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लोक देवता बाबा रामदेव जी का इतिहास

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लोक देवता बाबा रामदेव जी का इतिहास

राजस्थान के लोक देवता
बाबा रामदेवजी

बाबा रामदेव उंडू कश्मीर (बाड़मेर) : संपूर्ण राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में तथा पाकिस्तान में ‘रामसा पीर’ , “रुणिचा रा धणी” व “बाबा रामदेव” नाम से प्रसिद्ध लोक देवता रामदेव जी तवर वंशीय राजपूत थे । कामडिया पंथ के संस्थापक रामदेव जी का जन्म उंडू कश्मीर (बाड़मेर) में हुआ था । इनका जन्मकाल वि.सं. 1409 से 1462 के मध्य माना जाता है । इनके पिता तंवर राजपूत थे तथा उनका नाम अजमाल था । रामदेव जी की माता का नाम मेणादे था। उनके दो पुत्र थे। बड़े पुत्र वीरमदेव को ‘बलराम’ तथा रामदेव को “कृष्ण का अवतार” माना जाता है। रामदेव जी का विवाह अमरकोट के सोढ़ा राजपूत दलैसिंह की पुत्री नेतलदे (निहालदे) के साथ हुआ। लोक देवता बाबा रामदेव जी का इतिहास

भाद्रपद सुदी एकादशी सं. 1515 को इन्होंने रुणिचा के राम सरोवर के किनारे जीवित समाधि ली थी । सातलमेर (पोकरण) भैरव नामक तांत्रिक से त्रस्त हो गया था और लगभग उजड़ गया था । रामदेव जी ने मल्लिनाथ जी से पोकरण का इलाका प्राप्त करने के बाद बाल्यावस्था में ही सातलमेर (पोकरण) में तांत्रिक भैरव का वध कर उसका आतंक समाप्त किया । रामदेव जी ने अपनी भतीजी के विवाह में जगमाल मालावत के पुत्र हमीर को पोकरण दहेज में दे देने के बाद रामदेवरा नामक गांव बसाया । अश्वारूढ़ बाबा रामदेव के एक हाथ में माला और दूसरे हाथ में तंदूरा शक्ति और भक्ति के प्रतीक है। रामदेव जी को हिंदू “विष्णु का अवतार” तथा मुसलमान इन्हें ‘रामसा पीर’ और पीरों के पीर मानते हैं । रामदेवरा (रुणिचा) में रामदेव जी के समाधि स्थल पर “भाद्रपद शुक्ला द्वितीया से एकादशी” तक विशाल मेले का आयोजन होता है। जिसकी मुख्य विशेषता सांप्रदायिक सद्भावना है, क्योंकि यहां हिंदू-मुस्लिम एवं अन्य धर्मों के लोग बड़ी मात्रा में आते हैं । इस मेले का दूसरा आकर्षण रामदेव जी की भक्ति में कामड़ जाति की स्त्रियों द्वारा किया जाने वाला ‘तेरहताली नृत्य’ हैं । इनके अन्य मंदिर जोधपुर के पश्चिम में मसूरिया पहाड़ी पर, बिराॅंटिया (अजमेर) एवं सुरताखेड़ा (चित्तौड़) में भी हैं । छोटा रामदेवरा मंदिर गुजरात राज्य में है । मक्का के पांच पीर रामदेव जी को सबक सिखाने हेतु आये और उन्होंने कुछ चमत्कार रामदेव जी को दिखाये । लोक देवता बाबा रामदेव जी का इतिहास

रामदेव जी ने उनको भोजन के लिए कहा तो उन्होंने अपने बर्तन मक्का भुल आने की तथा दूसरों के बर्तनों में भोजन नहीं करने की बात कही तब रामदेव जी ने हाथ लंबा किया और उन्हें पांचों कटोरे मक्का से लाकर पल भर में उनके सामने रख दिये । तब पांचों पीरों से कहा कि मैं तो केवल पीर हां और थे पीरों का पीर। बाबा रामदेव जी के चमत्कारों को ‘पर्चा’ कहते हैं तथा भक्तों द्वारा गाया जाने वाले भजन “ब्यावले” कहलाते हैं । इनके मेघवाल भक्तजनों को ‘रिखिया’ कहते हैं तथा आज भी बाबे के बीज के मौके पर अनेक भक्तजन इन रिखियों से जम्मा दिलाते हैं । रामदेव जी के नाम पर भाद्रपद द्वितीया व एकादशी को जो रात्रि जागरण किया जाता हैं, उसे ‘जम्मा’ कहते हैं । रुणिचा में रामदेव जी के पुजारी तंवर राजपूत होते हैं । वे अकाल में रामदेव जी का कपड़े का घोड़ा लिए मांगते फिरते हैं और जमाना अच्छा होने पर वापस आ जाते हैं । रामदेव जी के अनुयायियों में निम्न जातियों के लोगों की संख्या अधिक हैं । भाॅंभी जो रामदेव जी की पूजा करते हैं , एक विशिष्ट प्रकार की गेरू रंग की टोपी पहनते हैं तथा पवित्र तुलसी के पौधे को अपने पास रखते हैं । यही लोग रामदेव जी की रात जगाते हैं तथा भजन-कीर्तन, गीत, धूप-दीप करते हैं । इनके अनुयायी रामदेव जी की सौगंध को पक्की मानते हैं । यह बाबा रामदेव जी की आंण कही जाती हैं । खेतीहर और निम्न जाति के लोग अपने घरों में एक खुली ताक में संगमरमर अथवा जैसलमेर के पीले पत्थर के बने रामदेवजी के चरण (पगलिये) स्थापित करते हैं । इनकी चांदी व सोने के पत्र पर मूर्ति खुदवाकर, जिसे फूल कहते हैं, लोग गले में पहनते हैं। लोगों में विश्वास हैं कि रामदेवजी सारे रोगों के निवारक हैं, जिनमें कुष्ठ जैसे भयंकर रोग भी सम्मिलित हैं। रामदेव जी का घोड़ा “लीला” था । लोक देवता बाबा रामदेव जी का इतिहास

भाद्रपद शुक्ल द्वितीया ‘बाबे री बीज’ (दूज) के नाम से पुकारी जाती हैं तथा यही तिथि रामदेवजी के अवतार की तिथि के रूप में भी लोक प्रचलित हैं । रामदेव जी के मंदिरों को “देवरा” कहा जाता हैं । जिन पर श्वेत या पांच रंगों की ध्वजा ‘नेजा’ फहराई जाती हैं। रामदेवजी ही एक ऐसे लोग देवता हैं, जो एक कवि भी थे । इनकी रचित ‘चौबीस बाणियाॅं’ प्रसिद्ध हैं । डाली बाई रामदेवजी की अनन्य भक्त थीं । डाली बाई मेघवाल जाति की महिला थी जिसे रामदेव जी ने अपनी धर्म की बहन बनाया । जब बाबा रामदेव जी गांव-गांव में ‘जम्मा’ (रात्रि जागरण) करते थे तो डालीबाई उनके साथ ही रहती थी । डालीबाई ने रामदेव जी से एक दिन पूर्व ही उनके पास जीवित समाधि ली, जहां वहीं पर “डालीबाई का मंदिर” बनवाया गया। लोक देवता बाबा रामदेव जी का इतिहास

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