बंशी कविराय की कुंडलियां । गुरु गीता रामनाम एवं सतसंग महिमा
गुरु गीता – प्रारम्भ बंशी कविराय की कुंडलियां
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गनपति सुरपति गजवदन आदिदेव इकदन्त ।
जाके सुमिरण मात्रसे सुधरे काज अनन्त ॥
सुधरे काज़ अनन्त बुद्धि विद्या के दाता।
खुले ज्ञानभण्डार और इच्छित फल पाता ॥
कह बंशीकविराय नमहुप्रथम शिवसुतचरन ।
गिरजासुवनसुजानगनपतिसुरपतिगजवदन ।
कुण्डलियां १
जो गुरु गीता शंभुने जनहित हेतु विचार ।
कही उमा से ताहि को कहता मैं तत्सार ॥
कहता मैं तत्सार महातम जिसका भारी ।
सबशास्त्रनकासार श्रवण चिन्तनशुभकारी ॥
पढ़े वेद उपवेद किन्तु वह रह गया रीता।
कह बंशी कविराय पढीनहिं जो गुरुगीता ॥
कुण्डलियां २
गुरु देवन के देव हैं गुरु हैं ब्रह्म स्वरूप।
अपने रूप लखाय के बना लेय तद रूप ॥
बनालेय तद रूप भृंग जिमि लट पलटावे ।
सकल उपाधि हटाय ब्रह्म से भेंट करावे ॥
हृदय विवेक जगाय सकल बतावे भेव है।
कह बंशी कविराय गुरु देवन के देव हैं ।
कुण्डलियां ३
गुः पद कहिये निविड़तम रु तम हर्ताजान ।
तमकहिये अज्ञानको इमिगुरु व्युत्पत्तिमान ॥
इमि गुरु व्युत्पति मान गुरू अज्ञान हटावे।
ज्ञानभानु प्रकटाय भ्रान्ति अध्यास मिटावे ॥
कह बंशी कविराय लखेन ताको आयजम।
रू तमहर्ता जान गुः पदकहिये निविड़तम ॥
कुण्डलिया ४
गुरु कहिये भारीपरम गुरुपद महत महान।
गुरु कहिये ज्योतीजबर हरे तिमिर अज्ञान ॥
हरे तिमिर अंज्ञान पशूपन दूर हटावे ।
मन का मैल हटाय ब्रह्म का नूर दिखावे ॥
गुरु हरिहर अजब्रह्म गुरु महिमा अतिहीअगम ।
कह बंशी कविराय गुरु कहिये भारी परम ॥
कुण्डलिया ५
गुरु जगमें सबसे बड़े देय ज्ञान भण्डार।
आत्म तत्व दरसाय के करदे भव से पार ॥
करदे भवसे पार सत्य अरु असत लखावे ।
घट के नैन उघाड़ ईश के दर्श करावे ॥
गुरुबिन घोर अंधार पद एक न आगे पड़े।
कह बंशी कविराय गुरु जगमें सबसे बड़े ।
कुण्डलिया ६
गुरु गौरा या सांवला चाहे हो बड रूप!
‘बंशी’ जो सद ज्ञानदे मानो ब्रह्म स्वरूप ॥
मानो ब्रह्म स्वरूप चित्त चरणां में दीजे ।
तन मन धन अरुवचन चतु विधि सेवाकीजे ॥
जनि ढोंगी गुरुधार बनउतावला बावला।
सद्गुरु सिरजनहार गुरु गौरा या सांवला ॥
कुण्डलिया ७
जाके पदयुग द्वन्द्व हर, नाशक पुनि त्रय ताप।
भवसागरतारण तरणि हरण पापंअरुशाप ॥
हरण पाप अरु शाप, गुरू देवन के देवा ।
ज्ञानामृत अंचवाय, लखावे तत्वन भेवा ॥
करेजीव उद्धार, शरण जो लेवे आके ।
स्व प्रकाश हो उदय, चरणायुग सेये जांके ॥
कुण्डलिया ८
जाका चरणोदक पिये, पापकीच धुलजाय ।
जन्म कर्म संकट कटे, ज्ञानसिद्धि जन पाय ॥
ज्ञानसिद्धि जनपाय, जीव से शिव बनजावे।
अखंडशान्ति हियथाय, मोक्ष जीवितहीपावे ॥
कह बंशी कविराय, लेय शरणा जो ताका ।
गुरुसम और न कोय, वेदगुणागावत जाका ॥
कुण्डलिया ९
रहे सदा गुरु चरण में, तीर्थराज सम जान
जाप करे गुरु नामका, ईष्टदेव निज मान ॥
ईष्ट देव निज मान, चतुर्विध सेवा साधे ।
गुरुमूरति का ध्यान, धरे चितमन आराधे ॥
कह बंशी कविराय, महिमा ताकी कौ कहे।
सहज परमपद पाय, गुरु भक्ती में जो रहे ॥
कुण्डलिया १०
माया आदिक गुणनका ‘गु’ अक्षर आभाष ।
‘रू’ माया की भ्रान्तिका करनेवाला नाश ॥
करने वाला नाश, तत्ववेता गुरु मानो।
सुर नर ग्रह गंधर्व, सभी से पूजित जानो ॥
कह बंशी कविराय, गुरू अर्पण हो भाया ।
दरशे आतम तत्व, नशे अज्ञान रु माया ॥
कुण्डलिया ११
जाके चरण प्रतापसे उदित होय सद्ज्ञान ।
सकलविश्व धर्ता गुरू सकलगुणोंकी खान ॥
सकलगुणोंकी खान विष्णुहरअज गुरु जानो।
पार ब्रह्मा साक्षात गुरू अपने को मानो ॥
कहबंशी कविराय नमो निज शीश झुकाके ।
जेहिदिशिगुरूनिवास जिधरहो पदयुगजाके ॥
कुण्डलिया १२
डोलत है संसार में वे नर अन्ध समान।
छाय रहा अज्ञान तम जिनके घट दर्म्यान ॥
जिनके घट दर्म्यान गर्त में गौते खाते।
गुरु धन्वन्तरि उन्हें कृपाकर हृदय लगाते ॥
ज्ञानांजन दृग सार नैन हिवड़े के खोलत ।
कह बंशी कविराय मूर्खनर नुगरे डोलत ॥
कुण्डलिया १३
गुरुवर सूर्य समान है अम्बुज वत वेदान्त ।
शिष्यभ्रमररसलेनहित विकसित करे नितान्त ॥
विकसितकरें नितान्त गहन गरिमाके सागर ।
जिज्ञासुन की गागर में भरते ज्ञानागार ॥
कह बंशीकविराय जो गुण कृपा निधान हैं।
नमोनमो शतबार गुरुवर सूर्य समान हैं।
कुण्डलिया १४
जो शाश्वत अरु शान्त हैं बिन्दु नाद के पार ।
कलाकाश से भी परे त्रय लोकन आधार ॥
त्रय लोकन आधार निरंजन देवन देवा ।
नित चैतन्य स्वरूप गुरू की करिये सेवा ॥
व्याप्तचराचर जान मायारहित नितन्त हैं ।
कह बंशीकविराय जो शाश्वतअरु शान्त हैं ॥
कुण्डलिया १५
तत्व ज्ञान आरूढ़ जो ज्ञान शक्ति भण्डार।
भक्ति मुक्ति अरु शान्तिके हैं गुरुवर दातार ॥
हैं गुरुवर दातार कर्म बन्धन दुख हारी।
आतम तत्व लखाय करे सच्चिद् सुखकारी ॥
कहबंशी कविराय नित गुरु चरणां चितधार ।
तत्व ज्ञान आरूढ़ जो ज्ञान शक्ति भण्डार ॥
कुण्डलिया १६
नहीं तत्व गुरु से अधिक जपतप पूजा ध्यान ।
परम तत्व आभाष हो पाये सद गुरु ज्ञान ।
पाये सदगुरु ज्ञान काग बन जावे हंसा ।
आतम तत्व लखाय पलटदे तन मन मंसा ॥
कह बंशी कविराय वेद शास्त्र ऐसे कही।
गुरू त्रिलोकी नाथ जगतगुरू संशय नहीं ॥
कुण्डलिया १७
ध्यान मूल गुरू मूर्ति है परमपूज्य गुरु पाद।
महामंत्र गुरु वाक्य हैं जपो सहित अह्लाद ॥
जपो सहित आह्लाद गुरू हैं आदि अनादी ।
गुरु चरणोदक पिये कटत है सकल उपाधी ॥
गुरु हरहरि अज आत्म जगत रूपभव स्फूर्ति है।
कहबंशी कविराय ध्यान मूल गुरुमूर्ति है।
कुण्डलिया १८
मिले ज्ञान विज्ञान श्री मिले सुयशसम्मान।
गुरूमार्ग अवलम्ब से मिले भक्ति का ज्ञान ॥
मिले भक्ति ज्ञान शान्तिमुक्ती जन पावे।
गुरुवर कृपानिधन शिष्य निजतुल्य बनावे ॥
बिनगुरुकृपा कटाक्ष पत्तातकभी नहि हिले।
कह बंशीकविराय गुरु सेये सब कुछ मिले ॥
कुण्डलिया १९
गिरे पुनः जगगर्त में नर सुर यक्ष तमाम ।
विद्या बल तपका अहं जिनके हियदर्म्यान ॥
जिनके हियदर्म्यान गुरूबिन मार्ग न पावे।
गहे सद्गुरू शरण तिरे खुद और तिरावे ॥
कहबंशी कविराय मान न जो गुरुका करे।
जन्म जन्म दुखपाय जगत गर्त मांही गिरे ॥
कुण्डलिया २०
ज्ञान मूर्ति द्वन्दन परे भक्ति मुक्ति दातार ।
ब्रह्मरूप आनन्दमय अलख अचल निरधार ॥
अलखअचलनिरधार व्यापकनभसम एकनित ।
केवल निर्मल तत्व परमब्रह्म त्रयगुण रहित ॥
कह बंशी कविराय ध्यान सदा गुरु का धरे।
जो गुरु सर्वाधार ज्ञान मूर्ति द्वन्दन परे ॥
कुण्डलिया २१
ध्यानमूल अघदुख हरणासच्चिद आनंदरूप ।
महावाक्यके लक्ष्यगुरु नितनिजबोध स्वरूप ॥
नितनिजबोधस्वरूप दिव्ययोगी मुनिराजा ।
जगत रोग के वैद्य ईष्ट फल दायक ताजा ॥
कह बंशी कविराय ब्रह्मश्रोत्रियपद धरण ।
बन्दहु गुरुपदपद्म ध्यान मूल अघदुख हरण |
कुण्डलिया २२
निरालम्ब माया रहित निराकार साकार।
सदा साक्षी शुद्ध विभु भावातीत अपार ॥
भावातीत अपार शुद्ध चेतन गुरु जानो।
पूरण ब्रह्म स्वरूप गुरू अपने को मानो ॥
कहबंशीकविराय गुरुमहिमा, अतिशयअमित ।
गुरुसम और न देव निरालम्ब मायारहित ॥
कुण्डलिया २३
कैलाशी ने यों कहा गुरु गीता के मांहि ।
गुरु से बढ़ त्रय लोकमें अनतदेव कौ नाहि ॥
अनतदेव कौ नाहि सकल लोकों के मांही।
गुरू देव शिव स्वयं नेक भी संशय नाही ॥
कह बंशी कविराय जपत टूटे यम फांसी ।
दश रथ गुरू उचार वचन बोले कैलाशी ॥
कुण्डलिया २४
गुरुगम पाये सहजही दृश्यसकल विनशाय ।
दृश्य रु ज्ञेय अनित्यहै ज्ञान नित्य कहलाय ॥
ज्ञान नित्य कहलाय ईशवाची तेहि जानो।
ज्ञान ज्ञेय सम किये रहे नहि द्वैत ठिकानो ॥
निन्दहि गुरु यह जानि घोर नर्को में जाये।
कह बंशी कविराय मुक्ति हो गुरुगम पाये ॥
कुण्डलिया २५
जब तक तनमें स्वाशहै सुमिरे निजगुरुदेव ।
निश दिन आज्ञा में रहे सेवा करे सदैव ॥
सेवा करे सदैव अशिष्ठ न वचन उचारे ।
ब्रह्म राक्षश होय नहीं जो गुरु को धारे ॥
शाप ताप दुखचूर जेहि गुरुमें विश्वास है।
अतः रहो गुरु भक्त जबतक तन में श्वास है।
कुण्डलिया २६
गुणातीत गुऽकार है रूप रहित रू कार ।
मंत्रराज गुरु शब्द है कहे वेद तत्सार ||
कहे वेद तत्सार परम पद गुरू को जाने।
ऋषिमुनिसुरनर नाग सभी गुरुको विभुमाने ॥
गुरु परात्पर पूर्ण सदा स्वात्म मझधार है।
कह बंशी कविराय गुणातीत गुऽकार है।
कुण्डलिया २७
गुरु हरिमें समसरि नहीं गुरु हैं दीनदयाल ।
हरिदर्शन अतिकठिनहै गुरु दर्शन सबकाल ॥
गुरु दर्शन सब काल गुरू हैं ओढर दानी ।
गुरु हरि से अधिकाय बात वेदों ने मानी ॥
कह बंशी कविराय गुरुसे बढ़कर हरि नही।
गुरु हरि देत मिलाय गुरु हरिमें समसरिनही ॥
कुण्डलिया २८
पूजा जावे ग्राम में ठाकुर एकहि ठांय ।
नृपति पुजावे देश में पंडित गुणियों मांय ॥
पंडित गुणियों मांय दीनजन में धनशाली।
पर हरबर्गरु हुनर मध्य गुरुका घर खाली ॥
गुरुबिन ज्ञानन ध्यान हुनर विद्या गुण आवे।
कह बंशी कविराय गुरू जग पूजा जावे ॥
कुण्डलिया २९
पिण्ड कुण्डलिनि शक्तिहै पदं हंस कहलाय ।
रूप विन्दुवत जानिये रूपातीत निर्माय ॥
रूपातीत निर्माय ताहि ध्याये गुण गाये।
होवे निस्पृह शान्त मनुज निर्मल बनजाये ॥
सोगुरूपद सर्वोच्च किन्तुसुलभ गुरुभक्ति है।
रूपबिन्दु पदहंस पिण्ड कुण्डलिनी शक्तिहै ॥
कुण्डलिया ३०
भावजगे शुभ हृदयमें कर गुरूचिन्मय ध्यान ।
ताहिविषय शिवनेकहा सुनो उमा करज्ञान ॥
सुनो उमा करज्ञान ब्रह्म शाश्वतगुरु जानो।
रूपनाम रव रहित ब्रह्म स्वभाव प्रमानो ॥
होय सर्वमय स्वयं स्थित बंशी तज दुर्भाव ।
गुरूनामका जापकरकीट भृंग गहि भाव ॥
कुण्डलिया ३१
गुरुध्यायेसेहोतहै चिन्मय फुरणा ध्यान ।
उसफुरणाको छोड़के निर्विकल्प मन आन ॥
निरविकल्प ‘मनआन निरंजन ध्यानलगावो ।
शीत उष्णसे परे शुद्ध विभुवत बन जाओ ।
कीट भ्रमर अनुसार ब्रह्म ध्याता बनजाये।
कह बंशीकविराय अक्षय फलहै गुरु ध्याये ॥
कुण्डलिया ३२
गुरु गीता शिवने कही सब ग्रंथों का सार ।
पढ़े सुने अरु आचरे जो श्रद्धा उर धार ॥
जो श्रद्धा उरधार गुरु को ब्रह्महि जाने।
फल अनन्तहै तासु देव ऋषिमुनि सन्माने ॥
जप तप करे अनन्त पढ़े निगमागम मीता।
कह बंशी कविराय वही फल दे गुरु गीता ॥
रामनाम का अंग बंशी कविराय की कुंडलियां
कुण्डलियां १
राम नाम सबसे बड़ो सबसे सीधो नाम ।
रूप ओ३म् को राम है सोहं रूप ललाम ॥
सोहं रूप ललाम सकलघटस्थित अविनाशी ।
अलखअकथअखिलेश अटलसर्वात्मप्रकाशी ॥
राम नाम है मंत्र जो सिद्ध करे सब काम ।
कह बंशी कविराय है भक्तिमुक्ति श्रीराम ॥
कुण्डलिया २
राम नाम इकरत्न है जिह्वा कांटी तोल ।
बंशीधर वेदन कह्यो याको मोल अमोल ॥
याको मोल अमोल परम पद यह पहुँचावे ।
षट चक्कर को वेध ब्रह्मपद को परसावे ।।
भव सागर की नाव तिरने का यह यत्न है।
स्वासों स्वास उचार रामनाम इक रत्न है ।
कुण्डलिया ३
राम नाम आधार जग कहवे वेद पुकार ।
राम नाम परताप से शेष धरे भू भार ॥
शेष धरे भू भार महेश्वर शंभु कहावे ।
राम नाम परताप सिन्धु पाषाण तिरावे ॥
रामनामहीं भक्ति अरु युक्ति होणभवपार।
कह बंशी कविराय जग रामनाम आधार ॥
कुण्डलिया ४
राम नाम तत्सार हैं सबसे मोटो नाम ।
रोम रोममें रम रहा बसि है चारों धाम ॥
बसि है चारोंधाम तिल मांही ज्यों तेल हैं।
मिटे अहं अज्ञान जीव शीव का मेल है ।
अन्तर्दृष्टिं निहार यह वेदान्त विचार है।
कह बंशी कविराय राम नाम तत्सार है।
कुण्डलिया ५
महिमा मोटी राम की शंकर रटे हमेश।
नेतिनेति ब्रह्मा कहे नारद शारद शेष ॥
नारद शारद शेष राम प्रहलाद उचारयो ।
होय खम्भ से प्रकट राम हिरणाकुश मारयो ||
कागभुषुण्डी जपे जानकर जिसकी गरिमा ।
कह बंशीकविराय राम की मोटी महिमा ॥
कुण्डलिया ६
घणी सम्प्रदा देश में भिन्न-भिन्न है नाम ।
भिन्न-भिन्न है देवरा भिन्न भिन्न ही धाम ॥
भिन्नभिन्न ही धाम ध्यावना न्यारी न्यारी ।
भिन्न भिन्न जप मंत्र बुद्धि चकरावे म्हारी ॥
कहबंशी कविराय प्रभु मिलिहै किण वेशमें।
सांचो आतम राम घणी सम्प्रदा देश में ॥
कुण्डलिया ७
राम भजे सो सूरमा अनत भजे बेसूर ।
सेवे कब्र मशान सो है मूरखभरपूर ॥
है मूरख भरपूर शंख ज्यों भों भोंगाजे ।
असल मूल को भजे निर्णायक बाजे ॥
हेमूरख भरपुर शंख सही निर्णायक बाजे ॥
लखिहै आतमराम जीमे घीका चूरमा ।
कह बंशी कविराय रामभजे सो सूरमा ॥
कुण्डलिया ८
राम नाम भावे नही सेवे प्रेत मशान।
भैंरूपीर मनावतां कहीं न पावे स्थान ।
कहीं न पावे स्थान घोर नर्कों में जावे।
यह मानुषको जन्म फेर मुश्किलसे पावे ॥
राम भजे भवपार चौरासी आवे नहीं।
कह बंशीकविराय राम नाम भावेनही ॥
कुण्डलिया ९
बीजमंत्र श्रीराम है ओ३म् रूप तत्सार ।
निर्गुण रूप रकारहै सर्गुण है आकार ॥
सर्गुणहै आकार मकार महेशहिजानो।
जाकेमुख नितबसे सर्पमणिवत यहमानो ॥
रामनाम जगमूल रामनाम चहु धाम है।
कह बंशीकविराय बीजमंत्र श्रीराम है ।
कुण्डलिया १०
रामनाम महामंत्र है जपे होय कल्यान ।
सत्यस्वरूप रकार है चित आकारप्रधान ॥
चितआकारप्रधान मकारहिआणदकारी ।
पारब्रह्महै राम नामकी महिमा भारी ॥
कह बंशीकविराय भव तारणहिततंत्र है।
भुक्तिमुक्ति सुखधमरामनाममहामंत्र है ।
कुण्डलिया ११
गटकाचख हरिनामका षटरस सारेत्या।
यह मटका अमृतभरा पीवेगा बड़भाग ॥
पीवेगा बड़भाग पनौती सुधरे भाई।
दूजे रस जो चखे पड़े चौरासी मांही ॥
घणांगड़ींदा खाय चखै दोजखका भटका।
कहबंशीकविराय रामरसकाचख गटका ॥
कुण्डलिया १२
एकराम घट २ बसे एक जगत कर्तार।
एकराम दशरथ घरें सीता का भर्तार ॥
सीता का भर्तार एक है सबसे न्यारा ।
एक करे प्रतिपाल एक संहारन हारा ।।
रांडा रोवे एक ने एक रामने सब हंसे।
बंशी रटिये ताहि जो सबके घटमें बसे ॥
कुण्डलिया १३
रामनाम परताप से शंकर भये महेश ।
रामनाम परताप से धरणी धारे शेष ॥
धरणी धारे शेष सिंधु पाषाण तिराये ।
रामनाम मंजारिसुवन अनलहि बचआये ॥
कह बंशीकविराय तिरीअहिल्या शापसे ।
भिल्लभये ऋषिराज रामनाम परतापसे ॥
कुण्डलिया १४
व्यापकहै तिर्हुजगतके सबनामोंमें राम ।
अक्षर गिन दुगुनाकरो तीनजोड़विश्राम ॥
तीनजोड़ विश्रामकरो अबदुगुना ताको ।
लगा चारकाभाग शेषक्या देखो वाको ॥
बचे दोयही शेष रामअक्षरके माफिक ।
कह बंशीकविराय रामयों सबमेंव्यापक ॥
कुण्डलिया १५
जिसमेंसमझो रामनहिं तासुवर्णगिनलेय ।
तिगुनाअबउनको करोमिलाचारफिरदेय ॥
मिला चार फिरदेय योगको दुगुनाकीजे ।
छैकाभाग लगाय शेष क्या है लखलीजे ॥
बंशी बचिहैं दोय रामहै व्यापक इसमें ।
नहींनामजगबीच रामनहिंव्यापकजिसमें ॥
कुण्डलिया १६
व्यापक ब्रह्मसमानहै सब पिण्डोंमेंराम ।
जहांरामसमझोनहीं गिनलो वर्णतमाम ॥
गिनलोवर्णतमाम गुणा तत्वनसे कीजे ।
अलीपाद कर योग ब्रह्ममाया उनलीजे ॥
दो इन्द्रियका भाग शेषबचे सो राम है।
बंशी यों श्रीराम व्यापक ब्रह्मसमानहै ॥
कुण्डलिया १७
रामनाम महामंत्र है जपे होय कल्यान ।
राम नाम इक रत्न है धारे पावे मान ॥
धारे पावे मान शत्रु को मित्र बनावे ।
वशीकरण यह मंत्र प्रेम बन्धुत्व बढ़ावे ॥
गुंजल चवदह लोक उदघोषक यह यंत्र है।
कह बंशीकविराय रामनाम महामंत्र है ।
सतसंग का अंग प्रारम्भ बंशी कविराय की कुंडलियां
सतसंगमोटी जगतमें तनमनहोयसुधार ।
ज्ञानमान महिमाबढ़े नाशे नेष्टविचार ॥
नाशे नेष्टविचार शन्तिअरु सुख सरसावे ।
पाप नशावनहार शाप सन्ताप मिटावे ॥
सत्संग गुरुभेटाय कटे चौरासी खोटी ।
कह बंशीकविराय जगतमें सतसंगमोटी ॥
कुण्डलिया २
सतसंगमोटीजगतमें तनमन होयसुधार ।
कंचन सोगी संग जिमि पावे रूपअपार ॥
पावे रूप अपार सीपसंग जलद्वैमोती।
तैसे सतसंग मिले बुद्धि है निर्मल होती।
सतसंग लाभ अपार जानिये इसेनछोटी ।
कह बंशीकविराय जगतमें सतसंगमोटी ॥
कुण्डलिया ३
सतसंग मोटी जगतमें धोवे मानस जंग।
जैसे पातक हरतहै स्नान कियेसे गंग ||
स्नान किये से गंग होतहै निर्मलकाया ।
पाप शाप अज्ञानमिटे सत्संग में जायां ॥
खुले हृदयके नैन बुद्धि तीक्ष्णहो भोटी।
कह बंशीकविराय जगतमें सतसंगमोटी ।।
कुण्डलिया ४
सतसंग मोटी जगतमें पलटै सारा ढंग ।
जिमिजलभीपयहोतहै मिलतदूधकेसंग ।
मिलत दूधके संग दूध के भाव बिकावे ।
जिमि भौरेके संग कीट भौंरा बनजावे ॥
सतसंग के परताप कटे यमपुरकीहीटी।
कह बंशीकविराय जगत में सतसंग मोटी ॥
कुण्डलिया ५
सतसंग ताकोजानिये होयसत्यका ज्ञान ।
सत्यबात धारणकरे सत्यासत्यं पिछान ॥
सत्यासत्य पिछान मैल मनका हटजावे।
कामक्रोधमदमोह दोषदश निकटनआवे ॥
राग द्वेशसे से दूर द्वन्द सम लागत जाको।
कहबंशीकविराय नामहै सतसंग ताको ॥
कुण्डलिया ६
नाशे सूर जनिविड़तम चन्द्र हरतहैताप ।
कल्प वृक्ष दारिद हरे गंग हरतहै पाप ॥
गंग हरत है पाप शास्त्र अज्ञान हटावे ।
करे जाहुकी सेव वही फल मानुषपावे ॥
कह बंशीकविराय किन्तुयों बुधजनभाषे।
पापताप अज्ञान दारिददुख सत्संग नाशे ॥
कुण्डलिया ७
संगतसार अनेकफल बुधजनकहतपुकार ।
स्वातीबूंद प्रभावलख करदेखोनिस्तार ॥
करदेखोनिस्तार सीपमुख गिरिह्रैमोती।
हरती चातकप्यास भूमिगिरनिजकोखोती ॥
कदली पड़े कपूर सर्पमुख बने हलाहल ।
कह बंशीकविराय संगतसार अनेकफल ॥
कुण्डलिया ८
जैसी संगति कीजिये तैसाही फलजान ।
जैसे स्वातीबूंदका संगतितुल्य निदान ॥
संगतितुल्यनिदान हरिः हित जीवनज्योती ।
सोहीगिर अहिवदन हलाहल विषहैहोती ॥
सतसंगत सदज्ञान दुष्टसंग ऐसी तैसी ।
कह बंशीकविराय मिलेफल संगति जैसी ।।
कवि गंग के दोहे गिरधर कविराय की कुंडलियां रसखान के सवैया उलट वाणी छंद गोकुल गांव को पेन्डो ही न्यारौ ब्रह्मा विष्णु महेश की उत्पत्ति कैसे हुई राजा निर्मोही की कथा गज और ग्राह की कथा चौबीस सिद्धिया वर्णन सच्चे संत के क्या लक्षण है? धर्म क्या है? शराब छुड़ाने का रामबाण उपाय बलात्कार रोकने के कुछ उपाय आत्मबोध जीव ईश्वर निरूपण शंकराचार्य जी का जीवन परिचय सती अनुसूया की कथा अत्रि ऋषि की कथा भक्त प्रहलाद की कथा यमराज की कथा सनकादि ऋषियों की कथा देवर्षि नारद की कथा वशिष्ठ ऋषि की कथा भृगु ऋषि की कथा महर्षि ऋभु की कथा गोस्वामी समाज का इतिहास कपिल मुनि की कथाा कश्यप ऋषि की कथा आत्महत्या दुखों का निवारण नहीं आध्यात्मिक ज्ञान प्रश्नोत्तरी
राजिया रा सौरठा
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