मुनि उत्तंक की कथा
मुनि उत्तंक की कथा
भक्त मुनि उत्तंक
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सठ सुधरहिं सत संगति पाई पारस परस कुधातु सुहाई॥
सौवीर नगरमें एक सुन्दर बगीचेमें भगवान् विष्णुका बड़ा ही भव्य मन्दिर था। उस बगीचेमें महात्मा उतङ्कजी* रहते थे। उतङ्कजी परम शान्त, नि:स्पृह, दयालु, ज्ञानी, भगवान्की सेवामें लगे रहनेवाले और तपस्वी थे। वे चित्तको सब ओरसे हटाकर भगवान्में ही लगाये रहते थे। उनकी सब क्रियाएँ भगवान्के लिये ही होती थीं। मन्दिरमें वे भगवान्की सेवा करते थे। मुनि उत्तंक की कथा
एक दिन कणिक नामक व्याध-डाकू मन्दिरके पाससे निकला। वह बड़ा ही क्रूर था। उसका काम ही दूसरोंकी निन्दा करना, दूसरोंका धन छीन लेना और प्राणियोंको मारना था। वह देवता, ब्राह्मण, गुरु-किसीको भी मानता नहीं था। मन्दिरके शिखरपर विशाल स्वर्ण कलश देखकर उस डाकूने सोचा कि भीतर मन्दिरमें बहुत धन होगा। रातके समय वह मन्दिर लूटनेके लिये चुपके-से घुस पड़ा। उस समय महात्मा उतङ्क मन्दिरमें बैठे भगवान्का ध्यान कर रहे थे। डाकूने उन्हें मार डालनेका विचार किया। वह तलवार खींचकर उनके सामने खड़ा हो गया। जब इससे उतङ्कजीका ध्यान न टूटा, तब उसने उन मुनिको धक्का देकर पटक दिया और उनकी छातीपर पैर रखकर एक हाथसे उनके केश पकड़कर उनका सिर काटनेको उद्यत हो गया। उतङ्कजीने नेत्र खोले और डाकूकी ओर देखा। वे न तो डरे और न रुष्ट हुए। उनके नेत्रोंमें ऐसा तेज एवं इस प्रकारका स्नेह उमड़ रहा था कि डाकू कणिकपर जैसे जादू हो गया। उसके हाथसे तलवार छूटकर गिर पड़ी। वह दूर खड़ा होकर महात्माको एकटक आश्चर्यसे देखने लगा। मुनि उत्तंक की कथा
बड़े ही शीतल शब्दोंमें उतङ्कजीने डाकूसे कहाभाई! तुम मुझ निरपराधका वध क्यों करना चाहते थे? मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है? संसारमें जो अपराध करता है, उसीको दण्ड दिया जाता है। सौम्य! मैंने तुम्हारा कोई अपराध किया हो, ऐसा तो मुझे स्मरण नहीं आता। सज्जन लोग तो पापीको भी मारते नहीं, वे उसके पापका ही विनाश करते हैं। विरोधी मूर्ख भी हो, तो भी उसमें कोई गुण हो तो शान्तचित्त साधुजन उस गुणकी ही प्रशंसा करते हैं। पुरुषोत्तम भगवान्की उसीपर कृपा होती है, जो अनेक प्रकारसे सताये जानेपर भी सतानेवालेको क्षमा ही करता है, उसका कल्याण ही करना चाहता है। चन्दनका वृक्ष काटनेपर भी अपने काटनेवाले कुल्हाड़ेको सुगन्धित ही करता है। ऐसे ही संतजन किसीके द्वारा सताये जानेपर भी सतानेवालेसे शत्रुता न करके उसका हित ही करना चाहते हैं। यह विधाताका विधान ही कुछ विचित्र है कि सब प्रकारके सङ्गका त्याग करके भगवान्का भजन करनेवाले लोगोंको भी बुरे लोगोंसे कष्ट सहना पड़ता है। दुर्जनलोग सीधे-सादे साधुलोगोंको अकारण ही सताया करते हैं। बलवान्को कोई नहीं सताता। घास तथा जलपर सन्तोष करनेवाले मृगों तथा मछलियोंको ही व्याध तथा धीवरलोग मारा करते हैं। मनुष्य स्त्रीपुत्र तथा परिवारके मोहसे जान-बूझकर अपने ऊपर दु:ख लेता है, यह मायाकी महिमा है। जो दूसरेका धन लूटकर अपने परिवारका पालन करता है, उसे भी सबको छोड़कर एक दिन जाना पड़ेगा। मेरे मातापिता, मेरे स्त्री-पुत्र, मेरे मित्र-परिवार-इस प्रकारकी ममता ही जीवोंको सदा क्लेश देती है। मरनेके बाद तो मनुष्यके साथ उसके पाप और पुण्य ही जाते हैं। पापसे धन एकत्र करके जो परिवारका पालन करते हैं, मरनेपर पापका फल उन्हें अकेले ही भोगना पड़ता है। उस समय परिवारके लोग उनकी थोड़ी भी सहायता नहीं करते। विषयासक्त मनुष्य यह जानकर भी कि ‘प्रारब्धमें जो है, वही होगा, उसे मिटाया नहीं जा सकता’ मोहवश धन कमाकर सुखी होनेकी आशा करता है और इसी आशासे वह नाना प्रकारके पाप करता है। भाई! तुम क्या कर रहे हो, यह तुमने कभी सोचा है? इस पापका कितना भयङ्कर फल होगा, इसपर तुमने कभी विचार किया है? यह मनुष्य-जीवन पाप बटोरने में लगाया जाय, यह तो बड़ा ही अनर्थ है। यह जीवन तो भगवान्को पानेके लिये ही जीवको मिलता है। तुम मोहको छोड़कर जीवनको सफल बनाओ। पापोंसे अपनेको अलग करके भगवान्के भजनमें लगो। इससे तुम्हारा कल्याण होगा।’ मुनि उत्तंक की कथा
सत्सङ्गकी महिमा अपार है। व्याधपर महात्मा उतङ्ककी वाणीका प्रभाव इतना अधिक पड़ा कि उसका हृदय पूर्णतया बदल गया। वह पश्चात्तापसे व्याकुल होकर उन महात्माके चरणोंपर गिर पड़ा। अपने घोर कर्मोंका स्मरण करके फूट-फूटकर रोने लगा। वह कहने लगा–’हाय! मैं बड़ा अधम हूँ। मैंने बड़े-बड़े पाप किये हैं। मेरी क्या गति होगी? हे भगवन् ! हे अधमोंको तारनेवाले हरि! हे नारायण! मुझपर दया करो। तुमको छोड़कर अब मुझे कौन सहारा दे सकता है।’ मुनि उत्तंक की कथा
मारे दुःखके व्याध धड़ामसे गिर पड़ा और उसी समय उसकी मृत्यु हो गयी। दयालु उतङ्कजीने व्याधके मृत शरीरपर भगवान्का चरणोदक छिड़क दिया। व्याधने मरते समय पापोंके लिये पश्चात्ताप किया था, भगवान्का स्मरण किया था और उसके शरीरपर भगवान्का चरणोदक पड़ा था, अतः वह सभी पापोंसे छूटकर भगवान्के परम धामका अधिकारी हो गया। भगवान्के पार्षद विमान ले आये। दिव्य देह धारण करके विमानपर बैठकर भगवान्के धामको जाते समय उसने बार-बार उतङ्कमुनिकी स्तुति की। उनसे क्षमा माँगकर वह दिव्यधाम चला गया। मुनि उत्तंक की कथा
व्याधकी यह सद्गति देखकर उतङ्कमुनि चकित हो गये। भगवान्की महिमा एवं उन दयामयकी असीम दयाका स्मरण करके उनका शरीर पुलकित हो गया। गद्गद कण्ठसे वे भगवान्की स्तुति करने लगे। उन विद्वान् महात्माने वेद-विहित तत्त्वोंसे, भक्तिपूर्ण हृदयसे भगवान्की स्तुति बहुत देरतक की। उनके स्तवनसे प्रभु प्रसन्न हो गये। वे दयामय अपने परम भक्त उतङ्कके सामने प्रकट हो गये। उतङ्कमुनिने शोभासिन्धु प्रभुके दर्शन किये। भगवान्के तेजोमय अद्भुत लावण्यधाम स्वरूपको देखकर मुनिके नेत्रोंसे आँसुओंकी धारा चलने लगी। उनकी वाणी बंद हो गयी। ‘मुरारि ! रक्षा करो, रक्षा करो!’ इतना ही वे कह सके और भगवान्के चरणोंपर गिर पड़े।
गरुडध्वज श्रीहरिने अपनी विशाल भुजाओंसे मुनिको उठाकर अपने हृदयसे लगा लिया। भगवान्ने कहा-‘वत्स! मैं तुमपर प्रसन्न हूँ। तुम्हारे लिये अब कुछ भी असाध्य नहीं है। तुम जो चाहो, वह माँग लो।’ मुनिने बड़ी नम्रतासे कहा ‘प्रभो! आप मुझे मोहित क्यों करते हैं? मुझे कोई वरदान नहीं चाहिये। जन्म-जन्मान्तरमें मेरी आपके चरणोंमें अविचल भक्ति सदा बनी रहे। मैं कीट-पतङ्ग, पशु-पक्षी, सर्प-अजगर, राक्षस-पिशाच या मनुष्य-किसी भी योनिमें रहूँ, हे केशव! आपकी कृपासे आपमें मेरी सदा-सर्वदा अव्यभिचारिणी भक्ति बनी रहे।’ muni utank ki katha
भगवान् बहुत ही प्रसन्न हुए। अपना दिव्य शङ्ख मुनिके शरीरसे स्पर्श कराके भगवान्ने मुनिको भक्तिके वरदानके साथ परम दुर्लभ ज्ञान भी प्रदान किया। मुनिकी पूजा स्वीकार करके भगवान् अन्तर्हित हो गये। भक्त श्रेष्ठ उतङ्कमुनि शेष जीवन भगवान्की सेवामें व्यतीत करके अन्तमें भगवद्धाम पधार गये।
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1 भक्त सुव्रत की कथा 2 भक्त कागभुशुण्डजी की कथा 3 शांडिल्य ऋषि की कथा 4 भारद्वाज ऋषि की कथा 5 वाल्मीक ऋषि की कथा 6 विस्वामित्र ऋषि की कथा 7 शुक्राचार्य जी की कथा 8 कपिल मुनि की कथा 9 कश्यप ऋषि की कथा 10 महर्षि ऋभु की कथा 11 भृगु ऋषि की कथा 12 वशिष्ठ मुनि की कथा 13 नारद मुनि की कथा 14 सनकादिक ऋषियों की कथा 15 यमराज जी की कथा 16 भक्त प्रह्लाद जी की कथा 17 अत्रि ऋषि की कथा 18 सती अनसूया की कथा
1 गणेश जी की कथा 2 राजा निरमोही की कथा 3 गज और ग्राह की कथा 4 राजा गोपीचन्द की कथा 5 राजा भरथरी की कथा 6 शेख फरीद की कथा 7 तैमूरलंग बादशाह की कथा 8 भक्त हरलाल जाट की कथा 9 भक्तमति फूलोबाई की नसीहत 10 भक्तमति मीरा बाई की कथा 11 भक्तमति कर्मठी बाई की कथा 12 भक्तमति करमेति बाई की कथा
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