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कबीर साहेब के दोहे । कबीरजी के रहस्यमयी दोहे

कबीर साहेब के दोहे 

कबीर साहेब के दोहे
कबीर साहेब के दोहे

जिव्हा तो वोहे भली

कबीर, जिव्हा तो वोहे भली, जो रटै हरिनाम।

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ना तो काट के फैंक दियो, मुख में भलो ना चाम।।

जैसे जीभ शरीर का बहुत महत्वपूर्ण अंग है। यदि परमात्मा का गुणगान तथा नाम-जाप के लिए प्रयोग नहीं किया जाता है तो व्यर्थ है। कबीर साहेब के दोहे

ये तन विष की बेलड़ी

कबीर, ये तन विष की बेलड़ी, गुरु अमृत की खान।

शीश दिए जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान।।

यह मानव शरीर विषय-विकारों रुपी विष का घर है। गुरु तत्वज्ञान रुपी अमृत की खान है। ऐसा गुरु शीश दान करने से मिल जाए तो सस्ता जानें। शीश दान अर्थात गुरु दीक्षा किसी भी मूल्य में मिल जाए। कबीर साहेब के दोहे

राम कृष्ण से को बड़ा

कबीर, राम कृष्ण से को बड़ा, तिन्हूं भी गुरु कीन्ह।

तीन लोक के वे धनी, गुरु आगै आधीन।।

कबीर जी ने कहा है कि  आप जी श्री राम तथा श्री कृष्ण जी से तो किसी को बड़ा नहीं मानते। ये तीन लोक के मालिक (धनी) होकर भी अपने गुरु जी के आगे नतमस्तक होते थे। इसलिए सर्व मानव को गुरु बनाना अनिवार्य है। कबीर साहेब के दोहे

कबीर जी ने कहा है कि :-

जो जाकि शरणा बसै, ताको ताकी लाज। जल सौंही मछली चढ़ै, बह जाते गजराज।।

जो साधक जिस राम (देव-प्रभु) की भक्ति पूरी श्रद्धा से करता है तो वह राम उस साधक की इज्जत रखता है।

कबीर, मानुष जन्म दुर्लभ है, मिले न बारं-बार।

तरवर से पत्ता टूट गिरे, बहुर ना लागे डार।।

कबीर परमात्मा जी ने समझाया है कि हे मानव शरीरधारी प्राणी! यह मानव जन्म बार-बार नहीं मिलता। इस शरीर के रहते-रहते शुभ कर्म तथा परमात्मा की भक्ति कर, अन्यथा यह शरीर समाप्त हो गया तो आप पुनः मानव शरीर को प्राप्त नहीं कर पाओगे।

कबीर परमेश्वर जी ने फिर बताया है कि:-

बिन उपदेश अचम्भ है, क्यों जिवत हैं प्राण।

भक्ति बिना कहाँ ठौर है, ये नर नाहीं पाषाण।

परमात्मा कबीर जी कह रहे हैं कि हे भोले मानव! मुझे  आश्चर्य है कि बिना गुरू से दीक्षा लिए किस आशा को लेकर जीवित है। न तो शरीर तेरा है, यह भी त्यागकर जाएगा। फिर सम्पत्ति आपकी कैसे है? कबीर साहेब के दोहे

कबीर, काया तेरी है नहीं, माया कहाँ से होय।

भक्ति कर दिल पाक से, जीवन है दिन दोय।।

कबीर, नौ मन सूत उलझिया, ऋषि रहे झख मार।

सतगुरू ऐसा सुलझा दे, उलझे न दूजी बार।।

परमेश्वर कबीर जी ने कहा है कि अध्यात्म ज्ञान रूपी नौ मन सूत उलझा हुआ है।

कबीर जी ने कहा है कि:-

क्या मांगुँ कुछ थिर ना रहाई। देखत नैन चला जग जाई।।

एक लख पूत सवा लख नाती। उस रावण कै दीवा न बाती।।

कबीर, मानुष जन्म पाय कर, नहीं रटैं हरि नाम।

जैसे कुंआ जल बिना, बनवाया क्या काम।।

मानव जीवन में यदि भक्ति नहीं करता तो वह जीवन ऐसा है जैसे सुंदर कुंआ बना रखा है। यदि उसमें जल नहीं है या जल है तो खारा है, उसका भी नाम भले ही कुंआ है, परंतु गुण कुंए वाले नहीं हैं। कबीर साहेब के दोहे

कबीर साहेब जी ने सुक्ष्म वेद में कहा है कि –

गुरू बिन काहू न पाया ज्ञाना, ज्यों थोथा भूष छिड़े मूढ़ किसाना।

गुरू बिन वेद पढ़े जो प्राणी, समझे ना सार रहे अज्ञानी।।

संत गरीबदास जी को भी सतगुरू कबीर परमेश्वर जी मिले थे। अपनी वाणी में लिखा है :-

गरीब, अलल पंख अनुराग है, सुन मण्डल रह थीर। दास गरीब उधारिया, सतगुरू मिले कबीर।।

बुद्धिमान को चाहिए कि सोच-विचार कर भक्ति मार्ग अपनांए क्योंकि मनुष्य जन्म अनमोल है, यह बार-बार नहीं मिलता। 

कबीर साहेब कहते हैं कि :-

कबीर मानुष जन्म दुर्लभ है, मिले न बारम्बार। तरूवर से पत्ता टूट गिरे, बहुर न लगता डारि।।

कबीर, राम नाम से खिज मरैं, कुष्टि हो गल जाय। 

शुकर होकर जन्म ले, नाक डूबता खाय।।

कबीर जी ने कहा है कि अभिमानी व्यक्ति राम नाम की चर्चा से खिज जाता है। फिर कोढ़ (कुष्ट रोग) लगकर गलकर मर जाता है। कबीर साहेब के दोहे

कुष्टी हो संत बंदगी कीजिए।

कुष्टी हो संत बंदगी कीजिए।

जे हो वैश्या को प्रभु विश्वास, चरण चित दीजिए।।

यदि किसी भक्त को कुष्ट रोग है और वह भक्ति करने लगा है तो उससे घृणा न करे। उसको प्रणाम करे। उसका हौंसला बढ़ाना चाहिए। भक्ति करने से उसका जीवन सफल होगा, रोग भी ठीक हो जाएगा। इसी प्रकार किसी वैश्या बेटी-बहन को प्रेरणा बनी है भक्ति करने की, सत्संग में आने की तो उसको परमात्मा पर विश्वास हुआ है। वह सत्संग विचार सुनेगी तो बुराई भी छूट जाएगी।

कबीर, सुख के माथे पत्थर पड़ो, नाम हृदय से जावै।

बलिहारी वा दुख के, जो पल-पल नाम रटावै।।

हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना ।

आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मुए, मरम न कोउ जाना ।

हिन्दु मैं हूं नाहीं, मुसलमान भी नाहीं।

पंच तत्व का पुतला हूं, गैबि खेले माहीं।।

कंकड़ पत्थर जोड़कर मस्जिद लायी बनाये ,

ता चढ़ मुल्ला बांक दे क्या बहरा हुआ खुदाय|

कबीर-हिन्दू के दया नहीं, मिहर तुरकके नाहिं।

कहै कबीर दोनूं गया, लख चौरासी माहिं।।

कबीर-मुसलमान मारै करदसो, हिंदू मारे तरवार।

कहै कबीर दोनूं मिलि, जैहैं यमके द्वार।। कबीर साहेब के दोहे

कबीर-अलख इलाही एक है, नाम धराया दोय।

कहै कबीर दो नाम सुनि, भरम परो मति कोय।।

कबीर-राम रहीमा एक है

कबीर-राम रहीमा एक है, नाम धराया दोय।

कहै कबीर दो नाम सुनि, भरम परो मति कोय।।

कबीर-कृष्ण करीमा एक है, नाम धराया दोय।

कहै कबीर दो नाम सुनि, भरम परो मति कोय।।

 

मुझे उम्मीद है दोस्तों की कबीर साहिब के यह दोहे आपको अवश्य पसंद आए होंगे अगर आपको यह दोहे पसंद आए हैं तो कृपया लाइक करें कमेंट करें और पोस्ट को आगे शेयर जरूर करें और ऐसी ही अन्य भक्ति रचनाए कथाएं छंद दोहे सवैया आदि पढ़ने के लिए आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं। आपका धन्यवाद!

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