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पढ़ाई कैसे करें । विद्यार्थी के पांच लक्षण क्या है । अर्थ सहित

पढ़ाई कैसे करें

पढ़ाई कैसे करें
पढ़ाई कैसे करें

आइए दोस्तों जानते हैं विद्या अध्ययन व शास्त्र अध्ययन के सर्वोत्तम उपादान कौन-कौन से हैं व हमारे जीवन में कितने उपयोगी सिद्ध होंगे आइए जानते हैं। पढ़ाई कैसे करें

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काक चेष्टा बको ध्यानं, श्वान निद्रा तथैव च ।
अल्पहारी गृह त्यागी, विद्यार्थी पंच लक्षणं ॥

कौवे के समान स्पूर्ति बगुले के समान ध्यान कुत्तेेे के समान अर्ध निंद्रा विद्यार्थी को कम आहार लेना चाहिए और गृह कार्य का त्याग करके केवल विद्या पठन पाठन पर ही ध्यान देना चाहिए यही विद्यार्थी के पंच लक्षण कहे गए हैं। पढ़ाई कैसे करें

ज्ञान द्वारा ही अभिमान मदादि विकारों का नाश 

यह वेद को ज्ञान सुजानन के अभिमान मदादि विकार विनाशै।
पुनि के चित्त निचन को बहु बोध मद्दे अभिमान विकार विनाशै।।
अँश अमृत जाको हलाहल ह्वे नही औखद वेद नही कछु तासै।
जन पात्र अपात्र को शोध के बोध करै बुद्धिमान जु बोध प्रकाशे।।

भावार्थः ज्ञान ही मनुष्य के मद एवं अभिमान को हरण करता है। यदि ज्ञान द्वारा फिर भी मद में रहना हो तो उसका कोई वेद नहीं है। क्योंकि अमृत ही जिसे विश्व के समान हो उसकी चिकित्सा कैसे हो सकती है। पढ़ाई कैसे करें

पढ़ाई करते समय क्या त्यागें 

मैथुन शयन आहार पाठ समय तीनो तजै।
पाठ सहित पुनि चार तजै साँझ में धीर जन।।

भावार्थः वेद शास्त्रों का पठन करते समय क्रमशः रति भोग, ज्यादा सोना, ज्यादा खाना, वर्जित है। एवं संध्या के हो जाने पर मैथुन, संयन, आहार, एवं विद्याध्ययन करना यह चारों ही वर्जित है। पढ़ाई कैसे करें

ये छः लोग विद्या नही पढ़ सकते पढ़ाई कैसे करें

सुखी व्याधि आलसी रसिक कुमति बहु सोय।
तिहि अधिकार न शास्त्र को षट दोषी जन जोय।।

भावार्थः सुखी, रोगी, आलसी, कामि, मंद बुद्धि एवं पर निंदा करने वाला ये छः मनुष्य नहीं पढ़ सकते।

बचपन ही सही समय है वविद्याध्ययन का

कछु घृत स्नेह न लवण तंदुल तक्र धाम न दाम।
या चंचरी जिहि चित चिंता दाम की दुख धाम।
भई नाश प्राग अघाम की बुद्धि मूढ़ मोह्यो बाम।
अधिकार नहीं तिहि शास्त्र को सो भजै नित श्री राम।।

भावार्थः अतीव बुद्धिमान पुरुष की भी दरिद्रता आ जाने पर बुद्धि मारी जाती है, क्योंकि घी, तेल, चावल, दही, ईंधन आदि की चिंताए उसे सताया करती है। पढ़ाई कैसे करें

मंदबुद्धि व्यक्ति को शास्त्र ज्ञान समझ नहीं आता

जिहि निज मति कछु नाही शास्त्र सु ताको क्या करें।
लोचन बिना जै आहि दर्पण ताकू क्या करें।।

भावार्थः जिसको अपनी अकल नहीं शास्त्र उसका क्या कर सकता है, देखिए नेत्रहीन पुरुष को दर्पण क्या लाभ पहुंचा सकता है।

इन तिथियों को नही पढ़ना चाहिए 

बीच अष्टमी मीच गुरु अष्ट षष्टमी शिष्य।
पंच दशी गुरु शिष्य मरै एकम पाठ अशिष्य।।

भावार्थः अष्टमी पढ़ाने वाले गुरु को मारती है, चतुर्दशी शिष्य को पूर्णिमा दोनों को मार देती है, प्रतिपदा को भी पढ़ना उचित नहीं। पढ़ाई कैसे करें

विद्योपार्जन के ये दस साधन पढ़ाई कैसे करें

गुरु पुस्तक भूमि शुभग प्रीतम अवर सहाई।
करही वृद्धि विद्या पठि बहिर पाँच गुण गाई।।
शास्त्र प्रीति शुद्ध बुद्धि भक्ति उधम रोग ना देह।
करहि वृद्धि विद्या पठी पांचातर गुण ऐह।।

भावार्थः विद्या के पढ़ने में बाहर के तथा अभ्यांतर के पाँच पाँच साधन है। उनमें बाहर के तो आचार्य, पुस्तक, सहायक, निवास, विद्या प्रेम, इसी प्रकार अभ्यांतर के निरोगीता, बुद्धि, विनय, उधम, शास्त्रों में प्रेम।

विद्योपार्जन के अन्य साधन

गुरु सेवा वा द्रव्य करी विद्या विद्या होय।
तृतीय वृद्धि विद्या करहि चौथो हेतु न कोय।।

भावार्थः गुरु की सेवा करना बहुत सा धन खर्चना अथवा विद्या से विद्या बदलना यहीं विद्या पढ़ने के तीन साधन है चौथा कोई साधन नहीं। पढ़ाई कैसे करें

ये अखुट निधियां है इन्हें कोई चुरा नही सकते

विद्या उद्यम शिल्पता पंडित संग्रह मीत।
अक्षय न भय तश्कर इन्हें पंच निधि सुख नित।।

भावार्थः विद्या, परिश्रम, कला (हूनर) पांडित्य, मैत्री, यह पांच ऐसी निधिया है जिन्हें ने कोई चोर चुरा सकता न लुटेरा लूट सकता नहीं यह क्षय होती है।

विद्या ही असली धन एवं बन्धु है

गुप्त प्रच्छन अतुल्य धन विद्या नर वपु जान।
विद्या यश सुख भोग दे विद्या गुरु गुरु मान।।
विद्या बन्धु परदेश में विद्या देव विशेष।
पूज्य नृपो करि अघहति विद्या बिना पशु देख।।

भावार्थः विद्या मनुष्य का सुंदर रूप है, छुपा हुआ खजाना है, विद्या भोग करती है, यस एवं सुख को देती है, विद्या गुरुओं का भी गुरु है, विदेश में तो विद्या ही भाई बंधु है, विद्या परम देवता है, राजा लोगों में इसी की पूजा होती है, धन की नहीं विद्या रहित मनुष्य पशु है। पढ़ाई कैसे करें

पशु एवं मनुष्य में क्या भिन्नता

निन्द्रा भोजन भोग भय ये पशु पुरुष समान।
नरन ज्ञान निज अधिकता ज्ञान बिना पशु जान।।

भावार्थः भोजन, निंद्रा, भय, एवं मैथुन यह चारों बातें मनुष्यों तथा पशुओं में समान रूपेण होती है। किंतु मनुष्यों में केवल ज्ञान ही अधिक है। जिस मनुष्य में ज्ञान भी ने हो वह पशु तुल्य है।

ये लोग मनुष्य के रूप में पशु समान है

धर्म शील गुण दान तप विद्या बिना जै जंत।
मृत्यु लोक क्षिति भार ते नर वपु मृग विचरन्त।।

भावार्थः जिंद मनुष्यों में विद्या तप दान श्रेष्ठ स्वभाव गुण धर्म इनमें से कुछ भी नहीं हो वे मनुष्य नहीं वे तो मृत्यु लोक में पृथ्वी का भार होकर मनुष्य के रूप में पशु विचर रहे हैं। पढ़ाई कैसे करें

मनुष्य से उत्तम है पशु मृग

स्वर सिर त्वक मुनि पलद जन श्रृंग योगी दृगनार।
पंच गुण मृग षट दोष नर नरते हरिण उद्धार।।

भावार्थः अनुदार पुरुषों से तो पशु मृग भी उत्तम है। जो अपना सिर संगीत को अर्पित करता है, मांस मानवों को, खाल ब्रह्मचार्यों को, सिंग योगियों को, एवं नेत्र स्त्रियों के प्रति अर्पण कर देते हैं।

अंधा क्या देखे आरसी में

पुरुष अशास्त्री क्या लखे गुण दोषन की संध।
रूप भेद अधिकार को क्या प्राप्त ह्वे अन्ध।।

भावार्थः शास्त्रों के न जानने वाला मुर्ख गुण दोषों का क्या विभाग कर सकता है। क्योंकि सुरूप कुरूप परखने का अंध पुरुष को क्या अधिकार है। पढ़ाई कैसे करें

सबकी यथास्थान पूजा होती हैं

मुग्ध पूज्य निज धाम में प्रभु पूजित निज नग्र।
भूप पूज्य स्वदेश में पूजित गुणी समग्र।।

भावार्थः मूर्खों की अपने घर में पूजा होती है, चौधरी अपने गांव में पूजा जाता है, राजा अपने देश में किंतु विद्वान की सर्वत्र पूजा होती है।

आपके पास अगर विद्या नही है तो आप

रूप द्रव्य यौवन सहित सुकुल जन्म बहु बंध।
विद्या बिन शौभत नही ज्यों टेसू बिन गंध।।

भावार्थः सुंदर रूप, युवावस्था, संपन्न कुल में जन्म इत्यादि गुण भी जिसमें हो किंतु विद्या न हो उस पुरुष की कही शोभा नहीं होती। जैसे की गंध हीन टेसू के पुष्पों को कोई नहीं पूछता।

देखिये विद्वान पुरूष की शोभा

अलंकार षट भेष बिन यधपि होईं विरूप।
शौभत संतन सभा स्तिथ जन विद्वान अनूप।।

भावार्थः यद्यपि विद्वान पुरुष रूपहीन, धनहीन, वस्त्रआभूषणों से अलंकृत ना भी हो तो भी उनके सज्जन पुरुषों की सभा में प्रविष्टि होने पर विद्या के द्वारा उनकी अधिक पूजा होती है। पढ़ाई कैसे करें

बिना व्याकरण का अध्ययन व्यर्थ है 

शब्द शास्त्र को त्याग चहें अध्यन पर निगम।
सो पग गिनहि नाग निशितम जलमो चिर रम्यो।।

भावार्थः जो अज्ञ व्याकरण पढ़ना छोड़कर अन्य शास्त्र पढ़ना चाहता हैं वह तो मानो अंधेरी रात में पानी में चल रहे सांप के पांव गिन रहा है।

बिन अभ्यास विद्या कैसी

विष विद्या अभ्यास बिना भोजन गरल अघाई।
शुभ को संग दरिद्री विष वृद्ध नारी विष गाई।।

भावार्थः अभ्यास न करने पर शास्त्र विष हो जाते हैं, अजीर्ण दशा में भोजन विष है, निर्धनों की मित्रता तथा वृद्ध पुरुषों के लिए तरुणी स्त्री विष के समान है। पढ़ाई कैसे करें

विद्या हमे क्या देती है और क्या करती है

मातावत रक्षा करें पिता जीवै हितकार।
करै नारी ज्यों प्रेम बहु शोक टार सुखकार।।
विद्या बांधव ज्यों सकल कारज देत संहार।
दायक कीरति द्रव्य की ताते पढ़े उद्धार।।

भावार्थः विद्या माता की भांति रक्षा करती है, पिता की भांति हित करती है, पत्नी की भांति शोक दूर करके अभीरमण कराती है, सब प्रकार के भाई बंधुओं के समान कार्य तथा सुख संपन कराती है, संसार में अतुल कीर्ति एवं गौरव को बढ़ाती है। पढ़ाई कैसे करें

विद्या में कैसे वृद्धि होती है पढ़ाई कैसे करें

सहस गुणा विद्या बढ़े पुनः पुनः अभ्यास।
रसनाग्रे निशदिन बसे ज्यों जल निचे बास।।

भावार्थः सौ बार के अभ्यास करने से विद्या सहस्त्र गुणी हो जाती है। वह जिव्या के अग्रभाग में इस प्रकार आ जाती है। जैसे पानी नीचे के भाग में चला जाता है।

विद्या अमृत समान है लेकिन खल के लिए

शास्त्र कर मद हत सुजन खल को मद उपजंत।
ज्यों दृग भानू प्रकाश ह्वे उलू अन्ध करंत।।

भावार्थः शास्त्र अभिमान को दूर करने वाले होते हैं। किंतु खल पुरुषों को अभिमानी कर देते हैं। जैसे सूर्य आंखों का प्रकाशक तेज सबको देता है, किंतु उल्लू को अंधा बना देता है। पढ़ाई कैसे करें

विद्वान पुरुषों की वाणी आभूषण तुल्य है 

सब भूषण में शुभ भूषण है यह वेद मयी इक वाणी उद्धारा।
नर को वही सुंदर बेग करै वपु सार जिसे फल देवहि सारा।
चतुरानन चौदह भौन रचै पर ना विद्या सम ताहि मंझारा।
नर ताते सदैव पढ़ो विद्या ह्रदयाल चहें जु पदार्थ चारा।।

भावार्थः पुरुष केयूर (अंगद) एवं चंद्रकांति के समान हार आदि से सुशोभित नहीं होते और न उन्हें अभ्यंग (साबुन) स्नान चंदन लेप पुष्प आदि शोभित करते हैं एवं न उन्हें कुंचित बालों का सवारना शोभा देता है, अन्य आभूषण आदि तो क्षयशील है। वाणी भूषण निरंतर अक्षय है।

इक्कीस दोहे सोरठे तीन सवैये तीन।
इक शंकर अठबिस वृत चित वृति करहि महिन।।

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