सोमवार व्रत के नियम । सोमवार व्रत के लाभ
सोमवार व्रत के नियम
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सोमवार व्रत कथा एवं विधि
यदि आप भी करते हैं सोमवार का व्रत, तो न करें ये गलतियां, रूठ जाएंगे भगवान शिव
हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सोमवार का दिन भगवान शिव शंकर को समर्पित माना जाता है। इस दिन लोग भगवान भोलेनाथ की पूजा करते हैं और व्रत भी रखते हैं। शिव जी को प्रसन्न करने और उनका आशीर्वाद पाने के लिए सोमवार का व्रत करना सबसे उत्तम माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने और विधि पूर्वक पूजा करने से भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है। साथ ही भोलेनाथ की कृपा से कष्ट दूर होते हैं। लेकिन :- सोमवार व्रत के नियम
* सोमवार का व्रत करते समय कुछ बातों को ध्यान में रखना बहुत जरूरी होता है। ज्योतिष के अनुसार, सोमवार व्रत के दौरान कुछ गलतियों से बचना चाहिए, क्योंकि इन गलतियों के कारण आपको व्रत का शुभ फल नहीं प्राप्त होगा। ऐसे में चलिए आज जानते हैं सोमवार व्रत के दौरान कौन सी गलतियां नहीं करनी चाहिए
* सोमवार के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करके साफ वस्त्र धारण करना चाहिए। फिर घर में या आस-पास किसी शिव मंदिर में जाकर शिवलिंग का जल से अभिषेक करना चाहिए। जलाभिषेक के बाद भगवान शिव और माता पार्वती की श्रद्धा भाव से पूजा अर्चना करें और व्रत कथा अवश्य सुनें। सोमवार के व्रत में एक ही समय भोजन करना चाहिए। इसके अलावा इस व्रत में आप फलाहार भी ले सकते हैं।
* शिव जी की पूजा में न करें ये गलतियां
भगवान शिव की पूजा में अभिषेक के समय इस बात का विशेष ध्यान रखें कि दूध से अभिषेक करने के लिए तांबे के कलश का इस्तेमाल न करें। तांबे के पात्र में दूध डालने से दूध संक्रमित होता हो जाता है और चढ़ाने योग्य नहीं रह जाता। सोमवार व्रत के नियम
* शिव जी की पूजा के दौरान शिवलिंग पर दूध, दही, शहद या कोई भी वस्तु चढ़ाने के बाद जल जरूर चढ़ाएं। आखिर में जल चढ़ाने से ही जलाभिषेक पूर्ण माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार, शिवलिंग पर कभी भी रोली और सिंदूर का तिलक नहीं लगाना चाहिए। शिव जी की पूजा में चंदन के तिलक का इस्तेमाल करना चाहिए।
* सोमवार व्रत के दौरान इस बात का हमेशा ध्यान रखें कि भगवान शिव के मंदिर में शिवलिंग की कभी भी पूरी परिक्रमा न करें। परिक्रमा के दौरान ध्यान दें कि जिस जगह से दूध बहता है, वहां रुक जाएं और वापस घूम जाएं। सोमवार व्रत के नियम
सोमवार व्रत के लाभ
सोमवार को व्रत करने के ये 4 फायदे यकीनन नहीं जानते होंगे आप मुख्य बातें सोमवार का व्रत करने से 4 बड़े फायदे इस पूजन विधि से करें शिव को प्रसन्न विवाह से जुड़ी समस्या भी होगी खत्म
सोमावर के दिन उपवास करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं। इस दिन शिव की पूजा-अर्चना से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। इस दिन भगवान शिव को उनकी प्रिय चीजें अर्पित करना बहुत ही शुभ माना जाता है। महादेव को बिल्व पत्र, धतूरा, भांग, रूद्राक्ष और चंदन अर्पित करें। साथ ही दूध से शिवलिंग का अभिषेक करें। यकीन मानिए, आपके जीवन का हर दुख, हर संकट खुद-ब-खुद खत्म हो जाएगा। आइए आपको सोमवार का व्रत रखने के फायदे बताते हैं। सोमवार व्रत के नियम
1. चंद्रमा होगा मजबूत :- सोमवार को भगवान शिव की उपासना और व्रत करने से कुंडली में चंद्रमा की स्थिति प्रबल होती है। ऐसा होने पर आपको रोग, बीमारियों से छुटकारा मिलता है। घर-परिवार में माता-पिता तुल्य लोगों का स्वास्थ्य ठीक रहता है।
2. विवाह के योग :- योग्य आयु होने के बाद यदि किसी कन्या के विवाह में बाधा आ रही है या विवाह में देरी हो रही है तो 16 सोमवार का व्रत करने से इस समस्या को खत्म किया जा सकता है। सोमवार को व्रत करने के बाद शिवलिंग पर जल चढ़ाना शुरू करें।
3. पापों का नाश :- सोमवार के दिन व्रत करने से भगवान शिव की विशेष कृपा होती है और व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है। जीवन में इंसान कई बार ऐसी गलतियां कर बैठता है, जिसका पछतावा उसे बाद में होता है। सोमवार का व्रत करने से जाने-अनजाने में हुई ऐसी गलतियां का प्रायश्चित हो जाता है। ऐसे लोगों को हमेशा मोक्ष प्राप्त होता है। सोमवार व्रत के नियम
4. खुशहाल दांपत्य जीवन :- सोमवार का व्रत करने से दांपत्य जीवन में खुशियां आती हैं। पति-पत्नी का रिश्ता मजबूत होता है। घर में कलेश, वाद-विवाद की समस्या हल होती है। कोर्ट-कचहरी के मामलों में भी राहत मिलती है।
सोमवार का व्रत साधारणतया दिन के तीसरे पहर तक होता है। व्रत में फलाहार या परायण का कोई खास नियम नहीं है किन्तु यह आवश्यक है कि दिन रात में केवल एक समय भोजन करें। सोमवार के व्रत में शिवजी पार्वती का पूजन करना चाहिए। सोमवार के व्रत तीन प्रकार के हैं साधारण प्रति सोमवार, सौम्य प्रदोष और सोलह सोमवार, विधि तीनों की एक जैसी है। शिव पूजन के पश्चात् कथा सुननी चाहिए। व्रत कथा, प्रदोष व्रत कथा तथा सोलह सोमवार व्रत कथा, प्रदोष व्रत कथा तथा सोलह सोमवार व्रत कथा तीनों अलग-अलग हैं जो आगे दी गईं हैं । सोमवार व्रत के नियम
सोमवार व्रत कथा एवं विधि
एक नगर में बहुत धनवान साहूकार रहता था। उसके घर में धन की कमी नहीं थी । परन्तु वह बहुत दुःखी था क्योंकि उसके कोई पुत्र नहीं था। वह इसी चिन्ता में दिन-रात दुःखी रहता था । पुत्र की कामना के लिए वह प्रत्येक सोमवार शिवजी का व्रत और पूजन किया करता था तथा सायंकाल मन्दिर जाकर शिवजी के सामने दीपक जलाया करता था। उसके इस भक्तिभाव को देखकर एक समय माता पार्वती ने शिवजी महाराज से कहा-“महाराज, यह साहूकार आपका अनन्य भक्त है, सदैव आपका व्रत और पूजन बड़ी श्रद्धा से करता है। आपको इसकी मनोकामना पूर्ण करनी चाहिए।” शिवजी ने कहा- “हे पार्वती!” यह संसार कर्मक्षेत्र है। किसान खेत में जैसा बीज बोता है वैसी ही फसल काटता है। उसी तरह मनुष्य इस संसार में सोमवार व्रत के नियम
जैसा कर्म करते हैं वैसा ही फल भोगते हैं। माता पार्वती ने अत्यन्त आग्रह से कहा-“महाराज! जब यह आपका अनन्य भक्त है और अगर इसको किसी प्रकार का दुःख है तो उसे आपको अवश्य दूर करना चाहिए। आप तो सदैव अपने भक्तों पर दयालु हाते हैं और उनके दुःखों को दूर करते हैं। यदि आप ऐसा नहीं करेंगे तो मनुष्य आपका पूजन तथा व्रत क्यों करेंगे?” सोमवार व्रत के नियम
माता पार्वती का ऐसा आग्रह देख शिवजी कहने लगे-“हे पार्वती ! इसके कोई पुत्र नहीं है इसी चिन्ता में यह अति दुःखी रहता है। इसके भाग्य में पुत्र न होने पर भी मैं इसको पुत्र की प्राप्ति कर वर देता हूँ । परन्तु वह पुत्र केवल 12 वर्ष तक जीवित रहेगा। इसके पश्चात् वह मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा। इससे अधिक मैं इसके लिए नहीं कर सकता।”
माता पार्वती और भगवान शिव का यह वार्तालाप साहूकार सुन रहा था । इससे उसको न कुछ प्रसन्नता हुई औन न ही कुछ दुःख हुआ । वह पूर्व की तरह शिवजी का व्रत और पूजन करता रहा । सोमवार व्रत के नियम
कुछ समय बाद साहूकार की स्त्री गर्भवती हुई और दसवें महीने उसके गर्भ से अति सुन्दर पुत्र उत्पन्न हुआ। साहूकार के घर में बहुत खुशी मनाई गई । परन्तु साहुकार तो यह जानता था कि उसकी केवल बारह वर्ष की आयु है, इसलिए उसने अधिक प्रसन्नता प्रकट नहीं की औन न ही किसी को यह भेद ही बताया । जब वह बालक 11 वर्ष का हो गया तो बालक की माता ने उसके पिता से उसका विवाह करने के लिए कहा। साहूकार ने कहा-“अभी मैं इसका विवाह नहीं करूँगा। मैं अपने पुत्र को काशी पढ़ने के लिए भेजूंगा।” साहूकार ने बालक के मामा को बुलाकर उसको बहुत-सा धन देकर कहा – “तुम इस बालक को काशी पढ़ने के लिए ले जाओ और रास्ते में जिस स्थान पर भी जाओ यज्ञ तथा ब्राह्मणों को भोजन कराते तथा दक्षिणा देते हुए जाना । ” दोनों मामा-भान्जे यज्ञ करते और ब्राह्मणों को भोजन कराते तथा दक्षिणा देते काशी की ओर चल पड़े। रास्ते में उनको एक शहर पड़ा। उस शहर के राजा की कन्या का विवाह था । परन्तु जो राजकुमार विवाह कराने के लिए आया था व एक आँख से काना था। उसके पिता को इस बात की बड़ी चिन्ता थी कि कहीं राजकुमार को देख राजकुमारी तथा उसके माता-पिता विवाह में किसी प्रकार की अड़चन पैदा न कर दें। जब उसने अति सुन्दर सेठ के लड़के को देखा तो मन में विचार किया कि क्यों न द्वाराचार के समय इस
लड़के से वर का काम चलाया जाये। ऐसा मन में विचार कर राजकुमार के पिता ने उस लड़के और उसके मामा से बात की। वे राजी हो गये। फिर उस साहूकार के लड़के को वर के कपड़े पहनाकर तथा घोड़ी पर बैठाकर कन्या के द्वार पर ले गये। सभी कार्य प्रसन्नता से पूर्ण हो गया। राजकुमार के पिता ने सोचा कि यदि विवाह कार्य भी इसी लड़के से करा लिया जाए तो क्या बुराई है? ऐसा विचार कर लड़के और उसके मामा से कहा- यदि आप फेरों और कन्यादान के काम को भी करा दें तो आपकी बड़ी कृपा होगी। मैं इसके बदले आपको बहुत सारा धन दूँगा। दोनों ने इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया और विवाह कार्य भी बहुत अच्छी तरह से सम्पन्न हो गया। सेठ का पुत्र जिस समय जाने लगा तो उसने राजकुमारी की चुन्दड़ी के पल्ले पर लिख दिया – “तेरा विवाह मेरे साथ हुआ परन्तु जिस राजकुमार के साथ तुमको भेजेंगे वह एक आँख से काना है। मैं काशी जी पढ़ने जा रहा हूँ।” सेठ के लड़के के जाने के पश्चात् राजकुमारी ने जब अपनी चुंदड़ी पर ऐसा लिखा हुआ पाया तो उसने काने राजकुमार के साथ जाने से मना कर दिया। उसने अपने माता-पिता को सारी बात बता दी और कहा कि यह मेरा पति नहीं है। मेरा विवाह इसके साथ नहीं हुआ है। जिसके साथ मेरा विवाह हुआ है वह तो काशी जी पढ़ने गया है। राजकुमारी के माता-पिता ने अपनी कन्या को विदा नहीं किया और बारात वापस चली गयी । उधर सेठ का लड़का और उसका मामा काशी जी पहुँच गए। वहाँ जाकर उन्होंने यज्ञ करना और लड़के ने पढ़ना शुरू कर दिया। जिस दिन लड़के की आयु 12 साल की हुई, उस दिन उन्होंने यज्ञ रचा रखा था। लड़के ने अपने मामा से कहा- “मामाजी, आज मेरी तबियत कुछ ठीक नहीं है ।” मामा ने कहा-‘अन्दर जाकर सो जाओ ।’ लड़का अन्दर जाकर सो गया और थोड़ी देर में उसके प्राण निकल गए। जब उसके मामा ने आकर देखा कि उसका भानजा मृत पड़ा है तो उसको बड़ा दुःख हुआ। उसने सोचा कि अगर में अभी रोना- पीटना मचा दूंगा तो यज्ञ का कार्य अधूरा रह जाएगा। अतः उसने जल्दी से यज्ञ का कार्य समाप्त कर ब्राह्मणों के जाने के बाद रोना-पीटना शुरू कर दिया । संयोगवश उसी समय शिव-पार्वती उधर से जा रहे थे। जब उन्होंने जोर-जोर से रोने की आवाज सुनी तो पार्वती कहने लगीं-‘महाराज! कोई दुखिया रो रहा है इसके कष्ट को दूर कीजिए।’ जब शिव-पार्वती वहाँ पहुँचे तो उन्होंने पाया कि वहाँ एक लड़का है जो आपके वरदान से उत्पन्न हुआ था। शिवजी ने कहा- ‘ हे पार्वती! इसकी आयु इतनी ही थी वह यह भोग चुका । तब पार्वती जी ने कहा- ‘हे महाराज! इस बालक को और आयु दो नहीं तो इसके माता-पिता तड़प-तड़पकर मर जाएँगे।’ माता पार्वती के बार-बार आग्रह करने पर शिवजी ने उसको जीवन का वरदान दिया । शिवजी की कृपा से वह लड़का जीवित हो गया। शिवजी और पार्वती कैलाश पर्वत को चले गए।
शिक्षा पूर्ण होने पर वह लंड़का और उसका मामा, उसी प्रकार यज्ञ करते, ब्राह्मणों को भोजन कराते तथा दक्षिणा देते अपने घर की ओर चल पड़े। रास्ते में उसी शहर में आए जहाँ उस लड़के का वहाँ की राजकुमारी से विवाह हुआ था। वहाँ आकर उन्होंने यज्ञ आरम्भ कर दिया। उस लड़के के श्वसुर वहाँ के राजा ने उसको पहचान लिया और महल में ले जाकर उसकी बहुत आवभगत की। बहुत से दास-दासियों सहित आदरपूर्वक अपनी राजकुमारी और जमाई को विदा किया । जब वे अपने शहर के निकट आए तो मामा ने कहा कि मैं पहले तुम्हारे घर जाकर तुम्हारे माता-पिता को खबर कर आता हूँ। जब उस लड़के का मामा घर पहुँचा तो लड़के पिता घर की छत पर बैठे थे। उन्होनं यह प्रण कर रखा था कि यदि हमारा पुत्र सकुशल लौट आया तो हम राजी-खुशी नीचे आ जाएँगे नहीं तो छत से गिरकर अपने प्राण दे देगें। उस लड़के के मामा ने आकर जा यह समाचार दिया कि आपका पुत्र आ गया है तब उनको विश्वास नहीं हुआ। तब उसके मामा ने शपथपूर्वक कहा कि आपका पत्र अपनी पत्नी तथा बहुत सारा धन साथ लेकर आया है तो सेठ प्रसन्नता से भर उठा। सेठ-सेठानी आनन्दपूर्वक नीचे आए। बाहर आकर उन्होंने अपने पुत्र तथा उसकी पत्नी का भरपूर स्वागत किया। सभी बड़ी प्रसन्नता के साथ रहने लगे। सोमवार व्रत के नियम
जो कोई सोमवार के व्रत को धारण करता है व इस कथा को पढ़ता या सुनता है उसके सब दुःख दूर होकर उसकी समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं तथा इस लोक में नाना प्रकार के सुख भोग कर अन्त में सदाशिव के लोक को प्राप्त होता है।
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