Hindu

राजा निर्मोही की कथा । राजेश्वरी सो नरकेसरी को भी गलत कर दिया

राजा और महात्मा की कहानी राजा निर्मोही की कथा

राजा और महात्मा की कहानी

Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!

एक दिन भूपति खेलते खेलते गए जंगल मंजार।प्यास लगी उस भूप को गए गुरु कुटीर के पास।।कहां से आए कहां जात हो दिसत हो अधभूप।कौन नगर में रहते हो किन राजा के पूत।।राजा कहीजे निर्मोही वो अदल करत है राज।उनका कहीं जो बालका ऋषि निश्चित पूछो आज।।कुमार आओ यहां बैठो हम नगरी को जाते।जो राजा निर्मोही है वां री पल में खबरों लाते।।  

नमस्कार दोस्तों कैसे हैं आप आशा करता हूं कि आप सकुशल होंगे आज हम आपको सुनाएंगे एक ऐसे राजा की कथा जो राजधर्म का पालन करते हुए भी निर्मोही था वैसे राजा का नाम तो कुछ और था लेकिन निर्मोही प्रवृत्ति और गुण धर्म के कारण राजा को निर्मोही उपाधि से संबोधित किया जाता था उस राजा के एक ही पुत्र था जिसका नाम निर्मल कुमार था वह राजकुमार निर्मल कुमार एक दिन जंगल भ्रमण के लिए जंगल में दूर तक गया राजकुमार को प्यास लगी तो उन्होंने इधर उधर पानी के लिए पता किया तो दूर एक छोटी सी कुटिया नजर आई राजकुमार ने सोचा शायद उस कुटिया में मुझे पानी मिल जाएगा ऐसा सोच कर वह राजकुमार उस कुटिया में गया राजकुमार ने देखा की एक पानी का घड़ा भरा पड़ा है जिस पर एक लोटा रखा है और उस कुटिया के अंदर एक महात्मा बैठे थे राजकुमार ने सोचा क्यों ना मैं पानी पीलू जैसे ही राजकुमार ने घड़े में से पानी का लोटा भरा वैसे ही कुटिया से आवाज आई रुको आप कौन है कहां से आए हो और क्या आपको यह नहीं पता कि बिना शिष्टाचार के आप पानी पी रहे हो आप तो बड़े ही अशिष्ट लग रहे हो आप तो बड़े ही संस्कार हीन लग रहे हो क्या आपके माता पिता ने आपको यह नहीं सिखाया कि एक साधु की कुटिया में कैसे जाना चाहिए और क्या शिष्टाचार रखना चाहिए आप हमारी कुटिया में बिना अनुमति के अंदर प्रवेश किया और बिना ही अनुमति के आपने पानी पिया क्या यही संस्कार दिए हैं आपके माता-पिता ने वेशभूषा और पोशाक से तो आप बड़े घराने के लग रहे हो लेकिन संस्कारों के आभूषण से आप रिक्त हैं इतना कुछ राजकुमार को सुना कर महात्मा चुप हुए तो राजकुमार निर्मल ने कहा हे महाराज इस धृतता के लिए हमें क्षमा कीजिए हम आपसे क्षमा मांगते हैं लेकिन यह जो शरीर है यह भी अपना नहीं है तो इस शरीर से जुड़ा हुआ कोई भी संबंध हमारा कैसे हो सकता है हे महाराज आप शरीरी है आप शरीर थोड़ी है आप दृष्टा है दृश्य कैसे हो सकते हैंआप जैसे महात्मा को यह ज्ञान हीन बातें शोभा नहीं देती हे महाराज हमें क्षमा करें लेकिन आप संसार का सबसे उत्तम काम भगवान का भजन कर रहे थे इसलिए हमने यह सोचा की ऐसे उत्तम कार्य में विघ्न डालना सबसे बड़ी मूर्खता होगी हे महाराज हमने आपसे बिना पूछे पानी इसलिए पिया राजा निर्मोही की कथा

लागी लागी क्या करें लागी नहीं लगार।
लागी दास कबीर के निकल गई आरंपार।।

महात्मा जी ने जब उसकी यह बातें सुनी तो सोचा की यह कोई आम इंसान नहीं है महात्मा जी ने राजकुमार से अपना परिचय पूछा की आप कौन है कहां से आए हो और क्या नाम है राजकुमार ने कहा हे महाराज मेरा नाम निर्मल कुमार है और मैं निर्मोही नगरी के महाराज निर्मोही का लड़का हुं महात्मा जी ने जब यह सुना की राजा प्रजा सब निर्मोही है तो उनको आश्चर्य हुआ की मैं घर संसार सब त्यागकर इस एकांत जंगल में कुछ भी परिग्रह नहीं करते हुए भी संपूर्ण रूप से निर्मोही नहीं हुं फिर वह राजा राजधर्म का पालन करते हुए कैसे निर्मोही रह सकता है जब महात्मा जी ने राजकुमार से कहां की एक व्यक्ति संपूर्ण राज्य को चलाता हुआ कैसे निर्लिप्त रहे सकता है मुझे विश्वास नहीं हो रहा है मै परीक्षा लूंगा राजकुमार निर्मल ने कहा जैसी आपकी इच्छा महात्मा जी राजकुमार निर्मल को वहीं पर बिठाकर यह कहकर कि जब तक मैं वापस नहीं आ जाता तब तक आप यही पर रुकना ऐसा कहकर महात्मा जी वहां से निर्मोही नगरी की और प्रस्थान करते हैं नगरी के बहार तालाब पर महाराज विश्राम करते हैं इधर से राजा की जो दासियां होती है वह पानी भरने तालाब पर आती है तो महाराज उनसे कहते हैं की:-

तू सुन चेरी श्याम की बात सुनाऊं तोय!
कुंवर ग्रासियो सिंघ ने आसन पड़ियो मोय!!

महात्मा जी दासियों से कह रहे हैं कि आपके नगर का भावी राजा जो राजकुमार है उसको जंगल में सिंह ने खा लिया है उसकी अस्थि पंजर मेरे कुटिया पर पड़े हैं जाकर आप अपने राजा से कह दो की उन अस्थि पंजर को ठिकाने लगा दे तब वे दासिया महात्मा जी से क्या कहती है:-

नहीं हम चेरी श्याम की नहि कोई हमरा श्याम!
कर्मो से ती मेल भयो सुनो ऋषिवर राम!!

दासिया महात्मा जी से कहती है की हे महात्मा जी आप तो साधु सन्यासी है आप यह भली-भांति जानते हैं की यहां पर जितने भी संबंध है वह सब कर्मों से बनते हैं यहां पर ना ही तो कोई किसी का मालिक है ना ही कोई किसी का नौकर है कर्म प्रधान है पूर्व जन्मों के कर्म संस्कार के आधार पर हम सब एक दूसरे से जुड़े हुए हैं इसलिए हे महाराज आपके मुखारविंद से यह अज्ञान भरी बातें शोभा नहीं देती है महात्मा जी तो पहली बार में ही निरुत्तर हो जाते हैं फिर महात्मा जी वहां से चलकर आगे बढ़ते हैं और उस राजकुमारी के पास जाते हैं जो उस राजकुमार की पत्नी थी वहां पर जाकर महाराज उस राजकुमार की पत्नी को कहते हैं कि:-

तू सुन चतुर सुंदरी अबला यौवनवान ।
देवी वाहन तेरो दिल हन्यो तेरो श्री भगवान।।

महात्मा जी उस राजकुमार की पत्नी को यह कह रहे हैं कि हे नई नवेली दुल्हन तेरा जो पति परमेश्वर है उसको (देवी के वाहन) सिंह ने खा लिया है और उसकी अस्थि पंजर मेरी कुटिया पर पड़े हैं जाके अपने राजा रानी से कहकर उन अस्थि पंजर को ठिकाने लगा दे फिर वह राजकुमार की पत्नी महात्मा जी से क्या कहती है की:-

तपस्या पूर्व जन्म की क्या जानू क्या योग।
प्रारब्ध का मेल था अब किस विद् होय संजोग।।

राजकुमारी महात्मा जी से कहती है की हे महात्मा जी मेरे पूर्व जन्मों की तपस्या में इतना ही मिलन लिखा था वो हो गया अब मेरी तपस्या में कर्मों के अनुसार मेल अगर नहीं है तो संयोग कैसे हो सकता है इसलिए इसमें चिंता करने से क्या हासिल होगा महात्मा जी वहां से आगे बढ़ते हैं और राजकुमार की मां के पास जाते हैं और उनसे कहते हैं की:-

माता तुमसे विपत्ति अति सुत खायो मृगराज।
मैं भी भोजन नहीं कियो इस मृत्यु के काज।।
महात्मा जी राजकुमार की मां से कहते हैं कि हे माता मैं जो समाचार आपको सुनाने आया हूं वह अति दुखद है किंतु मुझे सुनाना भी जरूरी है इसलिए आप अपने बेटे के अस्थि पंजर मेरे आसन पर पड़े हैं जाकर अपने राजा से कह दो कि उन अस्ति पंचर को ठिकाने लगा दे तो माता महात्मा जी को क्या उत्तर देते हैं की:-
एक वृक्ष डाल घने पंछी बैठे आए।
पो फ़ाटी प्रभात भई उड़ उड़ चंऊदीश जाए।।
हे महाराज जी एक वृक्ष होता है उसके बहुत सारी टहनियां होती है उस पर जब शाम होती है तो पंछी आकर वहां पर बैठते हैं जैसे ही सुबह होती है वह सब पंछी उड़ उड़ कर अपनी-अपनी दिशाओं में चले जाते हैं अगर वह वृक्ष उन पंछियों से मोह करेगा तो वह दो-तीन दिन मैं ही मर जाएगा इसलिए इस संसार में जो आया है उसे जाना ही होता है अब किसको कैसे जाना है वह उसकी करम गति तय करती है महात्मा जी वहां से आगे चलकर राजा के पास जाते हैं और राजा से कहते हैं कि:-
राजा मुख से राम कहो पल पल जाए घड़ी।
सुत खायो मृगराज ने देह मेरे आसन पड़ी।।
हे राजन मुख से राम कहो क्योंकि जो समाचार मैं सुनाने वाला हूं वह अति भयानक है इसलिए आप राम नाम जप कर थोड़ा धैर्य धारण करें हे राजन आपका उत्तराधिकारी प्रजा का भावी राजा जो राजकुमार है उसको व्यग्र सिंह ने खा लिया है और उसके अस्ति पंजर मेरे आसन पर पड़े हैं अपने सिपाहियों को भेजकर उन अस्थि पंजर को पंचवीलीन करें फिर राजा महात्मा जी को क्या उत्तर देते हैं की:-
तपसी तुम क्यों तप छोड़ियो मुझे पल भर का नहीं शौक।
वासा जगत सराय है सब मुसाफिर लोग।।
कि हे महात्मा जी आप इतना अनमोल कार्य जो भगवत भक्ति होती है भगवत भजन होता है उसको छोड़ कर आप इस संसार की मोह माया में फस कर इतनी दूर अपना अनमोल समय बर्बाद करने के लिए क्यों आए आपको तो इस बात का ज्ञान है:- राजा निर्मोही की कथा
आया है सो जाएगा राजा रंक फकीर।
कोई सिंहासन चढ़ चले कोई बंध्या जात जंजीर।।
कि इस संसार में जो आया है वह जाएगा क्योंकि यह संसार एक धर्मशाला के समान है फिर शौक किस बात का पर मुझे इस बात का खेद जरूर है की आपने अपना अमूल्य समय नष्ट क्यों किया आशा करता हूं कि यह कथा आपको अच्छी लगी होगी ऐसी ही रोचक कथाएं पढ़ने के लिए विजिट करिए हमारी वेबसाइट दोस्तों इस कथा का मोरल शिक्षा यह है कि व्यक्ति को घर संसार में रहते हुए उनसे कैसे निर्लिप्त रहा जाए और भगवत भक्ति के लिए कोई घर बार छोड़ना आवश्यक नहीं है आप अपने ध्यान को केवल कर्तव्य मार्ग पर केंद्रित कर इस संसार में रहते हुए भी उनसे अलग और अपने ईस्ट परमात्मा में लगन लगा कर रह सकते हो। 

आशा करता हूं मित्रों यह कहानी आपको पसंद आई होगी अगर यह कहानी आपको पसंद आई है तो लाइक कमेंट और शेयर जरूर करें और हां दोस्तों अगर आपके पास कोई भक्ति ज्ञान से संबंधित कोई सुझाव हो कि जिस पर मुझे लिखना चाहिए तो आप जी मुझे जरूर बताएं। धन्यवाद !

मित्रों ऐसी कथा कहानियां भजन दोहे छंद सवैये आदि सुनने के लिए आप हमारे यूट्यूब चैनल को भी 【 सब्सक्राइब जरूर 】 करें 

अन्य जानकारी पढ़ने के लिए निचे दिए गए समरी पर क्लिक करें।

आध्यात्मिक ज्ञान प्रश्नोत्तरी    कवि गंग के दोहे    गिरधर कविराय की कुंडलियां     रसखान के सवैया     उलट वाणी छंद    गोकुल गांव को पेन्डो ही न्यारौ     ब्रह्मा विष्णु महेश की उत्पत्ति कैसे हुई       राजा निर्मोही की कथा      गज और ग्राह की कथा      चौबीस सिद्धिया वर्णन      सच्चे संत के क्या लक्षण है?   धर्म क्या है?    शराब छुड़ाने का रामबाण उपाय     बलात्कार रोकने के कुछ उपाय      आत्मबोध जीव ईश्वर निरूपण      शंकराचार्य जी का जीवन परिचय      सती अनुसूया की कथा     अत्रि ऋषि की कथा     भक्त प्रहलाद की कथा     यमराज की कथा   सनकादि ऋषियों की कथा     देवर्षि नारद की कथा     वशिष्ठ ऋषि की कथा    भृगु ऋषि की कथा     महर्षि ऋभु की कथा     गोस्वामी समाज का इतिहास     कपिल मुनि की कथाा     कश्यप ऋषि की कथा      आत्महत्या दुखों का निवारण नहीं

bhaktigyans

My name is Sonu Patel i am from india i like write on spritual topic

6 thoughts on “राजा निर्मोही की कथा । राजेश्वरी सो नरकेसरी को भी गलत कर दिया

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page