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कृष्ण भक्त सखा गोपकुमार

कृष्ण भक्त सखा गोपकुमार

कृष्ण भक्त सखा गोपकुमार
कृष्ण भक्त सखा गोपकुमार

यत्पादपांसुर्बहुजन्मकृच्छ्रतो धृतात्मभिर्योगिभिरप्यलभ्यः स एव यदूग्विषयः स्वयं स्थितः किं वर्ण्यते दिष्टमतो व्रजौकसाम् ॥

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( श्रीमद्भा० १० । १२ । १२)

व्रजके गोप, गोपियाँ, गोपकुमार, गायें, वनके पशुपक्षी आदि सभी धन्य हैं। जिनकी ध्यानमयी मूर्ति एक क्षणको हृदयमें आ जाय तो जन्म-जन्मान्तरके पाप-ताप भस्म हो जाते हैं और जीव कृतार्थ हो जाता है, जिनकी चरण-रज इन्द्रिय एवं मनको संयमित करके ध्यानधारणादि करनेवाले योगियोंके अनेक जन्मोंकी कठोर साधनाके पश्चात् भी दुर्लभ ही रहती है, वे स्वयं जिनके सम्मुख रहे, जिनके साथ खेले-कूदे, नाचे-गाये, लड़ेझगड़े, जिनसे रीझे और स्वयं जिन्हें रिझाया, उन व्रजवासियोंके सौभाग्यका कोई क्या वर्णन करेगा। कृष्ण भक्त सखा गोपकुमार

व्रजमें गोप, गोपियाँ, गायें, गोपबालक आदि सभी वर्गोंमें कई प्रकारके लोग हैं। एक तो श्यामसुन्दर मदनमोहनके नित्यजन, उन गोलोकविहारीके शाश्वत सखा ! दूसरे वेदोंकी श्रुतियाँ, तीसरे बहुत से ऋषि-मुनि तथा अन्य लोग जो किसी-न-किसी अवतारके समय भगवान्की रूपमाधुरीपर मुग्ध हुए और उनको किसी रूपमें अपना बनानेको उत्कण्ठित हो गये, देवता तथा देवाङ्गनाएँ और पाँचवें वे धन्यभाग जीव, जो अपनी आराधनासे भगवान्के समीप पहुँचनेके अधिकारी हो चुके थे, जिन्होंने अनेक जन्मों में इसीलिये जप-तप, भजन-ध्यान किये थे कि वे परम ब्रह्म परमात्माको इसी पृथ्वीपर अपने किसी सुहृद्के रूपमें प्राप्त करें । कृष्ण भक्त सखा गोपकुमार
व्रज — श्रीकृष्णका व्रज तो है ही प्रेमका दिव्यधाम । वहाँ सभी प्रेमकी ही मूर्तियाँ रहती हैं। वहाँके किसीका प्रेम लौकिक मनकी सीमामें नहीं आता। उनमें भी गोपकुमारोंके प्रेमका तो कहना ही क्या । सुबल, सुभद्र, भद्र, मणिभद्र, वरूथप तोककृष्ण आदि तो श्रीकृष्ण के चचेरे भाई ही थे । श्रीदाम थे श्रीराधिकाजीके भाई । इनके अतिरिक्त सहस्रों सखा थे । इन बालकोंके तो श्रीकृष्ण ही जीवन थे, श्रीकृष्ण ही प्राण थे, श्रीकृष्ण ही सर्वस्व थे । ये श्रीकृष्णकी प्रसन्नताके लिये दौड़ते, कूदते, गाते, नाचते और भाँति-भाँतिकी क्रीड़ाएँ तथा मनोविनोद करते। श्याम गाता तो ये ताली बजाते; कन्हाई नाचता तो प्रशंसा करते; वह तनिक दूर हो जाता तो इनके प्राण तड़पने लगते और ये अपने उस जीवनसर्वस्वको छूने दौड़ पड़ते। मोहनको ये पुष्पों, किसलयों, गुञ्जा तथा वनधातुओंसे सजाते। वह थक जाता तो उसके चरण दबाते । उसके ऊपर कमलके पत्तेसे पंखा झलते। श्यामसे ये खेलते, लड़ते-झगड़ते और रूठा भी करते; किंतु मोहनके नेत्रोंमें तनिक भी दुःख या क्षोभकी छाया इन्हें सहन नहीं हो सकती थी । कृष्ण भक्त सखा गोपकुमार

कृष्ण भक्त सखा गोपकुमार
कृष्ण भक्त सखा गोपकुमार

श्रीकृष्णचन्द्र दूसरोंके लिये चाहे जो और जैसे रहे हों, अपने इन सखाओंके लिये सदा स्नेहमय, सुकुमार प्राणप्रिय सखा ही रहे-न कम, न अधिक! सखाओंका मान रखना उनका सदाका व्रत रहा। गोपकुमारोंका उनपर कितना विश्वास था, यह इसीसे स्पष्ट है कि सामने पर्वताकार अघासुरको देखकर भी उन्होंने उसे कोई कुतूहलप्रद गिरिगुफा ही समझा। किसीने सन्देह भी किया— ‘यदि यह सचमुच अजगर ही हो तो?’ बालकोंने हँसीमें उड़ा दी यह बात । उन्होंने कितने विश्वाससे कहा – ‘हो अजगर तो हुआ करे । यदि यह अजगर हुआ और इसने हमें भक्षण करनेका मन किया तो श्याम इसे वैसे ही फाड़कर फेंक देगा, जैसे उसने बगुले ( बकासुर) – को फाड़ दिया था।’ ऐसे निश्चिन्त विश्वाससे जो श्यामपर निर्भर करते हैं, श्याम उन्हींका तो है। कृष्ण भक्त सखा गोपकुमार

अपने सखाओंके लिये वह भुवनपावन अघासुरके मुखमें गया और उसका मस्तक फोड़कर अपने सखाओंका उसने उद्धार किया । इतना ही नहीं; क्योंकि गोपकुमारोंने अघासुरको खेलनेकी गुफा समझा था, श्रीकृष्णने असुरको निष्प्राण करके उसके देहको सखाओंके खेलनेकी गुफा बना दिया। इसी प्रकार व्योमासुर जब बालकोंमें गोपबालक बनकर आ मिला और खेलके बहाने छिपे-छिपे उन्हें गुफामें बंद करने लगा, तब श्यामने उसे पकड़कर घूसे-थप्पड़ों से ही मार डाला। कृष्ण भक्त सखा गोपकुमार

श्यामसुन्दरने सखाओंके लिये दावाग्निका पान किया और जब बालकोंने तालवनके फल खानेकी इच्छा प्रकट की, तब धेनुकासुरको बड़े भाईके द्वारा परंधाम भिजवाकर कन्हाईने उस वनको ही निर्विघ्न कर दिया। कालियह्रदका जल कालियनागके विषसे दूषित हो गया था, उसे अनजानमें पीकर गायें तथा गोपबालक मूर्छित हो गये। यह बात श्रीकृष्णचन्द्रसे भला, कैसे सही जाती। अपनी अमृतदृष्टिसे सबको उन्होंने जीवन दिया तथा कालियके ह्रदमें कूदकर उस महानागके गर्वको चूर-चूर कर दिया और उसे वहाँसे निर्वासित कर दिया । कृष्ण भक्त सखा गोपकुमार

श्रीकृष्ण मथुरा गये और फिर व्रज नहीं आये – यह बात दूसरे सब लोगोंके लिये सत्य है, संसारके लिये भी सत्य है, किंतु मोहनके भोले सखाओंके लिये यह सत्य सदा ही असत्य रहा और रहेगा । जो कन्हाईको एक घड़ी तो क्या, एक क्षण कालियके बन्धनमें निश्चेष्ट पड़ा देखकर मूर्छित हो गये, मृतप्राय हो गये, वे क्या अपने मयूरमुकुटी सखाका वियोग सह सकते थे? वे कन्हाईले बिना जीवित रहते? श्रुति इसीसे तो श्रीकृष्णको सर्वसमर्थ, विभु और सर्वशक्तिमान् कहती है। वे व्रजसे गये मथुरा और फिर नहीं लौटे; किंतु व्रजके गोपकुमारों-जैसे परम प्रेमियोंके हृदयमें उनके चरण प्रेमकी रज्जुसे इतने ढीले नहीं बँधे थे कि वहाँसे वे खिसक सकें । अतएव गोपकुमारोंके लिये तो वे कहीं गये ही नहीं। शास्त्र कहता है— ‘वे वृन्दावन छोड़कर एक पग भी कहीं बाहर नहीं जाते  कृष्ण भक्त सखा गोपकुमार

ओर पड़ने के लिया निसे नजर दे 

1 भक्त सुव्रत की कथा 2 भक्त कागभुशुण्डजी की कथा 3 शांडिल्य ऋषि की कथा 4 भारद्वाज ऋषि की कथा 5 वाल्मीक ऋषि की कथा 6 विस्वामित्र ऋषि की कथा 7 शुक्राचार्य जी की कथा 8 कपिल मुनि की कथा 9 कश्यप ऋषि की कथा 10 महर्षि ऋभु की कथा 11 भृगु ऋषि की कथा 12 वशिष्ठ मुनि की कथा 13 नारद मुनि की कथा 14 सनकादिक ऋषियों की कथा 15 यमराज जी की कथा 16 भक्त प्रह्लाद जी की कथा 17 अत्रि ऋषि की कथा 18 सती अनसूया की कथा

1 गणेश जी की कथा 2 राजा निरमोही की कथा 3 गज और ग्राह की कथा 4 राजा गोपीचन्द की कथा 5 राजा भरथरी की कथा 6 शेख फरीद की कथा 7 तैमूरलंग बादशाह की कथा 8 भक्त हरलाल जाट की कथा 9 भक्तमति फूलोबाई की नसीहत 10 भक्तमति मीरा बाई की कथा 11 भक्तमति क

र्मठी बाई की कथा 12 भक्तमति करमेति बाई की कथा

1 कवि गंग के दोहे 2 कवि वृन्द के दोहे 3 रहीम के दोहे 4 राजिया के सौरठे 5 सतसंग महिमा के दोहे 6 कबीर दास जी की दोहे 7 कबीर साहेब के दोहे 8 विक्रम बैताल के दोहे 9 विद्याध्यायन के दोह 10 सगरामदास जी कि कुंडलियां 11 गुर, महिमा के दोहे 12 मंगलगिरी जी की कुंडलियाँ 13 धर्म क्या है ? दोहे 14 उलट बोध के दोहे 15 काफिर बोध के दोहे 16 रसखान के दोहे 17 गोकुल गाँव को पेंडोही न्यारौ 18 गिरधर कविराय की कुंडलियाँ 19 चौबीस सिद्धियां के दोहे 20 तुलसीदास जी के दोहे  21  अगस्त्य ऋषि कौन थे उनका परिचय  22 राजा अम्बरीष की कथा 23 खट्वाङ्ग ऋषि की कथा || raja khatwang ki katha 24 हनुमान जी की कथा 25 जैन धर्म का इतिहास 26 राजा चित्रकेतु की कथा 27 राजा रुक्माङ्गद की कथा 28 राजा हरिश्चंद्र की कथा || राजा हरिश्चंद्र की कहानी 29 राजा दिलीप की कथा  30 राजा भरतरी की कथा 31 राजा दशरथ की कहानी 32 राजा जनक की कथा 33 राजा रघु की कथा 34 शिबि राजा की कथा 35 भक्त मनिदास की कथा 36 शत्रुघ्न कुमार की कथा 37 उद्धव जी की कथा 38 पांडवों का इतिहास  39 अर्जुन    

 

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bhaktigyans

My name is Sonu Patel i am from india i like write on spritual topic

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