गंगा व्यावला राजस्थानी भजन । गंगा का विवाह कैसे हुआ था ?
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गंगा व्यावला राजस्थानी भजन । गंगा का विवाह कैसे हुआ था ?
मित्रों आज मैं आपको गंगा माई का ब्यावला जो कि कोई व्यक्ति विशेष के गुजर जाने के बाद उसके 12 दिन जो गंगा जाकर वापस आते हैं और पीछे जो रात के समय जागरण होता है उस में गाया जाता है वह मैं यहां पर लिख रहा हूं आप इसे एक बार जरूर पढ़ें साथ ही कोई सुजाव हो तो नीचे कमेंट बॉक्स में जरूर लिखे आपका मार्गदर्शन हमारा शौभाग्य है। गंगा व्यावला राजस्थानी भजन W N 9929208006
जपो गंगा माई रा जाप कलंक ले कोने करो।
गंगा में करें स्नान मुकुट गंगा खळ हले।
विनती करूं कर जोड़ कृष्ण हेलो सांभलो।।
1 सिमरो शरद महेश गणपत जी ने पूज लो।
हृदय वसो नी हमेश अक्षर दीजो उजलों।।
2 इंदिरा पुरी रे माई सग्लारे देव साथ में।
अप्सरा सभा में आए नृत्य रचियो रात में।।
3 गंगा माई सूनी रे आवाज बाजा अनहद वाजिया।
सुरा पुरा ऋषि मुनि नाग जोगिड़ा पल सूं जागिया।।
4 अधिपति राजा नहुष गंगा जी ने निरखियो।
सुरपति दिनों श्राप पर तिरीया ने निरखियों।।
सप्त ऋषि किसी कुसंगत के परिणाम स्वरूप खेल-खेल में वशिष्ठ मुनि की गाय को एक पहाड़ की गुफा में बंद कर देते हैं जब इस बात का पता वशिष्ठ मुनि जी को लगता है तो फिर वह उन गाय को गुफा में डालने वालों को श्राप दे देते हैं जब श्राप का पता लगता है सप्तर्षियों को तो फिर वह वशिष्ठ मुनि जी के पास में आते हैं और कहते हैं कि गुना तो किसी एक ने किया और आपने श्राप हम सबको दे दिया इसलिए हे प्रभु हमारा निवारण करो। गंगा व्यावला राजस्थानी भजन
5 गोरी वशिष्ठ मुनि की गाय सीमाडे चरवा जावती।
आंठों ही ऋषि वर आए गुफा माही गालदी।।
6 अवधूत बोलियां आए आवागमन में आवजो।
उदरत भजन गमाए लख चौरासी जावजो।।
7 सातमो रिसीवर आय वशिष्ठ मुनि रे बारणे।
नीति सूं भाखो न्याय किया गुनाह रे कारणे।।
8 हरि जनो री हाट कुसंगी फल चाकिया।
गिया गंगा रे द्वार सारा ही दुखड़ा भाखिया।।
स्वर्ग में जब राजा नहुष ने गंगा जी को कुदृष्टि से देखा तो ब्रह्मा जी ने उसको जो श्राप दिया था और साथ में गंगा जी को भी श्राप दिया था उसके परिणाम स्वरूप राजा नहुष का पुणे सतारा शहर के अंदर एक विलोचन सेठ के घर में नेमीचंद नाम करके उस राजा नहुष का जन्म होता है। गंगा व्यावला राजस्थानी भजन
9 पुना सातारा रे माई विलोचन एक वाणीयो।
लिखिया नहुष वाला लेख विधाता ने तौनिया।।
10 नेमो धरायो नाम पंडित वाचे पोतिया।
तैड़ियों शहर तमाम मेहुड़ा वर्षे मोतिया।।
11 बाणियो आदी उमर रे माई परणीयो नार पदमनी।
सांवरा एक पुत्र री आस धन रो दाता कौन धनी।।
12 बाणियो सुतो महलातो रे माई सपने में मिलीयो सांवरों।
बाणिया एकारू गंगा जी ने जाए धन नहीं है कामरो।।
13 झटके खुल गई नींद सपने में मिलियो सांवरो।
दर्शन दिया गोविंद लुल लुल लागे पाय रे।।
14 दाता धन है अपरंपार धन री भरदु थैलिया।
पुत्र बिना सुनो परिवार रखवालो क्यों नहीं भेजीयो।।
15 बनिया स्वार्थ तनो संसार माया नहीं हाले संग में।
थे जाओ हरी रे द्वार नहा जो निर्मल गंग में।।
16 सेठानी सपने री है बात मने कीयो सांवरे।
आज्ञा दिनी करतार गंगाजी जानो आप रे।।
नेमीचंद सेठ को रात में स्वप्न में घटी घटना का उल्लेख वह अपनी पत्नी के सामने करता है और उसकी पत्नी भी उसके सपने में घटी घटना को सुनकर के अपने पति का साथ देती है और कहती है कि हे पति देव यह तो बहुत ही उत्तम बात है कि भगवान ने हमें ऐसा आदेश दिया है चलो मैं भी चलती हूं आपके साथ फिर सेठ और सेठानी दोनों गंगा हरिद्वार के लिए जाने की तैयारी करते हैं। गंगा व्यावला राजस्थानी भजन
17 खाविंदो धनगड़ी धनभाग संजोड़े हालो साथ में।
नावो नावो निर्मल नीर न्हाया कटसी पापरे।।
18 बाणियो हालियो बाजारा रे माय धौला धोरी मोलवे।
करसा कर नी थारे धवला रो मोल रुपया कतरा बोल रे।।
19 बाणियो लियों कर मॉल जूतोड़े गाडे लावियो।
रुपया दीना हजार घरों दिस हालियो।।
20 बनिये गाड़ी ने किनी तैयार माया भर दी मौखली।
हीरा पन्ना लीना अपार मोरो लीनी रोकड़ी।।
21 हालियो गंगा जी ने जाए तीरथ करवा धाम रो।
करजो मोरी सहाय रक्षा मोरी राखजो।।
22 सांडियो गंगा जी ने जाए वृंदावन में जाए पड़े।
भगवत भेजियो कालो वाह डावो धोरी ढह पड़े।।
23 वाणीयो सुतो भाड़ोंतियो रे बीच माजन जाए न एकलो।
वन में बोले हैं श्याल सेठानी केवे सांबलो।।
24 सरगोती उतरी गाय कृष्ण वणिया ग्वालिया।
वोनियो फिर फिर देखे जाए धोरे चढ़ने भालियों।।
25 डहले डहले चरें गाय धोरों में वाजे वंशली।
वोनियो लुल लुल जोड़े हाथ सूरत लागे सोवणी।।
26 ग्वालिया तू है धर्म रो वीर बेलिया बतादे थारी बाट में।
जानो म्हारे हरि रे द्वार गाडो अटको वाट में।।
27 मैं तो चारों सब गाय बैलिया मारे कोयनी।
तुम खुद ही देखो जाए वह तो ले जाओ जोयने।।
28 बानीयो आज्ञा लिनी आप गाया माही खोज करे।
कृष्ण बण गया सांड बाणिया से बात करें।।
जब सेठ और सेठानी घर से रवाना होते हैं और बराबर हरिद्वार और पुणे सतारा के बीच पहुंचते हैं तो उस सेठ की बैलगाड़ी में से एक बैल बीमार हो जाता है और वह बैल वही मर जाता है अब सेठ जी इधर उधर बैल को ढूंढने का प्रयत्न करते हैं उधर भगवान गाय चराने वाला ग्वाला बनकर आते हैं और सेठ से बातचीत करते हैं गंगा व्यावला राजस्थानी भजन
29 बानिया वचन देवे नी बारंबार पन में पांति राखजे।
पल में पोहचावु थारो भार संग में मारे चालजे।।
30 सांडियो जूतों सत रे प्रयाण ढलती माजल रात में।
उगो कासबजी रो भाण आय गयो प्रभात रे।।
31 देव तणा खुलिया द्वार साधु जन सेवा करें।
झालर तणा वाजे झंकार सुर नर सेवा करें।।
32 वाणिया नावे गंगाजल नीर धर्म कीनौ बोत रे।
भूल गयो सांडिया रो नाम पन री वेला पोतरे।।
33 बाणियो तीर्थ किना तमाम गंगा जी के घाट रे।
दो दिन लिया विश्राम हालियो घरा री वाट रे।।
34 हालियो घरों ने जाए आडो ऊबो सांडियो।
आडो ऊबो आय रस्ता में झगड़ो माडियो।।
35 साड़ियां धर्म कीयो भरपूर कौड़ी नहीं राखी पास में।
इनमें रत्ती नहीं कुड़ सच बोलूं साथ में।।
36 वाणीया चतुराई लीनी कोम वचन नी पालियों।
इणने लागलो श्राप वेजो वन रो स्याळीयो।।
37 सेठानी जावो घरौ री व्हाट मैं नही चालू संग में।
मैं जाऊ हरि रे द्वार न्हाउ निर्मल गंग में।।
38 खामदो हालो हमारे साथ सोरा राखु महल में।
सेवा करूं दिन रात रेहवु थारी टहल में।।
39 सेठानी करणी आपो आप ऑडी आवे आपरी।
जपजो अलख जी रा जाप संतो री करजो चाकरी।।
40 सियालीयो गियो गंगा जी री घाट साहिब रा जप करें।
खावे खावे फल कंद और घाट पर गीवन करें।।
41 अप्सरा आई गंगा जी री घाट चहुं दिश ने भालियो।
पंछी दिया उड़ाय सन्मुख बैठो स्यालियो।।
42 भाग भाग वनरा श्याल घर जावो आप रे।।
गंगा देशी परों श्राप माने लागे पाप रे।।
43 संईया सुनो हमारी बात हुकुम एक हर रो चले।
मने नैन दिया करतार थोरो पलियो नाही पले।।
44 गंगा धरीयो शक्ति रो रूप जल में मंजन करें।
स्यालियो निरखत है स्वरूप गंगा रे सन्मुख फिरे।
45 भाग भाग वन रा स्याल बाणो से उबरे।
मारी दृष्टि ऐसी बाल जीव जीव सब जल मरे।।
46 गंगा थारा हार डोर नख नैन नजर भर निरखिया।
बोलत मुखड़े रा बैण सारा ही परखिया।।
47 जंबूक मुख से बोल संभाल ऐडी लिवना क्यों करें।
गंगा बसे शिव रे शीश भाग बिना नाही मिले।।
48 स्यालियो हालियो कैलाशों रे माय शंकर जी री सेवा करें।
जम्बु जोगी लिया जगाय मुकुट पर पुष्प धरे।।
49 जम्बु मांगे नी वरदान कारज थारो सब सरे।
होए मनोरथ काम वचन मारो नहीं फिरे।।
50 जम्बु हर आगे जोड़े हाथ मन माही नेहचो धरे।
वचन दिया शिवनाथ ए कूड़ा कुण करें।।
51 वर मांगू जगदीश चरण आयो देव रे।
गंगा करो बक्शीश चंद्र सिररे सेवरे।।
52 जम्बु ओ वर देनी छोड़ दूजो मांगरे।
अड़सठ तीर्था रो मोड़ गंगा दिया नाहीं सरे।।
53 चाल चाल मृग डाव रूप रज माही रल्ले।
सती थू सेवरो बोंध पुरुष थारे पौने पड़े।।
54 गंगा हर हर पी आप वचनों ऊं गंगा मिले।
शक्ति परो देसी श्राप मारु टालियों नाही टले।।
55 जम्बु मुख से बोल संभाल ऐसी लिविना क्यों करें।
थू है जात रो सियाल गंगा थने नी वरे।।
56 गंगा लेख लिख्या करतार टालियां नाही टरे।
मारे जेड़ों भरतार जुग में जोयो नाही मिले।।
57 गंगा धरियो शील अवतार ऊंची उड़ी आकाश में।
स्यालियो धोडियो धरण पर लार पूगा शिवि रे पास में।।
58 गंगा हर आगे जोड़े हाथ सुनो शिव एक बात रे।
शक्ति ने स्याल रे हाथ किकर दीन्ही नाथ रे।।
59 गंगा वचने बंधियों संसार करो मत कल्पना।
वचन उतारो पार पासा नाहीं पलटना।।
60 प्रगटियो पूर्वलो पाप एड़ा मारा भागरे।
इणने लागजो गंगा रो श्राप ठुटो हो जो सागरो।।
61 गंगा चड्डी आपने द्वार शंकर जी से बिछड़े।
लकड़ों चढ गयो लार गंगा द्वारे उतरे।।
62 आया ऋषिवर चार आसन दीनो आय रे।
करणी गंगा रे घाट जपना हरी रा जाप रे।।
63 तपीया ऋषिवर चार सागवान रे साथ रे।
उठ चले प्रभात जोड़ी झंडा हाथ रे।।
64 गमन करे ऋषिराज चौकस करने देखियो।
माला निर्फल जाए ऐड प्राणी नी देखियो।।
65 पहले करी रे पिछोंण दुजोड़ों ध्यान धरे।
तिजोड़े दिया तंत छोण चोतोड़ो चेतन करें।।
66 रूप गुण प्रयोण खवाजी खिजमत करें।
ऋषिवर जोनीया चार चेतन री जान चढे।।
67 श्री सीता पति राम गणपत जी ने ध्याविया।
सुर तैतिसों तमाम गंगा द्वारे आविया।।
68 आला लीला बांस कटाय तोरण तुरंत घड़े।
ऋषिवर जोनीया चार चेतन ओटे तोरण चडे।।
69 माणक चौक पुराव ब्रह्मा जी वेद भणे।
सखिया मंगला गाय चेतन ओटे फेरा फिरे।।
70 दहेज दियो भरपूर आदो हेम दोन करें।
लैखो लियो करतार इक्कीसों ऊपर एक धरे।।
71 पदमी देवो री देराय शांतनु नाम धरे।
गढ़ हस्तिनापुर रे माई जुगो जुग राज करें।।
72 पुत्र पहलो पछाड़ दूजो तर हरे।
पुत्र बीज उपचार तो थोड़ा सा रंग चढ़े।।
73 पुत्र एक पछाड़ दुजोडो तर हरे।
पुत्तर तीजो पछाड़ चौतोड़ो सर्ग चढ़े।।
74 पुत्तर पोचमो पछाड़ छटोड़ों चौकी करें।
पुत्र सातमो पछाड़ आटमो उबरे।।
75 आटमो लियो उबार वचनों में वेरो पड़े।
सुण राजा चेतोन अब कियों हर करे।।
76 गंगा शक्ति रो रूप रहवे सिरमोड़ रे।
वेदव्यास कर जोड़ अड़सठ तीर्थ उबरे।।
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मुझे उम्मीद है मित्रों की यह गंगा व्यावला राजस्थानी भजन आपको जरूर पसंद आया होगा और इसमें अगर आपको कहीं कोई त्रुटि लगती है तो आप अपने अनुभव को नीचे कमेंट बॉक्स में लिख कर भेज सकते हो। धन्यवाद !
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