गोस्वामी समाज के नितनियम
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गोस्वामी समाज के नितनियम
मेरे प्रिये गोस्वामी बंधुओ से एक विशेष प्राथना करता हूं कि अगर आप इस नित नियम का अनुकरण करते हैं तो मै आपको पूर्ण विश्वास के साथ यह कह सकता हूं कि समाज में आपका मान सम्मान आपकी इज्जत दिनों दिन बढ़ेगी बल्कि खुद की नजर में भी आप अपने आप को धन्य महसूस करेंगे। इस नित नियम को नियमित रूप से करने पर आपको अपने अंदर एक विशेष रूप से आध्यात्मिक उन्नति का एवम शान्ति का अनुभव होगा ऐसा मेरा विश्वास है।
मंगला चरण, प्रातःकाल जागने जाप, लघु शंका का मंत्र, शौचादि, पात्र, मुख मंजन, आचमन, स्नान करने जाप, सूर्य को जल चढ़ाने का जाप, जलधारा चौका, रिषी पाट गायत्री, कलश, कंठी, तिलक, भबूती, सिन्दूरका रुद्राक्ष जनेऊ, भगवा, बेलगेड़िया, धूप करने, भोग लगाने, नौ ग्रह की शांति, संध्या सुमिरण अटल शब्द, तारक मन्त्र, शयन करने का जाप । गोस्वामी समाज के नितनियम
आदिशब्द
कौन तुमारी उत्पति कौन तुमारी जात।
कौन पुरुष के बालक हो तुम आए किसके साथ।।
क्षर हमारी उत्पति अक्षर हमारी जात।
परम अक्षर के बालक है आए इच्छा के साथ।।
मंगलाचरण
श्री पति प्रथम नमामि मम योगी हृदय निवास।
भोगी हृदय उदास जो वे मम सुमति प्रकाश ।।
नमो शारदे मात विद्या प्रदैनी करो मेध्य मेधा यथा कं त्रिवेणी।
करो नष्ट मोहादि शांत्यादि दिजे हरो आप कारी हृदय धाम किजै।।
खलक कहे सब अलख है, खलक अलख के माँय।
” गोकुल” नभ ज्यों गर्क है, रंचक खाली नाय ॥
नमो राम गुरुदेवजी नमो नमो सब संत।
सगरामदास वंदन करे निशदिन बार अनंत।।
गुरू मेरे सबही बड़े अपनी अपनी ठौर।
शब्द विवेकी पारखु सिर माते रा मौर।।
बंधुओं सर्व प्रथम मंगलाचरण करके पश्चात् उपासकों के लिए नित नियम उपासना आरम्भ करता हूँ। उपासना की पूरी विधि गुरु से प्राप्त करें।
प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त में जागने का जाप
ॐ गुरुजी जागते पुरूष का सकल पसारा तज आलस किन्हा दीदारा।
आठ पहर दुःख करियो टाला धरती माता पांव घरे बाला। ओम् हरिहर ब्रह्म रुखाला।
पश्चात् अपने दोनों हाथों की हथेलियों को नीचे लिखो मन्त्र पढ़कर देखना चाहिए।
कराग्रे बसते लक्ष्मी कर मध्ये सरस्वती।
कर मूले स्थितो ब्रह्मा, प्रभाते कर दर्शनम् ॥
फिर नीचे लिखे मन्त्र से पृथ्वी को नमस्कार करना चाहिए
समुद्र मेखले, देवी, पर्वत स्तन शोभिते।
विष्णु पत्नी नमस्तुभ्यं, पाद स्पर्श क्षमस्वमे ॥
धरती माता तू बड़ी, बड़ा तुम्हारा नाम, रिद्धि सिद्धि दात्री बैठण को दे ठाम ॥
इस नगरी में प्रेस्ता, कीलू सामो गाम। डेरूं बजती ढ़ाक कीलूं, आसी कीलूं बासी कीलू जूंजणी ऊपर बन्द का बेला। हनुमान की हाक से गुरु उठाया चेला ॥ जो घाले हमारे ऊपर घात ॥ उलट घात उसी को खात। रक्षा राजा राम की, कोटवाल जती हनुमान की ।। गोस्वामी समाज के नितनियम
लघु शंका या शौचादि का जाप
ओम् गुरुजी धरन गगन बिच रमता डोले। मात घरन आगे पड़दा खोले ॥ मैं बालक हूं तू मेरी मांय। देव प्रेत की टोली कराय ॥ लघु शंका इरागत फिरे, धरती माता रक्षा करे।
पात्र व मुख मंजन
ओम् गुरुजी दिल पाक, दरियाव पाक। पाक, सब मन्दिर पाक, जल थल, कुवा पाक ॥ दातण कर मुख मंजर करे, अलख नाम से कारज सरे, मेघ ऋषि जी सिमरण करे ॥
आचमन का जाप
ओम् गुरुजी आप जल का सकल पसारा, जल स्नान कर्या सुख सामा। गंगा जमना सुरसती, जल में किया निवास। जो जल से आचमन करे, हो पापी का नाश ॥ गोस्वामी समाज के नितनियम
स्नान करने का जाप
ओम गुरुजी असंख्य जुगाँ पहली सत्त की शाही। सत्त की शाही पर ब्रह्म की कला सवाई ॥ सतुकार में सतगुरु आया, बिरगट सार में देव उपाई। धरती अमर आद की माया। अरवे सुत्र पर ध्यान लगाया ॥ सातों सागर स्वामी उपाया। सातों सायर सबका साखी करो स्नान। त्रिवेणी की घाटी । सतगुरु की सार समझ ले सांची। काल जाल की कट जावे फांसी। भवसागर में भरम मिटाओ। रतनागर में रतन पकावो । हीरागर में हीरा पावो ॥ फुलेली में फन्दा मेटो ॥ खार समद से अमृत ल्याओ। उठो हंसा अखण्डी घ्यावो ॥ मान सागर पर निरभे नहावो। सतगुरु की सेन अपरम्पारा। पावो हंसा मोक दुबारा। स्नान गायत्री सही तो महादेवजी कही । गोस्वामी समाज के नितनियम
सूर्य को अर्घ्य (जल चढ़ाना) देने का जाप
श्लोक :-
एहि सूर्य सहस्रांशो तेजोराशे जगत्पते।
अनुकम्पय मां-देव गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तुते ।।
ओम् गुरुजी चांद सूरज सरोदे आया, सुखमण सिमरण त्रिकुटी तट न्हाया। अलख पुरुष का ध्यान लगाया, इष्ट देव के जल चढ़ाया। पूरण ब्रह्म घट-घट दरसाया, दतात्रय जी ध्यान लगाया।। गोस्वामी समाज के नितनियम
जल धारा चौका धुनी का जाप
ओम् गुरुजी पृथ्वी का चौका जल है, जल का चौका पवन देव, पवन पुरुष की विचार सेवा। धूणी पाणी सिद्धां की बाणी, कीड़ी मकोड़ी जीव बचाणी, दतात्रय जी आ विद जाणी, पाक हुआ है चौका धूणी।
कंठी तिलक चढ़ाने का जाप
ओम गुरुजी कुंकुकेशर चन्दन गोपी, तुलसी मलियागिरी कुशा टोपी। आदु पुरुष सरगुण रूप धारा, अलख पुरुष का मता अपारा। कंठी तिलक रिषि मुनि मोहे, नेम राखे से मुक्ति होवे। नरहर रिषि जी कंठी तिलक चढ़ावे, मेघमुनिजी दर्शन पावे।। गोस्वामी समाज के नितनियम
भबूती से तिलक का जाप
ओम गुरुजी इंदर झरे धरती फले, जिनका फल गायत्री चरे। गायत्री करे गोबरी सूरज मुखं सूखे, अग्नि मुख जले। जिसकी बने भूरी भसवन्ती महादेवजी आँणी, पार्वती जी छाणी। एक टंक भबूती, नो टंक पाणी, चढ़ती भबूती रिघ सिध ले चढ़े, उतरती भबूती पाप दोष ले उतरे। भबूती माई, जहां देखी जहां खूब रमाई, जोगी सोहणी, राजा मोहणी। भबूती आई माय, राजा प्रजा लागे पाय। भबूती का जाप सही तो महादेवजी की। गोस्वामी समाज के नितनियम
सिन्दूर से तिलक करने का जाप
ओम गुरुजी सिन्दूर सिन्दूर महा सिन्दूर। कहां से आया, सुमेरू पर्वत से आया। कौन लाया, गवरी का गणेशजी लाया। सिन्दूर लाया साधां ने सुपांया॥ तेल-तेली महा तेल। बैरी दुश्मन के लगावूं बज्र का शेल ॥ एक सेवा से हनुमत घ्यायूँ। पकड़ भुजा भैरू की ल्याबूं। हथेली हनुमत बसे। भैरू बसे लिलाट ॥ धूल उलेटूं धूल पलेटू धूल का करूं सिणगार। भर चिमटी माथ धरूं, करूं सिंह का स्याल। आप लागया धरती के, मैं लगावूं संसार ॥ इताक सिंदूर का जाप सही तो महादेवजी कही। गोस्वामी समाज के नितनियम
रुद्राक्ष का जाप
ओम गुरुजी अकल सकल सुमेरूं की छाया, शिव शक्ति मिल वृक्ष लगाया। एक डाल अगम को गईंद्व एक डाल पश्चिम को, एक डाल दक्षिण को, एक डाल उत्तर को, एक डाल आकाश को, एक डाल पाताल को गई। उसी पेड़ के फल रूद्राक्ष लागा। एक मुखी ऊंकार न वरणे। दो मुखी चन्द्र सूर ने वरणें। तीन मुखी तीन देवों को बरणे। चार मुखी चारों वेदों ने बरणे। पाँच मुखी पांचों पांडवों ने बरणे। छः मुखी छः दर्शण को बरणे। सात मुखी सातों सायरां ने बरणे। आठ मुखी आठ कुलीपरबत को बरणे। नौ मुखी नौ कुल नाग को बरणे। दस मुखी दश अवतारां ने बरणे। ग्यारह मुखी ग्यारा रुद् शंकर को बरणे। बारह मुखी बारा पंधों को बरणे। तेरह मुखी तेरा रतनों को बरणे चौदह मुखी चवदा विद्या को बरणे। पन्द्रह मुखी पन्दरा तिथि को बरणे। सोलह मुखी सोला कला को वरणे । सतरह मुखी सीता सतवन्ती ने बरणे। अठारह मुखी आठरा भार वनस्पति ने बरणे। उन्नीस मुखी शिव पारवती गणेश को बरणे। बीस मुखी विस्वामी साधु प्रमाणी को वरणे। इक्कीस मुखी एक अलख को बरणे। हाथ के बांधे हतनापुर को राज पावे। कान के बांधे कनकापुर को राज पावे। कंठ गले बांधे, सात द्वीप को राज पावे। मस्तक के बांधे कैलाशपुरी को राज पावे। नहीं जाणे रुद्राक्ष जाप, अठोत्तर गऊ को लागे पाप। बांधे रुद्राक्ष जाणे जाप, जन्म-जन्म का कटसी पाप। रुद्राक्ष जाप सम्पूर्ण हिया, शिव का ध्यान में दत्तात्रेय ने किया। गोस्वामी समाज के नितनियम
जनेउ धारण करने का जाप
ॐ यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतैर्यत्सहजं पुरस्तात् ।
आयुष्यमग्रं प्रतिमुंच शुभं, यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः ।।
केनिया उत्पत्ति सूत्रः । केनिया त्रिगुणी कृत्वाः । केनिया देइते ग्रंथ है। केनिया जाप जपन्ते ।
सावित्री उत्पत्ति सूत्रः। विष्णु त्रिगुणी कृत्वा । ब्रह्मा देइते ग्रंथ है। शंकर जाप जपन्ते ।
भंगवा का गुरु मंत्र
ओम् गुरुजी अरवे-नरवे धुन्धुकारा। शिव शक्ति मिल किया विचारा। आवो शक्ति ऐसा कीजे । नख से चीरा अन्दर दीजे। चीरा देकर भंग बनाया। भंग रक्त से गेरूं उपाया। सवा हाथ का भंगवा रंगिया। अलख जी रिषां ने फुरमाया। रिख ले षट् दर्शन में बरताया। दत्तजी चाल्या दिसावरां, करिया भंगवा भेष, दत्त दिगंबर गौरख वाला, लीना अलख तणा उपदेश। भंगवा का गुरु मंत्र जाप सही। अलख के ध्यान में महादेवजी ने कही। गोस्वामी समाज के नितनियम
बेलगेडिया भंगवा का जाप
श्लोक-
यतेन्द्रियः ब्रह्मचर्य, विषयासक्त विवर्जितम् ॥
कामदेव जति कामड़, प्राणायाम परायणाः ॥
ओम् गुरुजी ओमकार निकलंग की माया, पारा ऋषि ने आप फरमाया। पारा ऋषि अलख री माया, आदरिखेसर नाम धराया। जहां देखो वहां अगम अगाध, वे पूजे सतगुरुजी रा पाद। जोत कलश ले निरंजन आया, शैव मार्ग सब को फरमाया। उमा देवी अगम उपाई, जब वा देवी बाहर आई। शंकर ले पातालां धाया, जोत कलश का ध्यान लगाया। अणबींध्या आखा पुरवाया, जोत पाट पर कलश थपाया। जब अंजनि ऋषिजी आया, शम्भू उस पर मेल्या हाथ। महर कर मेघरिष घर आया, सूवा हाथ रो भेष बंधाया। पाट कलस कॅवली बरताया, जुगाँ जुग अगवाण रखाया। सिध साधक जाजम बिछवावो, ऋषि मुनिजी बैठो आवो। सब मिलके ऐसा फरमाया, हरी बनी का रूंख कटवाया। विश्वकर्मा को आप बुलाया, नो पाट्या ग्यारा कामड़ी, चौरासी बेलगेड़िया घड़ाया। नः पाट्या नौ नाथां ने दीना, दश कामड़ी गोस्वामी (गुसांई) ने दीनी। चौरासी बेल गेडिया ऋषि पंडित कामड़ों को दीना, रही कामड़ी लोहगिरजी उठाई। लोहागिरी ने कैसे उठाई, सतगुरु दीनी अलख फरमाई। लीनी कामड़ी ढाबी टेक, जब से चाल्यो कामड़ भेक ॥ बेल गेडियो ऋषि शब्द संपूर्ण सही, शिव का ध्यान में बैठ गुरु गोरखनाथजी ने कही। गोस्वामी समाज के नितनियम
धूप करने का जाप
ओम् गुरुजी धूप-धूप अखे धूप ॥ धूप लेवो अलख रूप। धूप ध्यान करूं थाकी सेवा ॥ हद बेहद का आप हो देवा। आप अलख अलेखा ॥ ओम शब्द अलख का भेवा ॥ विष्णु भखे वासनः लीज्यो ॥ भक्तां का कारज शुद्ध कीज्यो । नरहर रिषी जी करिया धूप ॥ मेघमुनि जी निरख्या रूप।
भोग लगाने का जाप
ओम् गुरुजी अत्र जल पावन परसादी कीनी ॥ अलख पुरुष के अरपण दीनी। पावां भोजन प्रेम प्रीता कालजाल भूख को जीता। भोग लगावे मेघ सपूता, पांच तीन पचीसो नूता।
ओम् गुरुजी उत्तम भोग अग्नि मुख जावे, अग्नि मुख देवे, तो सर्व सुख पावे, विष्णु भखे भ्रांति भागे, अलख पुरूष के भोग लागे। ओम् अलख घट-घट में जागे, मेघमुनि का सिमरण लागे । गोस्वामी समाज के नितनियम
नौग्रह की शांति पूजा
दीतवार
ओम् गुरुजी दीत दीत महा दीत। दीत सिमरूं दसों द्वार॥ घट में राखे घेघट पार। तो गुरु पावूं दीतवार । दीतवार काश्यब गोत्र, रक्त वर्ण, जाप सात हजार 7000 कलिंग देश, मध्य स्थान, वर्तुलाकार मंडल, 12 अंगुल, सिंह राशि के गुरु को नमस्कार । सत् फिरे तो वाचा फिरे, तो पान फूल वासना सिंहासन घरे, तो इतरो काम दीतवार ही महाराज करे। ओम् फट् स्वाहा ।
सोमवार
ओम् गुरुजी सोमवार मन लागी सेन। निरमल काया, पाप न पुण्य अमर बरसाया। जन नजर सोमवार करे। सोमवार अत्रि गौत्र श्वेत वर्ण ग्यारह हजार 11000 जाप जमुना तट देश अग्नि स्थान, चतुर्थ मंडल, 4 अंगुल। कर्क राशि के गुरु को नमस्कार। सत फिरे तो वाचा फिरे, पान फूल वासना सिंहासन घरे। तो इतरो काम सोमवार जी महाराज करे। ओम् फट् स्वाहा । गोस्वामी समाज के नितनियम
मंगलवार
ओम् गुरुजी मंगलवार मन कर बन्दा, जन्म मरण का कट जावे फन्दा। जन्म मरण का भागे कार। तो गुरु पावूं मंगलवार। मंगलवार भारद्वाज गौत्र, रक्त वर्ण दस हजार 10000 जाप आवन्ति देश । दक्षिण स्थान त्रिकोण मंडल तीन अंगुल, वृश्चिक मेष राशि के गुरु को नमस्कार। सत फिरे तो वाचा फिरे। पान फूल वासना सिंहासन धरे। तो इतरो काम मंगलवार जी महाराज करे। ओम् फट् स्वाहा।
बुधवार
ओम् गुरुजी बुधवार बुध लेकर जुझे। पांच पसीन ले घट में चढ़े। निसाण घुरावे । आवागमन में कदे न आवे॥ बुध करो शुद्ध, शिव गर सगत पाणी भरे, बुधवार अत्रि गोत्र, पीत वर्ण चार हजार 4000 जाप मगहर देश, ईशान कोण स्थान। बाणाकार मंडल, 4 अंगुल। कन्या मिथुन राशि के गुरु को नमस्कार ॥ सात फिरे तो वाचा फिरे ॥ पान फूल वासना सिंहासन घरे ॥ तो इतरो काम बुधवार जी महाराज करे ॥ ओम् फट् स्वाहा । गोस्वामी समाज के नितनियम
बिस्पतबार
ओम् गुरुजी बृहस्पतिवार मन में बसे ॥ पांचों इन्द्रिय बस में करे ॥ सो निशि घर ऊग्या भाण ॥ घ्यावो बृहस्पतिवार गंगा का है सिनान॥ बृहस्पति अंगिरा गोत्र, पीत वर्ण उन्नीस हजार 19000 जाप, सिंधु देश उत्तर स्थान, चतुर्थ मंडल, छः अंगुल । धनु मीन राशि के गुरु को नमस्कार ॥ सत फिरे तो वाचा फिरे ॥ पान फूल वासना सिंहासन घरे ॥ तो इतरो काम बृहस्पतिवार जी महाराज करे। ओम् फट् स्वाहा।
शुक्रवार
ओम् गुरुजी शुक्रवार शुक्राचार ॥ मन धरो धीर। कांई नर नारी वीर ॥ नो नाड़ी बहत्तर कोठां की रक्षा करे। शुक्रवार भार्गव गोत्र, श्वेत वर्ण सोलह हजार 16000 जाप, भोजकट देश, पूर्व स्थान, पंचकोण मण्डल, 9 ‘अंगुल’ वृष तुला राशि के गुरु को नमस्कार। सत फिरे तो वाचा फिरे, पान फूल वासना सिंहासन धरे ॥ तो इतरो काम शुक्रवार जी महाराज करे। ओम् फट् स्वाहा ।
शनिवार
ओम् गुरुजी थावर आसर थरहरो पांच तत्व की विद्या करो, पांच तत्व का साघो करो विचार। तो गुरु पावुं थावर वार शनिवार काश्यप गौत्र, कृष्ण वर्ण तेईस हजार 23000 जाप, सोरठा देश पश्चिम स्थान धनुषाकार मण्डल, तीन अंगुल मकर कुम्भ राशि के गुरु को नमस्कार ॥ सत फिरे तो वाचा फिरे, पान फूल वासना सिंहासन धरे। तो इतरो काम थावर जी महाराज करे। ओम् फट् स्वाहा । गोस्वामी समाज के नितनियम
राहु
ओम् गुरुजी राहु राजा राज करे। बिगड़ी बात को सुधार करे, जो राहु को ध्यान करे। ताका कारज सहजां सरे। राहु पेठिनस गौत्र, कृष्ण वर्ण अट्ठारा हजार 18000 जाप, काश्मीर देश, नेऋत्य स्थान । सर्पाकार मण्डल, 12 अंगुल, सत फिरे तो वाचा फिरे, पान फूल वासना सिंहासन घरे। तो इतरो काम राहुजी महाराज करे । ओम् फट् स्वाहा।
केतु
ओम् गुरुजी केतु हेतु जीव का, वार बुधवंत जाण ॥ नाम राशि रक्षा करो, कबहु न आवे हाथ जो हिरदे केतु से हेत॥ रक्षा करे दिलावे खेत॥ केतु जैमिनी गोत्र धूम्रवर्णं सतरा हजार 17000 जाप, आवन्ति देश वायव्य स्थान, ध्वाजाकार मंडल छह अंगुल। सत फिरे तो वाचा फिरे पान फूल वासना सिंहासन घरे। तो इतरो काम केतु जी महाराज करे ॥ ओम् फट् स्वाहा। नौ ग्रहों का जपिये जाप। शान्ति धारे मिटावे पाप ॥ नवग्रह देवता आपों आप जो कोई करो जीव को सार॥ सो तो ध्यावो नौ ग्रह बार ॥ जो कोई करो दुश्मन जीव की लार। जाने भकसी नौ ग्रह देव चौरासी सार॥ नौ ग्रह देवां ने कोटानुकोटि नमस्कार नौ ग्रह, सत्ताईस नक्षत्र, सोला तिथी, गुरु गोरखनाथजी महाराज ने कही। ओम् फट् स्वाहा। गोस्वामी समाज के नितनियम
शान्ति पाठ
ब्रह्मामुरारि स्त्रिपुरान्तकारी, भानुः शशी भौम सुतो बुधश्च ।
गुरुश्च शुक्रः शनि राहु केतवः सर्वे ग्रहाः शान्ति करा भवन्तु ॥
ॐ द्यौः शान्तिरन्तरिक्षथ्वशान्ति पृथिवी शान्तिरापः शान्ति रोषधयः शान्तिः ।
वनस्पतय शान्तिर्विश्वदेवा शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः सर्व शान्तिः शान्ति रेव शान्ति सा मा शान्तिरेधि ।।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः । गोस्वामी समाज के नितनियम
प्रार्थना
सन्तोष सुमति सादगी, मांगू मैं भगवान ।
सबका बेड़ा पार हो, देवो भक्ति ज्ञान ।
संध्या सुमिरण
ओम् गुरुजी सोऽहं सोऽहं सोऽहं हंसो, श्वांसा, सोऽहं जाप, सोऽहं सोऽहं आपों आप ॥ ओम गुरुजी श्वास में ध्यान लगाया। संध्या सुमिरण मुनिजन पाया। अलख पुरुष का दर्शन पाया, आवागमन का फंदा मिटाया। ओऽहं सोऽहं का सिमरण करिया, उल्टा हंस सोहं तरिया । गोस्वामी समाज के नितनियम
अटल शब्द
ओम् गुरुजी अटल शब्द अटल अविनाशी मिटे काल कटे चौरासी। अटल शब्द का पकड़ पियाणा । सुरत नुरत दोनू कर ध्याना। सुरत नुरत दोनों नहिं बस की। आगे पच पच गया घणा ही। पहर गरीबी सिमरण कीना, जीए जाय के एक धुन दीना। नहिं करणा भजन की होड़। नहिं पहुंचे ताजीम कोड़। परम पद में है अलेख, सत की पेड़ी चढ़कर देख। जहा दिया निरंजन साहब ने थाणा। कहो अब आगे किस विध जाणा। चरण पादक्या चित कर गहो। निरंजन भेज्या निरभे रहो। ओमकार में तू ही बोले। परवत हे राई के ओहले ॥ अटल शब्द निज पार है। और शब्द सब बार है। नाम में निज नाम है॥ मेघ महर्षि कियो विचार है । गोस्वामी समाज के नितनियम
तारक मंत्र
ओम् गुरुजी आद राम तत्व सार ॥ ताके उतरो पार ॥ ओहं सोहं अथाह अभेक । बायक रनवंती ले जोत में धरन्ते ॥ कोड़ सूरज वाके द्वार तपन्ते ॥ ये ही शब्द जन जनकारा ॥ ये ही शब्द निरंजन के पास ॥ ये ही शब्द राजा रामचन्द्र पढ़न्ते ॥ सीता लछमन धारन्ते सत शब्द, जग शब्द, अटल शब्द मूल शब्द मूल की डोरी। कहे कबीर सुण धर्मछास, तोड़ी घाटी अट्ठासी क्रोडी ॥ नाम लिया तो सब कुछ हुआ, भेव सुक बिना शरीर पांच नाम मुक्ति का ले चले, सो ही संत गम्भीर ॥ पुरुष, तो महापुरुष, अजर हंसा जहां पुरुष काबास, आद माया, चोक काया ढसे तो पिंड, मरे तो काया, रामतारक तो राघोनन्दजी रामानन्द ने सुनाया। पल में होग्या पारा, अर्थनाम अधारा, निर्मल जोत चौधारा, अखे अंगजीत रामतारक संपूरण हुया, तो राधोनन्दजी रामानन्द जी ने कह्या । गोस्वामी समाज के नितनियम
सोने (शयन) का जाप
ओम् गुरुजी धरती आसरण, समझ कुशासन, पोडे जीव के शरणे, सहजा सिमरण होवे भाई, जागृत स्वप्न, सुषुप्ति, तुरियां मांही। मुनि मेघऋषि जी सोणो बतावे, आवागमन से अलख बचावे। गोस्वामी समाज के नितनियम
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