदय ज्ञान बिना, कुल पुत्र बिना, वृक्ष पतों बिना, हाथी दांत बिना, समुंद्र लालिमा के प्रकाश बिना, ब्राह्मण वेदों के ज्ञान बिना, पुष्प सुगंध बिना, भक्त भगवान की भक्ति बिना, बादल बिजली की चमक बिना, और बिना पति के कामिनी बैताल कह रहे हैं, कि राजा इन एक एक के अभाव में इनकी कहीं शोभा नहीं है। विक्रम बैताल के छंद

राजा चंचल होय मुलुक को

राजा चंचल होय मुलुक को सर करि लावै।
पंडित चंचल होय सभा उत्तर दै आवै।।
हाथी चंचल होय समर में सूड़ि उठावै।
घोड़ा चंचल होय झपटि मैदान दिखावै।।
है ये चारों भले राजा पंडित गज तुरी।
बैताल कहै विक्रम सुनो तिरिया चंचल अति बुरी।।

जिस देश का राजा चंचल होता है, वह देश सब का सरताज होता है। अगर पंडित चतुर चंचल है, तो सभा में सब का उत्तर दे देता है। हाथी चंचल है, तो रण युद्ध में काफी सैनिकों को मार देता है; और अपने महावत की रक्षा भी करता है। इसी प्रकार घोड़ा चंचल है, स्फूर्तिवान है, तो युद्ध मैदान में दुश्मनों के छक्के छुड़ा दे। जैसे महाराणा प्रताप के चेतक ज्यों। चारों चंचल ही अच्छे लगते हैं, राजा पंडित गज तुरी लेकिन अगर स्त्री चंचल है, तो वह कुल के लिए बहुत ही बुरी होती है। विक्रम बैताल के छंद

जीभि जोग अरु मोग जीभि

जीभि जोग अरु मोग जीभि बहु रोग बढ़ावै।
जीभि करै उधोग जीभि लै कैद करावै।।
जीभि स्वर्ग लै जाय जीभि सब नरक दिखावै।
जीभि मिलावै राम जीभि सब देह धरावै।।
निज जीभि ओठ एकग्र करि बांट सहारे तोलिये।
बैताल कहै विक्रम सुनो जीभि संभारे बोलिये।।

कवि ने जीभ की वास्तविकता का वर्णन करते हुए बहुत ही सुंदर काव्य रचना की है। आइए पढ़ते हैं। कवि कहता है; कि यह जीभ से ही भक्ति मुक्ति करना संभव है। अगर जीभ के स्वाद में व्यक्ति कई ऐसी अपत्य अभोज्य पदार्थों का सेवन करने से शरीर में रोग उत्पन्न हो जाते हैं। जीभ से ही व्यापार किया जाता है। राजस्थानी में एक कहावत भी है कि “बोले उणरा बूबला ही वके नि बोले वणरा चणा ही पड़ीया रे” मतलब जो बोलना नहीं जानता है, उसके चने भी पड़े रहते हैं। अगर बोलते बोलते चुके तो सीधी कैद जेल करा देती है। यह जीभ अगर मीठी और पवित्र भाषा का प्रयोग करती है; तो यह स्वर्ग में ले जाती है। अगर ठीक उसके विपरीत दिशा में काम करने पर जीते जी तथा मरने के बाद भी नरक में ले जाती है। जीभ से परमात्मा की भक्ति नाम कीर्तन गुणगान करने से प्रभु का दीदार करा देती है। और जीभ जैसी वाणी का प्रयोग करती है, उसी प्रकार उसका संबोधन होता है। इसलिए बोलने से पहले ह्रदय में वाणी को कई बार तोलकर जैसे बणिया वस्तु को बांट से तौल कर वस्तु देता है, उसी प्रकार व्यक्ति को भी बोलने से पहले हृदय में वाणी को तौल कर और संभल कर ही बोलना चाहिए। विक्रम बैताल के छंद

टका करै कुलहूल टका विक्रम

टका करै कुलहूल टका मिरदङ्ग बजावै।
टका चढ़े सुखपाल टका सिर छत्र धरावै।।
टका माय अरु बाप टका भैयन को भैया।
टका सास अरु ससुर टका सिर लाड़ लड़ैया।।
अब एक टके बिनु टकटका रहत लगाये रात दिन।
बैताल कहै विक्रम सुनो धिक जीवन एक टके बिन।।

संसार में सब खेल पैसों का है। बांग्लादेश की भाषा में भारत के 0.86 पैसे को ही बांग्लादेश में एक टका कहा जाता है। अपने यहां का ₹1 और बांग्लादेश की 0 पॉइंट 86 पैसों का एक टका बनता है। पास में पैसा है, तो व्यक्ति कुलीन है। घर में कोई उत्सव है, बड़े गाज बाजे बज रहे हैं; अगर पास में पैसे हैं तो। पैसे है तो सब सुख पास में है। पैसे हैं तो सिर पर मुकुट भी धारण कर सकते हो (कोई पद प्रतिष्ठा का मुकुट) पैसा ही मां-बाप है, पैसा है तो आपके सब भाई है। पैसा है तो सास ससुर भी कद्र करते हैं। लोग लाड प्यार पैसों की वजह से ही करते हैं। व्यक्ति के पास में पैसा नहीं है, तो रात दिन पैसा कैसे कमाए इस ख्याल में खोया रहता है। बैताल कह रहे हैं, आवश्यकता अनुसार पास में पैसा होना भी चाहिए अगर नहीं है, तो ऐसा जीवन बेकार है।

दया चट्ट ह्वै गई धरम

दया चट्ट ह्वै गई धरम धँसि गयो धरन मे।
पुण्य गयो पाताल पाप भ्यो बरन बरन में।।
राजा करै न न्याय प्रजा की होत खुवारी।
घर घर में बेपीर दुखित भे सब नर नारी।।
अब उलटि दान गजपति मंगै शील संतोष कितै गयो।
बैताल कहै विक्रम सुनो यह कलजुग परगट भयो।।

लोगों के हृदय में दया रही नहीं। धर्म तो धरती के दलदल में धंस चुका है। पुण्य तो कहीं नजर ही नहीं आ रहा, लगता है पाताल में चला गया है। और पाप ने तो हर वर्ण में बड़े ही लंबे पांव पसार रखे हैं। राजा लोगों में न्याय नाम कि कहीं दूर दूर तक उम्मीद नहीं दिख रही है, बेचारी प्रजा का इतना शोषण कर रहे हैं; कि उनकी बुद्धि ने काम करना ही बंद कर दिया है। घर घर में लोग बहुत दुखी हो गए हैं, नर हो या नारी सब किसी न किसी दुख से ग्रसित है। जो पहले दातार थे, अब वे मंगनियार से मांगते हैं। लोगों में शील (बाहर भीतर की पवित्रता) और संतोष तो कहीं रत्ती भर भी नहीं दिखता, पता नहीं कहां चला गया है। राजा जब यह लक्षण दिखने लगेंगे तब समझ लेना घोर कलयुग का समय प्रगट हो चुका है। विक्रम बैताल के छंद विक्रम बैताल के छंद

मर्द सीस पर नवै मर्द बोली

मर्द सीस पर नवै मर्द बोली पहिचानै।
मर्द खिलाबै खाय मर्द चिन्ता नहिं मानै।।
मर्द देय औ लेय मर्द को मर्द बचावै।
गाढ़े संकरे काम मर्द के मर्दै आवै।।
पुनि मर्द उनहिं को जानिये दुख सुख साथी दर्द के।
बैताल कहै विक्रम सुनो लक्षण है ये मर्द के।।

बुधि बिन करे बेपार दृष्टि बिन

बुधि बिन करे बेपार दृष्टि बिन नाव चलावे।
सुर बिन गावे गीत अर्थ बिन नाच नचावे।।
गुन बिन जाय विदेश अकल बिन चतुर कहावे।
बल बिन बांधे युद्ध हौंस बिन हेत जनावे।।
अनइच्छा इच्छा करे, अनदीठी बातां कहे।
बैताल कहै विक्रम सुनो, यह मूरख की जात है।।

चोर चुप्प ह्वै रहै रैन

चोर चुप्प ह्वै रहै रैन अंधियारी पाये।
संत चुप्प ह्वै रहै मढ़ी में ध्यान लगाये।।
बधिक चुप्प ह्वै रहै फांसि पंछी लै आवै।
छैल चुप्प ह्वै रहै सेज पर तिरिया पावै।।
बर पिपर पात हस्ती स्रवन कोइ कवि कुछ कुछ कहै।
बैताल कहै विक्रम सुनो चतुर चुप्प कैसे रहै।।

उप संहार

मुझे उम्मीद नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास है कि यह विक्रम बैताल के छंद आपको जरूर पसंद आए होंगे। अगर आपको पसंद आए हैं, तो कृपया लाइक कमेंट और शेयर जरूर करें ऐसे ही अन्य कवियों के छंद सवैया दोहे आदि पढ़ने के लिए आप हमारी वेबसाइट को विजिट कर सकते हैं। अथवा नीचे दी हुई समरी पर क्लिक करके भी पढ़ सकते हैं। धन्यवाद ! विक्रम बैताल के छंद

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