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कबीरजी के भजन lyrics

कबीरजी के भजन lyrics

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कबीरजी के भजन lyrics

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नाम-महिमा

(६६)

भजो रे भैया राम गोविन्द हरी ।
जप तप साधन कछु नहिं लागत, खरचत ना गठरी ॥टेर ॥

संतत संपति सुख के कारन, जासौं भूल परी ।।

गणिका तारी शबरी तारी, गौतम घरनि तरी ॥

खग मृग व्याध अजामिल तारे, जिनकी नाव भरी ॥

गज की टेक सुनत उठि धाये, रुके न पलक घरी ॥

और अनेक अधम जन तारे, गिनती न जात करी ॥

कहत कबीर राम नहिं जा मुख, ता मुख धूल भरी ॥

कबीरजी के भजन lyrics

भगवन्नाम (६७)

तूं बोल मेरी रसना हरी हरी ॥ टेर ॥

खट रस भोजन अति प्रिय लागे, राम भजन में मरी मरी ॥

गरभवास में भगती कबूली, बाहर आयो मति फिरी फिरी ॥

पर निन्दा कर पाप कमावे, फल भोगे तूं डरी डरी ॥

चुन चुन कंकर महल चिणावे, मोह ममता में घिरी घिरी ॥

कहत कबीर सुनो भाई साधो, भजन कर्यां सूं तरी तरी ॥

( ६८ ) राग भैरवी –ताल तेवरा

मत कर मोह तू, हरि भजनको मान रे ।
नयन दिये दरसन करनेको, स्रवन दिये सुन ज्ञान रे ॥

बदन दिया हरिगुन गानेको, हाथ दिये कर दान रे ।
कहत कबीर सुनो भाई साधो, कंचन निपजत खान रे ॥

कबीरजी के भजन lyrics

भजन बिन यों ही जनम गँवायो ॥

गर्भ बास में कौल कियो तू, तब तोहि बाहर लायो ।
जठर अगिन तें काढ़ि निकारो, गाँठि बाँधि क्या लायो ।

बह- बह मुवो बैल की नाँई, सोइ रह्यो उठि खायो ।
कहै कबीर सुनो भाई साधो, चौरासी भरमायो ॥

 

(चेतावनी)

कबीरजी के भजन lyrics

( ७० ) राग काफी

तोरी गठरीमें लागे चोर बटोहिया का सोवै ॥ टेक ॥

पाँच पचीस तीन है चुरवा, यह सब कीन्हा सोर ।।

जागु सबेरा बाट अनेरा, फिर नहिं लागै जोर ॥

भवसागर इक नदी बहतु है, बिन उतरे जाब बोर ।

कहै कबीर सुनो भाई साधो ! जागत कीजै मोर ॥

कबीरजी के भजन lyrics

(७१)

अरे मन धीरज काहे न धरै ।
सुभ और असुभ करम पूरबले, रती घटै न बढ़े ॥

होनहार होवै पुनि सोई, चिंता काहे करै ।
पसु पंछी सब कीट पतंगा, सब ही की सुधि करै ॥

गर्भबास में खबर लेतु है, बाहर क्यों बिसरै ।
मात पिता सुत संपति दारा, मोह के ज्वाल जरै ॥

मन तू हंसन-से साहिब तजि, भटकत काहे फिरै ।
सतगुरु छाँड़ और को ध्यावे, कारज इक न सरै ॥

साधुन सेवा कर मन मेरे, कोटिन ब्याधि हरै ।
कहत कबीर सुनो भाई साधो, सहज में जीव तरै ॥

(७२)

मत बाँधो गठरिया अपजस की ॥ टेर ॥

यो संसार बादल की छाया, करो कमाइ भाई हरि रस की ॥

जोर जवानी ढलक जायगी, बाल अवस्था तेरी दिन दस की ॥

धर्मदूत जब फाँसी डारे, खबर लेवे थारे नस-नस की ॥

कहत कबीर सुनो भाई साधो, जब तेरे बात नहीं बस की ॥

 

( ७३ ) राग बिलावल

रहना नहिं देस बिराना है।

यह संसार कागदकी पुड़िया, बूंद पड़े घुल जाना है।
यह संसार काँटकी बाड़ी उलझ पुलझ मरि जाना है ॥

यह संसार झाड़ औ झाँखर, आग लगे बरि जाना है।
कहत कबीर सुनो भाई साधो ! सतगुरु नाम ठिकाना है ।।

कबीरजी के भजन lyrics

 

(७४) राग बागेश्री

बीत गये दिन भजन बिना रे !
बाल अवस्था खेल गँवायो, जब जवानि तब मान घना रे ।।

लाहे कारन मूल गँवायो, अजहुँ न गइ मनकी तृसना रे ।

कहत कबीर सुनो भाई साधो ! पार उतर गये संत जना रे ॥

 

(७५)

कौन ठगवा नगरिया लूटल हो ।
चंदन काठ कै बनल खटोलना, तापर दुलहिन सूतल हो ।।

उठो री सखी मोरी माँग सँवारो, दुलहा मोसे रूठल हो ।
आये जमराज पलँग चढ़ि बैठे, नैनन अँसुआ टूटल हो ।।

चारि जने मिलि खाट उठाइन, चहुँदिसि धू-धू ऊठल हो ।
कहत कबीर सुनो भाई साधो ! जगसे नाता छूटल हो ।।

 

( ७६ ) राग सारंग

माया महा ठगिनि हम जानी ।
निरगुन फाँस लिये कर डोलै बोलै मधुरी बानी ॥

केसवके कमला ह्वै बैठी, सिवके भवन भवानी ।
पंडाके मूरति है बैठी, तीरथमें भइ पानी ॥

जोगीके जोगिन है बैठी, राजाके घर रानी ।
काहूके हीरा ह्वै बैठी, काहूके कौड़ी कानी ॥

भगतनके भगतिन ह्वै बैठी, ब्रह्माके ब्रह्मानी ।
कहत कबीर सुनो हो संतो! यह सब अकथ कहानी ॥

 

(७७)

मुखड़ा क्या देखे दरपन में तेरे दया धरम नहिं मन में ॥ टेर ॥

कागज की इक नाव बनाई, छोड़ी समँदर जल में ।
धरमी धरमी पार उतर गये, पापी डूबे पल में ॥

पेच मार कर पगड़ी बाँधे, तेल डार जुलफन में।
इसी बदन पर दूब उगेगी, गऊ चरेगी बन में ॥

कंगन कड़ा कान की बाली, ले उतार पल छिन में ।
काची काया काम न आवे, नंग धरे आँगन में ॥

घर वाले तो घर में राजी, फक्कड़ राजी वन में ।
आम की डार कोयलियां बोले, सूआ बोले बन में ॥

कौड़ी कौड़ी माया जोड़ी, गाड़ी खोद भवन में ।
कहत कबीर सुनो भाई साधो, रह गई मन की मन में ॥ 

 

(७८) राग सारंग

धुबिया जल बिच मरत पियासा ॥ टेक ॥

जलमें ठाढ़ पिये नहिं मूरख अच्छा जल है खासा ।
अपने घरकै मरम न जानै करै धुबियनकै आसा ॥

छिनमें धुबिया रोवै, धोवै, छिनमें होय उदासा ।
आपै बँधे करमकी रस्सी, आपन गरकै फाँसा ॥

सच्चा साबुन लेहि न मूरख, है संतनके पासा ।
दाग पुराना छूटत नाहीं, धोवत बारह मासा ॥

एक रातिकौ जोरि लगावै, छोरि दिये भरि मासा ।
कहै कबीर सुनो भाई साधो ! आछत अन्न उपासा ॥

(प्रेम)

कबीरजी के भजन lyrics

( ७९ ) राग काफी नैहरवा हमकाँ न भावै ॥ टेक ॥

साईंकी नगरी परम अति सुंदर, जहँ कोई जाय न आवै ।
चाँद, सूरज जहँ पवन न पानी, को सँदेस पहुँचावै ॥
दरद यह साईंको सुनावै ॥

आगे चलौं पंथ नहिं सूझ, पीछे दोष लगावै ।
केहि बिधि ससुरे जाउँ मोरी सजनी, बिरहा जोर जनावै ॥
बिषैरस नाच नचावै ॥

बिन सतगुरु अपनी नहिं कोई, जो यह राह बतावै ।
कहत कबीर सुनो भाई साधो ! सुपने न पीतम पावै ॥
तपन यह जियकी बुझावै ॥

कबीरजी के भजन lyrics

( ८० ) राग कान्हरा – दीपचन्दी

घूँघटका पट खोल री तोहे पीव मिलेंगे ॥ – ध्रु० ॥

घट घट रमता राम रमैया कटुक बचन मत बोल रे ॥ – तोहे ०

रंगमहलमें दीप बरत हैं आसनसे मत डोल रे ॥ – तोहे ०
कहत कबीर सुनो भाई साधू अनहद बाजत ढोल रे ॥ – तोहे ०

कबीरजी के भजन lyrics

वैराग्य

(८१)

मन लागो मेरो यार फकीरीमें ॥ टेक ॥

जो सुख पावों नाम-भजनमें, सो सुख नाहिं अमीरीमें ॥

भला-बुरा सबको सुनि लीजै, करि गुजरान गरीबीमें ॥

प्रेमनगरमें रहनि हमारी, भलि बनि आई सबूरीमें ॥

हाथमें कूँड़ी बगलमें सोंटा चारो दिसा जगीरीमें ॥

आखिर यह तन खाक मिलैगा, कहा फिरत मगरूरीमें ॥

कहत कबीर सुनो भाई साधो, साहिब मिलै सबूरीमें ॥

कबीरजी के भजन lyrics

(८२)

झीनी-झीनी बीनी चदरिया ॥

काहे कै ताना, काहे कै भरनी, कौन तार से बीनी चदरिया ॥

इँगला – पिंगला ताना भरनी, सुषमन-तार से बीनी चदरिया ॥

आठ कँवल दल चरखा डोलै, पाँच तत्त गुन तीनि चदरिया ॥

साँइ कौ सियत मास दास लागै, ठोक-ठोक कै बीनी चदरिया ॥

सो चादर सुर नर मुनि ओढ़ी, ओढ़ि कै मैली कीन्हीं चदरिया ॥

दास कबीर जतन सों ओढ़ी, ज्यों-की-त्यों धरि दीन्हीं चदरिया ॥

कबीरजी के भजन lyrics

( ८३ ) राग काफी

आई गवनवाँकी सारी, उमिरि अबहीं मोरि बारी ॥ टेक ॥

साज समाज पिया लै आये और कहरिया चारी ।
बम्हना बेदरदी अँचरा पकरिकै जोरत गठिया हमारी ।।
सखी सब पारत गारी ॥

बिधिगति बाम कछु समुझि परति ना, बैरी भई महतारी ।
रोय रोय अँखियाँ मोरि पोंछत घरवासे देत निकारी ॥
भईं सबको हम भारी ॥

गौन कराय पिया लै चालै, इत उत बाट निहारी ।
छूटत गाँव नगरसों नाता, छूटै महल अटारी ॥
कर्म गति टरै न टारी ॥

नदिया किनारे बलम मोर रसिया, दीन्ह घूँघट पट टारी ।
थरथराय तनु काँपन लागे, काहु न देख हमारी ॥
पिया लै आये गोहारी ॥

कबीरजी के भजन lyrics

 

(८४)

हमकाँ ओढ़ावै चदरिया, चलती बिरिया ।

प्रान राम जब निकसन लागे, उलटि गई दोउ नैन पुतरिया ।
भीतरसे जब बाहर लाये छूट गई सब महल अटरिया ॥

चार जने मिलि खाट उठाइनि, रोवत ले चले डगर डगरिया ।
कहत कबीर सुनो भाई साधो, संग चली वह सूखी लकरिया ॥

कबीरजी के भजन lyrics

(प्रकीर्ण) (८५)

डर लागै औ हाँसी आवै अजब जमाना आया रे ॥

धन दौलत ले माल खजाना, बेस्या नाच नचाया रे ।
मुट्ठी अन्न साधु कोई माँगे, कहैं नाज नहिं आया रे ॥

कथा होय तहँ स्रोता सोवैं, वक्ता मूँड़ पचाया रे ।
होय जहाँ कहिं स्वाँग, तमासा, तनिक न नींद सताया रे ॥

भंग तमाखू सुलफा गाँजा सूखा खूब उड़ाया रे ।
गुरु चरनामृत नेम न धारै, मधुवा चाखन आया रे ॥

उलटी चलन चली दुनियामें ताते जिय घबराया रे ।
कहत कबीर सुनो भई साधो का पाछे पछताया रे ॥

कबीरजी के भजन lyrics

 

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My name is Sonu Patel i am from india i like write on spritual topic

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