चंद्रहास भक्त की कथा
चंद्रहास भक्त की कथा
जाको राखे साइयाँ, मार न सकिहै कोय।
बार न बाँका करि सकै, जो जग बैरी होय ॥
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केरलदेशमें एक मेधावी नामक राजा राज्य करते थे। शत्रुओंने उनके देशपर चढ़ाई की। युद्धमें महाराज मारे गये। उनकी रानी पतिके साथ सती हो गयीं। उस समयतक राजाके एक ही पुत्र थे – चन्द्रहास। राजकुमारकी अभी शिशु अवस्था ही थी । धायने चुपकेसे उन्हें नगरसे निकाला और कुन्तलपुर ले गयी। वह स्वामिभक्ता धाय मेहनत-मजदूरी करके राजकुमारका पालन-पोषण करने लगी। चन्द्रहास बड़े ही सुन्दर थे और बहुत सरल तथा विनयी थे। सभी स्त्री-पुरुष ऐसे भोले सुन्दर बालकसे स्नेह करते थे । चंद्रहास भक्त की कथा
जो अनाथ हो जाता है, जिसके कोई नहीं होता, जिसका कोई सहारा नहीं होता, उसके अनाथनाथ, अनाश्रयोंके आश्रय श्रीकृष्ण अपने हो जाते हैं, वे उसके आश्रय बन जाते हैं। अनाथ बालक चन्द्रहासको उनके बिना और कौन आश्रय देता। उन दयामयकी प्रेरणासे एक दिन नारदजी घूमते हुए कुन्तलपुर पहुँचे । बालकको अधिकारी समझकर वे उसे एक शालग्रामकी मूर्ति देकर ‘रामनाम’ का मन्त्र बता गये। नन्हा बालक देवर्षिकी कृपासे हरिभक्त हो गया। अब जिस समय वह अपनेआपको भूलकर अपने कोमल कण्ठसे भगवन्नामका गान करते हुए नृत्य करने लगता, देखनेवाले मुग्ध हो उठते । चन्द्रहासको प्रत्यक्ष दीखता कि उसीकी अवस्थाका एक परम सुन्दर साँवरा-सलोना बालक हाथमें मुरली लिये उसके साथ नाच रहा है, गा रहा है। इससे चन्द्रहास और भी तन्मय हो जाता। चंद्रहास भक्त की कथा
कुन्तलपुरके राजा परम भगवद्भक्त एवं संसारके विषयोंसे पूरे विरक्त थे। उनके कोई पुत्र तो था नहीं; केवल चम्पकमालिनी नामकी एक कन्या थी। महर्षि गालवको राजाने अपना गुरु बनाया था और गुरुके उपदेशानुसार वे भगवान्के भजनमें ही लगे रहते थे। राज्यका पूरा प्रबन्ध मन्त्री धृष्टबुद्धि करता था । मन्त्रीकी पृथक् भी बहुत बड़ी सम्पत्ति थी और कुन्तलपुरके तो एक प्रकारसे वे ही शासक थे। उनके सुयोग्य पुत्र मदन तथा अमल उनकी राज्यकार्यमें सहायता करते थे। उनके ‘विषया’ नामकी एक सुन्दरी कन्या थी । मन्त्रीकी रुचि केवल राजकार्य और धन एकत्र करनेमें ही थी; किंतु उनके पुत्र मदनमें भगवान्की भक्ति थी । वह साधुसन्तोंका सेवक था। इसलिये मन्त्रीके महलमें जहाँ विलास तथा राग-रङ्ग चलता था, वहीं कभी-कभी संत भी एकत्र हो जाते थे। भगवान्की पावन कथा भी होती थी। अतिथि सत्कार तथा भगवन्नाम- चंद्रहास भक्त की कथा
कीर्तन भी होते थे । इन कार्योंमें रुचि न होनेपर भी मन्त्री अपने पुत्रको रोकते नहीं थे। एक दिन मन्त्रीके महलमें ऋषिगण बैठे थे। भगवान्की कथा हो रही थी। उसी समय सड़कपर भवनके सामनेसे भगवन्नाम- कीर्तन करते हुए चन्द्रहास बालकोंकी मण्डलीके साथ निकले। बच्चोंकी अत्यन्त मधुर कीर्तन- ध्वनि सुनकर ऋषियोंके कहनेसे मदनने सबको वहीं बुला लिया। चन्द्रहासके साथ बालक नाचने-गाने लगे। मन्त्री धृष्टबुद्धि भी इसी समय वहाँ आ गये। मुनियोंने तेजस्वी बालक चन्द्रहासको तन्मय होकर कीर्तन करते देखा। वे मुग्ध हो गये। कीर्तन समाप्त होनेपर स्नेहपूर्वक समीप बुलाकर ऋषियोंने उन्हें बैठा लिया और उनके शरीरके लक्षणोंको देखने लगे। ऋषियोंने चन्द्रहासके शारीरिक लक्षण देखकर धृष्टबुद्धिसे कहा – ‘मन्त्रिवर ! तुम इस बालकका प्रेमपूर्वक पालन करो। इसे अपने घर रखो । यही तुम्हारी सम्पूर्ण सम्पत्तिका स्वामी तथा इस देशका नरेश होगा।’ चंद्रहास भक्त की कथा
‘एक अज्ञात-कुल- शील, राहका भिखारी बालक मेरी सम्पत्तिका स्वामी होगा।’ यह बात धृष्टबुद्धिके हृदयमें तीर-सी लगी। वे तो अपने लड़केको राजा बनानेका स्वप्न देख रहे थे। अब एक भिक्षुक-सा लड़का उनकी सारी इच्छाओंको नष्ट कर दे, यह उन्हें सहन नहीं हो रहा था। उन्होंने किसीसे कुछ कहा नहीं, पर सब लड़कोंको मिठाई देनेके बहाने घरके भीतर ले गया । मिठाई देकर दूसरे लड़कोंको तो उन्होंने विदा कर दिया, केवल चन्द्रहासको रोक लिया। एक विश्वासी वधिकको बुलाकर उसे चुपचाप समझाकर उसके साथ चन्द्रहासको भेज दिया। चंद्रहास भक्त की कथा
वधिकको पुरस्कारका भारी लोभ मन्त्रीने दिया था। चन्द्रहासने जब देखा कि मुझे यह सुनसान जंगलमें रातके समय लाया है, तब इसका उद्देश्य समझकर कहा-‘भाई ! तुम मुझे भगवान्की पूजा कर लेने दो, तब मारना ।’ वधिकने अनुमति दे दी। चन्द्रहासने शालग्रामजीकी मूर्ति निकालकर उनकी पूजा की और उनके सम्मुख गद्गद विलास तथा राग-रङ्ग चलता था, वहीं कभी-कभी संत भी एकत्र हो जाते थे। भगवान्की पावन कथा भी होती थी। अतिथि सत्कार तथा भगवन्नाम-कीर्तन भी होते थे । इन कार्योंमें रुचि न होनेपर भी मन्त्री अपने पुत्रको रोकते नहीं थे। एक दिन मन्त्रीके महलमें ऋषिगण बैठे थे। भगवान्की कथा हो रही थी। उसी समय सड़कपर भवनके सामनेसे भगवन्नाम- कीर्तन करते हुए चन्द्रहास बालकोंकी मण्डलीके साथ निकले। बच्चोंकी अत्यन्त मधुर कीर्तन- ध्वनि सुनकर ऋषियोंके कहनेसे मदनने सबको वहीं बुला लिया। चन्द्रहासके साथ बालक नाचने-गाने लगे। मन्त्री धृष्टबुद्धि भी इसी समय वहाँ आ गये। मुनियोंने तेजस्वी बालक चन्द्रहासको तन्मय होकर कीर्तन करते देखा। वे मुग्ध हो गये। कीर्तन समाप्त होनेपर स्नेहपूर्वक समीप बुलाकर ऋषियोंने उन्हें बैठा लिया और उनके शरीरके लक्षणोंको देखने लगे। ऋषियोंने चन्द्रहासके शारीरिक लक्षण देखकर धृष्टबुद्धिसे कहा – ‘मन्त्रिवर ! तुम इस बालकका प्रेमपूर्वक पालन करो। इसे अपने घर रखो । यही तुम्हारी सम्पूर्ण सम्पत्तिका स्वामी तथा इस देशका नरेश होगा।’ चंद्रहास भक्त की कथा
‘एक अज्ञात-कुल- शील, राहका भिखारी बालक मेरी सम्पत्तिका स्वामी होगा।’ यह बात धृष्टबुद्धिके हृदयमें तीर-सी लगी। वे तो अपने लड़केको राजा बनानेका स्वप्न देख रहे थे। अब एक भिक्षुक-सा लड़का उनकी सारी इच्छाओंको नष्ट कर दे, यह उन्हें सहन नहीं हो रहा था। उन्होंने किसीसे कुछ कहा नहीं, पर सब लड़कोंको मिठाई देनेके बहाने घरके भीतर ले गया । मिठाई देकर दूसरे लड़कोंको तो उन्होंने विदा कर दिया, केवल चन्द्रहासको रोक लिया। एक विश्वासी वधिकको बुलाकर उसे चुपचाप समझाकर उसके साथ चन्द्रहासको भेज दिया। चंद्रहास भक्त की कथा
वधिकको पुरस्कारका भारी लोभ मन्त्रीने दिया था। चन्द्रहासने जब देखा कि मुझे यह सुनसान जंगलमें रातके समय लाया है, तब इसका उद्देश्य समझकर कहा-‘भाई ! तुम मुझे भगवान्की पूजा कर लेने दो, तब मारना ।’ वधिकने अनुमति दे दी। चन्द्रहासने शालग्रामजीकी मूर्ति निकालकर उनकी पूजा की और उनके सम्मुख गद्गद कण्ठसे स्तुति करने लगा। भोले बालकका सुन्दर रूप, मधुर स्वर तथा भगवान्की भक्ति देखकर वधिककी आँखोंमें भी आँसू आ गये। उसका हृदय एक निरपराध बालकको मारना स्वीकार नहीं करता था। परंतु उसे मन्त्रीका भय था । उसने देखा कि चन्द्रहासके एक पैरमें छ: अँगुलियाँ हैं। वधिकने तलवारसे जो एक अँगुली अधिक थी, उसे काट लिया और बालकको वहीं छोड़कर वह लौट गया। धृष्टबुद्धि वह अँगुली देखकर बहुत प्रसन्न हुए। उन्हें लगा कि ‘अपने बुद्धि-कौशलसे ऋषियोंकी अमोघ वाणी मैंने झूठी कर दी ।’ चंद्रहास भक्त की कथा
कुन्तलपुर राज्यके अधीन एक छोटी रियासत थी – चन्दनपुर । वहाँके नरेश कुलिन्दक किसी कार्यसे बड़े सबेरे वनकी ओरसे घोड़ेपर चढ़े जा रहे थे। उनके कानों में बड़ी मधुर भगवन्नाम-कीर्तन- ध्वनि पड़ी। कटी अँगुलीकी पीड़ासे भूमिमें पड़े-पड़े चन्द्रहास करुणकीर्तन कर रहे थे। राजाने कुछ दूरसे बड़े आश्चर्य से देखा कि एक छोटा देवकुमार जैसा बालक भूमिपर पड़ा है। उसके चारों ओर अद्भुत प्रकाश फैला है। वनकी हरिणियाँ उसके पैर चाट रही हैं। पक्षी उसके ऊपर पंख फैलाकर छाया किये हुए हैं और उसके लिये वृक्षोंसे पके फल ला रहे हैं। राजाके और पास जानेपर पशुपक्षी वनमें चले गये । राजाके कोई सन्तान नहीं थी । उन्होंने सोचा कि ‘भगवान्ने मेरे लिये ही यह वैष्णव देवकुमार भेजा है।’ घोड़ेसे उतरकर बड़े स्नेहसे चन्द्रहासको उन्होंने गोदमें उठाया। उनके शरीरकी धूलि पोंछी और उन्हें अपने राजभवनमें ले आये। – चंद्रहास भक्त की कथा
चन्द्रहास अब चन्दनपुरके युवराज हो गये। यज्ञोपवीतसंस्कार होनेके पश्चात् गुरुके यहाँ रहकर उन्होंने वेद, वेदाङ्ग तथा शास्त्रोंका अध्ययन किया। राजकुमारके योग्य अस्त्र-शस्त्र चलाना तथा नीतिशास्त्रादि सीखा। अपने सद्गुणोंसे वे राजपरिवारके लिये प्राणके समान प्रिय हो गये। राजाने उन्हींपर राज्यका भार छोड़ दिया। राजकुमारके प्रबन्धसे छोटी-सी रियासत हरिगुण-गानसे पूर्ण हो गयी। घर-घर हरिचर्चा होने लगी। सब लोग एकादशीव्रत करने लगे। पाठशालाओंमें हरिगुणगान अनिवार्य हो गया । चंद्रहास भक्त की कथा
चन्दनपुर रियासतकी ओरसे कुन्तलपुरको दस हजार स्वर्णमुद्राएँ ‘कर’ के रूपमें प्रतिवर्ष दी जाती थीं। चन्द्रहासने उन मुद्राओंके साथ और भी बहुत-से धनरत्नादि उपहार भेजे । धृष्टबुद्धिने जब चन्दनपुर राज्यके ऐश्वर्य एवं वहाँके युवराजके सुप्रबन्धकी बहुत प्रशंसा सुनी, तब स्वयं वहाँकी व्यवस्था देखने वे चन्दनपुर आये। राजा तथा राजकुमारने उनका हृदयसे स्वागत किया। यहाँ आकर जब धृष्टबुद्धिने चन्द्रहासको पहचाना, तब उनका हृदय व्याकुल हो गया। उन्होंने इस लड़केको मरवा डालनेका पूरा निश्चय कर लिया। स्नेह दिखाते हुए वे राजकुमारसे मिले। उन्होंने एक पत्र देकर कहा- ‘युवराज ! बहुत ही आवश्यक काम है और दूसरे किसीपर मेरा विश्वास नहीं। तुम स्वयं यह पत्र लेकर कुन्तलपुर जाओ। मार्गमें पत्र खुलने न पाये। कोई इस बातको न जाने। इसे मदनको ही देना । ‘ चंद्रहास भक्त की कथा
चन्द्रहास घोड़ेपर चढ़कर अकेले ही पत्र लेकर कुन्तलपुरको चल पड़े। दिनके तीसरे पहर वे कुन्तलपुरके पास वहाँके राजाके बगीचेमें पहुँचे। बहुत प्यासे और थके थे, अतः घोड़ेको पानी पिलाकर एक ओर बाँध दिया और स्वयं सरोवरमें जल पीकर एक वृक्षकी शीतल छायामें लेट गये। लेटते ही उन्हें निद्रा आ गयी। उसी समय उस बगीचेमें राजकुमारी चम्पकमालिनी अपनी सखियों तथा मन्त्रीकी कन्या ‘विषया’ के साथ घूमने आयी थी। संयोगवश अकेली विषया उधर चली आयी, जहाँ चन्द्रहास सोये थे। इस परम सुन्दर युवकको देखकर वह मुग्ध हो गयी और ध्यानसे उसे देखने लगी । उसे निद्रित कुमारके हाथमें एक पत्र दीख पड़ा। कुतूहलवश उसने धीरेसे पत्र खींच लिया और पढ़ने लगी। पत्र उसके पिताका था। उसमें मन्त्रीने अपने पुत्रको लिखा था- ‘इस राजकुमारको पहुँचते ही विष दे देना। इसके कुल, शूरता, विद्या आदिका कुछ भी विचार न करके मेरे आदेशका तुरंत पालन करना ।’ मन्त्रीकी कन्याको एक बार पत्र पढ़कर बड़ा दुःख हुआ। उसकी समझमें ही न आया कि पिताजी ऐसे सुन्दर देवकुमारको क्यों विष देना चाहते हैं। सहसा उसे लगा कि पिताजी इससे मेरा विवाह करना चाहते हैं। वे मेरा नाम लिखते चंद्रहास भक्त की कथा
समय भूलसे ‘या’ अक्षर छोड़ गये। उसने भगवान्के प्रति कृतज्ञता प्रकट की कि ‘पत्र मेरे हाथ लगा; कहीं दूसरेको मिलता तो कितना अनर्थ होता ।’ अपने नेत्रके काजलसे उसने पत्रमें ‘विष’ के आगे उससे सटाकर ‘या’ लिख दिया, जिससे ‘विषया दे देना’ पढ़ा जाने लगा। पत्रको बंद करके निद्रित राजकुमारके हाथमें ज्यों-का-त्यों रखकर वह शीघ्रतासे चली गयी । चंद्रहास भक्त की कथा
चन्द्रहासकी जब निद्रा खुली, तब वे शीघ्रतापूर्वक मन्त्रीके घर गये । मन्त्रीके पुत्र मदनने पत्र देखा और ब्राह्मणोंको बुलाकर उसी दिन गोधूलि मुहूर्तमें चन्द्रहाससे उन्होंने अपनी बहिनका विवाह कर दिया। विवाहके समय कुन्तलपुरनरेश स्वयं भी पधारे। चन्द्रहासको देखकर उन्हें लगा कि ‘मेरी कन्याके लिये भी यही योग्य वर है।’ उन्होंने चन्दनपुरके इस युवराजकी विद्या, बुद्धि, शूरता आदिकी प्रशंसा बहुत सुन रखी थी। अब राजपुत्रीका विवाह भी चन्द्रहाससे करनेका उन्होंने निश्चय कर लिया । चंद्रहास भक्त की कथा
धृष्टबुद्धि तीन दिन बाद लौटे। यहाँकी स्थिति देखकर वे क्रोधके मारे पागल हो गये। उन्होंने सोचा-‘भले मेरी कन्या विधवा हो जाय, पर इस शत्रुका वध मैं अवश्य कराके रहूँगा।’ द्वेषसे अंधे हुए हृदयकी यही स्थिति होती है। अपने हृदयकी बात मन्त्रीने किसीसे कही नहीं। नगरसे बाहर पर्वतपर एक देवीका मन्दिर था। धृष्टबुद्धिने एक क्रूर वधिकको वहाँ यह समझाकर भेज दिया कि ‘जो कोई देवीकी पूजा करने आये, उसे तुम मार डालना ।’ चन्द्रहासको उसने यह बताकर कि ‘भवानीकी पूजा उसकी कुलप्रथाके अनुसार होनी चाहिये’ सायंकाल देवीकी पूजा करनेका आदेश दिया। इधर कुन्तलपुर-नरेशके मनमें वैराग्य हुआ। ऐसे उत्तम कार्यको करनेमें सत्पुरुष देर नहीं करते। राजाने मन्त्रीपुत्र मदनसे कहा- ‘बेटा! तुम्हारे बहनोई चन्द्रहास बड़े सुयोग्य हैं। उन्हें भगवान्ने ही यहाँ भेजा है। मैं आज ही उनके साथ राजकुमारीका ब्याह कर देना चाहता हूँ। प्रातःकाल उन्हें सिंहासनपर बैठाकर मैं तपस्या करने वन चला जाऊँगा। तुम उन्हें तुरंत मेरे पास भेज दो।’ चंद्रहास भक्त की कथा
मनुष्यकी कुटिलता, दुष्टता, प्रयत्न क्या अर्थ रखते हैं। वह दयामय गोपाल जो करना चाहे, उसे कौन टाल सकता है। चन्द्रहास पूजाकी सामग्री लिये मन्दिरकी ओर जा रहे थे । मन्त्रिपुत्र मदन राजाका सन्देश लिये बड़ी उमंगसे उन्हें मार्गमें गिला । मदनने पूजाका पात्र स्वयं ले लिया यह कहकर कि- ‘मैं देवीकी पूजा कर आता हूँ’ चन्द्रहासको उसने राजभवन भेज दिया। जिस मुहूर्तमें धृष्टबुद्धिने चन्द्रहासके वधकी व्यवस्था की थी, उसी मुहूर्तमें राजभवनमें चन्द्रहास राजकुमारीका पाणिग्रहण कर रहे थे और देवीके मन्दिरमें वधिकने उसी समय मन्त्रीके पुत्र मदनका सिर काट डाला ! चंद्रहास भक्त की कथा
धृष्टबुद्धिको जब पता लगा कि चन्द्रहास तो राजकुमारीसे विवाह करके राजा हो गये, उनका राज्याभिषेक हो गया और मारा गया मेरा पुत्र मदन, तब व्याकुल होकर वे देवीके मन्दिरमें दौड़े गये। पुत्रका शरीर देखते ही शोकके कारण उन्होंने तलवार निकालकर अपना सिर भी काट लिया। धृष्टबुद्धिको उन्मत्तकी भाँति दौड़ते देख चन्द्रहास भी अपने श्वशुरके पीछे दौड़े। वे तनिक देरमें ही मन्दिरमें आ गये। अपने लिये दो प्राणियोंकी मृत्यु देखकर चन्द्रहासको बड़ा क्लेश हुआ। उन्होंने निश्चय करके अपने बलिदानके लिये तलवार खींची। उसी समय भगवती साक्षात् प्रकट हो गयीं। मातृहीन चन्द्रहासको उन्होंने गोदमें उठा लिया। उन्होंने कहा – ‘बेटा ! यह धृष्टबुद्धि तो बड़ा दुष्ट था । यह सदा तुझे मारनेके प्रयत्नमें लगा रहा। इसका पुत्र मदन सज्जन और भगवद्भक्त था; किंतु उसने तेरे विवाहके समय तुझे अपना शरीर दे डालनेका संकल्प किया था, अतः वह भी इस प्रकार उऋण हुआ। अब तू वरदान माँग ।’ चंद्रहास भक्त की कथा
चन्द्रहासने हाथ जोड़कर कहा- ‘माता आप प्रसन्न हैं तो ऐसा वर दें, जिससे श्रीहरिमें मेरी अविचल भक्ति जन्म-जन्मान्तरतक बनी रहे और इस धृष्टबुद्धिके अपराधको आप क्षमा कर दें। मेरे लिये मरनेवाले इन दोनोंको आप जीवित कर दें और धृष्टबुद्धिके मनकी मलिनताका नाश कर दें।’ चंद्रहास भक्त की कथा
देवी ‘तथास्तु’ कहकर अन्तर्धान हो गयीं। धृष्टबुद्धि और मदन जीवित हो गये; धृष्टबुद्धिके मनका पाप मर गया। चन्द्रहासको उन्होंने हृदयसे लगाया और वे भी भगवान्के परम भक्त हो गये। मदन तो भक्त था ही। उसने चन्द्रहासका बड़ा आदर किया। सब मिलकर सानन्द घर लौट आये। चंद्रहास भक्त की कथा
भारत के महान वैज्ञानिक
नरसी मेहता || नरसी मेहता की कथा
Indian Scientists Name in Hindi