राजा दशरथ की कहानी
राजा दशरथ की कहानी
बंदउँ अवध भुआल सत्य प्रेम जेहि राम पद।
बिसुरत दीनदयाल प्रिय तनु तुम इव परिहरेड ॥
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जिनके यहाँ भक्ति-प्रेमवश साक्षात् सच्चिदानन्दघन प्रभु पुत्ररूपसे अवतीर्ण हुए, उन परम भाग्यवान् महाराज श्रीदशरथकी महिमाका वर्णन कौन कर सकता है। महाराज दशरथजी मनुके अवतार थे, जो भगवान्को पुत्ररूपसे प्राप्तकर अपरिमित आनन्दका अनुभव करनेके लिये ही धराधाममें पधारे थे और जिन्होंने अपने जीवनका परित्याग और मोक्षतकका संन्यास करके श्रीरामप्रेमका आदर्श स्थापित कर दिया। राजा दशरथ की कहानी
श्रीदशरथजी परम तेजस्वी मनु महाराजकी भाँति ही प्रजाकी रक्षा करनेवाले थे। वे वेदके ज्ञाता, विशाल सेनाके स्वामी, दूरदर्शी, अत्यन्त प्रतापी, नगर और देशवासियोंके प्रिय, महान् यज्ञ करनेवाले, धर्मप्रेमी, स्वाधीन, महर्षियोंके सदृश सद्गुणोंवाले, राजर्षि, त्रैलोक्य – प्रसिद्ध पराक्रमी, शत्रुनाशक, उत्तम मित्रोंवाले, जितेन्द्रिय, अतिरथी, * धन-धान्यके सञ्चयमें कुबेर और इन्द्रके समान, सत्यप्रतिज्ञ एवं धर्म, अर्थ तथा कामका शास्त्रानुसार पालन करनेवाले थे। इनके मन्त्रिमण्डलमें महामुनि वसिष्ठ, वामदेव, सुयज्ञ, जाबालि, काश्यप, गौतम, मार्कण्डेय, कात्यायन, धृष्टि, जयन्त, विजय, सुराष्ट्र, राष्ट्रवर्धन, अकोप और धर्मपाल आदि विद्या- विनयसम्पन्न, अनीतिमें लजानेवाले, कार्यकुशल, जितेन्द्रिय, श्रीसम्पन्न, पवित्र-हृदय, शास्त्रज्ञ, शस्त्रज्ञ, प्रतापी, पराक्रमी, राजनीति-विशारद, सावधान, राजाज्ञाका अनुसरण करनेवाले, तेजस्वी, क्षमावान्, कीर्तिमान्, हँसमुख, काम-क्रोध और लोभसे बचे हुए एवं सत्यवादी पुरुषप्रवर विद्यमान थे। आदर्श राजा और मन्त्रिमण्डलके प्रभावसे प्रजा सब प्रकारसे धर्मरत, सुखी और सम्पन्न थी। महाराज दशरथकी सहायता देवतालोग भी चाहते थे। महाराज दशरथने अनेक यज्ञ किये थे । अन्तमें पितृ-मातृ-भक्त श्रवणकुमारके वधका प्रायश्चित्त करनेके लिये अश्वमेध, तदनन्तर ज्योतिष्टोम्, आयुष्टोम, अतिरात्र, अभिजित्, विश्वजित् और आप्तोर्याम आदि यज्ञ किये । इन यज्ञोंमें दशरथने अन्यान्य वस्तुओंके अतिरिक्त दस लाख दुग्धवती गायें, दस करोड़ सोनेकी और चालीस करोड़ चाँदीके रुपये दान दिये थे। मुहरें राजा दशरथ की कहानी
इसके बाद पुत्रप्राप्तिके लिये ऋष्यशृङ्गको ऋत्विज् बनाकर राजाने पुत्रेष्टि यज्ञ किया, जिसमें समस्त देवतागण अपना-अपना भाग लेनेके लिये स्वयं पधारे थे। देवता और मुनि-ऋषियोंकी प्रार्थनापर साक्षात् भगवान्ने दशरथके यहाँ पुत्ररूपसे अवतार लेना स्वीकार किया और यज्ञपुरुषने स्वयं प्रकट होकर पायसान्नसे भरा सुवर्णपात्र देते हुए दशरथसे कहा – ‘राजन्! यह खीर अत्यन्त श्रेष्ठ, आरोग्यवर्धक और प्रजाकी उत्पत्ति करनेवाली है। इसको अपनी कौसल्यादि तीनों रानियोंको खिला दो ।’ राजाने प्रसन्न होकर मर्यादाके अनुसार कौसल्याको बड़ी समझकर उसे खीरका आधा भाग, मँझली सुमित्राको चौथाई भाग और कैकेयीको आठवाँ भाग दिया। सुमित्राजी बड़ी थीं, इससे उनको सम्मानार्थ अधिक देना उचित था; इसीलिये बचा हुआ अष्टमांश राजाने फिर सुमित्राजीको दे दिया, जिससे कौसल्याके श्रीराम, सुमित्राके (दो भागोंसे) लक्ष्मण और • शत्रुघ्न एवं कैकेयीके भरत हुए। इस प्रकार भगवान्ने चार रूपोंसे अवतार लिया । राजा दशरथ की कहानी
राजाको चारों ही पुत्र परम प्रिय थे। परंतु इन सबमें श्रीरामपर उनका विशेष प्रेम था । होना ही चाहिये; क्योंकि इन्हींके लिये तो जन्म धारणकर सहस्रों वर्ष प्रतीक्षा की गयी थी ! वे रामका अपनी आँखोंसे क्षणभरके लिये भी ओझल होना नहीं सह सकते थे। राजा दशरथ की कहानी
जब विश्वामित्रजी यज्ञरक्षार्थ श्रीराम लक्ष्मणको माँगने आये, उस समय श्रीरामका वय पंद्रह वर्षसे अधिक था; परंतु दशरथने उनको अपने पाससे हटाकर विश्वामित्रके साथ भेजनेमें बड़ी आनाकानी की। आखिर वसिष्ठके बहुत समझानेपर वे तैयार हुए। श्रीरामपर अत्यन्त प्रेम होनेका परिचय तो इसीसे मिलता है कि जबतक श्रीराम सामने रहे, तबतक प्राणोंको रखा और अपने वचन सत्य करनेके लिये, रामके बिछुड़ते ही राम-प्रेमानलमें अपने प्राणोंकी आहुति दे डाली। राजा दशरथ की कहानी
श्रीरामके प्रेमके कारण ही दशरथ महाराजने राजा केकयके साथ शर्त हो चुकनेपर भी भरतके बदले श्रीरामको युवराज-पदपर अभिषिक्त करना चाहा था। अवश्य ही ज्येष्ठ पुत्रके अभिषेककी कुलपरम्परा एवं भरतके त्याग, आज्ञावाहकता, धर्मपरायणता, शील और रामप्रेम आदि सद्गुण भी राजाके इस मनोरथमें कारण और सहायक हुए थे। परंतु भगवान्ने कैकेयीकी मति फेरकर एक ही साथ कई काम करा दिये। जगत्में आदर्श मर्यादा स्थापित हो गयी, जिसके लिये श्रीभगवान्ने अवतार लिया था। इनमें निम्नलिखित १२ आदर्श मुख्य हैं राजा दशरथ की कहानी
( १ ) दशरथकी सत्यरक्षा और श्रीरामप्रेम । वनगमनसे राक्षस-वधादिरूप कार्योंक
(२) श्रीरामके द्वारा दुष्ट-दलन।
(३) श्रीभरतका त्याग और आदर्श भ्रातृ-प्रेम ।
(४) श्रीलक्ष्मणजीका ब्रह्मचर्य, सेवाभाव, रामपरायणता और त्याग।
(५) श्रीसीताजीका आदर्श पवित्र पातिव्रतधर्म।
(६) श्रीकौसल्याजीका पुत्रप्रेम, पुत्रवधूप्रेम, पातिव्रत, धर्मप्रेम और राजनीति-कुशलता।
(७) श्रीसुमित्राजीका श्रीरामप्रेम, त्याग और राजनीति-कुशलता।
(८) कैकेयीका बदनाम और तिरस्कृत होकर भी प्रिय ‘रामकाज’ करना।
(९) श्रीहनुमान्जीकी निष्काम प्रेमाभक्ति।
(१०) श्रीविभीषणजीकी शरणागति और अभयप्राप्ति
(११) सुग्रीवके साथ श्रीरामकी आदर्श मित्रता।
(१२) रावणादि अत्याचारियोंका अन्तमें विनाश और उद्धार । राजा दशरथ की कहानी
यदि भगवान् श्रीरामको वनवास न होता तो इन मर्यादाओंकी स्थापनाका अवसर ही शायद न आता। ये सभी मर्यादाएँ आदर्श और अनुकरणीय हैं। जो कुछ भी हो, महाराज दशरथने तो श्रीरामका वियोग होते ही अपनी जीवन लीला समाप्तकर प्रेमकी टेक रख ली। राजा दशरथ की कहानी
जिअन मरन फलु दसरथ पावा। अंड अनेक अमल जसु छावा ॥
जिअत राम बिधु बदनु निहारा। राम बिरह करि मरनु सँवारा ॥
श्रीदशरथजीकी मृत्यु सुधर गयी, रामके विरहमें प्राण देकर उन्होंने आदर्श स्थापित कर दिया। दशरथके समान भाग्यवान् कौन होगा, जिन्होंने श्रीराम-दर्शनलालसामें अनन्य भावसे रामपरायण हो, रामके लिये और ‘राम-राम’ पुकारते हुए प्राणोंका त्याग किया। राजा दशरथ की कहानी
श्रीरामायणमें लङ्का-विजयके बाद पुन: दशरथके दर्शन होते हैं। श्रीमहादेवजी भगवान् श्रीरामको विमानपर बैठे हुए दशरथजीके दर्शन कराते हैं। फिर तो दशरथ सामने आकर श्रीरामको गोदमें बैठा लेते हैं और आलिङ्गन करते हुए उनसे प्रेमालाप करते हैं। यहाँ लक्ष्मणको उपदेश करते हुए महाराज दशरथ स्पष्ट कहते हैं कि ‘हे सुमित्रासुखवर्धन लक्ष्मण! श्रीरामकी सेवामें लगे रहना, तेरा इससे बड़ा कल्याण होगा। इन्द्रसहित तीनों लोक, सिद्ध पुरुष और सभी महान् ऋषि-मुनि पुरुषोत्तम श्रीरामका अभिवन्दन करके उनकी पूजा करते हैं। वेदोंमें जिस अव्यक्त अक्षर ब्रह्मको देवताओंका हृदय और गुप्त तत्त्व कहा है, ये परम तपस्वी राम वही हैं।’ राजा दशरथ की कहानी
ओर पड़ने के लिया निसे नजर दे
1 भक्त सुव्रत की कथा 2 भक्त कागभुशुण्डजी की कथा 3 शांडिल्य ऋषि की कथा 4 भारद्वाज ऋषि की कथा 5 वाल्मीक ऋषि की कथा 6 विस्वामित्र ऋषि की कथा 7 शुक्राचार्य जी की कथा 8 कपिल मुनि की कथा 9 कश्यप ऋषि की कथा 10 महर्षि ऋभु की कथा 11 भृगु ऋषि की कथा 12 वशिष्ठ मुनि की कथा 13 नारद मुनि की कथा 14 सनकादिक ऋषियों की कथा 15 यमराज जी की कथा 16 भक्त प्रह्लाद जी की कथा 17 अत्रि ऋषि की कथा 18 सती अनसूया की कथा
1 गणेश जी की कथा 2 राजा निरमोही की कथा 3 गज और ग्राह की कथा 4 राजा गोपीचन्द की कथा 5 राजा भरथरी की कथा 6 शेख फरीद की कथा 7 तैमूरलंग बादशाह की कथा 8 भक्त हरलाल जाट की कथा 9 भक्तमति फूलोबाई की नसीहत 10 भक्तमति मीरा बाई की कथा 11 भक्तमति क
र्मठी बाई की कथा 12 भक्तमति करमेति बाई की कथा
1 कवि गंग के दोहे 2 कवि वृन्द के दोहे 3 रहीम के दोहे 4 राजिया के सौरठे 5 सतसंग महिमा के दोहे 6 कबीर दास जी की दोहे 7 कबीर साहेब के दोहे 8 विक्रम बैताल के दोहे 9 विद्याध्यायन के दोह 10 सगरामदास जी कि कुंडलियां 11 गुर, महिमा के दोहे 12 मंगलगिरी जी की कुंडलियाँ 13 धर्म क्या है ? दोहे 14 उलट बोध के दोहे 15 काफिर बोध के दोहे 16 रसखान के दोहे 17 गोकुल गाँव को पेंडोही न्यारौ 18 गिरधर कविराय की कुंडलियाँ 19 चौबीस सिद्धियां के दोहे 20 तुलसीदास जी के दोहे 21 अगस्त्य ऋषि कौन थे उनका परिचय 22 राजा अम्बरीष की कथा 23 खट्वाङ्ग ऋषि की कथा || raja khatwang ki katha 24 हनुमान जी की कथा 25 जैन धर्म का इतिहास 26 राजा चित्रकेतु की कथा 27 राजा रुक्माङ्गद की कथा 28 राजा हरिश्चंद्र की कथा || राजा हरिश्चंद्र की कहानी 29 राजा दिलीप की कथा 30 राजा रघु की कथा 31 राजा जनक की कथा
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