दुर्भाग्यशाली बुनकर एक लघुकथा
दुर्भाग्यशाली बुनकर एक लघुकथा
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एक बुनकर बहुत सुन्दर कपड़े बुनता था पर उसकी आमदनी बहुत कम होती । एक दिन उसने अपनी पत्नी से कहा, “मुझसे बुरा काम करने वाले बुनकरों की आमदनी भी मुझसे ज्यादा होती है। मुझे ज्यादा पैसे कमाने के लिए दूसरे शहर जाना होगा। उसकी पत्नी नहीं चाहती थी कि वह दूसरे शहर जाए। पर दूसरे ही दिन बुनकर घर छोड़कर निकल पड़ा। दुर्भाग्यशाली बुनकर एक लघुकथा
नए शहर जाकर उसने बहुत मेहनत की और उसके बुने कपड़े मशहूर हो गए। उसने खूब धन कमाया और वापिस अपने घर की ओर रवाना हो गया। रास्ते में जंगल से गुजरते वक्त वह थककर सो गया। तभी उसे दो अजीब आवाजें सुनाई दीं। दुर्भाग्यशाली बुनकर एक लघुकथा
“ कर्म! तुम्हें बुनकर को इतना धन नहीं देने चाहिए थे। उसे इतने धन की जरूरत नहीं है।
भाग्य! मैंने उसको उसकी मेहनत के हिसाब से धन दिए हैं। आगे तुम्हारी इच्छा।”
बुनकर ने फटाफट अपनी पोटली देखी। पोटली खाली थी। निराश होकर वह वापिस शहर में गया। वहां उसने पूरे एक साल मेहनत किया और अत्याधिक धन कमाया।
इस बार भी वापिस आते वक्त वह उसी पेड़ के नीचे सो गया और उसने वही दो आवाजें सुनी। दुर्भाग्यशाली बुनकर एक लघुकथा
‘कर्म ! बुनकर जो धन लेकर जा रहा है उसे उसकी जरूरत नहीं है ।
भाग्य! मैंने उसे उसकी मेहनत का फल दिया है। आगे तुम्हारी इच्छा । बुनकर ने तुरन्त अपनी पोटली देखी पर पोटली खाली थी । निराश होकर उसने इसबार आत्महत्या करने का फैसला किया। उसने एक रस्सी खोजी और उसे बरगद के पेड़ से बांध दिया। रस्सी का दूसरा सिरा वो अपने गले में बांधकर आत्महत्या करने ही वाला था कि उसे वही आवाज सुनाई दी। दुर्भाग्यशाली बुनकर एक लघुकथा
“मैं भाग्य हूं और मैंने धन अपने पास रख लिया था। परंतु मैं तुम्हारी मेहनत से प्रसन्न हूं और मैं तुम्हें एक वरदान देता हूं। बोलो क्या चाहिए ? “
“मुझे बहुत सारे सोने के सिक्के चाहिए।” बुनकर ने जवाब दिया।
भाग्य ने कहा, “मैं तुम्हें यह नहीं दे सकता क्योंकि इतना धन विधाता ने तुम्हारे भाग्य में नहीं लिखा है। तुम ऐसा कुछ क्यों मांग रहे हो जिसकी वजह से तुम खुश नहीं रहोगे। ” दुर्भाग्यशाली बुनकर एक लघुकथा
पर बुनकर अपनी जिद् पर अड़ा रहा। तब भाग्य ने कहा, “मैं तुम्हें ये वरदान दे दूंगा पर तुम पहले दो व्यापारियों के घर जाकर रूकोगे । फिर मुझे बताना तुम्हें क्या चाहिए।
बुनकर मान गया और सबसे पहले एक बहुत अमीर व्यापारी के घर गया। व्यापारी को इस बिन बुलाए मेहमान का आना पसंद नहीं आया। उसने बुनकर को तिरस्कृत किया। उसने खाने के लिए उसे बासी भोजन दिया और सोने के लिए एक गंदी जगह। दुर्भाग्यशाली बुनकर एक लघुकथा
रात में जब बुनकर बिस्तर पर लेटा था, उसने आवाजें सुनी।
“कर्म! बुनकर बिन बुलाया मेहमान था। तुमने उसे भोजन क्यों दिया?”
भाग्य! उसे खाने और रहने की जगह चाहिए थी, पर व्यापारी ने उसका तिरस्कार किया। आगे तुम सोचो।”
अगले दिन बुनकर दूसरे व्यापारी के घर गया। वह व्यापारी अमीर नहीं था, पर उसने बुनकर का आवभगत अच्छे से किया और उसे पहनने के लिए नए कपड़े भी दिए।
“कर्म! व्यापारी को बुनकर की इतनी अच्छी खातिरदारी नहीं करनी चाहिए।’ दुर्भाग्यशाली बुनकर एक लघुकथा
भाग्य! व्यापारी अच्छा और दयालु है। परन्तु इनके भविष्य का फैसला तुम करो।”
अगले दिन राजा के सेवक आए और दूसरे व्यापारी को खूब सारा धन दिया जो राजा की तरफ से उसके लिए उपहार था। भाग्य व्यापारी के व्यवहार से प्रभावित हो गया था।
बुनकर भाग्य से मिला और बोला, “मैं समझ गया हूं कि अपनी जिंदगी जीने के लिए मुझे बहुत सारे धन की आवश्यकता नहीं है। मैं दूसरे व्यापारी की तरह जीवन चाहता हूं।”भाग्य खुश हो गया और बुनकर को कुछ धन दिया। बुनकर खुशी-खुशी घर वापिस आ गया। दुर्भाग्यशाली बुनकर एक लघुकथा
नैतिक शिक्षा :-
हमारे पास जितना है हमें उसमें संतोष करना चाहिए।
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पंचतन्त्र की कहानियाँ
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