भक्ति बनाम सत भक्ति
भक्ति बनाम सत भक्ति
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🔅परमात्मा की सतभक्ति मर्यादा में रहकर करने से कैंसर, एड्स जैसी बीमारी भी ठीक होती हैं।
🔅सतभक्ति करने वाले की पूर्ण परमात्मा आयु बढ़ा सकता है और कोई भी रोग को नष्ट कर सकता है।
- ऋग्वेद मण्डल 10 सुक्त 161 मंत्र 2, 5, सुक्त 162 मंत्र 5, सुक्त 163 मंत्र 1 – 3
🔅सतभक्ति करने वाले की अकाल मृत्यु नहीं होती जो मर्यादा में रहकर साधना करता है।
🔅 वेद में लिखा है कि पूर्ण परमात्मा मर चुके हुए साधक को भी जीवित करके 100 वर्ष तक जीने की शक्ति भी दे सकता है। संत रामपाल जी महाराज ऐसी ही सतभक्ति बताते हैं। भक्ति बनाम सत भक्ति
🔅 सतभक्ति मर्यादा में रह कर करने से सभी रोगों का नाश हो जाता है।
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🔅वेद बताते हैं पूर्ण परमात्मा की सतभक्ति से रोगियों के रोग नाश होते हैं और संत रामपाल जी महाराज के शिष्यों को ये लाभ मिल भी रहे हैं।
🔅 संत रामपाल जी महाराज की बताई सतभक्ति से आज लाखों परिवार रोगों से मुक्त होकर सुखी जीवन जी रहे हैं।
🔅सतभक्ति करने से जीवन सुखी हो जाता है। पापों से बचाव होता है, गृह क्लेश भी समाप्त हो जाता है।
🔅जो माता पिता सतभक्ति करते हैं फिर उनके बच्चे उनकी विशेष सेवा किया करते हैं। भक्ति बनाम सत भक्ति
🔅 भूत-प्रेत, पित्तर-भैरव-बेताल जैसी आत्माऐं सतभक्ति करने वाले परिवार के आसपास नहीं आती। देवता उस भक्त परिवार की सुरक्षा करते हैं।
🔅सतभक्ति करने से नशा अपने आप छूट जाता है। शराब, तम्बाकू तथा अन्य नशे के प्रति घृणा हो जाती है।
🔅सतभक्ति करने से मानव जीवन सफल हो जाता है। परिवार में किसी प्रकार की बुराई नहीं रहती। परमात्मा की कृपा सदा बनी रहती है।
🔅पूर्ण सतगुरू से दीक्षा लेकर मर्यादा में रहकर भक्ति करने से शुभ संस्कारों में वृद्धि होने से दुःख का वक्त सुख में बदलने लग जाता है।
🔅सतभक्ति करने से शरीर स्वस्थ रहता है और भक्ति के प्रभाव से परिवार अपने-आप आदर करता है। भक्ति बनाम सत भक्ति
🔅सतभक्ति करने वालों के परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है – यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13
🔅सतभक्ति करने से इस दुःखों के घर संसार से पार होकर वह परम शान्ति तथा शाश्वत स्थान (सनातन परम धाम) प्राप्त हो जाता है (जिसके विषय में गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में कहा है) जहाँ जाने के पश्चात् साधक फिर लौटकर संसार में कभी नहीं आता।
🔅सतगुरू (तत्वदर्शी सन्त) की शरण में जाकर दीक्षा लेने से सर्व पाप कर्मों के कष्ट दूर हो जाते हैं। फिर न प्रेत बनते, न गधा, न बैल बनते हैं। सत्यलोक की प्राप्ति होती है जहां केवल सुख है, दुःख नहीं है। भक्ति बनाम सत भक्ति
🔅सतभक्ति करने से चौरासी लाख योनियों का कष्ट दूर हो जाता है।
🔅सतभक्ति करने से उजड़ा परिवार भी बस जाता है और पूरा परिवार सुख का जीवन जीता है। जीवन का सफर आसानी से तय हो जाता है क्योंकि जीवन का मार्ग साफ हो जाता है। भक्ति बनाम सत भक्ति
🔅सत भक्ति करने से मनुष्यों को दैविक शक्तियां पूर्ण लाभ देती हैं और साधक परमेश्वर पर आश्रित रहने से बगैर किसी चिंता के जीवन जीता है।
🔅सतभक्ति न करने वाले या शास्त्रविरूद्ध भक्ति करने वाले को यम के दूत भुजा पकड़कर ले जाते हैं जबकि सतभक्ति करने वाला व्यक्ति परमात्मा के साथ विमान में बैठकर अविनाशी स्थान यानी सतलोक चला जाता है।
🔅मनुष्य जन्म प्राप्त करके जो व्यक्ति भक्ति नहीं करता, वह कुत्ते, गधे आदि-आदि की योनि में कष्ट उठाता है। कुत्ता रात्रि में आसमान की ओर मुख करके रोता है।