धना भगत की कथा
धना भगत की कथा
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धना भक्त का खेत निपाया, माधो दई सिकलात है।
पण्डा पांव बुझाया सतगुरु, जगन्नाथ की बात है।।
सरलार्थ :- सच्चे मन से साधना करने वाले भक्तों की परमात्मा महिमा बनाता है। वह उनके पूर्व जन्म के संस्कार तथा भक्ति की शक्ति जो संग्रह की होती है। उसके परिणामस्वरूप भक्त में परमेश्वर के प्रति न्यौछावर होने की प्रवृति आम बात की तरह हो जाती है। धना भगत की कथा
एक धना नाम का जाट जाति में राजस्थान राज्य में भक्त हुआ है। वह किसान कार्य करता था। अपनी जमीन में खेती करता था। परमात्मा में अटूट श्रद्धा थी। राजस्थान में वर्षा होना किसी वरदान से कम नहीं है क्योंकि उस समय वर्षा के अतिरिक्त सिंचाई का कोई साधन नहीं था। वर्षा के बाद सब किसान अपने-अपने खेतों में ज्वार का बीज बोने के लिए गए। धना भक्त जी भी ज्वार का बीज लेकर अपने खेत में जा रहा था। रास्ते में चार साधु मिले , भक्त ने राम-राम किया तो साधुओं ने कहा भक्त दो दिन से कुछ भी खाने को नहीं मिला है , भूख बहुत लगी है। भक्त ने विचार किया कि बीज नहीं बोया तो बच्चे भूखे मरेंगे। यदि साधुओं को कुछ नहीं खिलाया तो ये चारों भूखे मरेंगे। धना भक्त की पत्नी बहुत सख्त थी। वह किसी को घर पर खाना नहीं खिलाती थी। भक्त धना से भी लड़ाई किया करती थी। धना भक्त ने विचार किया कि यदि मैं ज्वार बौ दूंगा और वर्षा नहीं हुई तो यह बीज वैसे भी व्यर्थ जाएगा। परमात्मा को साक्षी रखकर इन साधुओं की जीवन रक्षा करता हूँ। यह विचार करके ज्वार का बीज अर्थात् साफ-सुथरी ज्वार साधुओं के समक्ष रखकर कहा कि मेरे पास बस ये ज्वार का बीज है , यह खा लो। साधु भूखे थे , सब खा गए और भक्त का धन्यवाद करके चले गए। धना जी ने सोचा कि यदि खेत में कुछ नाटक नहीं किया तो खेत वाले पड़ोसी घरवाली को बताएंगे कि आप ने ज्वार क्यों नहीं बीजी। फिर वह लड़ाई करेगी। इसलिए कुछ कंकर इकट्ठी करके थैले में डालकर खेत में बैलों के साथ जैसे ज्वार का बीज बोते हैं, वैसे अभिनय करके घर आ गया। किसी को पता नहीं चला। परमेश्वर सब देखता है। फिर वर्षा हुई नहीं, सबकी ज्वार समाप्त हो गई। किसी की एक फुट खड़ी थी, किसी की दो फुट। धना भक्त के खेत में मतीरों की बेल उग गई। सारा खेत बेलों से भर गया। मतीरे-तूम्बों की बेल धना जी के खेत में उग गई और मोटे-मोटे तूम्बे लगे। पड़ोसी खेत वालों ने धना भक्त जी की पत्नी से बताया कि आपने ज्वार नहीं बोई थी क्या? सबके खेतों में ज्वार उगी है, आपके खेत में तूम्बों की बेल बेशुमार उगी हैं। भक्तमति ने खेत देखना चाहा, सोचा कि भक्त से फिर लडूंगी, पहले खेत देखकर आती हूँ। धना जी को पता चला कि भाग्यवान को किसी ने बता दिया है और आते ही जमीन-आसमान एक करेगी। धना जी की पत्नी ने अन्य किसानों के खेतों में ज्वार खड़ी देखी और अपने खेत में तूम्बों की बिना बोई खेती। राजस्थान में तुम्बे, बलसुम्बे आदि बिना बोए ही वर्षा होते ही अथाह उग जाते हैं। उसने एक तुम्बा तोड़ा। उसको सिर पर रखकर घर आई और धना भक्त जी से तेज आवाज में बोली कि ज्वार का बीज किसे खिला दिया। सबके खेतों में ज्वार खड़ी है, तेरे खेत में तुम्बे उगे हैं, बच्चे तेरे को खाएंगे क्या? झुंझलाकर तुम्बा हाथों में उठाकर भक्त के सिर में मारने के उद्देश्य से फेंका और बोली देख तेरे कारनामे। भक्त ने सिर बचा लिया , तुम्बा जमीन पर लगकर फूट गया। उसमें 5 कि.ग्रा. ज्वार निकली जैसी बीज बोने के लिए साफ-सुथरी तैयार की जाती है। पहले तो भक्तमति लाल-पीली हो रही थी, जब देखी ज्वार तो पानी-पानी हो गई और ज्वार घर पर रखकर चद्दर और सोटा लेकर खेत में गई। चद्दर बिछाकर लगी तुम्बे फोड़ने, ज्वार का ढेर लग गया। भक्त भी पीछे-पीछे चला गया, सोचा परमात्मा ने दया कर दी, जान बचा दी। सब किसानों की फसल नष्ट हो गई क्योंकि फिर वर्षा नहीं हुई थी। तुम्बों से ज्वार निकल रही है, यह सुनकर पूरा गाँव देखने के लिए पहुँच गया। धना भक्त ने अपने खाने के लिए एक वर्ष की ज्वार रखकर शेष सब गाँव वालों में बाँट दी। उसके पश्चात् भक्तमति भी परमात्मा पर विश्वास करने लगी और भक्ति व सेवा भी करने लगी। धना भगत की कथा
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