गुरुवार व्रत कथा || guruvar ki vrat katha
गुरुवार व्रत कथा
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बृहस्पतिवार व्रत की विधि
इस दिन भगवान विष्णु जी की पूजा होती है। दिन में एक समय ही भोजन करें। पीले वस्त्र धारण करें, पीले फलों का प्रयोग करें। भोजन भी चने की दाल का होना चाहिए, नमक नहीं खाना चाहिए। पीले रंग का फूल, चने की दाल, पीले कपड़े तथा पीले चन्दन से पूजन करनी चाहिए। पूजन के पश्चात् कथा सुननी चाहिए। यह व्रत करने से बृहस्पति देवता अति प्रसन्न होते हैं तथा धन, अन्न और विद्या व रूपवान पत्नी का लाभ होता है। स्त्रियों के लिए यह व्रत अति आवश्यक है । इस व्रत में केले का पूजन होता है।
बृहस्पतिवार व्रत कथा
एक नगर में बड़ा व्यापारी रहा करता था । वह जहाज में माल लदवाकर दूसरे देशों को भेजा करता था, और खुद भी जहाजों के साथ दूर-दूर के देशों को जाया करता था । इस तरह वह खूब धन कमाकर लाता था। उसकी गृहस्थी खूब मजे से चल रही थी। वह दान खूब जी खोलकर करता था। परन्तु उसका इस तरह दान देना उसकी पत्नी को बिल्कुल पसंद न था। वह किसी को एकभी दमड़ी देकर खुश न थी । गुरुवार व्रत कथा
एक बार जब वह सौदागर माल से जहाज को भरकर किसी दूसरे देश को गया हुआ था तो पीछे से बृहस्पति देवता साधु का रूप धारण कर उसकी कंजूस पत्नी के पास पहुँचे और भिक्षा की याचना की। उस व्यापारी की पत्नी ने बृहस्पति देवता से कहा- महात्मा जी? मैं तो इस दान-पुण्य से बहुत तंग आ गई । मेरा पति सारा धन दान में व्यर्थ ही नष्ट करता है। आप कोई ऐसा उपाय कीजिए जिससे हमारा सभी धन नष्ट हो जाए इससे न तो धन लूटेगा और न ही मुझे दुःख होगा । गुरुवार व्रत कथा
बृहस्पति देवता ने कहा- देवी तुम बड़ी विचित्र हो? धन और सन्तान तो सभी चाहते हैं। पुत्र और लक्ष्मी तो पापी के घर में भी होनी चाहिए। यदि तुम्हारे पास बहुत धन है तो तुम दिल खोलकर पुण्य कार्य करो । भूखों को भोजन खिलाओ, प्यासों को पानी पिलाओ, यात्रियों के लिए धर्मशालाएँ बनवाओ, कितने ही निर्धनों की कुँवारी कन्याएँ धन के अभाव में अविवाहित बैठी हैं उनका विवाह सम्पन्न कराओ। और भी अनेक पुण्य कार्य हैं जिनका करके तुम्हारा लोक-परलोक सार्थक हो सकता है। लेकिन व्यापारी की स्त्री बड़ी ढीठ थी। उसने कहा- महात्मा जी मैं इस विषय में आपकी कोई बात नहीं सुनना चाहती, मुझे ऐसे धन की कोई आवश्यकता नहीं जो मैं दूसरों को बाँटती फिरूँ । बृहस्पति देवता बोले ‘यदि तुम्हारी ऐसी ही इच्छा है तो फिर ऐसा ही होगा। तुम सात बृहस्पतिपवार गोबर से घर लीपकर पीली मिट्टी से अपने केशों को धोना, भोजन में मास-मदिरा ग्रहण करना, कपड़े धोना, बस तुम्हारा सारा धन नष्ट हो जाएगा।’ इतना कहकर बृहस्पतिदेव अन्तर्ध्यान हो गए। गुरुवार व्रत कथा
उस औरत ने बृहस्पति देवता के कहे अनुसार सात बृहस्पतिवार वैसा ही करने का निश्चय किया । केवल छः गुरुवार बीतने पर ही उस स्त्री का सम्पूर्ण धन नष्ट हो गया और वह स्वयं भी परलोक सिधार गई। उधर माल से भरा उसके पति का जहाज समुद्र में डूब गया हौर उसने बड़ी मुश्किल से लकड़ी के तख्तों पर बैठकर अपनी जान बचाई। वह रोता-धोता अपने नगर में वापस पहुँचा। वहाँ आकर उसने देखा कि उसका सब कुछ नष्ट हो गया। उस व्यापारी ने अपनी पुत्री से सब समाचार पूछा। लड़की ने पिता को उस साधु (बृहस्पति) वाली पूरी कहानी सुना दी। उसने पुत्री को शान्त किया। अब वह प्रतिदिन जंगल में जाकर वहाँ से लकड़ियाँ चुन लाता, और उन्हें नगर में बेचकर अपनी जीविका चलाने लगा। उसका गुजारा बड़ी मुश्किल से होता था । गुरुवार व्रत कथा
एक दिन उसकी पुत्री ने दही खाने की इच्छा प्रकट क । लेकिन व्यापारी के पास कुछ नहीं था कि उसको दही लाकर देता। लकड़हारा उसे आश्वासन देकर जंगल में जाकर एक वृक्ष के नीचे बैठकर अपनी पूर्व दशा को विचार कर रोने लगा। वह गुरुवार का दिन था। बृहस्पति देवता उसकी यह अवस्था देखकर साधु का रूप धारण कर उस व्यापारी के पास आ पहुँचे और कहने लगे लकड़हारे! तू इस जंगल में किस चिन्ता में बैठा है। व्यापारी ने उत्तर दिया- ‘महाराज! आप सब कुछ जानने वाले हैं। इतना कहकर उसने आदकंठ और भीगी आँखों से बृहस्पति देवता को अपनी आप बीती सुना दी । गुरुवार व्रत कथा
बृहस्पति देवता ने कहा-भाई तुम्हारी पत्नी ने गुरुवार के दिन भगवान का अपमान किया था इसी कारण तुम्हारा यह हाल हुआ है, लेकिन अब तुम किसी प्रकार की चिंता न करो। भगवान तुम्हें पहले से भी अधिक धनवान करेंगे। तुम मेरे कहे अनुसार गुरुवार के दिन बृहस्पति का पाठ किया करो । दो पेसे के चने और मनुक्का मंगलवार को जल के लोटे में बांट दो, और खुद भी अमृत पान किया करो तथा प्रसाद खाया करो तो भगवान तुम्हारी सब मनोकामनाएँ पूर्ण करेंगे।’ गुरुवार व्रत कथा
साधु को प्रसन्न देखकर उस व्यापारी ने कहा-महाराज! मुझे लकड़ियों में से तो इतना भी लाभ नहीं कि दो पैसे का दही लाकर भी अपनी इकलौती कन्या को खिला सकूं, उसको मैं हर रोज झूठा आश्वासन देकर टालता आता हूँ। बृहस्पति देवता ने कहा- ‘भक्तराज! तुम चिंता मत करो। आगामी गुरुवार के दिन तुम शहर में लकड़ियाँ बेचने के लिए जाना, तुमको उस दिन लकड़ियों के चार पैसे अधिक मिलेंगे। जिसमें से तुम दो पैसे का दही लाकर अपनी पुत्री को खिलाना और दो पैसे की मुनक्का और चने लाकर गुरुवार देवता की कथा करना । जल में जरा-सी शक्कर डालकर अमृत बनाना और कथा का प्रसाद सब में बांटना और खुद भी खाना, तो तुम्हारे सब काम सिद्ध हो जाएंगे।’ इतना में कहकर बृहस्पतिवार देवता अन्तर्ध्यान हो गए । गुरुवार व्रत कथा
गुरुवार के दिन उस व्यापारी ने जंगल में से लकड़ियाँ इकट्ठी की और शहर में बेचने के लिए गया। उसको उस दिन चार पैसे अधिक मिले, जिनमें से दो पैसे का दही लाकर उसने अपनी लड़की को दे दिया और दो पैसे के चने और गुरुवार व्रत कथा
मुनक्का देकर अमृत बनाकर प्रसाद बांटा और प्रेम से खाया। उसी दिन से उसकी सब कठिनाइयां दूर होने लगी। परन्तु अगले गुरुवार को वह बृहस्पति देवता की कथा करना भूल गया । गुरुवार व्रत कथा
शुक्रवार को उस नगर के राजा ने आज्ञा दी कि कल मैंने एक बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन करवाया है। अतएव कोई भी व्यक्ति अपने घर में अग्नि न जलायें, और समस्त जनता मेरे यहाँ आकर भोजन करें। जो इस आदेश की अवहेलना करेगा उसे सूली पर लटकाया जायेगा। राजा की आज्ञानुसार अगले दिन सब लोग राजा के महल में भोजन करने गये। लेकिन वह व्यापारी और उसकी लड़की दोनों तनिक विलम्ब से पहुँचे। अतएव राजा ने उन दोनों को अपने महल के अन्दर ले जाकर भोजन करवाया। जब वह पिता-पुत्री भोजन करके वापस आ गए जो महारानी की दृष्टि खूंटी पर पड़ी जिस पर उसका नौलखा हार टँगा हुआ था। खूँटी पर अब हार नहीं था। महारानी को विश्वास हो गया कि उसका हार लकड़हारा और उसकी लड़की ही ले गए हैं। तुरन्त सिपाहियों को बुलाकर दोनों बाप-बेटी को कैद करवाकर जेल में डाल दिया गया। गुरुवार व्रत कथा
कैदखाने में पड़कर बाप-बेटी दोनों अत्यन्त दुःखी हुए। वहाँ इन्होंने बृहस्पति देवता का स्मरण किया। बृहस्पति देवता वहीं प्रकट हो गए और व्यापारी से कहने लगे–‘भक्तराज!’ तुम पिछले सप्ताह बृहस्पति देवता की कथा करना भूल गए थे, इसलिए तुम्हारा यह हाल हो गया है। परन्तु तुम किसी प्रकार की चिंता न करो। बृहस्पति के दिन कैदखाने के दरवाजे पर तुम्हें दो पैसे पड़े दिखाई देंगे। तुम वह पैसे उठाकर चने ओर मुनक्का मंगवा लेना फिर विधि पूर्वक बृहस्पति देवता का पूजन तथा कथा करना, तुम्हारे सब दुःख दूर हो जाएँगे। गुरुवार व्रत कथा
बृहस्पतिवार के दिन उस व्यापारी को जेल के मुख्य द्वार के पास दो पैसे पड़े हुए मिले। बाहर सड़क पर एक स्त्री जा रही थी। उसे बुलाकर कहा कि वह बाजार से दो पैसे के चने और मुनक्का ला दे ताकि मैं बृहस्पति देवता की कथा कर सकूं। इस पर उस स्त्री ने कहा- ‘मैं अपनी बहू के लिए कपड़े सिलवाने जा रही हूँ। मैं बृहस्पति भगवान को क्या जानूं।’ इतना कहकर वह औरत वहाँ से चली गई । गुरुवार व्रत कथा
थोड़ी देर बाद वहाँ से एक और स्त्री निकली। व्यापारी ने उस स्त्री को बुलाकर प्रार्थना की-बहन! तुम मुझे बाजार से दो पैसे के चने और मुनक्का ला दो। मुझे बृहस्पति देवता की कथा करनी है। वह स्त्री बृहस्पति देवता का नाम सुनकर बोली- ‘बलिहारी जाऊँ वीर भगवान के नाम पर, मैं तुम्हें अभी मुनक्का और चने लाकर देती हूँ। मेरा इकलौता बेटा मर गया है। मैं उसके लिए कफन लेने जा रही थी, मगर अब पहले तुम्हारा काम करूँगी, उसके बाद बेटे के लिए कफन लाऊँगी।’ उस स्त्री ने व्यापारी की कथा सुनी कथा समाप्त होने के बाद वह स्त्री अपने पुत्र के लिए कफन लेकर अपने घर की ओर रवाना हुई तो क्या देखती है कि लोग उसके बेटे की लाश को ‘राम नाम सत्य है’ कहते हुए श्मशान की ओर ले जा रहे हैं। उस स्त्री ने उन लोगों से कहा- भाई मुझे अपने लाडले का मुख तो देख लेने दो। लोगों ने अर्थी को जमीन पर रख दिया। तब उस स्त्री ने अपने मृत पुत्र के मुख में प्रसाद और अमृत डाला । प्रसाद और अमृत के मुख में पड़ने के साथ ही उसका पुत्र उठ खड़ा हुआ और अपनी माता को गले से लगाकर मिला। दूसरी स्त्री जिसने बृहस्पति देवता का निरादर किया था, जब अपने पुत्र के विवाह के लिए कपड़े लेकर वापस लौटी और उसका पुत्र घोड़ी पर बैठकर बारात में निकला तो घोड़ी ने ऐसी छलांग मारी कि वह जमीन पर आ गिरा तथा बुरी तरह से घायल हो गया और कुछ ही क्षण के पश्चात् मर गया। गुरुवार व्रत कथा
तब वह स्त्री रो-रोकर बृहस्पति देवता से कहने लगी- ‘हे देव मेरा अपराध क्षमा करो, मेरा अपराध क्षमा करो।’ उसकी प्रार्थना सुनकर भगवान बृहस्पति साधू का रूप धारण कर वहाँ आए और उस स्त्री से कहने लगे-‘देवी! अधिक विलाप करने की कोई आवश्यकता नहीं।’ तुमने गुरु भगवान का निरादर किया था जिसका परिणाम तुम्हें मिला है। तुम जेलखाने जाकर भक्त से क्षमा याचना करो। उससे सब कुछ ठीक हो जायेगा । गुरुवार व्रत कथा
वह स्त्री फिर जेलखाने पहुँची, और मुख्य द्वार के पास जाकर उस व्यापारी से हाथ जोड़कर कहने लगी-‘भक्तराज! मैंने तुम्हारा कहा नहीं माना। मुनक्का और चने लाकर तुम्हें नहीं दिये, इससे गुरुवार देवता मुझसे रुष्ट हो गए, जिसके कारण मेरा इकलौता लड़का धोड़ी से गिरकर मर गया।’ व्यापारी ने कहा-‘माता तू चिंता मत कर ।’ गुरुवार देवता सब कल्याण करेंगे। तुम अगले गुरवार को आकर बृहस्पति देवता की कथा सुनना अपने पुत्र की लाश को, इत्र, घी आदि सुगन्धित पदार्थों में रख दो उस स्त्री ने ऐसा ही किया । बृहस्पति का दिन भी आ पहुँचा। वह दो पैसे के मुनक्का और चने लेकर तथा पवित्र जल का लोटा भरकर जेल के द्वार पर आई, और श्रद्धा के साथ बृहस्पति देवता की कथा सुनी। जब कथा समाप्त हुई तो अमृत व प्रसाद लाकर अपने मृत पुत्र के मुख में डाला। अचानक उसकी सांस आने लगी और वह उठकर खड़ा हो गया । गुरुवार व्रत कथा पुत्र को लेकर वह महिला खुशी से अपने घर को रवाना हुई और बृहस्पति देवता के गुण गाने लगी। उसी दिन रात्रि में राजा को बृहस्पति देवता ने स्वप्न में दर्शन दिये और कहा-‘हे राजन्! तूने जिस व्यापारी और उसकी पुत्री को जेल में बन्द कर रखा है वे दोनों निर्दोष हैं। अब दिन निकलने के साथ ही दोनों को जेल से रिहा कर दे । तेरी रानी का नौलखा हार उसी खूंटी पर लटका है।’ दिन निकला तो रानी ने अपना हार खूंटी पर लटका देखा । राजा ने उस व्यापारी को जेल से रिहा कर अपराध के लिए उससे क्षमा मांगी, और उसको अपना आधा राज्य देकर तथा उसकी लड़की का उच्च कुल में विवाह कर दहेज में हीरे-जवाहारात दिये । गुरुवार व्रत कथा
बृहस्पति देवता ऐसे ही हैं। जैसी जिसकी मनोकामना होती है, वह पूर्ण करते हैं। इस व्रत के करने से व्यक्ति रोग-मुक्त व निर्धन, धनवान होता है, निपुत्र, पुत्रवान होता है। यश व ऐश्वर्य की वृद्धि होती है। जीवन सुखमय होता है। मन की चिंतायें भी दूर होती हैं। जो कोई श्रद्धा और प्रेम से बृहस्पति देवता की कथा पढ़ेगा अथवा दूसरों को पढ़कर सुनाएगा, उसकी सब इच्छायें पूरी होंगी। गुरुवार व्रत कथा
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