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राजा भरथरी की कथा । गोपीचंद भरथरी की अमर कथा

महापुरुष राजा भरथरी की कथा

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राजा भरथरी की कथा
राजा भरथरी की कथा

महापुरुष राजा भरथरी की कथा

भाई विक्रम को मृत्युदंड देना

भरतरी राजा था। उनके छोटे भाई का नाम विक्रम था। भरतरी की रानी का नाम पिंगला था। सुंदरता में परी से कम नहीं थी। परंतु चरित्रहीन थी। राजा भरथरी पिंगला से बहुत प्यार करता था तथा अत्यंत विश्वास करता था। एक दिन विक्रम ने अपनी भाभी जी को एक नौकर के साथ आपत्तिजनक स्थिति में देखा। नौकर घोड़ों की देखरेख करने वाले नौकरों का मुखिया था। उसे दरोगा की उपाधि प्राप्त थी। पिंगला ने विक्रम को रास्ते से हटाने के लिए षड्यंत्र रचा। खाना-पीना त्याग दिया। राजा ने पूछा तो बताया कि तेरे भाई ने मेरी इज्जत पर हाथ डाला है। राजा को अपने भाई पर पूर्ण विश्वास था, कि विक्रम यह गलती नहीं कर सकता, तू गलत कह रही है। परंतु कहावत है कि “त्रिया चरित्र जाने ना कोई खसम मारकर सती होई।। अंत में राजा ने पत्नी मोह में अपने भाई को दोषी करार दे दिया। पिंगला ने कहा कि इसको जंगल में जाकर मार कर डाल आए। इसकी आंखें निकाल कर लाए। मुझे दिखाए तो मैं जीवित रहूंगी नहीं तो मारुंगी। राजा भरतरी ने अपने नौकरों को यही आदेश दे दिया। जब नौकर लेकर चले तब विक्रम ने कहा कि भाई साहब आपको यह स्त्री मरवाएगी। आपको दुनिया से खो देगी। मैं तो चला। एक कवि ने कहा है:- “आज का बोला याद राखिए विक्रम भाई का। दुनिया में से खो देगा तुझे बहम लुगाई का।। राजा भरथरी की कथा
विक्रम ने बताया कि यह स्त्री चरित्रवान नहीं है। परंतु भरतरी ने कान बंद कर लिये। विक्रम की एक नहीं सुनी और भाई को मारने का आदेश दे दिया। दयावान वृद्ध मंत्री ने नौकरों से कहा कि विक्रम निर्दोष है। इसको मारना नहीं है। किसी मृग की आंखें निकाल कर लाना। विक्रम को किसी जिम्मेदार व्यक्ति के पास दूसरे राजा (विक्रम के मामा) के राज्य में छोड़ आओ। ऐसा ही किया गया। पिंगला का रास्ते का रोड़ा दूर हो गया। राजा भरथरी की कथा

राजा भरतरी का शिकार और सिद्ध गोरखनाथ जी से भेंट राजा भरथरी की कथा

एक दिन राजा भरतरी जंगल में शिकार खेलने गया हुआ था। उसने एक हिरण को तीर से मार दिया। उसी समय श्री गोरख नाथ जी सिद्ध वहां से जा रहे थे। उसने राजा से कहा कि निर्दोष को मारने से महा पाप लगता है। राज के मद में अंधा न हो प्राणी! संसार छोड़कर भी जाना है। राजा में अहंकार अधिक होता है। वह अपनी क्रिया में बाधा तथा किसी की शिक्षा स्वीकार नहीं करता। यदि श्री गोरखनाथ जी संत वेश में न होते तो इसी बात पर उन्हें भी वही तीर से मार देता। फिर भी अपनी दुष्टता व्यक्त करने करते हुए कहा कि यदि इतना जीवो के प्रति दयावान है तो इस मृग को जीवित कर दे, नहीं तो यह संत वेशभूषा उतार कर रख दे। श्री गोरखनाथ जी ने शर्त रखी कि यदि मैं इसी हिरण को जीवित कर दूं तो आपको मेरा चेला बनना पड़ेगा। राजा भरथरी ने कहा कि ठीक है। श्री गोरखनाथ जी ने उसी समय कान पकड़कर हिरण को खड़ा कर दिया। राजा से कहा कि उत्तर घोड़े से नीचे। राजा घोड़े से नीचे उतरा और संत के पैर पकड़कर क्षमा याचना की और कहा कि मुझे कुछ समय और राज्य करने दो। फिर आपका शिष्य अवश्य बन जाऊंगा। अभी मेरी पत्नी रो रो कर मर जाएगी। वह मेरे बिना नहीं रह सकती। श्री गोरखनाथ जी ने कहा कि:- बाण आले की बाण ना जावे चाहे चारों वेद पढाले त्रिया अपनी ना होती चाहे कितने लाड लडाले।। राजा भरथरी की कथा
परंतु भरथरी तो अपनी दुष्ट पत्नी को देवी मानता था। उसने अपनी पत्नी की बहुत वकालत की। श्री गोरखनाथ जी ने कहा कि आपकी इच्छा हो और संसार से मन दुखी हो जाए तब आ जाना। कुछ समय उपरांत श्री गोरखनाथ जी वेश बदलकर अन्य संत के रूप में राजा भरतरी जी के पास गए। उनको एक अमर फल देकर कहा कि जो इस फल को खा लेगा वह लंबी आयु जिएगा और युवा बना रहेगा। यह कहकर संत जी कुछ दक्षिणा लेकर चले गए। फल की कीमत नहीं ली। राजा ने विचार किया कि यदि मेरे से पहले मेरी पत्नी की मृत्यु हो गई तो मैं जीवित नहीं रह पाऊंगा। इसलिए यह फल पिंगला रानी को देता हूं। वह फल अपनी रानी को दे दिया तथा उसके गुण बताएं। रानी का प्रेम उस दरोगा से था। रानी ने वह फल अपने प्रेमी दरोगा को दे दिया और उसके गुण बताएं और कहां कि मैं आपकी लंबी आयु देखना चाहती हूं। मैं आपके बिना जीवित नहीं रह पाऊंगी। दरोगा उसी शहर की वेश्या के पास जाता था। उससे अत्यधिक प्रेम करता था। दरोगा ने वह अमरफल अपनी प्रेमिका वेश्या को दे दिया तथा उसके गुण बताएं। वेश्या ने विचार किया कि इस नगरी का राजा बहुत दयालु तथा न्यायकारी है। अपने भाई का दोष देखा तो उसे भी क्षमा नहीं किया। ऐसा राजा लंबी आयु जीवित रहे तो जनता सुखी रहेगी। यदि मैंने खा लिया तो और अधिक समय तक यह पाप करूंगी। उस वेश्या ने वह फल राजा भरतरी को दे दिया तथा उसके गुण बताएं। राजा ने पूछा कि आपको यह फल किसने दिया है? वेश्या ने बताया कि आप के घोड़ों के मुखिया दरोगा ने दिया है। राजा ने दरोगा को बुलाया। पूछा तो उसने बताया कि रानी ने दिया है। रानी से महल में जाकर पूछा कि क्या आपने वह फल खा लिया था? रानी कुछ नाराज अंदाज से बोली कि हां! खा लिया था। आप हमेशा शक क्यों करते हो? राजा ने उसी समय मंत्री महामंत्री अन्य दरबारियों कार्यालय के उच्च अधिकारियों को तथा वेश्या और दरोगा को बुलाया। दरोगा से पूछा कि यह फल आपको किसने दिया था? दरोगा ने कांपते हुए कहा कि रानी ने दिया था। राजा का अंधेरा दूर हुआ। अपने भाई की मौत तथा अंतिम वचन को याद करके दहाड़ मार कर रोया। कहा कि दुष्टा! तूने मेरा भाई ही मरवा दिया। कुछ दिन में मुझे भी मरवा देती। पिंगला रानी ने क्षमा याचना की। अपनी सब गलती भी स्वीकार कर ली। भरतरी उस दिन राज्य त्याग कर गोरखनाथ जी के डेरे में चला गया तथा परम भक्त बना। महामंत्री को पता था कि विक्रम जीवित है। विक्रम को राजा बनाया गया। दरोगा को नौकरी से निकाल दिया। पिंगला को भिंन्न महल में रहने को कहा। उसकी पूरी देखभाल राजा ने रखी उसे कभी कष्ट नहीं होने दिया। राजा भरथरी की कथा

भाई जो गुरु वचन पर डट गए कट गए फंद चौरासी के राजा भरथरी की कथा

अलवर शहर के राजा के किले में पत्थर ढोने की नौकरी करना।।

एक समय श्री गोरखनाथ जी से गोपीचंद तथा भरतरी जी ने कहा कि गुरुदेव! हमारा मोक्ष इसी जन्म में हो ऐसी कृपा करें। आप जो भी साधना बताओगे हम करेंगे। श्री गोरखनाथ जी ने कहा कि राजस्थान प्रांत में एक अलवर शहर है। वहां का राजा अपने किले का निर्माण करवा रहा है। तुम दोनों उस राजा के किले का निर्माण पूरा होने तक उसमें पत्थर ढोने का निशुल्क कार्य करो। अपने खाने के लिए कोई अन्य मजदूरी सुबह शाम करो। उसी दिन दोनों भक्त आत्मा गुरु जी का आशीर्वाद लेकर चल पड़े। उस किले का निर्माण 12 वर्ष तक चला। कोई मेहनताना का रुपया पैसा नहीं लिया अपने भोजन के लिए उसी नगरी के एक कुम्हार के पास उसकी मिट्टी खोदने तथा उसके मटके बनाने योग्य गारा तैयार करने लगे। उसके बदले में सुबह शाम केवल रोटी खाते थे। कुम्हार की धर्मपत्नी अच्छे संस्कारों की नहीं थी। कुम्हार ने कहा कि दो व्यक्ति बेघर घूम रहे थे। वे मेरे पास मिट्टी खोदने तथा गारा तैयार करते हैं। केवल रोटी रोटी की मजदूरी लेंगे। आज तीन व्यक्तियों का भोजन लेकर आना। मटके बनाने तथा पकाने वाला स्थान नगर से कुछ दूरी पर जंगल में था। कुम्हारी दो व्यक्तियों की रोटी लेकर गई और बोली कि इससे अधिक नहीं मिलेगी। भोजन रख कर घर लौट आई। कुम्हार ने कहा कि बेटा! इन्हीं में काम चलाना पड़ेगा। तीनों ने बांट कर रोटी खाई। कई वर्ष ऐसा चला। अंत के वर्ष में तो केवल एक व्यक्ति का भोजन भेजने लगी। तीनों उसी में संतोष कर लेते थे। किले का कार्य 12 वर्ष चला। कुम्हार ने अपने घड़े पकाने के लिए आवे में रख दिए। अंत के वर्ष की बात है। गोपीचंद तथा भरतरी ने कुम्हार से आज्ञा ली कि पिताजी! हमारी साधना पूरी हुई। अब हम अपने गुरु श्री गोरखनाथ जी के पास वापस जा रहे हैं। मेरा नाम गोपीचंद है। इनका नाम भरथरी है। उस समय कुम्हार की पत्नी भी उपस्थित थी मटको की और एक हाथ से आशीर्वाद देते हुए दोनों ने एक साथ कहा राजा भरथरी की कथा

गोपीचंद भर्तुहरी का कुम्हार को आशीर्वाद

पिता का हेत माता का कुहेत आधा कंचन आधा रेत।।

यह वचन बोलकर दोनों चले गए। जिस समय मटके निकालने लगे तो कुम्हार तथा कुम्हारी दोनों निकाल रहे थे। देखा तो प्रत्येक मटका आधा सोने (गोल्ड का) था, आधा कच्चा था। हाथ लगते ही रेत बनने लगा। कुम्हार ने कहा, भाग्यवान वे तो कोई देवता थे। तेरी त्रुटि के कारण आधा मटका रेत रह गया। मिट्टी की मिट्टी रह गई। आधा स्वर्ण का हो गया। कुम्हारी को अपनी कृतघ्नता का एहसास हुआ तथा रोने लगी। बोली कि मुझे पता होता तो उनकी बहुत सेवा करती। राजा भरथरी की कथा

कबीर करता था तब क्यों किया अब करके क्यों पछताय। बोवे पेड़ बबूल का आम कहां से होय।।

इस प्रकार गोपीचंद और भरतरी जी अपने गुरु जी के वचन का पालन करके सफल हुए। जो अमरत्व उस साधना से मिलना था, वह भी अटल विश्वास करके साधना करने से ही हुआ। यदि विवेक हीन तथा विश्वासहीन होते तो विचार करते कि यह कैसी भक्ति? यह कार्य तो सारा संसार कर रहा है। मोक्ष के लिए तो तपस्या करते हैं या अन्य कठिन व्रत करते हैं। परंतु उन्होंने गुरु जी को गुरु मानकर प्रत्येक साधना की। गुरुजी के कार्य या आदेश में दोष नहीं निकाला तो सफल हुए। गोरखनाथ जी ने उनको जो नाम जाप करने का मंत्र दे रखा था, उसका जाप वे दोनों पत्थर उठाकर निर्माण स्थान तक ले जाते तथा लौटकर पत्थरों को तरास (काट छांट कर के सीधा कर) रहे थे, वहां तक आते समय करते रहते थे। दोनों युवा थे। कार्य के परिश्रम तथा पूरा पेट न भरने के कारण मन में स्त्री के प्रति विकार नहीं आया और सफलता पाई। गुरु एक वैध (डॉक्टर) होता है। उसे पता होता है। कि किस रोग को क्या परहेज देना है? क्या खाने को बताना है? यानी पथ्य अपथ्य डॉक्टर ही जानता है। रोगी यदि उसका पालन करता है। तथा औषधि सेवन (भक्त नाम जाप) करता है तो स्वस्थ हो जाता है यानी मोक्ष प्राप्त करता है। इसी प्रकार गोपीचंद तथा भरतरी जी ने अपने गुरु जी के आदेश का पालन करके जीवन सफल किया। इसी प्रकार सत्य लोक प्राप्ति के लिए हमने भी अपनी साधना करनी है। राजा भरथरी की कथा

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उपसंहार

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