अन्नपूर्णा स्तोत्रम । भगवान शिव द्वारा की गई अनपुर्णा की स्तुति
अन्नपूर्णा स्तोत्रम
संसार में सर्वप्रथम भिक्षा भगवान शिव ने माता अन्नपूर्णा जी से मांगी थी। और उन्होंने माता अन्नपूर्णा ईश्वरी की जो स्तुति की थी। आइए जानते हैं उसके बारे में।
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प्रथम अन्नपूर्णा स्तोत्रम स्तुति
नित्यानन्दकरी वराभयकरी सौंदर्यरत्नाकरी।
निर्धूताखिल-घोरपावनकरी प्रत्यक्षमाहेश्वरी।
प्रालेयाचल-वंशपावनकरी काशीपुराधीश्वरी।
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपुर्णेश्वरी।।
अर्थात्- हे देवि अन्नपूर्णा ! आप सदैव सबका आनन्द बढ़ाया करती हो, आपने अपने हाथ में वर तथा अभय मुद्रा धारण की हैं, आप ही सौंदर्यरूप रत्नों की खान हो, आप ही भक्तगणों के समस्त पाप विनाश करके उनको पवित्र करती हो, आप साक्षात् माहेश्वरी हो और आपने ही हिमालय का वंश पवित्र किया है, आप काशीपुरी की अधीश्वरी देवी हो, आप अन्नपूर्णेश्वरी और जगत् की माता हो, कृपा करके मुझको भिक्षा प्रदान करो ।
अनपुर्णा के सौंदर्य का वर्णन
नानारत्न-विचित्र-भूषणकरी हेमाम्बराडम्बरी।
मुक्ताहार-विलम्बमान विलसद्वक्षोज-कुम्भान्तरी।
काश्मीराऽगुरुवासिता रुचिकरी काशीपुराधीश्वरी।
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी।।
अर्थात्- हे देवि अन्नपूर्णा ! आप अनेक प्रकार के विचित्र रत्नों से जड़े हुए आभूषण धारण करती हो, आपही ने स्वर्ण-रचित वस्त्र पहन करके मुक्तामय हार द्वारा दोनों स्तन सुशोभित किए हैं, सारे शरीर पर कुंकुम और अगर का लेपन करके अपनी शोभा बढ़ाई है, आप काशीपुरी की अधीश्वरी देवी हो, आप ही अन्नपूर्णेश्वरी और जगत् की माता हो, हे भगवती अनपुर्णा आप कृपा करके मुझको भिक्षा प्रदान करो ।
अनपुर्णा से प्राप्त ऐश्वर्य
योगानन्दकरी रिपुक्षयकरी धर्माऽर्थनिष्ठाकरी।
चन्द्रार्कानल-भासमानलहरी त्रैलोक्यरक्षाकरी।
सर्वैश्वर्य-समस्त वांछितकरी काशीपुराधीश्वरी।
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी।।
अर्थात्-हे देवि ! आप योगीजनों को आनन्द प्रदान करती हो, आप ही भक्तगणों के शत्रुओं का विनाश करती हो, आप ही धर्मार्थ साधन में प्रीति बढ़ाती हो, आपने ही चन्द्र, सूर्य और अग्नि की आभा धारण कर रखी है, आप ही तीनों भुवनों की रक्षा करती हो, आपके भक्तगण जो इच्छा करते हैं, आप उनको वही सब ऐश्वर्य प्रदान करती हो, हे माता भगवती अनपुर्णा ! आप काशीपुरी की अधीश्वरी देवी और जगत् की माता हो, कृपा करके मुझको भिक्षा प्रदान करो ।
अनपुर्णा के नाना रूप
कैलासाचल-कन्दरालयकरी गौरी उमा शंकरी।
कौमारी निगमार्थगोचरकरी ओंकारबीजाक्षरी।
मोक्षद्वार-कपाट-पाटनकरी काशीपुराधीश्वरी।
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी।।
अर्थात्-हे अन्नपूर्णे ! आप ही ने कैलास पर्वत की कंदरा में अपना निवास स्थापित किया है । हे माता ! आप ही गौरी, आप ही उमा और आप ही शंकरी हो, आप ही कौमारी हो, वेद के गूढ़ अर्थ को बताने वाली हो, आप ही बीज मंत्र ओंकार की देवी हो और आप मोक्ष-द्वार के दरवाजे खोलती हो, आप काशीपुरी की अधीश्वरी देवी और जगत् की माता हो, हे जननि भगवती अनपुर्णा ! कृपा करके मुझको भिक्षा प्रदान करो ।
अनपुर्णा सब जीवो का पेट भर रही है
दृश्याऽदृश्य-प्रभूतवाहनकरी ब्रह्माण्डभाण्डोदरी।
लीलानाटकसूत्रभेदनकरी विज्ञानदीपांकुरी।
श्री विश्वेशमन प्रसादनकरी काशीपुराधीश्वरी।
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी।।
अर्थात्-हे देवि ! आप ही स्थूल और सूक्ष्म-समस्त जीवों को पवित्रता प्रदान करती हो, यह ब्रह्माण्ड आपके ही उदर में स्थित है, आपकी लीला में सम्पूर्ण जीव अपना-अपना कार्य करते हैं, आप ही ज्ञानरूप प्रदीप का स्वरूप हो, आप श्री विश्वनाथ का संतोषवर्द्धन करती हो । हे माता अन्नपूर्णेश्वरी ! आप काशीपुरी की अधीश्वरी देवी और जगत् की माता हो, कृपा करके मुझको भिक्षा प्रदान करो ।
उर्वी सर्वजनेश्वरी भगवती माताऽन्नपूर्णेश्वरी।
वेणीनील-समान-कुन्तलहरी नित्यान्नदानेश्वरी।
सर्वानन्दकरी दृशां शुभकरी काशीपुराधीश्वरी।
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी।।
अर्थात्-हे अन्नपूर्णे ! आप पृथ्वीमण्डल स्थित जनसमूह की ईश्वरी हो, आप षडेश्वर्यशालिनी हो, आप ही जगत् की माता हो, आप सबको अन्न प्रदान करती हो । आपके नीलवर्ण केश वेणी रूप से शोभा पाते हैं, आप ही प्राणीगण को नित्य अन्न प्रदान करती हो और आप ही लोकों को अवस्था की उन्नति प्रदान करती हो । हे माता ! आप ही काशीपुरी की अधीश्वरी देवी और जगत् की माता हो, कृपा करके मुझको भिक्षा प्रदान करो ।
आदिक्षान्त-समस्तवर्णनकरी शम्भोस्त्रिभावाकरी।
काश्मीरा त्रिजलेश्वरी त्रिलहरी नित्यांकुरा शर्वरी।
कामाकांक्षकरी जनोदयकरी काशीपुराधीश्वरी।
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी।।
अर्थात्-हे देवि अनपुर्णा ! लोग तन्त्रविद्या में दीक्षित होकर जो कुछ शिक्षा करते हैं, वह आप ही ने वर्णन करके उपदेश प्रदान किया है । आप ही ने सदाशिव के तीनों भाव (सत्, रज, तम) का विधान किया है, आप ही काश्मीर वासिनी शारदा, अम्बा, भगवती हो, आप ही स्वर्ग, मर्त्य और पाताल इन तीनों लोकों में ईश्वरीरूप से विद्यमान रहती हो । आप गंगा, यमुना और सरस्वती-इन तीन रूपों से पृथ्वी में प्रवाहित रहती हो, नित्य वस्तु भी सब आप ही से अंकुरित होती है, आप ही शर्वरी (रात्रि) के समान चित्त के सभी व्यापारों को शांत करने वाली हो, आप ही सकाम भक्तों को इच्छानुसार फल प्रदान करती हो और आप ही सभी जनों का उन्नति साधन करती हो । हे जननि ! केवल आप ही काशीपुरी की अधीश्वरी देवी और जगत् की माता हो । हे माता अन्नपूर्णेश्वरी ! आप कृपा करके मुझको भिक्षा प्रदान करो ।
देवी सर्वविचित्ररत्नरचिता दाक्षायणी सुंदरी।
वामस्वादु पयोधर-प्रियकरी सौभाग्यमाहेश्वरी।
भक्ताऽभीष्टकरी दशाशुभकरी काशीपुराधीश्वरी।
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी।।
अर्थात्-हे देवि ! आप सर्व प्रकार के विचित्र रत्नों से विभूषित हुई हो, आप ही दक्षराज के गृह में पुत्री रूप से प्रकट हुई थीं, आप ही केवल जगत की सुन्दरी हो, आप ही अपने सुस्वादु पयोधर प्रदान करके जगत् का प्रिय कार्य करती हो, आप सबको सौभाग्य प्रदान करके महेश्वरी रूप में विदित हुई हो, तुम्हीं भक्तगणों को वांछित फल प्रदान करती हो और उनकी बुरी अवस्था को शुभ रूप मे बदल देती हो । हे माता ! केवल आप ही काशीपुरी की अधीश्वरी देवी हो, आप अन्नपूर्णेश्वरी और जगत् की माता हो, कृपा करके मुझको भिक्षा प्रदान करो ।
चर्न्द्रार्कानल कोटिकोटिसदृशा चन्द्रांशुबिम्बाधरी।
चन्द्रार्काग्नि समान-कुन्तलहरी चन्द्रार्कवर्णेश्वरी।
माला पुस्तक-पाश-सांगकुशधरी काशीपुराधीश्वरी।
शिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी।।
अर्थात्-हे देवि ! आप कोटि-कोटि चन्द्र, सूर्य और अग्नि के समान उज्ज्वल प्रभाशालिनी हो, आप चन्द्र किरणों के तथा बिम्ब फल के समान अधरों से युक्त हो, आप ही चन्द्र, सूर्य और अग्नि के समान उज्ज्वल कुण्डलधारिणी हो, आपने ही चन्द्र, सूर्य के समान वर्ण धारण किया है, हे माता ! आप ही चतुर्भुजा हो, आपने चारों हाथों में माला, पुस्तक, पाश और अंकुश धारण किया है । हे अन्नपूर्णे ! आप काशीपुरी की अधीश्वरी देवी और जगत् की माता हो, कृपा करके मुझको भिक्षा प्रदान करो ।
क्षत्रत्राणकरी महाऽभयकरी माता कृपासागरी।
साक्षान्मोक्षरी सदा शिवंकरी विश्वेश्वरी श्रीधरी।
दक्षाक्रन्दकरी निरामयकरी काशीपुराधीश्वरी।
भिक्षां देहि कृपावलंबनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी।।
अर्थात्-हे माता अनपुर्णा ! आप क्षत्रियकुल की रक्षा करती हो, आप सबको अभय प्रदान करती हो, प्राणियों की माता हो आप कृपा का सागर हो, आप ही भक्तगणों को मोक्ष प्रदान करती हो, और सर्वदा सभी का कल्याण करती हो, हे माता आप ही विश्वेश्वरी हो, आप ही संपूर्ण श्री को धारण करती हो, आप ही ने दक्ष का नाश किया है और आप ही भक्तों का रोग नाश करती हो । हे अन्नपूर्णे ! आप ही काशीपुरी की अधीश्वरी और जगत् की माता हो, कृपा करके मुझको भिक्षा प्रदान करो । अन्नपूर्णा स्तोत्रम
अन्नपूर्णे सदा पूर्णे शंकरप्राणवल्लभे !
ज्ञान वैराग्य-सिद्ध्यर्थं भिक्षां देहिं च पार्वति।।
अर्थात्-हे अन्नपूर्णे ! आप सर्वदा पूर्ण रूप से हो, आप ही महादेव की प्राणों के समान प्रियपत्नी हो । हे पार्वति ! आप ही ज्ञान और वैराग्य की सिद्धि के निमित्त भिक्षा प्रदान करो, जिसके द्वारा मैं संसार से प्रीति त्याग कर मुक्ति प्राप्त कर सकूं, मुझको यही भिक्षा प्रदान करो । अन्नपूर्णा स्तोत्रम
माता च पार्वती देवी पिता देवो महेश्वरः।
बान्धवाः शिवभक्ताश्च स्वदेशो भुवनत्रयम् II
अर्थात्-हे जननि ! पार्वती देवी मेरी माता, देवाधिदेव महेश्वर मेरे पिता शिवभक्त गण मेरे बांधव और तीनों भुवन मेरा स्वदेश है। इस प्रकार का ज्ञान सदा मेरे मन में विद्यमान रहे, यही प्रार्थना है । अनपुर्णा स्तोत्र
🙏🌹इति श्रीमद शंकराचार्य विरचित अन्नपूर्णा स्तोत्रम्🌹🙏
भंडारे में भोजन करते समय बोले जाने वाले प्रश्न उत्तर अन्नपूर्णा स्तोत्रम
प्रश्न :- स्वामी जी किसके जो देखे बड़े गाजे-बाजे किसको जो देखे बड़े भूप राजे किसको जो देखी बड़ी जगत जननी किसको देगी बड़ी क्षमा करणी?
उतर :- अवधू इंद्र के जो देखे बड़े गाजे-बाजे।सतगुरु जी जो देखे बड़े भूप राजे माता जो देखी बड़ी जगत जरणी धरती जो देखी बड़ी क्षमा करणी।
प्रश्न :- स्वामी जी कौन पेड़ बिंन डाल कौन पंख बिन सुवा कौन पाल बिन नार कौन बिन काल मुआ?
उतर :- अवधू पवन पेड़ बिन डाल मन पंख बिना सुवा धीरज पाल बिन नार निंद्रा बिन काल मुआ।
प्रश्न :- स्वामी मन का कौन रूप पवन का कौन आकार दमकी कौन दशा साधीबा कौन द्वार?
उतर :- अवधू मन का शून्य रूप पवन का निरालम्ब आकार दम की अलेख दशा साधिबा दशवें द्वार।
मुझे उम्मीद है दोस्तों यह अन्नपूर्णा स्तोत्रम एवं भंडारे के समय बोले जाने वाले प्रश्न उत्तर आपको जरूर पसंद आए होंगे अगर आपको पसंद आए हैं तो लाइक कमेंट और अपने बंधुओं में शेयर करना ना भूले ऐसी और भी महत्वपूर्ण जानकारियां पढ़ने के लिए आप नीचे दी गई समरी पर भी क्लिक करके भी पढ़ सकते हैं। धन्यवाद !
आध्यात्मिक ज्ञान प्रश्नोत्तरी कवि गंग के दोहे गिरधर कविराय की कुंडलियां रसखान के सवैया उलट वाणी छंद गोकुल गांव को पेन्डो ही न्यारौ ब्रह्मा विष्णु महेश की उत्पत्ति कैसे हुई राजा निर्मोही की कथा गज और ग्राह की कथा चौबीस सिद्धिया वर्णन सच्चे संत के क्या लक्षण है? धर्म क्या है? शराब छुड़ाने का रामबाण उपाय बलात्कार रोकने के कुछ उपाय आत्मबोध जीव ईश्वर निरूपण शंकराचार्य जी का जीवन परिचय सती अनुसूया की कथा अत्रि ऋषि की कथा भक्त प्रहलाद की कथा यमराज की कथा सनकादि ऋषियों की कथा देवर्षि नारद की कथा वशिष्ठ ऋषि की कथा भृगु ऋषि की कथा महर्षि ऋभु की कथा गोस्वामी समाज का इतिहास कपिल मुनि की कथाा कश्यप ऋषि की कथा आत्महत्या दुखों का निवारण नहीं
Very nice
Supr